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पद्य

शिव-गौरी विवाह
भजन, स्तुति

शिव-गौरी विवाह

ज्ञानेन्द्र पाण्डेय "अवधी-मधुरस" अमेठी (उत्तर प्रदेश) ******************** बूढ़े बैल असवार, आये हिमगिरि के द्वार, ब्याहन गौरी सरकार, भोले भंडारी।। गल माहीं लिपटा है विषधर माथे बाल विधू है सुंदर डमरू संग हांथ तिरसूला नीलकंठ गंगाधर शंकर छाती नर मुंडन कै हार, बिछुआ कनवा झूलनदार है अद्भुत रूप सिंगार भोले भंडारी.... दीखैं रंग रंग बाराती कोऊ मोटा ताजा माती बिन मुख हांथ पाँउ बा केऊ केउतउ बहु अंगन जामाती कूकुर सुअर सियार, गदहा मुखन आकार, नाहीं इनकै है संभार भोले भंडारी.... नाचत भूतन सँगे परेता डाकिनी शाकिनी समेता जोगिनी संगती भिड़ावैं ढ़ोलक पिशाचिनी जमेता बैठी सकल जिंवार, रही बरातिन निहार, खोले सजरा हजार भोले भंडारी.... चहुँमुख बजे हैं नगाड़े ब्रह्मा विष्नु हैं पधारे सगरे देवा हैं पहुँचे राजा हिमाँचली द्वारे लखिके दमदा लीलार, मैंना पीटैं कापार, विधिन...
मैं विश्वनाथ का नंदी हूँ
भजन, स्तुति

मैं विश्वनाथ का नंदी हूँ

डॉ. अवधेश कुमार "अवध" भानगढ़, गुवाहाटी, (असम) ******************** मैं विश्वनाथ का नंदी हूँ, दे दो मेरा अधिकार मुझे। वापी में हैं मेरे बाबा, कर दो सम्मुख-साकार मुझे।। अब तो जागो हे सनातनी, डम-डमडम डमरू बोल रहा। न्यायालय आकर वापी में, इतिहास पुराने खोल रहा।। अब बहुत छुप चुके हे बाबा, करने दो जय-जयकार मुझे। एक विदेशी खानदान ने, मंदिर को नापाक किया था। मूल निवासी सनातनी के, काट कलेजा चाक किया था।। औरंगजेब नाम था उसका, वह धर्मांध विनाशक था। भारत माता के आँचल का, वह कपूत था, नाशक था।। आस्तीन में साँप पले थे, बहु बार मिली थी हार मुझे। ले रहा समय अब अँगड़ाई, खुल रहे नयन सुविचार करो। बहुत सो चुके हे मनु वंशज, उठ पुनः नया उपचार करो।। लख रहा दूर से बेसुध मैं, वर्षों से बाबा दिखे नहीं। मैं अपलक चक्षु निहार रहा, विधि भी आकर कुछ लिखे नहीं।। अवध अहिल्या...
रास्ते का अंधा बटोही …
कविता

रास्ते का अंधा बटोही …

मानाराम राठौड़ जालौर (राजस्थान) ******************** मंजिल कितनी दूर है! देख ले सपना कितना सच है! देख ले सपना है! मंजिल की पहुंच अपना है! सपने का मंजिल देख ले मंजिल की राह कांटो से भरी कंकड़ सड़क जाते मंजिल चटक-भटक मंजिल कितनी दूर है! सपना कितना सुदूर है! बटोही नहीं देखे राह अपनी कौन कहे यह कहानी अपनी घर आते आते ढल जाती है! संध्या सुबह होते-होते भूल जाते हैं! सपना परिचय :- मानाराम राठौड़ निवासी : आखराड रानीवाड़ा जालौर (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहान...
त्रिभंगी छंद आधारित शिव स्तुति
छंद

