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पद्य

प्रकृति
कविता

प्रकृति

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** प्रकृति की भी अजब माया है निःस्वार्थ बाँटती है भेद नहीं करती है, बस कभी-कभी हमारी उदंडता पर क्रोधित हो जाती है। हर जीव जंतु पशु पक्षी के लिए खाने, रहने और उसकी जरूरतों का हरदम ख्याल रखती है, बिना किसी भेदभाव के यथा समय सब कुछ तो देती है, हमें प्रेरित भी करती सीख भी देती है, कितना कुछ करती है, क्या क्या सहती है परंतु आज्ञाकारी प्रकृति हमें देती ही जाती है, हम ही नासमझ बने रहें तो प्रकृति की क्या गलती है? अपनी गोद से वो हमें कब अलग-थलग करती है? हाँ हमारी नादानियों, उदंडताओं पर खीछती, अकुलाती, परेशान होती है, हमें बार-बार संकेत कर चेताती, समझाने की कोशिश करती, थक हारकर अपने क्रोध का इजहार करने को विवश हो जाती, फिर भी हम समझने को तैयार जब नहीं होते, तब वो भी बस! अपना संतुलन...
ईश्वर का संधान
कविता

ईश्वर का संधान

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** नेपथ्य घटना से अक्सर, बेखबर इंसान होता है रातदिन की घटना, हल करने सामर्थ्यवान होता है द्वेष भाव रखने से ही, संबंधों में व्यवधान होता है स्पष्टवादी तथ्यों से, पक्ष अपना आसान होता है बिन सटीक जवाब से, मानव का नुकसान होता है नेपथ्य घटना से अक्सर, बेखबर इंसान होता है। पथगामी को सुख सिवाय, कष्टप्रद कमान होता है मुसीबत से बचने में, किसी वक़्त का दान होता है ईश्वर निर्मित विधान से, मानव तो नादान होता है नेपथ्य घटना से अक्सर, बेखबर इंसान होता है। राह की अदृश्य मुश्किलें, नितांत अनजान होता है शायद इसी वजह से कभी, भाग्य वरदान होता है पुल तले शेर पसरा, ऊपर मानव महान होता है नेपथ्य घटना से अक्सर, बेखबर इंसान होता है। हाथ पर हाथ रखे रहना, बहुत आसान होता है आसमां से गिरे बिजली, जीवन अवसान होता है कभी अन्य भाग्य से चलित, ...
माँ की सीख
कविता

माँ की सीख

मंजुषा कटलाना झाबुआ (मध्य प्रदेश) ******************** विदा होती बेटी को प्यार से। माँ ने ये बात सिखाई थी। सुखमय जीवन बेटी का हो। एक बात की गांठ बंध बाइ थी। बेटी अपने घर मे सदा तू। बड़ो का सम्मान है करना। छोटो पर सदा प्रेम है रखना। अपने घर का मान है रखना। थोड़ा कुछ तू सह जाना। पर दिल मे कोई बात न लेना। उस घर के राज है तेरे। तेरे अपने तक ही रखना। सुख दुख का जो बना है साथी। विश्वास का मान सदा तू रखना। इस घर के संस्कार जो तेरे। उस घर के आदर्श बना रखना। मां बाप की लाडो बिटिया। अपना सदा ध्यान तू रखना।। परिचय :- मंजुषा कटलाना निवासी : झाबुआ (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकत...
पर्यावरण
कविता

