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पद्य

मुफलिसी में भी मजा है
कविता

मुफलिसी में भी मजा है

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** तुलसीदास गंगा के तट पर, मुफलिसी दिन रात बिताये, उनकी सच्ची भक्ति देखकर, खुद श्रीराम मिलने को आये। मुफलिसी में नरसी भगत ने, प्रभु भक्ति का छोड़ा न साथ, श्रीकृष्ण भात भरने आये थे, आया पकड़ा नरसी का हाथ। मुफलिसी में दिन बिताये थे, गरीब सुदामा करता विनती, श्रीकृष्ण ने आकर घर भरा, दौलत नहीं, हो पाई गिनती। सबरी प्रभु भजन कर रही, मुफलिसी में बिताती दिन, ईश्वर श्रीराम, पहुंचे मिलने, झूठे बेर खिलाये गिन गिन। रैदास को कौन नहीं जानता, मुफलिसी उनके काम आई, गंगा में जब पैसा फेंका था, सुन रैदास, गंगा हाथ बढ़ाई। मन चंगा तो कटौती में गंगा, गरीबी,भक्ति दोनों ही दर्शाता, रैदास की गरीबी और भक्ति, रह-रहकर मन को तरसाता। नामदेव,कबीर और त्रिलोचन, सधना, सैनु निम्र वर्ग कहलाए, भक्तिभाव दिल में अति जागा, ईश्वर के वो बहुत पास आए। मुफलिस हो जन जन के ...
देखो वो चांद आया
कविता

देखो वो चांद आया

रश्मि श्रीवास्तव “सुकून” पदमनाभपुर दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** देखो वो चांद आया करवा का चांद आया कही बदलो में छुपता कही डूबता निकलता वो देखो चांद आया करवा का चांद आया खेले छुपन छुपाई देते तूझे दहाई वो देखो चांद आया इठलाता चांद आया बलखाता चांद आया उसका गुरुर देखो उसको जरूर देखो कैसा सलोना दिखता वो देखो चांद आया करवा का चांद आया साजो श्रृंगार देखो रूपसी का हार देखो वो चांद सा है दिखता पर चांद को है तकता देखो वो चांद आया करवा का चांद आया सोलह श्रृंगार करके व्रत और उपवास करके निर्जल बिताये है दिन गिन गिनकर ये पल छिन तब जाकर कहीं वो आया वो देखो चांद आया करवा का चांद आया सखियों ये अर्ध्य देकर नैवैद्य से सजाकर कर लो यही विनती सौभाग्य की हो वृद्घि कर लो ये व्रत अब पूरी सब कामना हो पूरी देखो वो चांद आया करवा का चांद आया परिचय : रश्मि श्रीवास्तव “सुकून” निवासी : मुक्तनगर, पदमनाभपुर दुर्ग ...
दीपावली त्यौहार
कविता

दीपावली त्यौहार

विरेन्द्र कुमार यादव गौरा बस्ती (उत्तर-प्रदेश) ******************** दीपावली त्यौहार का आगमन आने वाला दीपावली का त्यौहार है, वीरेन्द्र यादव का सादर नमस्कार है। जो दीपावली का त्यौहार आ जाये, सबके चेहरे पर खुशियाँ छा जाये। दीपावली के बोनस का सबको है इन्तजार, देखों आने वाला है दीपावली खुशियों का त्यौहार। जो दीपावली का बोनस सबका आ जाये, सबका मन प्रसन्नऔर प्रफुल्लित हो जाये। दियों की रोशनी से सज जाता हमारा घर-द्वार, हम एक-दूसरे को खुशी-खुशी बांटते हैं उपहार। यह त्यौहार भाई-चारे का सौहार्दपूर्ण व्यवहार बनाये, एक-दूसरे को गले से गले मिलना सिखलाये। सब बच्चे मिल फुलझडियाँ छुडाये, खुशी-खुशी एक-दूसरे को मिठाई खिलाये। इस त्यौहार में जो करे पटाखो से मनमानी, उसको वो याद दिला दे उसकी नानी। जो पटाखे फोड़ने से पहले पास रखे पानी, वही है सच्चे व अच्छे माँ-बाप होने की निशानी। हम इस दिन बच्चों को बिल्कुल नहीं डा...
रामचरित मानस जगती पर
कविता

