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पद्य

आज झंझावात
कविता

आज झंझावात

सुभाष बालकृष्ण सप्रे भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** "ये कैसी चल पडी, खबरों से, मन पर होता है, आघात, बन्द, घरों में हो गये हैं, अब सारे लोग, लगता जैसे महीनों से न हुई हो बात, तडफ रही जिंदगी, प्राण वायू के लिये, कैसे बचायें हम, अपनों के हृदयाघात, किसने कहा कि ये अंधेरा छ्टेगा नहीं, सुनहरी किरणो से होगा कल सुप्रभात, मायूसी के बादल तो अब लगे हैं छटने, नई कोपलों ने लाई, खुशियों की सौगात" परिचय :- सुभाष बालकृष्ण सप्रे शिक्षा :- एम॰कॉम, सी.ए.आई.आई.बी, पार्ट वन प्रकाशित कृतियां :- लघु कथायें, कहानियां, मुक्तक, कविता, व्यंग लेख, आदि हिन्दी एवं, मराठी दोनों भाषा की पत्रीकाओं में, तथा, फेस बूक के अन्य हिन्दी ग्रूप्स में प्रकाशित, दोहे, मुक्तक लोक की, तन दोहा, मन मुक्तिका (दोहा-मुक्तक संकलन) में प्रकाशित, ३ गीत॰ मुक्तक लोक व्दारा, प्रकाशित पुस्तक गीत सिंदुरी हुये (गीत सँकलन) मेँ प्रकाशित...
“सुन्दरकाण्ड के सार” के सृजन की पृष्ठ भूमि
मुक्तक

“सुन्दरकाण्ड के सार” के सृजन की पृष्ठ भूमि

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ये कोरोना बीमारी
कविता

ये कोरोना बीमारी

विरेन्द्र कुमार यादव गौरा बस्ती (उत्तर-प्रदेश) ******************** ये कोरोना बीमारी जो बनी महामारी, केवल मनुष्य पर क्यों पड़ रही भारी। इसके जन्म की व्यक्ति है जिम्मेदार, कोरोना इसलिए व्यक्ति को रहा मार। क्यो? जीव-जन्तु नहीं हो रहा बीमार, व्यक्ति स्वयं इस बीमारी का शिकार। इसमें क्या करे इस सृष्टि के रचनाकार, व्यक्ति स्वयं है बीमारी का जिम्मेदार। जब व्यक्ति कन्द, मूल व फल खाये, हर व्यक्ति हर वर्ष एक पौधे लगाये। इसके बदले में शीतल मंद हवाएँ पाये, सुखी व आनन्दमय वो जीवन बिताये। पीपल, आम, महुआ का पौधा लगाये, स्वादिष्ट, मीठे व ताजे-ताजे फल खाये। अब ज्यादा से ज्यादा लोग खाये गोश, इस बीमारी का दे किसको हम दोष। वातावरण में व्यक्ति ने प्रदूषण फैलाये, व्यक्ति खुद जीवन में बीमारी है लाये। लगा है जल्दी से करोड़पति बन जाये, दुनियाँ के सबसे धनी व्यक्ति हो जाये। हाय रे पैसा हाय! रे ह...
तुम अगर मिल गए
कविता

तुम अगर मिल गए

प्रीति जैन इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** सवाल खटखटा रहे हैं, मेरे मन का द्वार धरा का क्या हाल हुआ, सताए यह विचार मन विचलित, नैन विस्मित, देख नजा़रे धरती के सजा मिली कैसी हमें पूछूंगी भगवन, तुम अगर मिल गए इंसान ही इंसान का बन बैठा है दुश्मन अनाचार, अत्याचार, हैवानियत, मर गया कोमल मन संसार है नश्वर, मोल इंसानियत का न जाना किसी ने गुनाहों की मेरे मांग लूंगी माफी, तुम अगर मिल गए जगमगाती दुनिया में छाया एक पल में अंधियारा तम को चीरकर दीप्त प्रकाशमान करो, झिलमिल उजियारा अलौकिक रोशनी से रोशन होगा जहां, मन में विश्वास है आस की लौ थी क्युं जलाई, पूछूंगी तुम अगर मिल गए होश कहां बाकी रहा, चहूं ओर छाई निराशा बंद ताले में बैठे जो मंदिर में, मन में अब भी आशा मंज़र कैसा, चलती सांसे, हवा का पता नहीं क्युं ये विडंबना धरती पर छाई, पुछुंगी तुम अगर मिल...
मास्क बनाओ ढा़ल
कविता