पर्यावरण

प्रतिभा त्रिपाठी भिलाई "छत्तीसगढ़" ******************** वृक्ष लगाओ, पर्यावरण बचाओ ये संदेश फैलाना हैं पर्यावरण को शुद्ध बना के जीवन को स्वस्थ बनाना है॥ मत काटो पेड़ों को तुम, इस पर किसी का बसेरा हैं, इसके दम पर सांसे चलकर नित आता नया सबेरा हैं॥ नयी पीढ़ी से ये अनुरोध, आओ मिलकर वृक्ष लगाओ पेड़ों की रक्षा तुम करके, पर्यावरण सुरक्षा में हाथ बढाओं॥ चारों तरफ हरियाली हों, हर घर में खुशहाली हों सुन्दर सा एक दृश्य बनायें, हर घर ऑंगन में वृक्ष लगायें आओ पर्यावरण बचाने का मिलकर हम संकल्प उठायें परिचय :- प्रतिभा त्रिपाठी निवासी : भिलाई "छत्तीसगढ़" घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष...
मानवता का दीप
कविता

मानवता का दीप

ओमप्रकाश श्रीवास्तव 'ओम' तिलसहरी (कानपुर नगर) ******************** चलो मिल मानवता का दीपक जलाएं एक सुंदर सा मानव समाज बनाएं। देखो चारों ओर फैला ईर्ष्या, द्वेश, आपसी सद्भावना से इसे मिटायें। आज मानव माया मद में अंधा हुआ, जला ज्ञानदीप सही पथ उसे दिखाएं। विकास नाम पर साफ होते वन कानन, रोक प्रकृति विनाश पर्यावरण बचाएं। कल कारखानों से फैल रहा है जहर, कर पौध रोपण जीव जगत को बचाएं। कहता ओम अगर हो मानव तुम सच्चे तो मानवता का प्रकाश तुम फैलाओ।। परिचय :- ओमप्रकाश श्रीवास्तव 'ओम' जन्मतिथि : ०६/०२/१९८१ शिक्षा : परास्नातक पिता : श्री अश्वनी कुमार श्रीवास्तव माता : श्रीमती वेदवती श्रीवास्तव निवासी : तिलसहरी कानपुर नगर संप्रति : शिक्षक विशेष : अध्यक्ष राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय बदलाव मंच उत्तरीभारत इकाई, रा.उपाध्यक्ष, क्रांतिवीर मंच, रा. उपाध्यक्ष प्रभु पग धूल...
कटते-कटते पेड़ कट गए
कविता

कटते-कटते पेड़ कट गए

रश्मि लता मिश्रा बिलासपुर (छत्तीसगढ़) ******************** कटते-कटते पेड़ कट गए अब विकास के नाम पर। पर्यावरण संतुलन बिगड़ा थोड़ा तो ख्याल कर। रोज पहाड़ धसकते रहते बर्फ बहे सैलाब सा, उत्तराखंड में कहर राजता डर बसता शमसान सा। जीव जंतु जल जहर में पलते उनका भी तो ध्यान धर। पर्यावरण संतुलन बिगड़ा थोड़ा तो ख्याल कर। ग्लोबल वार्मिग बढ़ती जाती धरा भी वंध्या हो चली नित नई प्रकृति की विपदा कितना टालो,नहीं टली। ऊपर से कोरोना आया बदले वाले भाव धर। पर्यावरण संतुलन बिगड़ा थोड़ा तो ख्याल कर। वायु प्रदूषण,ध्वनि प्रदूषण महानगर की देन है। स्वच्छ नदी गंगा को रक्खो मिलता जीवन चैन है। वृक्ष लगाने,जल को बचाने श्रम तू कुछ तो दान कर पर्यावरण संतुलन बिगड़ा थोड़ा तो ख्याल कर। कर ले प्रण न कचरा फैले न ही खुले में शौच हो। सड़कें अपना आंगन जानो घर से पहले देश हो। दिशाएं चारों स्वच्छ बने ये, तू त...
जग में रहना सिखा दिया
कविता

