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समय है… गुजर जाएगा

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी
लखनऊ (उ.प्र.)
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मुश्किल वक्त है, गुजर जाएगा
फिर से नया सबेरा जगमगाएगा।
संयम, धीरज, मानवता की
अहमियत समझ हे “मन”
विकट, विषम, परिस्थितियां है बहुत
ना घबरा “तू”,खुद पर भरोसा रख
बढ़ चल कर्म के रास्तों पर,
आगे बढ़, हर मानवता को जुट कर दे हाथ,
ना विचलित हो न डर
धीरज की परिभाषा को सार्थक कर
आंसू की एक बूंद भी
हाहाकार मचा दे समंदर में
हिम्मत हौसला हो साथ तो
न टिक पाएगा कोई तूफान समंदर में
अब से समझ ऐ नादान तू जीवनभर के लिए
ना खुद को समय से बलवान समझ
ना कर अब नादानियां, प्रकृति के विरुद्ध
ना ही आंसू का कोई कण दे
उन मासूम जीवों की आंखों में
हर जीव के खून का हर कतरा,
नासूर बना है आज पूरी दुनिया का,
सुना था जिंदगियां बदलती हैं समय के साथ
पर अब समझ आया
बदलता हुआ समय भी
जिंदगियां उजाड़ सकता है पल में
अमन, चैन, सैयंम, धीरज
हाथ जोड़े खड़े हैं मानवता के साथ
हे मन चल साथ क़दम से क़दम मिला
घुमा पहिया इस मुुश्किल पल का,
सूरज की नई भोर से फिर से आंदोलित हो
ये “जग जीवन”

परिचय :- श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी
पति : श्री राकेश कुमार चतुर्वेदी
जन्म : २७ जुलाई १९६५ वाराणसी
शिक्षा : एम. ए.,एम.फिल – समाजशास्त्र,पी.जी.डिप्लोमा (मानवाधिकार)
निवासी : लखनऊ (उ.प्र.)
विशेष : साहित्यिक पुस्तकें पढ़ने के शौक ने लेखन की प्रेरणा दी और विगत ६-७ वर्षों से अपनी रचनाधर्मिता में संलग्न हैं।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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