मास्क बनाओ ढा़ल

शंकरराव मोरे गुना (मध्य प्रदेश) ******************** उड़ती हुई धूल कण से, छोटे कोरोना कण हैं। हैं सुगंध कण जैसे लेकिन, गंध हीनता गुण है।। गोल गोल आकृति पाई है, गोल गोल ही सिर हैं। धूल कणों के साथ तैरते, चलें कभी स्थिर हैं।। कोरोना मरीज के तन से, उड़ते बन गुब्बारे। मानव तन से भूख मिटाने, फिरते मारे मारे।। स्वांसों से कर मेल, नासिका से प्रवेश वे पाते। स्वांस नली से तैर वायरस, फैंफडों में बस जाते।। ऑक्सीजन को हटा, छेद में अपने पैर जमाते। पल-पल में अपने जैसे, लाखों वायरस उपजाते।। साहस का है काम यहां, अपना एकांत बनाना। प्रभु है मेरे साथ स्वयं को, बार बार समझाना।। जाना आना मास्क लगा, मत पास किसी के जाना। समय बुरा है कुछ दिन तक, घर में भी मास्क लगाना।। कोरोना अदृश्य वायरस है, शत्रु वत आ जाए। ढाल मास्क की धारण करना, ये ही जान बचाए।। विश्व ...
हवाएँ
ग़ज़ल

हवाएँ

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** हवाएँ चली है ये कैसी जहाँ की। घड़ी है सभी के लिये इम्तिहाँ की। मुसाफ़िर सरे आम थकने लगे हैं, बड़ी तेज रफ़्तार है कारवाँ की। परों की हिफाज़त है करना ज़रूरी, उड़ाने रहेगी तभी आसमाँ की। जो महफ़ूज होकर खिले थे चमन में, नज़र लग गयी है उन्हें बागबाँ की। हिफाज़त रहेगी उसी की चमन में, रहे कैद में जो अपने मकाँ की। बने कोई अपना, भले हो पराया, ज़रूरत है सबको उसी मेहरबाँ की। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां...
नवनीत
कविता

नवनीत

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** शहरों की आँधी आयी तो, ठिठक गये हैं पाँव। आसमान के कान काटते, लोहा रेत सीमेंट। थर्राया है मजदूरों का, पन्नी वाला टेंट।। मन यायावर खोज रहा है, शीतल तरु का ठाँव। शहरों की आँधी आयी तो, ठिठक गये हैं पाँव।।१ निगल लिए हैं अब सड़कों ने, पगडंडी के पाँव। पेटरोल डीजल के कीर्तन, करें कान में काँव।। खपरैलों ने भी साहस कर, लगा दिया है दाँव। शहरों की आँधी आयी तो, ठिठक गये हैं पाँव।।२ चकाचौंध के आसमान में, उठने लगा गुबार। फव्वारों के उन्नत मस्तक, जता रहे आभार।। स्वागत करने खड़े किनारे, बाँट जोहते गाँव। शहरों की आँधी आयी तो, ठिठक गये हैं पाँव।।३ परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक...
संकट का यह दौर
कविता

संकट का यह दौर

कालूराम अर्जुन सिंह अहिरवार जगमेरी तह. बैरसिया (भोपाल) ******************** आज मानवता संकट में है वक्त कैसा सितम ढा रहा है इंसान को इंसान से दूर कर रहा है बेवजह लोग बीमार पड़ रहे हैं हमें हमारे ही घर में कैद कर रहा है अपनों से दूर कर रहा है एक अदृश्य शत्रु दुश्मन बन रहा है संपूर्ण मानवता को अपने वश में कर रहा है काश कोरोना तुझे हम देख पाते हमारे भारतीय सैनिक से तुझे गोली मरवाते अगर नहीं मरता तू गोली से कमबख्त तुझे हम बम से उड़बातें फिर भी नहीं मरता तो भारत के तेजस व सुखोई लड़ाकू विमान से तुझे टारगेट बनवाते इस दुनिया से तेरा नामो निशान मिटाते वक्त तू कैसा सितम ढा रहा है इंसान को इंसान से दूर कर रहा परिचय :- कालूराम अर्जुन सिंह अहिरवार पिता : जालम सिंह अहिरवार निवासी : ग्राम जगमेरी तह. बैरसिया जिला भोपाल शिक्षा : एम.ए. हिंदी साहित्य शासकीय हमीदिया कला एवं वाणिज्य महाविद्यालय भोपाल अध्य...
समय है… गुजर जाएगा
कविता