त्रिभंगी छंद आधारित शिव स्तुति

अर्चना तिवारी "अभिलाषा" रामबाग, (कानपुर) ******************** त्रिभंगी छंद आधारित शिव स्तुति १ जय -जय शिव शंकर, प्रभु अभ्यंकर, नाथ महेश्वर, भंडारी। हे जग अखिलेश्वर, प्रभु परमेश्वर, हे गिरिजेश्वर, त्रिपुरारी।। यह मन है चंचल, होता विह्वल, घुलता पल-पल, माया में। प्रभु पार लगाओ, दरश दिखाओ, मत भटकाओ, काया में।। २ मद लोभ फँसी मैं, क्रोध धँसी मैं, विरह हँंसी मैं, हे भगवन्। माया में अटकी, दर-दर भटकी, दुख में लटकी, हे त्रिभुवन।। उर पीर बड़ी है , विकट घड़ी है, नीर झड़ी है, गिरिजेश्वर। हे नाथ उबारो, संकट टारो, मुझे सम्हारो, अखिलेश्वर।। ३ रोते हैं नैना, उर बेचैना, पीड़ित बैना, प्रभु मेरे। हूँ लाज गड़ी मैं, द्वार खड़ी मैं, शरण पड़ी मैं ,प्रभु तेरे।। मम त्रास मिटाओ , हृदय लगाओ, अंक बिठाओ, हे दाता। प्रभु विनती करती , नाम सुमिरती , धीरज धरती, जग त्राता।। ४ हे नाथ महेश्वर, हे ...
बहराइच
कविता

बहराइच

अनुराधा प्रियदर्शिनी प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) ******************** भारत में उत्तर प्रदेश का एक जिला बहराइच देवीपाटन क्षेत्र का एक भाग है बहराइच घना जंगल और नदी की बहाव यहाँ पर तेज भर राजवंश की राजधानी बहराइच, भारिच प्रकृति की मनोहर छटा बहराइच की पहचान ग्यारहवीं सदी में एक राजा हुए बहुत महान सैयद सालार मसूद गा़ज़ी को दी थी शिकस्त महाराज सुहेलदेव की गौरवगाथा महान उत्तर में नेपाल की है अंतरराष्ट्रीय सीमा दक्षिण भाग में है सीतापुर और बाराबंकी पूरब में श्रावस्ती से स्पर्श करता है बहराइच पश्चिम भाग में इसके गोंडा जिला और खीरी पुरूषोत्तम श्रीराम और लव का यहाँ राज्य कतर्निया वन्यजीव अभयारण्य यहाँ शान पर्यटकों को लुभाता है यहाँ का सुंदर दृश्य ब्रह्मा जी का रचा हुआ ऋषियों का स्थल जप तप और साधना को सुंदर बसा स्थान पांडव कालीन सिद्धनाथ मंदिर यहाँ बीच पांडव को जब वनवास बह...
खुला आसमां
मुक्तक

खुला आसमां

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** मिलने के बाद सब बेगाने हो जाते हैं आने के बाद सावन के, सब झूलों में खो जाते हैं सुनहरी धूप का आंचल हर कोई ओढ़ लेता है कठिन कंटक में कोई चलना नहीं चाहता हर कोई फूलों की महक के दीवाने हो जाते हैं। हालत की उलझनों में उलझे हुए कौन तसल्ली देता है किसे सब अपनों में अपने है बेगानो का सिर्फ खुला आसमां होता है परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इंदौर से भी रचनाएं प्रसारित होती रहती हैं व वर्तमान में इंदौर लेखिका...
वसन्ततिलका – उक्ता वसंततिलका
छंद

वसन्ततिलका – उक्ता वसंततिलका

ज्ञानेन्द्र पाण्डेय "अवधी-मधुरस" अमेठी (उत्तर प्रदेश) ******************** तभजा : जगौ ग : (तगण, भगण, जगण, जगण, दो गुरु - १४ वर्ण ८, ६ पर यति हो या नहीं भी हो, दो सम तुकान्त) (ॐ स विष्णवे नम:) श्री विष्णु पूजन करो, उठते सवेरे। एकादशी अति शुभी, जपले लबेरे।। पीतांबरी तन गछी, कर शंख राधे। बैजंति माल गल में, गद चक्र साधे।। दैत्यासुरा दल दिखे, भयभीत भाजे। पापी कुकर्म बझिके, कबहूँ न छाजे।। फैले प्रकाश हिय में, जब भान होगा। सत्ता उसी परम की, तब ज्ञान होगा।। मानो न बात उलटी, न बनो कुगामी। सोचो मिले न कुछ भी, घुमिए गुनामी।। आगे बढ़ें सपथ पे, न चलें कुचालें। पैनी रखें नजर यूँ, डग भी सँभालें।। लिखा वही करम का, लिखता-मिटाता। भाषा न जान सकता, कितना छुपाता।। है कर्म सुंदर जभी, तब ही सुहाता। धर्ता वही जगत का, वह ही प्रदाता।। आओ विचार करलें, भरलें चिता में। कूर्मा सरूप...
भारत की प्रथम महिला सरोजनी नायडू
कविता