रामचरित मानस जगती पर

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** रामचरित मानस जगती पर, हर युग में सुखदाई है। रामकथा लिखकर तुलसी ने, जन-जन तक पहुँचाई है। रघुकुल के आदर्श पुरुष के, कोटि-कोटि अनुयायी हैं। चाहे कितने भी रावण हों, हर युग में भूशायी हैं। श्रीराम का शैशव अद्भुत, अतुलनीय तरुणाई है। रामकथा लिखकर तुलसी ने, जन-जन तक पहुँचाई है। जनकसुता भी राजमहल तज, साथ नाथ के वन आईं। रहीं सतत प्रतिकूल दशा में, कष्ट सहे पर मुस्काईं। सीता जी-सी गरिमा जग में , नहीं किसी ने पाई है। रामकथा लिखकर तुलसी ने, जन-जन तक पहुँचाई है। रही उर्मिला राजमहल में, सहती रही विरह के पल। उधर लक्ष्मण निज भ्राता की सेवा मे रत थे अविरल। दुर्लभ इस धरती पर अब तो मिलना ऐसा भाई है। रामकथा लिखकर तुलसी ने, जन-जन तक पहुँचाई है। श्रद्धावान सुखद सेवा में, नतमस्तक संलग्न रहे। दशा-दिशा भी भूल गए वे, सहज भाव में मग्न रहे। शबरी-केवट की श्र...
मेरा जिस्म
कविता

मेरा जिस्म

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** मेरा जिस्म जैसे कब्रिस्तान हो गया नश्वर शरीर मे अमर आत्मा लिए हूँ सांसे ही भारी लगने लगी है अब तो फिर भी रिश्तों का बोझ लिए लिए हूँ किसी से मिलने को जी नही करता मैं हर किसी के कदम चुम लिए हूँ तेरे लिए जान दे देंगे वो कहा करते वो सिर्फ बातें ही थी परख लिए हूँ अपनी परेशानी को खुद कंधा देना है वक़्त और तजुर्बे से मैं सिख लिए हूँ दर्द बताएगा तो लोग तुझ पर हँसेंगे इसीलिए मैं होठों पर मुस्कान लिए हूँ परिचय :- धैर्यशील येवले जन्म : ३१ अगस्त १९६३ शिक्षा : एम कॉम सेवासदन महाविद्याल बुरहानपुर म. प्र. से सम्प्रति : १९८७ बैच के सीधी भर्ती के पुलिस उप निरीक्षक वर्तमान में पुलिस निरीक्षक के पद पर पीटीसी इंदौर में पदस्थ। सम्मान : राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर hindirakshak.com द्वारा हिंदी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित कर...
भोली प्रार्थना
कविता

भोली प्रार्थना

डॉ. पंकजवासिनी पटना (बिहार) ******************** गर्वीले चाँद के आलोक में! उसका अक्षत आशीष ले!! चलनी के आवरण में!!! जो देखा तुम्हें : तेरे अधरों पर थिरक उठी उषा - सी गुलाबी मुस्कान में देखी मैंने अपनी अरुणाभ छवि!! और पा गई अपनी जन्मभर की तपस्या और समर्पण का सुफल!! सारे सिंदूरी सपने! सजन तुझसे हुए अपने!! तुम्हारे प्रीत की यह रागारुण चूनर! सदा रहे मेरे माथ!! अखंड सौभाग्य बन!!! ताउम्र नसीब होती रहे तेरे हाथों पारणा का ये पहला निवाला! तुम मेरे भोले मन की निश्चल प्रार्थना!! मीत! तुझ संग लिखूँ प्रीत की अमिट इबारत!!! परिचय : डॉ. पंकजवासिनी सम्प्रति : असिस्टेंट प्रोफेसर भीमराव अम्बेडकर बिहार विश्वविद्यालय निवासी : पटना (बिहार) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक म...
मौत के कारोबारी
कविता