समय है… गुजर जाएगा

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उ.प्र.) ******************** मुश्किल वक्त है, गुजर जाएगा फिर से नया सबेरा जगमगाएगा। संयम, धीरज, मानवता की अहमियत समझ हे "मन" विकट, विषम, परिस्थितियां है बहुत ना घबरा "तू",खुद पर भरोसा रख बढ़ चल कर्म के रास्तों पर, आगे बढ़, हर मानवता को जुट कर दे हाथ, ना विचलित हो न डर धीरज की परिभाषा को सार्थक कर आंसू की एक बूंद भी हाहाकार मचा दे समंदर में हिम्मत हौसला हो साथ तो न टिक पाएगा कोई तूफान समंदर में अब से समझ ऐ नादान तू जीवनभर के लिए ना खुद को समय से बलवान समझ ना कर अब नादानियां, प्रकृति के विरुद्ध ना ही आंसू का कोई कण दे उन मासूम जीवों की आंखों में हर जीव के खून का हर कतरा, नासूर बना है आज पूरी दुनिया का, सुना था जिंदगियां बदलती हैं समय के साथ पर अब समझ आया बदलता हुआ समय भी जिंदगियां उजाड़ सकता है पल में अमन, चैन, सैयंम, धीरज ...
जिंदगी एक सफर
कविता

जिंदगी एक सफर

अजयपाल सिंह नेगी थलीसैंण, पौड़ी (गढ़वाल) ******************** जिंदगी एक सफर है जिंदा रहने का, जिंदगी में जिंदा रहना ही जिंदगी है, आज इंसानियत में इंसानियत को लुटा बैठा है, मानो जिंदगी से जिंदगी को लुभा बैठा हैं, और बहते हुए पानी में हिरे को डूबा बैठा हैं, कहते हैं जिंदगी में जिंदगी गवां बैठा है, जिंदगी में जिंदगी के बहते हुए पानी को देखो, जिंदगी में जिंदा रहने के बहाने न देखो, खुश नसीब है वह जिंदगीयों के मालिख, जो जिंदगी से जिंदगी को लगा बैठा है, जो राष्ट्रीय सम्मान पर लिपट आए तो कह देना जिंदगी में जिंदगी गवां बैठा है, वतन पर वतन की इंसा को डूबा बैठा है और प्यार व त्याग से दूसरों को रुला बैठा हैं ये पल भी ऐसा है मानो सुबह कुछ पाया और रात में गंवाया परिचय :- अजयपाल सिंह नेगी निवासी : थलीसैंण पौड़ी गढ़वाल घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित ए...
देखते ही देखते
कविता

देखते ही देखते

मंजू लोढ़ा परेल मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** देखते ही देखते वर्ष २०२० बीत गया और २०२१ में हम प्रवेश कर गए। युं तो कई साल आते हैं, गुजर जाते है कुछ यादों में मीठी सी कसक बन बस जाते है कुछ खट्टी इमली का स्वाद छोड़ जाते हैं। पर २०२० एक अलग अनुभव लेकर आया। विश्व कोरोना से संक्रमित हुआ। दुनिया सिमट गयी, लोग घरों में कैद हो गये, हवाएं भी जहरीली हो गयी, सब कुछ जैसे थम गया, मशीनी जिंदगी में ठहराव आ गया। पर यह कोरोना जीवन को एक नया संदेश दे गया, आपसी रिश्तों को महका गया, बिखरे परिवार में नये रंग भर गया। रिश्तो को एक नई आभा, नया रंग दे गया। आवश्यकताओं को सीमित कर गया, जीवन को एक नये मायने दे गया। एक ही धरातल पर सबको खड़ा कर गया। ईश्वर में भक्ति जगा गया, जरूरतमंदो की सहायता करना सीखा गया। कुदरत हमको बहुत बड़ी सीख दे गई। प्रकृति से मत उलझो, पर्यावरण को मत नष्ट करो, ईश्वर की बनाई दुनि...
अभिशाप नही
कविता

