दगा न देना…
संजय जैन
मुंबई (महाराष्ट्र)
********************
बरखा का आना दिलको बहलाना
जिंदगी होती रंगीन।
दिलकी उमंगो से दिलकी तरंगो से
महक जाता है यौवन।
हो..बरखा का आना...........।।
रुख जिंदगी ने मोड़ लिया कैसा।
हमे सोचा नहीं था कभी ऐसा।
होता नहीं यकीन खुद पर
ये क्या हो गया।
किस तरह से ये दिल
बेबफा हो गया।
इंसाफ कर दो
मुझे माफ कर दो।
इतना तो कर दो
मुझे पर तुम रेहम।।
हो...बरखा का आना....।।
अवरागी में पड़कर
बन गया दिवाना।
मैंने क्यों तेरे
भावनाओं को न जाना।
चाहत क्या होती
ये तूने मुझे दिखलाया।
प्यार में जीना मरना
तूने ही सिखलाया।
चैंन मेरा ले लो
खुशीयाँ मेरी ले लो
और दे दो अपने गम।।
हो.. बरखा का आना.....।।
मेरे अश्क कह रहे मेरी कहानी।
इन्हें अब तुम न समझो पानी।
रो रो के आंसूओ से
मेरे दाग धूल गये है।
अब इनमें बफा के
रंग भरने लगे है।
खुशियाँ मैं दूंगा
तुमको हर...

