भारत की प्रथम महिला सरोजनी नायडू

प्रतिभा दुबे ग्वालियर (मध्य प्रदेश) ******************** सशक्तिकरण महिला का चेहरा सरोजिनी जी के रूप में जान रहे, उनके संघर्षों के पथ से उनको राजनीति तक आज पहचान रहे। स्वतंत्रता सेनानी के रूप में, वे सदैव बड़ा मनोवल रखती थी भारत को लेखन से जोड़कर वीर काव्य यह कहती थी यह भारत तुम्हारा है ... यह इतिहास तुम्हारा है ... झुक ना जाए जीवन पथ पर, सर ओ मातृभूमि के लाडलो रक्षा के अधिकारी बनो तुम, यह सर्वसिद्धि हित तुम्हारा है।। सरोजिनी जी के सम्मान में हम नमन आज करते हैं उनकी जैसा कोन यहां, भारत में कोई सितारा हैं।। परिचय :-  श्रीमती प्रतिभा दुबे (स्वतंत्र लेखिका) निवासी : ग्वालियर (मध्य प्रदेश) उद्घोषणा : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि ...
ख्वाब
कविता

ख्वाब

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** ख्वाब में तुझे जब से देखा, चाहने की तमन्ना थी, मन में बड़ी उम्मीद थी, दिल में बड़ी उमंग थी, रब ने तुझे मेरे लिए ही भेजा, खयालों में दिन रात आती हो मेरे, ख्वाबों में सदा बस्ती हो तुम मेरे, नही ओझल होती हो तुम निगाहो से, वो नशीली आंखें मद होश, हर पल करती है मुझे, मुस्कान पर तेरी बिछा दूं, पलकों की चादर, मदहोश करती है हर अदा यह तेरी, वह होठ का तिल जो है वह जान है मेरी, गुलाबी होठों पर लाली जैसे गुलाबी फूल का खिलना, उड़ती जुल्फे है जो बिखरी, हवा की ओर जो उड़ती, लटकती लट जो हे तेरी, हर अदा पे वो बिखरी, ख्वाब तो बस ख्वाब था, जब होश है आया, वह अलग और मैं अलग, बस कहानी सपनों की थी। परिचय : किरण पोरवाल पति : विजय पोरवाल निवासी : सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प...
चहुँ ओर
कविता

चहुँ ओर

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** तुम सृष्टि के कण-कण में हो। तुम मानव के मन-मन में हो। तुम बीतते वक्त के क्षण-क्षण में हो। तुम सोचते-विचारते जन-जन में हो। तुम बनती बिगड़ती परिकल्पना के पल-पल में। तुम अनंत व्योम के चमकते सितारे-सितारे में हो। परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में ट...
मुँह मीठा मन खारा
ग़ज़ल

मुँह मीठा मन खारा

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** मुँह मीठा मन खारा मत कर। जीती बाजी हारा मत कर। धूप, हवा से डर कर अपने, आँगन को चौबारा मत कर। रुक जाए पैमाना लब पर, इतना मन को मारा मत कर। न कहने की कहकर बातें, दिल का बोझ उतारा मत कर। अपनी है उस हद से ज़्यादा, अपने पैर पसारा मत कर। साथ रहें हैं जो रस्ते भर , उनके साथ किनारा मत कर। मिलना है मिल जाएगा वो, इतना, उतना, सारा मत कर। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास : अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति : शिक्षक प्रकाशन : देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान : साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कह...
इतिहास गाथा
कविता