अभिशाप नही

गणेश रामदास निकम चालीसगांव (महाराष्ट्र) ******************** कोरोना अभिशाप नही यह है एक आम बिमारी खुद का खयाल रखो बस यह बिनती है हमारी। डरना नही इस बीमारी से बस धोते रहना साबुन से हाथ सबको यह हो सकती है यह देखती नही उच्च नीच जात पात डरना इस बीमारी से भीड़ भाड़में मत जाओ हो सके तो आप सब हर जगह मास्क पहनते रहो। बिना मास्क के तुम कभी इधर उधर मत टहलो भीड़ में जाने से अच्छा है आप घरमे ही रह लो। डरना नही इस बीमारी से बस सावधानी से रहना अफवाहों चक्कर मे लोगो भुलकर भी नही बहना। परिचय :- गणेश रामदास निकम निवासी : चालीसगांव (महाराष्ट्र) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कवि...
मानवता का रुदन
कविता

मानवता का रुदन

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** आज करोना फिर बढा है मानवता का रुदन बढ़ा है। चाह अमृत की है मगर चीन ने विष-वमन किया है। यह काल महा प्रयलंकार बना है अब वायु में यह वायरस घुला है। प्राण वायु पर पहरा है आज कल यह षड्यंत्र गहरा है। आज मानव गिद्ध बना है हर स्वांस को वह लूट रहा है। मानवता है सेवा भाव फिर दानव बन कोई लूट रहा है। विस्वास प्रेम सौहार्द का वह- क्षण-क्षण, पल-पल घुट रहा है। जीवन उपयोगी अवषधियो को लुटेरे ऊंची कीमत पर बेच रहे है। धैर्य संयम से ही जीतेंगे फिर से नव जीवन खिलेंगे। परिचय :- ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्यालय रूपहारा) ग्राम - गंगापीपर जिला - पूर्वी चंपारण (बिहार) सम्मान - राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। ...
अब तो चेतो…
छंद

अब तो चेतो…

भारत भूषण पाठक धौनी (झारखंड) ******************** लावणी छंद- १६-१४ की मात्रा पर यति, चार चरण, दो-दो चरण समतुकांत तथा चरणांत गुरु अनिवार्य अब तो चेतो भारतवासी, अपनों को वो मार रहा। क्या पैसों का होगा बोलो? जब संबल ही हार रहा।। अजी नौकरी बहुत हुई अब, श्रम स्वदेश को दान दो। कुछ कौड़ी वो देकर तुमको, खाए मलाई जान लो।। नहीं मित्र वो कभी हुआ था, वैरी था, वो वैरी है। लौटो, देखो हाल हमारा, कैसी अब जी देरी है।। परिचय :  भारत भूषण पाठक लेखनी नाम : तुच्छ कवि 'भारत ' निवासी : ग्राम पो०-धौनी (शुम्भेश्वर नाथ) जिला दुमका(झारखंड) कार्यक्षेत्र : आई.एस.डी., सरैयाहाट में कार्यरत शिक्षक योग्यता : बीकाॅम (प्रतिष्ठा) साथ ही डी.एल.एड.सम्पूर्ण होने वाला है। काव्यक्षेत्र में तुच्छ प्रयास : साहित्यपीडिया पर मेरी एक रचना माँ तू ममता की विशाल व्योम को स्थान मिल चुकी है काव्य प्रतियोगिता में। सम्मान : र...
राम महिमा
छंद

राम महिमा

बासुदेव अग्रवाल 'नमन' तिनसुकिया (असम) ******************** सोरठा छंद मंजुल मुद आनंद, राम-चरित कलि अघ हरण। भव अधिताप निकंद, मोह निशा रवि सम दलन।। हरें जगत-संताप, नमो भक्त-वत्सल प्रभो। भव-वारिध के आप, मंदर सम नगराज हैं।। शिला और पाषाण, राम नाम से तैरते। जग से हो कल्याण, जपे नाम रघुनाथ का।। जग में है अनमोल, विमल कीर्ति प्रभु राम की। इसका कछु नहिं तोल, सुमिरन कर नर तुम सदा।। हृदय बसाऊँ राम, चरण कमल सिर नाय के। सभी बनाओ काम, तुम बिन दूजा कौन है।। गले लगा वनवास, बनना चाहो राम तो। मत हो कभी उदास, धीर वीर बन के रहो।। रखो राम पे आस, हो अधीर मन जब कभी। प्राणी तेरे पास, कष्ट कभी फटके नहीं।। सुध लेवो रघुबीर, दर्शन के प्यासे नयन। कबसे हृदय अधीर, अब तो प्यास मिटाइये।। सोरठा "विधान" दोहा की तरह सोरठा भी अर्ध सम मात्रिक छंद है। इसमें भी चार चरण होते हैं। प्रथम व तृतीय चरण विषम तथा द्वितीय...
ज्ञान का सागर
कविता