जग में रहना सिखा दिया

मधु अरोड़ा शाहदरा (दिल्ली) ******************** अपना बना के श्याम ने, न हमें जग में रहना सिखा दिया। जैसे कमल रहता है जल में, इस तरह तुम भी रहो। आए दुख सुख चाहे जितने, सब को सहना सिखा दिया। जितने भी प्राणी है जगत के, सबके अंदर मैं ही हूं। श्याम ने हमें जग में सबसे, प्रेम करना सिखा दिया। काम कर दुनिया के सारे, मन में मुझको याद कर। फल की इच्छा ना कर कभी, यह हमें बतला दिया। जो आया इस जगत में, एक दिन उसको जाना है। आत्मा की अमरता का सार, हमको समझा दिया। जो शरण आता है मेरी, मुझको अपना मान कर। मैं हूं उसका वह है मेरा, यह हमें बदला दिया। सच्चे मन से शांत मन से, आओ इन प्रभु की शरण। बातों ही बातों में जिसने, रूप अपना दिखला दिया। क्या कहूं कैसे करूं, प्रार्थना की लीला अपरंपार है हम जीवो को तारने को, प्रार्थना स्वरूप बना दिया। हो भला सबका यह दिल में, धारणा हृदय में डाल...
आपसे जब हुई दूरियाँ
ग़ज़ल

आपसे जब हुई दूरियाँ

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** आपसे जब हुई दूरियाँ। हो गई कितनी मजबूरियाँ। हमने उतने बढ़ाये क़दम, मिल गई जितनी मंजूरियाँ। क्यों सभी ने मना कर दिया, आज लेने से दस्तूरियाँ। थे जहाँ फ़िर वहाँ आ गये, पाँवों में बंध गई धूरियाँ। हम भले हाँ कहें, भले ना कहें, पाल ली हमनें मगरूरियाँ। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा ...
हम पर्यावरण बचाएँगे
कविता

हम पर्यावरण बचाएँगे

चन्दन केशरी झाझा, जमुई (बिहार) ******************** निज हित के लिए हमने, किया पेड़ों पर प्रहार है। हर पेड़ यहाँ कराह रहा, यह कैसा अत्याचार है? पेड़ों को जब काट-काट, हमनें शहर बसाया था। खुद से एक सवाल करो क्या हमने पेड़ लगाया था? जहरीली हो रही हवा, चहुँ ओर बीमारी छाई है। ऑक्सीजन भी न मिल रहा, ये कैसी विपदा आई है? ऑक्सीजन देते पेड़ को, कभी हमने ही कटवाया है। ऑक्सीजन का महत्व हमें, प्रकृति ने आज बताया है। जल को किया बर्बाद कभी, खरीद उसे आज पी रहे। जल की बर्बादी कर हम, ये कैसी जिन्दगी जी रहे? जल है तभी प्राण है, रखना इसका ध्यान है। जल की बर्बादी रोक कर, बचानी अपनी जान है। लोभ-मोह में आकर हमने, प्रकृति से खिलवाड़ किया। इससे क्या नुकसान है? क्या हमने कभी विचार किया? रोका न गया खिलवाड़ तो, हम चैन से कैसे सोएँगे? जैसे धरती माँ रो रही, एक दिन हम भी रोएँगे।...
कदाचित
कविता

कदाचित

जयप्रकाश शर्मा जोधपुर (राजस्थान) ******************** अकाल मृत्यु कदाचित् हमारी दृष्टि में। ईश्वर का सबसे बड़ा अन्याय है। जो आज प्रेम कि बात करते हैं, कल वो अपने बच्चों के प्रेम के खिलाफ खड़े हो जाएंगे माता-पिता के कमाई से खरीदा हुआ उपहार किसी के हाथ में आ जाने से कोई ज्ञानी नही हो जाता कदाचित हम हैं इन सब के दोषी हैं परिचय :- जयप्रकाश शर्मा निवासी : जोधपुर (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com ...
जब मैं हुई बीमार
ग़ज़ल