मौत के कारोबारी

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उ.प्र.) ******************** समाज में भरे हैं ये मौत के कारोबारी आतंक का कफन ओढ़े हुए, सुदूर तक हर तरफ गोली और बारूद से सजते हैं नित नए बाजार इनके कौड़ियों के मोल बिक रही इंसानों की जिंदगी अपने ही अपनों के खून के प्यासे हो रहे। इस आतंक" का ना कोई धर्म है ना कोई जाति, ना ही है कोई भगवान या खुदा इनका, ईमान की बातों से ना ही रहा इनका सरोकार। घरों के चिराग बुझ गए इनकी हैवानियत से, सिंदूर धुल गया हर ओर पानी से सिसकियां भी दबी सी सुनाई देती हैं तिनका तिनका पूछ रहा है ये सवाल.... ये इंसान हैं या मौत के कारोबारी ???? परिचय :- श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी पति : श्री राकेश कुमार चतुर्वेदी जन्म : २७ जुलाई १९६५ वाराणसी शिक्षा : एम. ए.,एम.फिल – समाजशास्त्र,पी.जी.डिप्लोमा (मानवाधिकार) निवासी : लखनऊ (उ.प्र.) विशेष : साहित्यिक पुस्त...
व्याकरण चालीसा
दोहा

व्याकरण चालीसा

डाॅ. दशरथ मसानिया आगर  मालवा म.प्र. ******************* अनुस्वार अनुनासिका, सदा राखिये ध्यान। अनुनासिक में लघु लखो, अनुस्वार गुरु जान।। अनुनासिक में एक है, अनुस्वार दो होय। हँसते-हँसते जानिये, हंस हँसा नहि कोय।। भाषा का संविधान बनाया। परिभाषा व्याकरण कहाया।।१ व्याकरणा के तीन हैं भेदा। वर्ण शब्द अरु वाक्य सुभेदा।।२ पाणिनि मुनि ने बहु तप कीना। हो प्रसन्न शिव ने वर दीना।।३ डिम डिम डमरु नाद सुनाया। शिव ने चौदह बार बजाया।।४ देव नागरी ध्वनी सुनाई । यही वर्णमाला कहलाई।।५ नागरि लिपि है ज्ञान की धारा। समय समय विज्ञान विचारा।।६ वर्णों के दो भेद बताये। स्वर व्यंजन में रहे समाये।।७ दीरघ लघु दो स्वर के भेदा। अइउऋ लगति मात्रा एका।।८ ए ऐ ओ औ ऊ अरु आ ई। सातों दीरघ दो कहलाई।।९ अं अः तो आयोग कहाते। ये भी मात्रा दो लगाते।।१० स्पर्श उष्मा अरु अंतस्था। व्यंजन संयुक्त अरु है रुढ़ा।।११ अष्टाध्यायी ग...
हाय रे पैसा
कविता

हाय रे पैसा

विरेन्द्र कुमार यादव गौरा बस्ती (उत्तर-प्रदेश) ******************** पैसे के लिए तु दिन-रात काहे को जागे, पैसे के पीछे काहे बार-बार तु भागे। माना कि तु पैसे से बढ़ जाता सबसे आगे, काहे तुमने छोड़ दिये पैसे के कारण मानवता के रिस्तेऔर धागे। काहे तु बार बार पैसे के पीछे भागे, काहे तु पैसे के लिए दिन-रात जागे। माना कि पैसे से तु बन जाता धनवान, फिर भी इस दुनिया में सबसे बड़ा है भगवान। काहे तु पैसे के लिए अधर्म पे अधर्म करता जाये, सबसे बड़ा है मानव धर्म तु उसको काहे को भुलाये। मानव तु पैसे के लिए दिन-रात जागे करता हाय-हाय, एक दिन सब कुछ छोड़ के चल दोगे करके टाटा बाय-बाय। काहे तु पैसे के पीछे भागा जाये, काहे तु पैसे के पीछे भागा जाये। अति से किसी का कभी भी हुआ नहीं भला, दिन-रात मानव तु पैसे के पीछे-पीछे क्यू चला। अति भला न पैसे कमाना,अति भला न पैसे का खर्चाना, अति तुम कभी किसी का करना ना, न...
बहुत याद आता है
कविता

बहुत याद आता है

रूपेश कुमार (चैनपुर बिहार) ******************** तुम्हारा मुझे एक टक निहारना मुझें बहुत याद आता है, तुम्हारा दुपट्टे में मुँह छिपा कर मुस्कुराना, मुझें बहुत याद आता है, नित्य नये-नये खत लिख कर देना, मुझें बहुत याद आता है, ऊपर से गुस्सा होना और भीतर ही भीतर मुझें दिल से मानना, मुझें बहुत याद आता है, तुम्हारा मुझपर अपना हक़ जमाना, मुझें बहुत याद आता है, मुझसे रूठना, बातें ना करना लेकिन मेरी खुशियों की दुआ करना, मुझें बहुत याद आता है, छुप-छुप कर मेरा स्टेटस देख मुझे याद करना, मुझें बहुत याद आता है, मेरी छोटी-छोटी बातों पर मुझसे झगड़ा करना, मुझें बहुत याद आता है, मेरी धड़कनों को अपना एहसास बनाना, मुझें बहुत याद आता है, मेरी हर एक रचना को दिल से पढ़ना, मुझें बहुत याद आता है, तुम्हें अपने प्यारे सूट मे देखना, मुझें बहुत याद आता है, तुम्हारे अधरों का रक्तिम लिपस्टिक, मुझें बहुत याद आ...
सरदार पटेल
कविता

सरदार पटेल

डॉ. भावना सावलिया हरमडिया (गुजरात) ******************** अद्वितीय गौरवान्वित गुजरात की गरिमा के मुकुटमणि। गरिमामय भारत के स्वतंत्र चेता मंगल कामना के शिरोमणी।। अखण्ड भारत के श्रेष्ठ निर्माता राष्ट्र के हो तू शौर्य वीर सपूत। तुझे करते हैं हम शत् शत् नमन भारतीय आत्मा के सपूत।। ३१ अक्टूबर, १८७५ को प्रकाशित हुआ भारत का नक्षत्र। सजी माँ भारती की आरती बिखरे खुशियों के नूर सर्वत्र।। झवेरभाई-लाडबा के कुलदीपक का चारो ओर तेज जगमगाया। भारत फूला न समाया सबके हृदय स्नेह-भाव जगाया।। कर्त्तव्य-निष्ठा का अडिग शिखर जनहित का तू नायक अनोखा। सुख-दुख में तू स्थित प्रज्ञ हिमालय सी उत्तुंग श्रृँग शिखा।। पत्नी देहांत का ग़म पी के वकालत का किया काम दिल से। किसीको भास न होने दिया न्याय दिलाया सत्कर्म से।। समाज संगठन के कुशल नेता राजनीति में तू सत् का श्रेष्ठा। राष्ट्रीय एकत...
बना दुश्मन जमाना
कविता

बना दुश्मन जमाना

मनमोहन पालीवाल कांकरोली, (राजस्थान) ******************** तुम दिल में क्या बसी बना दुश्मन जमाना नज़र ऊपर उठाते हम बना दुश्मन जमाना सदियों से ख्वाब तुम्हारा ही देखा मैंने मालूम होने लगा बना दुश्मन जमाना मुहब्बत-ए-जिंदगी खुशहाल बन गई यारों रहा न गया हबीबों से बना दुश्मन जमाना हरिफों का यही मशगला 'मोहन' कैसे तोड़े कुछ न कर सके फ़कत बना दुश्मन जमाना देर है अंधेर नहीं इंतजार है इशारा-ए-खुदा मुहब्बत करने वाले का बना दुश्मन जमाना शब्दार्थ- मशगला- मुद्धा, उदेश्य, बस यही एक कार्य परिचय :- मनमोहन पालीवाल पिता : नारायण लालजी जन्म : २७ मई १९६५ निवासी : कांकरोली, तह.- राजसमंद राजस्थान सम्प्रति : प्राध्यापक घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिच...
अन्तर्द्वन्द
कविता

अन्तर्द्वन्द

मुकेश गाडरी घाटी राजसमंद (राजस्थान) ******************** उसका संघर्ष दु:ख मय हुआ होगा, जब उसकी कड़ी मेहनत रंग लाई प्रतिस्पर्धियों मे से आगे निकला तब सबको जो पीछे छोड़ कर वो मे नई -नई कल्पना करता हूँ.... क्योंकि मे अन्तर्द्वन्द मे रहता हूँ.... देश से प्यार करने वाले भगत सिंह है जो कभी ना मोत से डरते हो बात आए जब मातृभूमि पर तब सामने कोंन ये कोई ना बतलाता हो मे नई -नई कल्पना करता हूँ.... क्योंकि मे अन्तर्द्वन्द मे रहता हूँ.... कनक को आग में पीटते हैं बना आकार अच्छा तो बिकता जो ना तो पुनः पिट जाता हैं हमे भी इसकी तरह बन जाना है मे नई -नई कल्पना करता हूँ.... क्योंकि मे अन्तर्द्वन्द मे रहता हूँ.. परिचय :- मुकेश गाडरी शिक्षा : १२वीं वाणिज्य निवासी : घाटी (राजसमंद) राजस्थान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कव...
ताकत कलम की
कविता

ताकत कलम की

प्रियंका पाराशर भीलवाडा (राजस्थान) ******************** न्यून-सी नोंक, छोटा-सा कद सभ्य, अनुशासित होकर संभालती उच्च पद जो संभव न हो तलवार से वो कलम कर दिखाती हैं क्रूर, विनाशकारी हिंसा से अंत में, ताकत कलम की श्रेष्ठ कहलाती हैं कलम के भाव कभी मनोरंजन तो कभी तूफान जुबां से निकले शब्द नहीं डालते जब कोई प्रभाव तब हस्ताक्षरित अटल फैसला सुनाती हैं अंधकारमय वातावरण में भी कलम आशा की किरण बन जाती हैं वृहत हथियारो से, शब्दों की बौछारों से ताकत कलम की श्रेष्ठ कहलाती हैं परिचय :- प्रियंका पाराशर शिक्षा : एम.एस.सी (सूचना प्रौद्योगिकी) पिता : राजेन्द्र पाराशर पति : पंकज पाराशर निवासी : भीलवाडा (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं...
मै राष्ट्र भाषा हिन्दी
कविता

मै राष्ट्र भाषा हिन्दी

रश्मि श्रीवास्तव “सुकून” पदमनाभपुर दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** मै राष्ट्र भाषा हिन्दी आजाद भारत में जन्म लेकर बहुत प्रफुल्लित हुई इस गंगा जमुनी संस्कृति में घुटनों के बल चलकर बड़ी हुई धीरे-धीरे यौवन की दहलीज पर कदम रखने लगी फिर अन्य भाषाओ की बुरी नजर मुझ पर पड़ने लगी अंग्रेजी तो मेरा सबसे बड़ा दुश्मन निकला उसने मेरी बहन संस्कृत को डरा धमकाकर उसे सलाखों के पीछे डालकर मेरी भावनाओं के साथ खिलवाड़ करने लगा मै भाषाओं की भीड़ में पंजे के बल खड़े होकर अपने होने का अहसास कराती हूँ कहीँ आगे कर दी जाती हूँ कहीं पीछे धकेल दी जाती हूँ अब तो साल में सिर्फ एक दिन मान सम्मान मिलता है बाकी के दिनॉ में सिर्फ दोयम दर्जे का मान मिलता है आजादी के इतने वर्षों के बाद भी अपने आजाद अस्तित्व के लिये संघर्ष करती देखी जाती हूँ हिन्दी है तो हिंदोस्तां है यह सबक याद दिलाती हूँ परिचय : रश्मि श्रीवास्तव “सुकून” ...
अकेले ही लड़ना है
कविता

अकेले ही लड़ना है

दीवान सिंह भुगवाड़े बड़वानी (मध्यप्रदेश) ******************** उम्मीदें कितनी है तुझ पर तेरे अपनों की माता-पिता दोस्त और भाइयो-बहनों की कर पालन किया था जो वादे-वचनों की अंत समय तक ना छोड़ डगर सपनों की। कर इज्जत सदैव अपने गुरुजनों की कमाई कर व्यवहार, कुशलता, आदर्शों की हो सफल इज्जत बड़ा ,अपने परिजनों की आस ना कभी कर, ऊंचे-बंगले भवनों की। चल मंद-मंद मगर रोक न चाल कदमों की ना कर परवाह जीवन में मिथक कथनों की मुश्किलें लाखो हो, अपने मंजिल-ए-सफर की मगर कर परिश्रम, त्याग चेन-नींद, आरामों की। ना रख उम्मीद किसी से साथ-सहयोग की यहां तो पड़ी है सबको अपने मतलब की इस जहां में कोई कदर नहीं उस इंसा की जो सत्य हो खाता कमाई अपने मेहनत की। थोड़ा-पढ़ भी ले ऐ-युवा, वक्त है अभी भी कर्तव्य जान ले अपने और हक-अधिकार भी हो यदि भ्रष्टाचार-अन्याय तो उठा आवाज भी पढ़कर लड़,लड़कर पढ़ और आगे बढ़ भी। अपार दुख है ज...
जिंदगी क्या है
कविता

जिंदगी क्या है

संजय जैन मुंबई ******************** फूल बन कर मुस्कराना जिन्दगी है। मुस्कारे के गम भूलाना जिन्दगी है l मिलकर खुश होते है तो क्या हुआ l बिना मिले दोस्ती निभाना भी जिन्दगी है।। जिंदगी जिंदा दिलो की आस होती है। मुर्दा दिल क्या खाक जीते है जिंदगी। मिलना बिछुड़ जाना तो लगा रहता है। जीते जी मिलते रहना ही जिंदगी है।। जिंदगी को जब तक जीये शान से जीये। अपनी बातो पर अटल रहकर जीये। बोलकर मुकर जाने वाले बहुत मिलते है। क्योंकि ऐसे लोगो का ही आजकल जमाना है।। पहचान बनाकर जीने वाले, कम मिलते है जिंदगी में। प्यार से जीने वाले भी कम मिलते है। वर्तमान में जीने वाले, जिन्दा दिल होते है।। प्यार से जो जिंदगी को जीते है। गम होते हुए भी खुशी से जीते है। ऐसे ही लोगो की जीने की कला को। हम लोग जिंदा दिली कहते है।। परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २...
सुबह का भूला
कविता

सुबह का भूला

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** सुबह का भूला, अगर शाम तक अपनी, गलती मान जाता है। जिंदगी की अहमियत, वक्त की कद्र, अपनों का दर्द, दुआओं का असर, पहचान जाता है। उसकी भूल को, शाम तक, हर कोई, भूल जाता है। सुबह का भूला अगर शाम तक जिंदगी की कद्रों-कीमतों को, पहचान जाता है। प्यार की, कोई कीमत नही, यह जान जाता है। उसकी भूल को, शाम तक, हर कोई भूल जाता है। सुबह का भूला, अगर शाम तक भी...... नही समझ पाता है। अपने साथ, कई अपनों की, भावनाओं को ठेस जाता है। फिर वो जिंदगी भर, नहीं समझ पाता है। परिचय :- प्रीति शर्मा "असीम" निवासी - सोलन हिमाचल प्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां...
प्रेम
कविता

प्रेम

सपना दिल्ली ******************** माँ-बाप का प्रेम जग में सबसे अनमोल बच्चों की छोटी छोटी खुशियों में ढूँढें जो अपनी ख़ुशी उनकी खुशियों के लिए छोड़ दें जो अपनी सारी खुशियां। कभी बन जाते गुरु हमारे कभी बन जाएँ दोस्त अच्छे बुरे का पाठ सिखाते दुनिया की बुरी नज़र से हमें बचाते। प्रेम का मतलब हमें सिखलाते अपनेपन का एहसास करवाते दूर रहने पर भी जो हर दम रहते पास हमारे। बिना कुछ बोले मन की बात समझ लेते रिश्तों की मजबूती का राज हमें बतलाते। दर्द में देख हमें आँसू उनकी आंखों से बहें बावजूद मुश्किल से लड़ना सिखलाते ख़ुद को भूल ध्यान हमारा रखते जल्दी हो जाऊं ठीक प्रार्थना ईश्वर से करते देख यह त्याग प्रेम से साक्षात हम होते... समझ आता बिना प्रेम जीवन हमारा निरर्थक जैसे बिन पानी मछली का जीवन। स्वार्थ से ऊपर है प्रेम जीवन का आधार है प्रेम नित् नित् बढ़ता ही जाए ऐसा स्पर्श है प्रेम... सबसे करो प्रेम ऐसा पा...
कहाँ खो गई गोधूलि
कविता

कहाँ खो गई गोधूलि

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** शाम को उड़ती धूल में देखता आकाश की लालिमा सूरज की धुँधली छवि सूरज लेता शाम को सबसे अलविदा गाय के गले में बंधी घंटिया सूरज की करती हो शाम की आरती गोधूलि की धूल बन जाती गुलाल धरा से आकाश को कर देती गुलाबी नित्य ये पूजन चला करता वर्षा ऋतु धूल और सूरज छिप जाते देव कर जाते शयन ये गाँव की कहानी शहरों में धूल कहाँ औऱ सूरज भी कहाँ सीमेंट की ऊंची बिल्डिंग सड़के डामर की कहाँ गाय के गले मे आरती की घँटी गोधूलि का महत्व गाँव मे होता शहरों में तो काऊ महज पढ़ाया जाता गाँव प्रकृति से सजा इसलिए तो सुंदर है सोचता हूँ गॉव जाकर प्रकृती को पुनःपहचानू। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन :- देश - विदेश की विभिन्न पत्र - पत्रिकाओं में रचनाएँ ...
पैसे मांगलो तो…
कविता, मुक्तक

पैसे मांगलो तो…

दामोदर विरमाल महू - इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** विषय: वर्तमान परिदृश्य (कोरोना) विधा: कविता/मुक्तक हर किसी को रोटी की अहमियत सिखाने लगे है लोग। अबतो चलते रस्ते औकात दिखाने लगे है लोग। जिसने कभी पैसों के अलावा किसी को नही पूजा, अबतो नास्तिक होकर भी मंदिर जाने लगे है लोग। जो जाया करते थे टाई लगाकर रोज़ दफ़्तर को, अब वही सब्जी का ठेला लगाने लगे है लोग। आया अब कोरोना ऐसा सबक सिखाने कि, अब घर मे ही बनी चीज़े खाने लगे है लोग। कोरोना में कमाई की हदें भी पार की जिसनें, अब वही एक एक करके ऊपर जाने लगे है लोग। पहले जो कहते थे कि मरने की फुर्सत भी नही है, अब वही फुर्सत में ज़हर खाने लगे है लोग। जो उड़ाया करते थे कभी लाखों किसी महफ़िल में, अब वही पैसा पाई पाई करके बचाने लगे है लोग। जो छाया है आजकल हमारे बीच तंगी का दौर, पैसे मांगलो तो हालत खराब बताने लगे है लोग। परिचय :- ३१ वर्षीय दा...
बेबसी (कश्मीरी स्त्री की)
कविता

बेबसी (कश्मीरी स्त्री की)

मंजिरी पुणताम्बेकर बडौदा (गुजरात) ******************** वो हर दहलीज और हर शाम उसका इन्तजार करती है वो ढलती धूप और मायूस सुबह कल फिर से होती है वो शौहर जो चंद रोज पहले ले गया कोई आज तक उसके आने का इंतजार करती है वो खुद को क्या कहे ना सुहागन ना विधवा उसे स्वछंद जीने का अधिकार आज ख़त्म हुआ जिंदगी के दुखों को चेहरे पर समेटे अपार दिक़्क़तों को पल्लू में लिये लपेटे पति के इंतजार में आधी जिँदगी बिताये बाकी की जिंदगी बच्चों का भविष्य सवारें कुछ ऐसी ही आधि जिंदगी अपनाये बीता हर दिन और हर निशा एक आशा लेकर आये कि शायद किसी दरवाज़े पर कभी तो दस्तक होगी सुहाग का सामान देख मन का ललचाना दूसरे ही क्षण विधवा का एहसास होना साँझ क्षितिज की लालिमा को देखना और सफ़ेद लिबास देख आँखें भर आना दुनिया की बुरी नजर से खुद को बचाये रखना निर्मल दामन रखकर भी हमेशा लांछन सहना आँखें शुष्क और पथराई सारे अरमानों की सती कर आई ...
शीशा बांँट रहे
कविता

शीशा बांँट रहे

डॉ. कामता नाथ सिंह बेवल, रायबरेली ******************** गन्जों को कंघी, अन्धों को शीशा बांँट रहे। राजा जी घर-घर को ताज़ा किस्सा बांँट रहे।। आओ हम सब झूमें, नाचें गायें गीत मल्हार, रोटी की क्या सोचें , जब अपने ही हैं सरकार; संसद में मुद्दों पर वे मुर्दों को डांट रहे।। गन्जों को कंघी, अन्धों को शीशा बांँट रहे।। हरिश्चन्द्र जी धनपशुओं को दान बाँट देते , लेकिन नौकर चाकर की तो जेब काट लेते, वे विकास के मुद्दे पर गुजराती छांट रहे।। गन्जों को कंघी, अन्धों को शीशा बांँट रहे!! मेहमानों की अगवानी में चुनवा दी दीवार, फिर भी तुम पर निर्धनता का काला भूत सवार?? फटी गूदड़ी पर, वे चिथड़ी चादर सांँट रहे।। गन्जों को कंघी,अन्धों को शीशा बांँट रहे।। परिचय :- डॉ. कामता नाथ सिंह पिता : स्व. दुर्गा बख़्श सिंह निवासी : बेवल, रायबरेली घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौल...
जन-जन के राम
कविता

जन-जन के राम

मनोरमा पंत महू जिला इंदौर म.प्र. ******************** इतना आसान नहीं था, राम का जन-जन के आराध्य राम बनना इसके पीछे छिपा है राम का त्याग, और बलिदान, एक राज पुरूष का साधारण जन में बदलना, संन्यासी, वनवासी बन उत्कल वस्त्र धारण करना, सूर्य के समान देदीप्यमान होकर भी दीपक बन जाना, तिरस्कृत अहिल्या का कर उद्धार उसका सम्मान लौटाया, बाली से भिड़ सुग्रीव का खोया , विश्वास लौटाया, वानर को नर बनाकर, लंका को जीत लिया जिसने रावण सहित निशाचर हीन धरा की जिसने, ऐसे राम बने जन-जन के राम ऐसे राम को है मेरा प्रणाम परिचय :-  श्रीमती मनोरमा पंत सेवानिवृत : शिक्षिका, केन्द्रीय विद्यालय भोपाल निवासी : महू जिला इंदौर सदस्या : लेखिका संघ भोपाल जागरण, कर्मवीर, तथा अक्षरा में प्रकाशित लघुकथा, लेख तथा कविताऐ उद्घोषणा : यह प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां,...
मातृशक्ति
कविता

मातृशक्ति

प्रियंका पाराशर भीलवाडा (राजस्थान) ******************** आपसी सामंजस्यपूर्ण वाद-विवाद कुछ यूँ प्रारंभ हुआ पति-पत्नी का संवाद कैसे कर लेती हो ये कमाल पति ने किया पत्नी से सवाल नाहक क्रोध करता, बेवजह सुनाता डाँटता हूँ अकारथ मैं पत्नी भक्ति से विरक्त फिर भी तुम बनती पति भक्त स्वयं भारतीय संस्कृति के वेद का विद्यार्थी परंतु आध्यात्मिक शक्ति में तुम महारथी करता हूँ वेद का केवल अध्ययन पर जीवन में तुम करती उसका अक्षरतः पालन सुनो मेरे हमजोली पत्नी मुस्कुराकर बोली माँ की थोडी़ सेवा कर पुत्र कहलाए मातृभक्त पर दिन-रात पुत्र की देखभाल कर माँ नहीं कहलाती पुत्र भक्त पति का कौतूहलपूर्ण प्रश्न प्रारंभ हुआ जब जीवन तब स्त्री पुरूष थे एक समान फिर स्त्री से पुरुष कैसे महान पत्नी ने किया प्रतिवाद दो वस्तु से दुनिया निर्मित वह है ऊर्जा और पदार्थ पुरूष जैसे ऊर्जा तो स्त्री जैसे पदार्थ विकसित होता पदार्थ करके...