इतिहास गाथा

कुंदन पांडेय रीवा (मध्य प्रदेश) ******************** है रही सुसज्जित ये धानी प्राचीन काल में वैभव से है पत्थर पर अभिलेख यहां पाषाण काल के उद्भव से सुनकर इस गौरव गाथा को अपने अतीत का मान करो जो इतिहासो के पन्नों में तुम कथा वही अविराम कहो। सोलंकी राज धवल के सुत गुजरात राज्य से थे आए जिनके कारण यह राज्य बना जो व्याघ्र देव थे कहलाए हो चंद्रवंश या सूर्यवंश या शीतल तपिश हि नाम कहो जो इतिहासो के पन्नों में तुम कथा वहीं अविराम कहो हो सारनाथ का वह वैभव सांची की अमर निशानी हो गौतम का हो उपदेश यहां चाहे संतों की वाणी हो जो क्रूर हृदय कोमल कर दे ऐसे जातक सरेआम कहो जो इतिहासो के पन्नों में तुम कथा वही अविराम कहो है धन्य धरा इस भारत की और धन्य हमारी माटी है हर पग में है संस्कार यहां यहां संस्कृत की परिपाटी है हर कला सुसज्जित पत्थर में चाहे खजु...
शब्दांजलि
कविता

शब्दांजलि

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** ताऊ जी श्री रामचंद्रलाल श्रीवास्तव को विनम्र शब्दांजलि पिछले कुछ दिनों से मेरे मन में एक डर सा समाया रहता था, पर उसका आशय क्या है बस! यही समझ नहीं आ रहा था। पर आज सामने आ गया जब मेरे सिर पर अपनी अनवरत सुरक्षा छाया देने वाला विशालकाय वटवृक्ष अचानक ही गिर गया। निस्तेज, निष्प्राण, अनंत मौन होकर भी हमें संबल दे रहा था, जैसे अब भी हमारे पास होने का हमें विश्वास दिला रहा था। पर सच्चाई तो ये है कि हमें झूठी तसल्ली दे रहा था। या शायद हमें अपने कंधे मजबूत करने का संदेश दे रहा था। जो भी हो पर हमें भी पता है अब वो वटवृक्ष न कभी खड़ा होगा न शीतल हवा देगा न ही हमें सुरक्षा मिश्रित भाव ही देगा। क्योंकि वो तो जा चुका है अपनी अनंत यात्रा पर बहुत दूर जिसकी स्मृतियां हमें रुलाएगी दूर होक...
अधोगति होती मन की
कविता

अधोगति होती मन की

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** अधोगति होती पानी की, नदिया हो या झरना। गिरता है स्वभाव बस अपने, फिर क्यों चिंतन करना। नीचे से ऊपर को जाना, है उत्थान कहाता। पाने को उत्थान सदा ही, मानव स्वेद बहाता। झरना झर झर नीचे गिरता, अठखेली करता है। धुवाँधार है दृश्य मनोरम, सबका मन हरता है। हों कितनी कठोर चट्टानें, भले कोई बाधा हो। झरना कभी नहीं रुकता है, कभी न वल आधा हो। वसुधा से वसुधा पर गिरता, इसमें पीड़ा कैसी। ऊँच नीच इसमें ना होती, माँ की ममता जैसी। गिरता जो मंजिल पाने को, यह उसकी ऊँचाई। मंजिल पा जाना ही सबके, जीवन की सच्चाई। झरने सभी उतरते नीचे, ऊँचाई पाने को। ऊँचाई पाकर तत्पर हैं, फिर नीचे जाने को। यही प्रकृति का नियम साथियो, हरदम आगे बढ़ना। चींटी सम सौ बार गिरें पर, फिर फिर ऊपर चढ़ना। झरना तो गिरता उमंग से, पी...
संत शिरोमणि रविदास
कविता

संत शिरोमणि रविदास

अशोक कुमार यादव मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** स्वर्णयुग में निर्गुण धारा के भक्त कवि। अपनी वाणी से जनजागृति किया रवि।। लोक कल्याण करने जन्म लिया काशी। संतोख और कलसा के पूत अविनाशी।। कान्ता लोना, वत्स विजय से हुए विमुख। शिष्या झाला, मीराबाई के बने गुरु प्रमुख।। परहित, दयालु और आनंद का खजाना। ईश्वर-भजन, भक्ति और सत्संग दीवाना।। भवसागर पार कराने गुरु नाम है अग्रणी। रामानंद के शिष्य रैदास संत शिरोमणि।। मध्यकाल में कबीरदास के समकालीन। कार्य समय में करने हमेशा थे तल्लीन।। साधु-संतों की संगति से विज्ञान अर्जित। अध्यात्मिक ज्ञान जन-जन को अर्पित।। रैदास की वाणी समाज हित की भावना। मधुर, भक्तिमय भजनों की सुंदर रचना।। ऊंच-नीच की भावना निरर्थक यही संदेश। सबको प्रेमपूर्वक रहने का दिया उपदेश।। सतगुरु और जगतगुरु की मिली उपाधि। चित्तौड़गढ़ में है गुरुवर ...
मैं एक परिंदा हूँ
कविता

मैं एक परिंदा हूँ

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** मैं एक परिंदा हूँ इस जहां से ही शर्मिंदा हूँ, उड़ने को सारा आसमां है खाली पर कतर डाले मेरे फिर भी मैं जिंदा हूँ मैं एक परिंदा हूँ... हम परिंदे ऊंची उड़ान की ताक में हैं पर तीर आज हर मनुष की कमान में है सोचता था सब ठीक होगा एक दिन, पर मेरा भ्रम भ्रम ही रहा क्युकी मैं एक परिंदा ही तो हूँ....! मैं आजाद बेफिक्र सा पंछी, तुमने कैद कर चुरा डाली सांसे मेरी दिल पर मेरे क्या गुजरी ये तुम क्या समझो हे मानव कभी तूफ़ाँ ने उड़ा डाला घरौंदा मेरा, कभी टहनियों पर बसा उजाड़ डाला तुमने अभिलाषा उस नन्हें परिंदे सी तो थी, जो विशाल गगन में पखं फैलाने का दम भरता है क्योंकि मैं एक परिंदा हूँ...! लौट आता हूँ बार-बार उसी कूचे पर, रंग नया है पर मकां वही पुराना है, ये घर मेरा जाना पहचाना सा है, ...
युवाओं की झोली भर दो
कविता

युवाओं की झोली भर दो

रामेश्वर दास भांन करनाल (हरियाणा) ******************** सरकारी पद पड़े जो खाली देश में, उसको भर दो ए देश की सरकार, बेरोज़गारी कम होगी देश में हमारे, युवाओं को मिल पाऐगा रोज़गार , वादे जो तुमने किये सत्ता में आकर, वो भी कुछ पुरे हों जाएंगे, उम्मीद जगी थी जो युवाओं में, उनके चेहरे, दिल भी खिल जाएंगे, मजबूत होंगे जनता के संस्थान, सरकार भी मजबूती पाएगी, ना करो देश का प्राइवेटाइजेशन, देश की सम्पत्तियां बिक जाएंगी, शिक्षा, स्वास्थ बस मुफ्त तुम कर दो, हर घर रोशनी से यहांँ तुम भर दो, देकर रोज़गार युवाओं को देश में उनकी झोली ए मेरी सरकार भर दो, परिचय :-  रामेश्वर दास भांन निवासी : करनाल (हरियाणा) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्री...
मेरा वह परिवार कहाँ है
कविता

मेरा वह परिवार कहाँ है

आनंद कुमार पांडेय बलिया (उत्तर प्रदेश) ******************** अपनो की वह हंसी ठिठोली, कोयल जैसी मीठी बोली। सबका एक समूह में रहना, था अपना परिवार हीं गहना।। दिखता वह अधिकार कहाँ है। मेरा वह परिवार कहाँ है।। भरा पूरा परिवार था अपना, अब क्यों हुआ आज है सपना। दादी का शाही फरमान, दादा का अपना पहचान।। वह चिट्ठी का आना जाना, पढ़ने सुनने का दौर निराला। वह क्षण तो अद्भुत लगता था, प्रेम का था हर-पल उजाला।। सपनों का वह संसार कहाँ है। मेरा वह परिवार कहाँ है।। मानू सब कुछ बदल गया है, नया दौर सब निगल गया है। मोबाइल के दौर में अब तो, अपना सब कुछ फिसल गया है।। घर परिवार तो नजर न आता, इंटरनेट से जुड़ गया नाता। बदल गया इंसान यहाँ का, अलग-थलग सब हुआ विधाता।। मां बेटे में प्यार कहाँ है, मेरा वह परिवार कहाँ है।। वह राजा रानी की कहानी, सुनते थे नानी की जुबानी। मां ...
शिव शंकर भोले भंडारी
भजन, स्तुति

शिव शंकर भोले भंडारी

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** शिव शंकर भोले भंडारी, भरते हैं भंडार । नीलकंठ कैलाश विराजे, देते वर उपहार।। हाथ रखें त्रिशूल हैं भोला, देते हैं सौगात। मोक्षदायिनी जटा जूट में, जैसे पुण्य-प्रभात।। शीश विराजत चंद्र प्रभो के, गल मुंडो की माल। तांडव जब करते शंकर हैं, काँपे फिर तो काल।। जीवन संगिनी पार्वती हैं, रहें नंदी सवार। प्रभु निष्कामी हैं अन्तर्यामी, त्रिलोकी महाकाल। सुखकारी हैं मंगलकारी, करते मालामाल।। बामदेव गंगाधर शंकर, त्रिपुरारी गिरिनाथ। भूतनाथ शशिशेखर देवा, रहें गणों के साथ।। व्योमकेश पशुपति पिंगल हैं, कर लो जयजयकार। ओम नमों का जाप करो सब, निराकार भगवान। सकल विश्व की रक्षा करते, ज्योति लिंग पहचान।। मोक्ष दिलाते भक्तो को प्रभु, हरते संकट नाथ। शिव महिमा गा रहे देवता, भस्म रखें सब माथ।। दुखभंजन हैं अलख निरंजन, प्रभु हैं ...
शीत लहर
छंद

शीत लहर

रामसाय श्रीवास "राम" किरारी बाराद्वार (छत्तीसगढ़) ******************** सोरठा छंद शीत लहर से आज, जूझ रहा संसार है। रूक गया सब काज, बचना इससे है कठिन।। पौष माघ की जाड़, लोग ठिठुरते ठंड से। कॅंपा रही है हाड़, बेबस हैं इससे सभी।। छायी धुंध अपार, चलना भी दूभर हुआ। ठंडी चली बयार, कहीं हुआ हिमपात है।। मौसम की है मार, इससे बच सकते नहीं। त्रस्त सभी नर नार, हैं इसके आगोश में।। बाल वृद्ध बीमार, खूब परेशाॅं हैं यही। जीना है दुश्वार, फिर भी है धीरज धरे।। मन में है विश्वास, बदलेगा मौसम कभी। है बसंत अब पास, आने को है द्वार पर।। सुखद सुहानी धूप, दिनकर लेकर आ गया। रंक रहे या भूप, सबको यह प्यारा लगे।। परिचय :- रामसाय श्रीवास "राम" निवासी : किरारी बाराद्वार, त.- सक्ती, जिला- जांजगीर चाम्पा (छत्तीसगढ़) रूचि : गीत, कविता इत्यादि लेखन घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि स...
मरना किसलिए
कविता

मरना किसलिए

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** मरना किसलिए जीने के लिए सिमट गया मानव अपने आप में ताशो के पत्तों सी फेटी जा रही है ज़िंदगी सिर्फ स्वयं के लिए, स्वयं के लिए पर सुनो तुम्हें बिखरना ही होगा बिखरना ही होगा चाहे छुपकर क्यों नहो बिखरना होगा वृक्ष के पत्तों की तरह पिलासपन लिए कहीं दूर बहुत दूर जा गिरना है अपनों से तू भूल गया की वृक्ष फल फूल लेते हैं दूसरों के लिए फिर तू क्यों सिमट रहा है अपनों में समाज देश में कुछ बाटता हुआ निकल जा ताश के पत्तों सा बादशाह बन निकल जा बेताज बादशाह। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप शासकीय...
राष्ट्रीयता के मुक्तक
मुक्तक

राष्ट्रीयता के मुक्तक

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** हिन्दू, मुस्लिम एक हैं, सभी एक इंसान। सिक्ख और ईसाईयत, सब में इक भगवान। जब सारे मिलकर रहें, तो गुलशन आबाद, देश प्रगति के पूर्ण तब, होंगे सब अरमान।। खेतों में जब श्रम करें, हलधर प्रखर किसान। सीमाओं पर हों डँटे, सारे वीर जवान। तभी देश आगे बढ़े, जीते हर इक जंग, तभी बनेगा वास्तव, भारत देश महान।। भारत माँ का लाल हूँ, दे सकता मैं जान। गाता हूँ मन-प्राण से, मैं इसका यशगान। आर्यभूमि जगमग धरा, बाँट रही उजियार, इसकी गरिमा, शान पर, मैं हर पल क़ुर्बान।। भगतसिंह, आज़ाद का, अमर सदा बलिदान। ऐसे पूतों ने रखी, भारत माँ की आन। जो भारत का कर गए, सचमुच चोखा भाग्य, ऐसे वीरों ने दिया, हमको नवल विहान।। जय-जय भारत देश हो, बढ़े तुम्हारा मान। सारे जग में श्रेष्ठ है, कदम-कदम उत्थान। धर्म, नीति, शिक्षा प्रखर, बाँटा सबको ...
अब इसी बात का डर है !
कविता

अब इसी बात का डर है !

डाॅ. रेश्मा पाटील निपाणी, बेलगम (कर्नाटक) ******************** अब शराबियों का कोई डर नहीं है बदमाशों के खौफ से भी गली नहीं कांपती शराब अपनी बोतल में ठंडी पडी होती है तिजोरियों के ताले बदमाशों के हाथ लगे हैं डर बंदूक का नहीं है डर तलवार का भी नहीं है अब मुझे रंगों से डर लगता है पड़ोस में रहने वाले पड़ोसी का अब पड़ोसी कट्टरता से हरा हो गया है धर्मांधता से भगवा हो गया है हठधर्मी से नीला हो गया है मुझे नहीं पता कि भारत में कितने गांव और कस्बे हैं लेकिन हर गांव में हर शहर में भारत है अब डर लगने लगा है की भारत का अंत हो रहा है यहां धर्मों की घोषणा के साथ विविधता से भरी गली हिल गई है और दिल्ली सोने का नाटक कर रही है और खर्राटे ले रही है दिल्ली क्या अब कभी जागृत नहीं होगी? मुझे अब इस बात का डर है नाथूराम गांधी की मूर्ति के सामने खड़े हैं लेकिन गांधी की ...
मित्रता के दोहे
कविता

मित्रता के दोहे

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** मिले मित्रता निष्कलुष, मित्र निभाये साथ । मित्र वही जो मित्र का, कभी न छोडे़ हाथ ।। पथ दिखलाये सत्य का,आने नहिं दे आंच । रहता खुली किताब-सा, लो कितना भी बांच ।। मित्र सदा रवि-सा लगे, बिखराता आलोक । हर पल रहकर साथ जो, जगमग करता लोक ।। कभी न करने दे ग़लत, राहें ले जो रोक । सदा मित्र होता खरा, जो देता है टोक ।। बुरे काम से दूर रख, जो देता गुणधर्म । मित्र नाम ईमान का, नैतिकता का मर्म ।। नहीं मित्रता छल-कपट, ना ही कोई डाह । तत्पर करने को ‘शरद’, वाह-वाह बस वाह ।। खुशबू का झोंका बने, मीठी झिरिया नीर। मित्र रहे यदि संग तो, हो सकती ना पीर ।। मित्र मिले सौभाग्य से, बिखराता जो हर्ष । मिले मित्र का साथ तो, जीतोगे संघर्ष ।। भेदभाव को भूल जो, थामे रखता हाथ । कृष्ण-सुदामा सा ‘शरद’, बालसखा का साथ ।। ...
हिंदी जैसा शालीमार
कविता

हिंदी जैसा शालीमार

सीताराम पवार धवली, बड़वानी (मध्य प्रदेश) ******************** विश्वगुरु की ये भाषा हिंदी सारी भाषाओं की महारानी है। हिंदी को छोटा न बोल हिंदी ने हिंदुस्तान का नाम बढ़ाया है। हिंदी से संस्कृति जन्मी हिंदी ने संस्कारों का पाठ पढ़ाया है हिंदी की इस दुर्दशा के असली जिम्मेदार हम ही तो हैं। हिंदी छोड़ हमने इन अंग्रेजों की अंग्रेजी को सिर पर चढ़ाया है हिंदी अगर जहां में नहीं होती तो फिर ये हिंदुस्तान नहीं होता हिंदुस्तान में आकर विदेशियों ने हिंदी का मजाक उड़ाया है आक्रांताओ ने हिंदी को अपमानित करने का काम किया फिरंगीयो ने आकर हिंदुस्तानी भाषाओं को आपस में लड़ाया है हिंदी आन हिंदी शान हिंदी हिंदुस्तान के जीवन की शैली है हिंद देश के वासीयो ने मिलकर हिंदी को इनके चंगुल से छुड़ाया है धरती पे अगर हिंदी नहीं होती तो दुनिया दिशाहीन हो जाती आतताईयों ने ये भोली हि...