जब मैं हुई बीमार

रजनी गुप्ता 'पूनम चंद्रिका' लखनऊ ******************** १२२२ १२२२ १२२२ १२२२ कभी जब मैं हुई बीमार बेटे काम आते हैं न होना माँ परेशाँ तुम यही कहकर लुभाते हैं बिना मेरे कहाँ ये सब कहीं आराम पाते हैं नहीं होते मगर नाराज़ चाहे हाँफ़ जाते हैं बनाते रोटियाँ बेडौल टेढ़ी या कभी मोटी न रहने दें मुझे भूखा क्षुधा मेरी मिटाते हैं निहारूँ जब कभी भी मैं बड़ा ही प्यार आता है निवाले तोड़कर मुझको वे ही खाना खिलाते हैं दवा खाओ चलो मम्मी सदा आवाज़ देकर वे समय अब हो गया हर पल यही मुझको बताते हैं न ख़ुद का होश है उनको न चिंता है उन्हें अपनी लगें चलने मेरी मम्मी इसी में दिन बिताते हैं ज़रा सी खाँस दूँ तो वे चले आते तुरत दौड़े कहो क्या हो गया मम्मी बड़ी चिंता जताते हैं तरस जाती है ये 'रजनी' बिठा लूँ गोद में उनको शिफ़ा मिल जाए अब मुझको यही बेटे मनाते हैं परिचय : रजनी गुप्ता 'पूनम चंद्रि...
मेरे दो शब्द
कविता

मेरे दो शब्द

श्रीमती विभा पांडेय पुणे, (महाराष्ट्र) ******************** एक मंच, सबके विश्वास का प्रतीक एक मंच, जहांँ मिलती कुुछ सीख, अगर आपके अंदर खूबी है तो लिखो, हम आपकी रचना को सदा करेेंगे प्रकाशित। यह मंच टिका भरोसेे की बुनियाद पर, और रचता लीक से हटकर अपनी एक नई लीक। हिन्दी भाषा को आगे बढ़ाने के लिए पूर्ण समर्पित। सभी करते यहाँ कुछ न कुछ अर्जित। पूरे आदरभाव से बात करते सभी न आलोचना, न हीन भावना, न तिरस्कार अच्छी रचनाओं से यह मंच रहता शोभित। हर जगह, हर प्रांत से लोग जुड़ते हैं। अपनी रचनाएँ, नृत्य, संगीत भी प्रस्तुत करते हैं। हमेशा कुछ नई ही लेकर सोच कोई, अपने समूह संग पवन जी काम करते हैं। राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच सबके लिए काम करता इस मंच का है कार्यक्षेत्र असीमित। शुभकामनाएँ ये मेरी कि मंच बढ़ता रहे। मातृभाषा हिंदी की प्रगति के काम करता रहे। हमारी हिन्दी दिन दूनी, रात ...
पत्रकार
कविता

पत्रकार

डॉ. पंकजवासिनी पटना (बिहार) ******************** वाचिक पत्रकारिता के नारद प्रथम सूत्रधार! राजा राममोहन राय दे दिए इसको तेज धार!! पत्रकार कहलाते लोकतंत्र के चौथे स्तंभ! इसी महत्वपूर्ण स्थान का आज इन्हें है दंभ!! विरुदावली गाकर पहुंँचाते हैं ये किसी को अर्श! खोज खोज अवगुण किसी का ला पटकते हैं ये फर्श!! खोज खोज के गड़े मुर्दे भी लेते हैं ये उखाड़! गुप्त सत्य उजागर कर जग को बताते हैं दहाड़!! सम्मानित रहे ये समाज में अरु आदर के पात्र! पर आज के युग उगते यहाँ कुकुरमुत्ते से कुपात्र!! यूँ तो पत्रकार होते राष्ट्र के सच्चे प्रहरी! देश दुनिया के घटित पर दृष्टि रखते हैं ये गहरी!! इनकी लेखनी में समाहित है असि की प्रखर धार! स्वार्थी युग में भला फिर कौन ठाने इनसे रार!?! देश समाज का सच सामने लाना ही इनका काज! पर निष्ठा-क्रय-विक्रय युग में कौन सुनाय सच आज!! आह! चारण से गु...
जिंदगी के लम्हें
कविता