ज्ञान का सागर

डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी ******************** देखने में छोटी होती है पर इसमें होता ज्ञान का भंडार है इसके बिना शिक्षा की कल्पना करना बेकार है पुस्तकें ज्ञान प्राप्ति का जरिया है इसमे बहता ज्ञान का दरिया है पुस्तकें हमारे अकेलेपन में साथी होती है बोरियत को दूर भगाती है पुस्तकें ज्ञान के साथ-साथ हमारा मनोरंजन भी कराती है कभी हंसाती है और कभी रूलाती है पुस्तक को अपना जीवनसाथी बनाएँ खुद को प्रगति के पथ पर आगे बढ़ाएँ पुस्तकें होती है हमारी मित्र और गुरु जब भी समय मिले पढ़ना करें शुरू पुस्तकें हमें अंधकार से रोशनी की तरफ ले जाती है हमारे जीवन को उज्जवल बनाती है परिचय : डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" निवासी : चिनार-२ ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी घोषणा : मैं यह शपथ पूर्वक घोषणा करता हूँ कि उपरोक्त रचना पूर्णतः मौलिक है। ...
हाहाकार
कविता

हाहाकार

आशा जाकड़ इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** कोरोना ने मचाया हाहाकार कृष्णजी लगा दो नैया पार बेचारे बच्चे पूछ रहे हैं कब हम बाहर निकलेंगे? कब हम स्कूल जाएंगे ? कब हम मैदान में खेलेंगे ? सुन लो भक्तों की पुकार कृष्णजी लगा दो नैया पार।। बड़े -बूढ़े प्रार्थना कर रहे, घर में कब तक बंद रहेंगे? हाथ धोए सब परेशान हुए शुद्ध हवा कब सांस लेंगे ? जीना हो गया अब दुश्वार, कृष्णजी लगा दो नैया पार।। मजदूर बेचारे बिलख रहे दाने -दाने को तरस रहे हैं। कामकाज सब छूट गए, घर बार अब टूट रहे हैं।। दाने-दाने को हुई दरकार कृष्णजी लगा दो नैया पार।। जब-जब होवे धर्म की हानि तब तब तुम जग में आते हो कोरोना दानव ताण्डव नृत्य क्यों नहीं अब चक्र उठाते हो? वादे को करो अब साकार। कृष्णजी लगा दो नैया पार।। मानवता अब जाग गई है सर्वत्र सेवा भावना आ गई डॉक्टर, पुलिस, कर्मचारी तन मन...
हे पंछी नन्हे…
कविता

हे पंछी नन्हे…

दिनेश कुमार किनकर पांढुर्ना, छिंदवाड़ा (मध्य प्रदेश) ******************** हे पंछी नन्हे.... संभलकर भर तू उड़ान! हैं ज़िंदगी अनमोल जान!..... गगन हो रहा रक्तिम लाल, गिद्ध उड़ रहे ओढ़े खाल, हर ओर नुकीले पंजो वाले, रखना रे खुद का ध्यान! संभलकर भर तू उड़ान!.... हैं ज़िंदगी अनमोल जान! हो गई हैं निष्ठा बागी, रोक उड़ानों पर हैं लागी बातो में न आ जाना बंदे, नही पिंजरे में तेरी शान, संभलकर भर तू उड़ान!!...... हैं ज़िंदगी अनमोल जान! जगह जगह लगे हैं फंदे, बहेलियों के यही हैं धंदे, चुग्गा दिखा पर कतरेंगे, ना रहना इससे अनजान! संभलकर भर तू उड़ान! हैं ज़िंदगी अनमोल जान! परिचय -  दिनेश कुमार किनकर निवासी : पांढुर्ना, जिला-छिंदवाड़ा (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र :  मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अ...
मिला दो राम से हनुमत
भजन

मिला दो राम से हनुमत

प्रेम नारायण मेहरोत्रा जानकीपुरम (लखनऊ) ******************** मिला दो राम से हनुमत मिला दो राम से हनुमत, तेरा गुणगान गाएंगे। बताओगे जो भी युक्ति, उसे करके दिखाएंगे। मिला दो राम........ प्रभु आराध्य है तेरे, मेरे आराध्य तो तुम हो। कृपा जो राम की पाए, उसे क्या कार्य दुष्कर हो। तेरी भक्ति फलित होगी, तो प्रभु भक्ति को पाएंगे। मिला दो राम......... तुम्हीं ने की कृपा सुग्रीव पर, तो राम को पाया। दिया सेवा का अवसर और, उसे भय मुक्त करवाया। तेरी करुणा कृपा से ही, तो दिल मे राम आएंगे। मिला दो राम......... तेरे स्वामी की सेवा का , जो अवसर,मैंने पाया है। तुम्ही से शक्ति लेकर के, उसे मैंने निभाया है। हैं जबतक प्राण तन में, हम तो ये सेवा निभाएंगे। मिला दो राम...... परिचय :- प्रेम नारायण मेहरोत्रा निवास : जानकीपुरम (लखनऊ) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी...
एक उम्मीद
कविता

एक उम्मीद

रुचिता नीमा इंदौर म.प्र. ******************** हर तरह प्राणवायु बिखरी है, फिर भी चारों तरफ शोर है।। हम ही काबिल न बचे अब लेने को, हमारे ही फेफड़े अब कमजोर है।। अभी भी वक़्त है सम्हलने का, खुद को ऊर्जा से भरने का।। थोड़ा आसन थोड़ा प्राणायाम और थोड़ा वक्त प्रकृति को देने का।। चलो फिर से पेड़ लगाए, अपनी प्राणवायु स्वयं बनाये।। खुद को फिर मजबूत बनाये अपने को और अपनों को बचाये।। ये वक़्त ही तो है गुजर जाएगा, फिर एक नया सवेरा आएगा।। हम आशाओं के नवदीप जलाए, और दुनिया को फिर से जगमगाये।। माना जो हो रहा है, वो बहुत दर्द दे जाएगा।। मगर हिम्मत रख ले दोस्त, बहुत जल्द ही सब ठीक हो जाएगा।। परिचय :-  रुचिता नीमा जन्म २ जुलाई १९८२ आप एक कुशल ग्रहणी हैं, कविता लेखन व सोशल वर्क में आपकी गहरी रूचि है आपने जूलॉजी में एम.एस.सी., मइक्रोबॉयोलॉजी में बी.एस.सी. व इग्नू से बी.एड. किया है आप इंदौर निवासी हैं। घोषणा...
अब समझ आ रही है
कविता

अब समझ आ रही है

रामकृष्ण शर्मा गुलाबपुरा भीलवाड़ा (राजस्थान) ******************** ऑक्सीजन की कीमत अब समझ आ रही है काटे थे पेड़ धड़ल्ले से अब धड़ल्ले से जान जा रही है बहुत रह लिए शहर अब गांव की याद आ रही है बसाए बेहिसाब सामान अब जिंदगी "बेड'' पर सिमटी जा रही है समझते रहे खुद को शहंशाह अब जीने में भी मुश्किल नज़र आ रही है जिंदगी हाथ में है हमारे अब लापरवाही भारी पड़ती जा रही है परिचय :- रामकृष्ण शर्मा (व्याख्याता) निवासी : गुलाबपुरा (भीलवाड़ा) राजस्थान घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप क...
कोरोना का संदेश
कविता

कोरोना का संदेश

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.) ******************** धरती के प्रबुद्ध प्राणियों माना कि तुम सब संसार के सबसे जहीन प्राणी हो। मगर ऐसा तुम सोचते हो, मेरी नजर में तो तुम बुद्धिहीन ही नहीं सबसे बड़े बुद्धिहीन हो। क्योंकि तुम स्वार्थी हो,निपट कलंकी हो, खुद को इंसान कहते हो, पर इंसान कहलाने के लायक नहीं हो। गलतियां करके भी औरों को दोष देना तुम्हारी फितरत है, तुम्हें तो अपने आप से भी नफरत है। तुमने तो भगवान को भी हमेशा दोषी ठहराया, अपने कर्मों में कभी खोट न नजर आया, जबसे मैं आया तुम्हारे तो भाग्य खुल गए भाया। मैं कोई रोग नहीं दहशत भर हूँ, बहुत कुछ देखने सुनने तुम्हें समझाने भी आया हूँ तुम्हारी औकात बताने आया हूँ। क्या तुमने इंसानी धर्म निभाया? अपने माँ बाप, परिवार, समाज को तुमने क्या-क्या नहीं दिखाया? लूट, हत्या, अनाचार, अत्याचार षडयंत्र, भ्रष्टाचार का नंगा नाच दिखाया। प्रकृति...
विपुरुषत्व की परिभाषा
कविता

विपुरुषत्व की परिभाषा

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** बच्चे से जब जवान हो, बढ़ती है परिजन आशा, विकास में हो भागीदारी, ये पुरुषत्व की परिभाषा। पुरुषत्व वो गुण होता है, जो करता जनहित काम, हर क्षेत्र में जन नाम हो, जीवन बन जायेगा धाम। हर युग में हुये पुरुष वो, मिटा डाले जिन्हें संताप, धर्म कर्म की बेल फैली, उड़ ये पल में सारे पाप। एक से बढ़कर एक हुये, किसका यहां पे नाम लूं, किस गुण की चर्चा हो, हर मानव को पैगाम दूं। भगवान राम अवतार ले, राक्षसों को संहार किया, पुरुषत्व की दी परिभाषा, अमन का ये पैगाम दिया। भागीरथ का जन्म हुआ, लाया वो धरती पर गंगा, जीवन भर वो संघर्षमय, कर गया जन भला चंगा। श्रीकृष्ण अवतार लिया, पुरुषत्व का दिया पैगाम, पापी मिटा दिये पल में, धर्म कर्म का फैला नाम। देव आये हर युग में तो, पुरुषत्व का ले सिर भार, जुटे रहे काम में हरदम, मानी नहीं कभी भी हार।। पुरुषत्व की...
आओ मिलकर किला लड़ायें
कविता

आओ मिलकर किला लड़ायें

अखिलेश राव इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** आओ मिलकर किला लड़ायें कोरोना को दूर भगायें दो गज दूरी मास्क जरूरी का गतिरोध बना बढती गति पर हम रोक लगायें। कोरोना की दूसरी लहर गांव कस्बा या हो शहर नहीं सुरक्षित है कोई भी हर तरफ इसका कहर बारंबार सेनेटाइजर लगायें कोरोना पर काबू पायें। कोरोना का देखो वार हर घड़ी में एक शिकार अनवरत बढ़ रहा निरंकुश सकल राष्ट् में हाहाकार लापरवाही छोड़ सभी हम जीवन है अनमोल बचायें। आगे और बड़ा संकट है पथ पर कंटक ही कंटक है आक्सीजन कम कैसे बचें हम समस्या विकराल विकट है हम सुधरेंगे युग सुधरेंगे पंक्ति को चरितार्थ बनाये। विपत्ति का ये दौर है विपक्ष कर रहा शोर है सर्वदल एकजुट हो जायें वरना ना होगी भोर है इन्हें छोड़ आगे आयें कोरोना को दूर भगायें। जान है तो जहान है नेता भीड़ हेतु परेशान हैं अपना काम बनता भाड़ में जाये जनता इनका तो बस लक्ष्य एक है जीवन अपना सुल...
देखते-देखते
कविता

देखते-देखते

धैर्यशील येवले इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** आंखे है दहकी दहकी बातें है बहकी बहकी मैं बस देखता ही रहा वो गया देखते देखते हालात बिगड़े बिगड़े रहनुमा तगड़े तगड़े रोक सकते थे उसे पर वो गया देखते देखते मंजर सहमा सहमा माहौल गरमा गरमा अपने देखते ही रह गए वो गया देखते देखते कोई नही अपना अपना हर रिश्ता सपना सपना करते रहो अब इंतजार वो गया देखते देखते दिया प्यार तौल तौल की नेकी बोल बोल कौन सुने दिल खोल वो गया देखते देखते वो गया देखते देखते। परिचय :- धैर्यशील येवले जन्म : ३१ अगस्त १९६३ शिक्षा : एम कॉम सेवासदन महाविद्याल बुरहानपुर म. प्र. से सम्प्रति : १९८७ बैच के सीधी भर्ती के पुलिस उप निरीक्षक वर्तमान में पुलिस निरीक्षक के पद पर पीटीसी इंदौर में पदस्थ। सम्मान : राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर hindirakshak.com द्वारा हिंदी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ ...