यादो की परछाई
प्रमेशदीप मानिकपुरी
भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़)
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यादो की परछाई बार-बार आती रही
धुंधली तस्वीर बचपन की दिखाती रही
वो स्कूल के दिन वो बचपन की बाते
दोस्तों का साथ दुनिया के रिश्ते नाते
बचपन के खेल माँ की फटकार याद है
लाड़ प्यार और दुलार आज भी याद है
बचपन के खेल, राजा रानी की कहानी
बचपन की बातें, लड़कपन की शैतानी
सितारों की गिनती, गुड्डे गुड़िया के खेल
उमंग की उड़ान, मस्ती से भरा हर खेल
अब यादें बन गई है सारी पिछली बातें
अब केवल जेहन तक ही रहती है बातें
फिर से बचपन मे जाने का मन करता है
माँ के आँचल मे छुपने का मन करता है
यादो की परछाई अक्सर मुझे घर लेती है
तन्हाई मे आकर अक्सर झकझोर देती है
काश फिर से वही बचपना मिल जाये
पुरानी यादो का फिर जमाना मिल जाये
पुरानी यादो का फिर जमाना मिल जाये
परिचय :- प्रमेशदीप मानिकपुरी
पिता : श्री लीलूदास मानिकपुरी
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