जिंदगी के लम्हें

मईनुदीन कोहरी बीकानेर (राजस्थान) ******************** जिंदगी भी कितनी खूब सूरत है । जिंदगी के हर लम्हें को पहचान ।। जिंदगी तो मिली है जीने के लिए । जिओ ऐसे की पूरे हो सब अरमान ।। जिंदगी जीने से पहले करें एहतराम। जिंदगी जीने की अहमियत को जान।। जिंदगी जिओ, जिंदा दिली से जिओ । फक्र करे दुनियाँ जिंदगी की पहचान ।। सर उठाके जीना भी असल जीना है । नज़ीर बन जाए जिंदगी की आन-शान।। अपने लिए जिंदगी जिए तो क्या जिए । ग़ैरों की हिफाज़त कर मुठियों को तान ।। खुशी-गम भी जिंदगी के उतार-चढ़ाव हैं । जिंदगी के लम्हे-लम्हें से मिलता है ज्ञान ।। जिंदगी का हसीन तौहफा जिसने दिया है । दो घड़ी तो "नाचीज़" उसका लगाले ध्यान।। परिचय :- मईनुदीन कोहरी उपनाम : नाचीज बीकानेरी निवासी - बीकानेर राजस्थान घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। ...
भूली बिसरी यादे
कविता

भूली बिसरी यादे

योगेश पंथी भोपाल (भोजपाल) मध्यप्रदेश ******************** बचपन के खेल भूल गये बच्चो कि रेल भूल गये। आज बने हैं खुद कोलू कोलू का बेल भूल गये॥ ह्र्दय घात अब क्यौ न हो कोलू का तेल भूल गये। ह्रदय स्पंदन बढ़ता घटता नमक पहाड़ी बभूल गये॥ बच्चे होते उदर काट कर घर की चकिया भूल गये। भूले मोगरी कपड़े धोना सिल्ला लुड़ीया भूल गये॥ भरी जवानी सर चाँदी सा आँवला अरीठा भूल गये। भूल गये वो ब्रह्ममुहूर्त शाम सुहानी भूल गये॥ मोबाईल में ऐसे खोये वो खेल पुराने भूल गये। भूल गये वो गिल्ली डंडा वो दौड़ कबड्डी भूल गये॥ लिप्त हैं कई व्याधियों में अपनी दिनचर्या भूल गये। इस विदेश की होड़ में हम खुलकर जीना भूल गये॥ अपने निर्मित उत्पादों को उनकें पेकिट में भर डाला। पोषक और कुपोश्क वस्तु दो पेकिट मे कर डाला॥ अपना सामा अपने घर में वो चार चौगने बेच रहे। तैयार किये क्रांति विरोने ...
फूलों का हाल
कविता

फूलों का हाल

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** गये थे आज मंडी में लेने को कुछ फूल। वहां जाकर देखा तो एकदम दंग रह गए। की जो फूल लेने को हम यहाँ आये है। वो फूल पहले से ही पैरों में पड़े हुए है। अब मैं कैसे उन्हें लू प्रभु चरणों के लिये।। लगता है हमें आजकल किसी की भी कीमत नहीं। हर चीज को लोगों ने व्यापार जो बना लिया। तभी फूल जैसा नाजुक पड़ा है लोगों के पैरों में। जब प्रभु को भी नहीं बख्शा, तो हम सब की औकात हैं क्या।। इसलिए इस कलयुग में नहीं दिखते है प्रभु। क्योंकि मंदिरों को भी लोगों ने व्यापार बन लिया। अब रहेगी कैसे आस्था प्रभु में लोगों की। क्योंकि पूजा की सूचीयाँ लगा दी है जो मंदिरों में।। गए थे फूल लेने को, पर खाली हाथ आ गये। नहीं चढ़ाना अब प्रभुको, फूल पैसे आदि। जो करते थे खर्च हम, इन सब चीजों में। अब उन पैसों से, हम बच्चों को पढ़ायेंगे। और उन्ह...
मेरे हमसफर
कविता

मेरे हमसफर

डॉ. मिनाक्षी अनुराग डालके मनावर जिला धार (मध्य प्रदेश) ******************** तुम संग बंधी जिंदगी की डोर है हम हैं साथ तो हर दिन एक नई भोर है नदियों जैसा हो संगम अपना संग एक दूजे के रहना ऐसा अटूट बंधन बनाएंगे ऐ मेरे हमसफ़र बस यूं ही साथ निभाएंगे... जीवन की इस कठिन डगर को हंस खेलकर बिताएंगे कभी उदासी में मुस्कुराएंगे तो कभी मुस्कुरा कर उदास हो जाएंगे इसी विश्वास से जीवन की नैया को पार लगाएंगे ऐ मेरे हमसफर बस यूं ही साथ निभाएंगे.... 'मैं' 'तुम 'से ऊपर उठकर 'हम'का सम्मान बढ़ाएंगे आए घड़ी कोई अग्नि परीक्षा की तो कदम से कदम मिलाएंगे सात फेरों के अनमोल वचनों को कभी नहीं भुलाएंगे ऐ मेरे हमसफ़र बस यूं ही साथ निभाएंगे.... परिचय : डाॅ. मिनाक्षी अनुराग डालके निवासी : मनावर जिला धार मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कव...
पाँव आगे धरने से पहले
कविता

पाँव आगे धरने से पहले

प्रो. आर.एन. सिंह ‘साहिल’ जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** पाँव आगे धरने से पहले संभलना चाहिए पाँव आगे धरने से पहले संभलना चाहिए बोलने से पहले वाणी को परखना चाहिए है कर्म ही आधार जब सारे सृजन का विश्व में भाग्यवादी व्यूह से बाहर निकलना चाहिए चलके मंज़िल ख़ुद तुम्हारे पाँव तक आ जाएगी लक्ष्य की ख़ातिर मगर अरमा मचलना चाहिए शासकों में गर समाहित सोच हो धृतराष्ट्र की स्वर बग़ावत का ज़माने में उबलना चाहिए सिर उठा पाए न दुश्मन सीख लो इतिहास से साँप के सपोले का भी फन कुचलना चाहिए ज़िंदगी संघर्ष है इस सत्य को स्वीकार कर मुश्किलों से जूझ कंचन सा निखरना चाहिए आपसी सहयोग सामंजस्य को साहिल बना दौर दुष्कर हो तो मिल करके उबरना चाहिए परिचय :- प्रोफ़ेसर आर.एन. सिंह ‘साहिल’ निवासी : जौनपुर उत्तर प्रदेश सम्प्रति : मनोविज्ञान विभाग काशी हिन्दू व...
आखिर क्यों…?
कविता

आखिर क्यों…?

सुरेश चन्द्र जोशी विनोद नगर दिल्ली ******************** बने अगर विश्वस्तरीय मोहल्ला क्लीनिक तो विद्यालयों में टीकाकरण होता क्यों? बने अगर उत्कृष्ट चिकित्सालय तो निजी चिकित्सालय में जाते परिवार आपके क्यों ? प्रारूप शिक्षा का आप सराहते रहते तो नकल विधि-निदेशक सिखाते क्यों? सराहा कहते प्रारूप शिक्षा का विश्व ने तो निजी विद्यालयों में निज बच्चे पढ़ाते क्यों ? व्यवस्था स्वास्थ्य की उत्कृष्ट आपकी तो केंद्र से सहायता मांगते हो क्यों ? स्वयं न कर पाए प्राणवायु व्यवस्था तो विधायक आपके छुपाए पकड़े जाते क्यों ? कर्मठता अगर थी आप मैं तो न्यायालय द्वारा शुतुर मुर्ग कहलाए क्यों ? दिया आदेश उच्चतम न्यायालय ने तो जांच (औडिट) होगी तो घबराते आप ही क्यों ? जाते नहीं हो क्षेत्रों में अपने तो मात्र प्रेस वार्ता ही करते हो क्यों ? बने हो स्वयं अकर्मण्य अति तो दूसरों पर र...
सत्य कहूँ तो जग छूटे
कविता

सत्य कहूँ तो जग छूटे

अशोक शर्मा कुशीनगर, (उत्तर प्रदेश) ******************** सत्य कहूँ तो जग छूटे, अपने अपनों से रूठे। सीख न पाए हम, मीठे झूठ का हुनर। कड़वे सत्य बोलूं, तो अपने हमसे रूठे। सत्य कहूँ… सांच पड़ गया भारी, छीना बहुत से रिश्ते। जो मेरे अजीज थे, दिल हमसे उनके टूटे। सत्य कहूँ… हुआ बन्द बटुए में, जो बोला था सच। एकटक स्वयं को देखूं, नेत्र भरे दम भी घूटे। सत्य कहूँ… कहूँ साँच अकेले ही, नहीं दे पाता प्रमाण। बाहुल्यता जिसकी रही, उसमें बने हम झूठे। सत्य कहूँ… जो आंखों ने देखा, पर नहीं देखा किसी ने। उस जघन्य को कैसे कहूँ, सोच अन्तः अश्रु फूटे। सत्य कहूँ … मैंने सोचा चौबीस कैरट, होता है एकदम खरा। पर समाज में चल रहा, मिलावट के बलबूते। सत्य कहूँ… सत्य विजय पाता है, इतिहास इसका गवाह। अंत समय तक सत्य कहूँगा, चाहे दुनिया हमको लूटे। सत्य कहूँ … परिचय :- अशोक...
मां
कविता

मां

संध्या नेमा बालाघाट (मध्य प्रदेश) ******************** मां की शुरुवात कहां से करु समझ ही नहीं आ रहा मुझे मां क्यों वो तो मुझे दुनिया में लेने से पहले ही जानती है... सबको लेकर चलना पड़ता है। इस जीवन के सफर में, पापा, दादी, दादा, बुआ, बड़ी मां, बड़े पापा बेटा, बेटी सबकी सुनती है। मां कभी गलती को छुपाती तो कभी बिना गलती के ही चिल्लाती। मां कभी दोस्त बन जाती है तो कभी बहन बन जाती है मां... एक दिन भी अपने बच्चों को न देखे तो बैचेन हो जाती है तू मां इतनी चिंता क्यों करती है तू अपने बच्चों की तू मां खुद के लिए भी तो समय ले मां खुद की इच्छा का भी तो कभी कुछ बना ले मां... तू मां बस अपने बच्चों के लिए जीती है खुद के लिए भी एक बार जी ले। मां तेरे भी तो होगें कुछ सपने मां एक बार बता दें मां... एक दिन तेरी बेटी भी चले जायेगी मां जैसे तू एक घर छोड़ कर दूस...
मन की पीड़ा
कविता

मन की पीड़ा

डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी ******************** जब मन की पीड़ा आंसू बन कर गालों पर आती है यही सिसकी कहलाती है सिसकते है हम बिछड़े प्रियतम की यादों में खो जाते हैं हम याद कर उनकी बातों में आंसू सिसकी की शान बढ़ाते हैं बिना रुके गिरते जाते हैं कुदरत के आगे नही चलती किसकी दुखी आत्मा की आवाज होती है सिसकी कौन याद करता है ये हिचकियां बयां करती है और हमारे दिल का दर्द ये सिसकियां बयां करती है जीभर के रोओ मत सिसका करो किसी बेवफा की याद में यूं न तड़पा करो सिसकियों में हम अपने ग़म पीते हैं मन मारकर जीते हैं परिचय : डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" निवासी : चिनार-२ ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी घोषणा : मैं यह शपथ पूर्वक घोषणा करता हूँ कि उपरोक्त रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन...
बच्चों से जब काम न लेकर
गीत

बच्चों से जब काम न लेकर

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच (मध्य प्रदेश) ******************** बच्चों से जब काम न लेकर, हम स्कूल पहुंचाएंगे। तब विकसित देशों में गिनती, अपनी करवा पाएंगे।। ****** मौलिक अधिकार है शिक्षा का, बच्चों को मुफ्त पढ़ाती हैं। सरकारें उत्तरदायी सब, अपने फर्ज निभाती हैं। शिक्षित बचपन हो जाए तो, कल की फिक्र नहीं होती। अंधकार में जल जाती है, अपने आप नई ज्योति।। काबिल होंगे बच्चे तो हर, बाधा से टकराएंगे। तब विकसित देशों में गिनती, अपनी करवा पाएंगे।। ***** बोझ अगर जिम्मेदारी का, बचपन में ही डाल दिया। उड़ने वाले पंखों को ही, जड़ से अगर निकाल दिया।। बोझ तले दबकर बच्चों की, क्षमताएं सो जाएंगी। बिना हौसले सभी उड़ाने, लौट धरा पर आएंगी।। जब निर्भर बने बच्चे सब, गगन चूमने जाएंगे। तब विकसित देशों में गिनती, अपनी करवा पाएंगे।। ***** बच्चों के सपने ही तो कल, की त...
अच्छा होता
कविता

अच्छा होता

जयश्री सिंह बैसवारा सोनभद्र, (उत्तर प्रदेश) ******************** कितना अच्छा होता जब सब अच्छा होता जो हम अपनी नजरों से देखते हैं वो सब सच्चा होता ख्वाबों को सच मान लेते हैं हम मगर ख्वाब हकीकत होते तो कितना अच्छा होता किसी मिट्टी की खुशबू की तरह काश इंसान का चरित्र भी होता जो हर वक़्त महकता होता तो कितना अच्छा होता पर्दे के पीछे की दुनिया भी काश उतनी ही खुबसूरत होती जो सामने पर्दे के है नजारा न छिपता किसी से कोई तो कितना अच्छा होता जो मन में है वो जुबां भी बोले जो जुबां से निकले वो मन का हो बेमुरव्वत न हो कुछ भी किसी के लिए तो हृदय से हृदय तक का तार कितना अच्छा होता नजरें कुछ और जेहन कुछ और कहे इरादा कुछ नजारा कुछ और कहे कैसी है ये कहानी जहां कि बातों में संशय न होता तो कितना अच्छा होता परिचय :- जयश्री सिंह बैसवारा निवासी : सोनभद्र, (उत्तर प्रदेश) घोषण...
मेरा वादा
कविता

मेरा वादा

डोमन निषाद डेविल डुंडा, बेमेतरा (छत्तीसगढ़) ******************** मन की बात को, दिल में सजाऊँगा। हर रोज तुम्हें देखने, तेरे गली आऊँगा। देना मेरा साथ प्रिय, तुझे अपना बनाऊंँगा। पहली मुलाकात के वक्त, फिर से याद दिलाऊंगा। जो वादा किया हूँ, निकाह कर ले जाऊँगा। चाहे कुछ भी हो सनम, तुझे छोड़ नही पाऊंगा। तुम मेरी हो मैं तेरा हूँ, ये बंधन छूटने नही दूँगा। कोई भी आफ़त आये, जीवन भर साथ निभाऊँगा। तू पानी है, मैं प्यासा हूँ, सबको ये बात बताऊँगा। प्रेम एक पवित्र रिश्ता हैं, जन-जन को समझाऊँगा। परिचय :-डोमन निषाद डेविल निवासी : डुंडा जिला बेमेतरा (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशि...