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मित्रता
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मित्रता

सुरेश चन्द्र जोशी विनोद नगर (दिल्ली) ******************** आत्मीयता के परस्पर अंतर्वैयक्तिक बंधन से बंधी हुई मित्रता की अवधारणा उसके स्वरूप के पक्ष एवं सिद्धांतों का प्रतिपादन मित्रता को लेकर किया गया है। संसार के मुक्त अध्ययनों व विवेचनों में देखा गया है कि समीपत: आंतरिक संबंध रखने वाले व्यक्ति अधिक प्रसन्न रहते हैं। हिंदी भाषा के प्रसिद्ध आलोचक रामचंद्र शुक्ल मित्रों के चुनाव को सचेत कर्म बताते हुए लिखते हैं कि:- "हमें ऐसे ही मित्रों की खोज में रहना चाहिए जिनमें हम से अधिक आत्मबल हो। हमें उनका पल्ला उसी तरह पकड़ना चाहिए जिस तरह सुग्रीव ने राम का पल्ला पकड़ा था। मित्र हों तो प्रतिष्ठित और शुद्ध हृदय के हों, मृदुल और पुरुषार्थी हों, शिष्ट और सत्य- निष्ठ, जिसमें हम अपने को उनके भरोसे पर छोड़ सकें, और यह विश्वास कर सकें कि उनसे किसी प्रकार का धोखा न होगा। सच्ची मित्रता का ऐसा एक जीवंत उ...
हमर गांव सुघ्घर गांव
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हमर गांव सुघ्घर गांव

खुमान सिंह भाट रमतरा, बालोद, (छत्तीसगढ़) ******************** जिसकी गोद में मेरा बीता है बचपन, जिसकी सेवा के लिए अर्पण है मेरा तन-मन-धन। जिसके नीर का हर एक बूंद अमृत और अन्न का हर एक कण छप्पन भोग है मेरे लिए वही मेरा बैकुंठ और वही देवलोक है। जिसका हर एक चौंक मेरा चार धाम है, मुझे गर्व है कि मेरा जन्म भूमि पावन रमतरा ग्राम है स्वच्छ , सुगंधीत व ताजी हवा गांव की ओर अनायास ही खींच लाती है। ग्राम वासियों का आपसी प्रेम और भाईचारा की भावना की तो बात ही निराली है। जिस प्रकार फूल बगीचे की शोभा पहले है और डालियों की शोभा बाद में है ठीक उसी प्रकार यहां के निवासी जाति, धर्म और ऊंच- नीच की नहीं बल्कि इंसानियत की शोभा पहले है। तीन सौ परिवारों के १६५० लोगों को अपनी गोद में आश्रय दिया हुआ हमारा गांव यहां आजीविका का मुख्य साधन कृषि है, और कुल जनसंख्या के आधे से अधिक लोग कृषि कार्य पर निर्...
गुरुनानक देव
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गुरुनानक देव

अमिता मराठे इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** दुनिया के हर समाज में पथ प्रदर्शक के रूप में गुरु का स्थान श्रेष्ठ और महत्वपूर्ण होता है। वह दिव्य ज्ञान दाता होता है। गुरू नानक देव सिख धर्म के संस्थापक और सिखों के पहले ऐसे गुरु थे जिनकी शिक्षाऐं धर्म विशेष ही नहीं, पूरी मानव जाति को नया प्रकाश दिखाती है। इसलिए उनके जन्मदिवस को प्रकाश पर्व के रुप में मनाया जाता है। ज्ञान से झोली भरने आये गुरु से सिख समाज "वाहे गुरुजी का खालसा वाहे गुरु जी की फतेह" कहते प्रेम से ज्ञान की समझ लेकर झोली भरते हैं। १५ वी सदी में भारत के पंजाब क्षेत्र में सिख धर्म का आगाज हुआ। इसकी धार्मिक परम्पराओं को गुरु गोविंद सिंह जी ने ३० मार्च १६९९ के दिन अंतिम रूप दिया। विभिन्न जातियों के लोगों ने सिख धर्म की दीक्षा लेकर खालसा धर्म सजाया था। गुरु नानक देव ने समाज में समरसता के लिए प्रयास किए। उन्होंने शोषण, ज़...
बदलता वक्त
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बदलता वक्त

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ********************  बदलाव प्रकृति का शाश्वत नियम है, जिसके परिणाम सकारात्मक/नकारात्मक होते ही हैं। सदियों सदियों से बदलाव होते आ रहे हैं। जीवन के हर हिस्से में अनवरत हो रहे बदलाव का फर्क भी दिखता है। संसार भर में प्राकृतिक, सामाजिक, आर्थिक, भौगौलिक, राजनैतिक, तकनीक, रहन-सहन, विचार, व्यवहार, धरातलीय, आकाशीय, यातायात, संचार, साहित्य, कला, संस्कृति, परंपराएं आदि...आदि के साथ पारिवारिक और निजी तौर पर भी उसका असर साफ देखा, महसूस किया जाता/जा रहा है।कोई भी बदलाव सबको समभाव से प्रभावित करता हो, यह भी आवश्यक नहीं है। मगर हर किसी का प्रभावित होना अपरिहार्य है। यदि आप अपने और अपने पिता जी, बाबा जी के समय पर ही दृष्टि डालें, तो आप खुद बखुद महसूस करेंगे इस बदलाव और उसके प्रभावों को भी। इसी तरह देश दुनिया, समाज का हर हिस्सा किसी न किसी...
बेमौत मरती नदियां, त्रास सहेंगी सदियां।
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बेमौत मरती नदियां, त्रास सहेंगी सदियां।

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** छठ पर्व पर एक भयावह तस्वीर यमुना नदी दिल्ली की सामने आयी, जिसमें सफेद झाग से स्नान वा अर्क देते श्रद्धालु दिखे। यह बात तो जगजाहिर है कि समूचे विश्व में हिन्दुस्तान ही एक ऐसा देश है जहां नदियों को माँ की उपमा दी गई है, पवित्र माना गया है। लेकिन वर्तमान समय में जितनी दुर्दशा हिन्दुस्तान में नदियों की है शायद ही किसी अन्य राष्ट्र में हो। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा अलग-अलग राज्यों की निगरानी एजेंसियों के हालिया विश्लेषण ने इस बात की पुष्टि की है कि हमारे महत्वपूर्ण सतही जल स्त्रोतों का लगभग ९२ प्रतिशत हिस्सा अब इस्तेमाल करने लायक नही बचा है। वहीं रिपोर्ट में देश की अधिकतम नदियों में प्रदूषण की मुख्य वजह कारखानों का अपशिष्ट गंदा जल, घरेलू सीवरेज, सफाई की कमी व अपार्याप्त सुविधाएं, खराब सेप्टेज प्रबंधन तथा साफ-सफाई के...
आदिम रंग में रँगा बाजार के प्रतिकार का पर्व छठ पूजा
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आदिम रंग में रँगा बाजार के प्रतिकार का पर्व छठ पूजा

डॉ. पंकजवासिनी पटना (बिहार) ******************** घोर बाजारीकरण के युग में भी बाजार का प्रतिकार करते घोर आदिम और पुरातन रंग में सराबोर लोक-ठाठ एवं लोक-आस्था व गहन श्रद्धा-भक्ति का परम पावन पर्व है छठ पूजा! यह शुद्धता, सात्विकता, स्वच्छता, सामूहिकता, सरलता और पवित्रता का महापर्व है! छठ पूजा प्रकृति और मनुष्य के बीच तथा प्रकृति एवं पुरुष के बीच आत्मिक संबंध, गहन जुड़ाव एवं समन्वय का पर्व है! इस पर्व की सबसे बड़ी विशेषता है कि यह किसी भी प्रकार के कर्मकांड, मूर्ति पूजा, पाखंड-आडंबर और पंडा-पुरोहित के हस्तक्षेप से पूर्णतया मुक्त मनुष्य की विशुद्ध श्रद्धा एवं गहन आस्था का पर्व है! यह पर्व जाति, धर्म, वर्ण एवं ऊंँच-नीच तथा राजा-रंक और अमीर-गरीब के भेदभाव से बहुत ऊपर एवं बिल्कुल अछूता है!! प्रकृति के साथ मनुष्य के आत्मीयता से आप्लावित सह-अस्तित्व और लोक संवेदना का पर्व है यह! मिट्ट...
छठ पूजा
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छठ पूजा

डॉ. पंकजवासिनी पटना (बिहार) ******************** प्रकाश और ऊष्मा की संजीवनी धारे देदीप्यमान सूर्य की करूं मैं उपासना सर्वतोभावेन कुशल हर्षित आनंदित हों सब लोक-आस्था पर्व की अशेष मंगलकामना! भारतीय समावेशी संस्कृति की साकार प्रतिमूर्ति उस छठ पूजा की अशेष मंगलकामनाएँ जहाँ उत्कर्ष ही नहीं, अपकर्ष का... उदयाचलगामी सूर्य की ही नहीं, अस्ताचलगामी सूर्य की भी पूरी श्रद्धा-भक्ति से ओतप्रोत होकर वंदना करते हैं कि बुरे/गर्दिश/पतन के दिन में भी किसी की उपेक्षा/अवमानना नहीं करो..... उसके भी सुदिन आएंगे और तब वह तुम्हारे जीवन को आलोकित करने, ऊष्मा की संजीवनी से आप्लावित करने की क्षमता रखता है.... जहाँ सभी समान रूप से महत्वपूर्ण हैं कोई छोटा बड़ा, अमीर गरीब, धनी निर्धन, स्त्री पुरुष, सवर्ण अवर्ण नहीं...... बस श्रद्धा के पात्र हैं! जहाँ केला सेब नारियल ही नहीं, सुथनी शकरकंद व गगरा नीं...
धरती का रुदन
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धरती का रुदन

राजकुमार अरोड़ा 'गाइड' बहादुरगढ़ (हरियाणा) ******************** प्रकृति का इतना अधिक दोहन हो गया कि उसकी चीत्कार आज पूरे विश्व में रह रह कर हर पल हर क्षण हमारे कानों में गूंज हमें हमारी भयंकर भूल का एहसास करा रही है। मौत की सिहरन जिन्दगी का अर्थ समझा रही है। गांव, शहर, जंगल सब के सब पेड़ विहीन होते जा रहे हैं। धरती कराह रही है,ऐसा क्या हो गया, क्यों हो गया, कैसे हो गया, हर कोई हतप्रभ हैरान है, उसे रास्ता ही नहीं सूझ रहा है- "घर गुलज़ार, सूने शहर, बस्ती बस्ती में कैद हर हस्ती हो गई, आज फिर जिन्दगी महँगी और दौलत सस्ती हो गई।" बस कुछ ऐसा ही सोचता मैं घर के पीछे बने पार्क के लॉन में नरम नरम घास पर लेट गया, क्या करूँ, सोच भी इन दिनों ज़वाब नहीं देती जैसे ही करवट ली तभी धरती के अन्दर से रुदन की आवाज़ सुन चौंक उठा, मैनें कानों को धरती से लगाया, मुझे लगा कि जैसे वो कह रही है आज मैं बहुत दुःखी ...
किरायेदार
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किरायेदार

डॉ. बी.के. दीक्षित इंदौर (म.प्र.) ******************** कहीं कोई स्वयं में मस्त, कहीं कोई भीड़ में भी तन्हा, कहीं जीविका चलाने के लिए हाड़ तोड़ परिश्रम तो कहीं वज़न कम करने हेतु घण्टों पसीना बहाना। कोई धन अर्जित करके भी आनंदित नहीं तो कोई धन अभाव के उपरांत भी अत्याधिक प्रसन्न। कोई अलग-अलग नस्ल के श्वान घर की रखवाली के लिए पालता है। लेकिन न चाहते हुए श्वानों की रखवाली करते-करते मजबूर सा प्रतीत होता है। कोई बिल्लियाँ पालकर स्वयं को पशु प्रेमी मान बैठता है। लेकिन अंदर से खुश नहीं हो पाता। कोई भव्य आलीशान भवन बनाकर कुछ दिन स्वयं की प्रशंसा करते हुए दिखता लेकिन अंदर से सुख धीरे-धीरे ख़त्म होने लगता। कोई किराए का शानदार बंगला लेकर बंगले के असल मालिक को मूर्ख समझता है। ऐसे लोगों का दर्शन थोड़ा अलग हटकर रहता है, ऐसे लोग कहते हैं कि दुनिया से जाना ही है तो मकान निर्माण में क्यों खपें? जीवन जी भरकर ज...
पानी पर तैरती पार्टी…
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पानी पर तैरती पार्टी…

डाॅ. रेश्मा पाटील निपाणी, बेलगम (कर्नाटक) ********************  आपके जन्मदिन के अवसर पर बापूजी एक तरफ सूखा दिन और दूसरी तरफ इस कुलीन समाज की यह महंगी ड्रग पार्टी! क्या विरोधाभास है !! एक तरफ भीगे सूखे से किसानों की आंखों में आंसू! एक तरफ तो इतना पैसा है कि ये लोग नहीं जानते कि इसका क्या करें! पैसा कहां से आता है, यह तो हम जैसे मध्यम वर्ग के लोग नहीं जानते! इतने पैसे से वे शिष्टाचार और नैतिकता के बारे में बात नहीं कर सकते! यह भी सच है! लेकिन अपने माता-पिता के पैसे के आदी ये अमीर बच्चे आदी हैं! वे व्यापार नहीं करते हैं! अभी भारत में ड्रग नेटवर्क को देख रहे हैं!युवा पीढ़ी को इससे कैसे बचाएं? यह एक बड़ी, बहुत बड़ी चुनौती है! कल मुंबई गोवा क्रूज पर मिले ड्रग्स की पार्टी को देखकर लगता है कि भारत को व्यवस्थित रूप से परेशान करने की साजिश में कई दुश्मन कामयाब हो रहे हैं! अब होगी जांच! ह...
महात्मा गाँधी तथा प्रकृति
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महात्मा गाँधी तथा प्रकृति

मनोरमा पंत महू जिला इंदौर म.प्र. ********************                                            एक ऐसे देश में जहाँ प्राचीन काल से ही जल जमीन और जंगल को पूजा जाता रहा, उसी देश में इन तीनों का बर्बरतापूर्वक विनाश ने गाँधीजी को अगाध दुःख में डाल दिया था। गाँधी जी के लिये मानव जीवन का कोई भी क्षेत्र अछूता नहीं था। प्रकृति के प्रति उनकी संवेदनशीलता बहुत विस्मयकारी थी। प्रकृति के अंधाधुंध दुरूपयोग के प्रति वे बहुत चिंतित रहते थे, उनकी चिंता के मूल में हमेशा गाँव के गरीब किसान और देश के साधारण जन रहते थे। उनका कहना था - "हम प्रकृति के बलिदानों का प्रयोग तो कर सकते हैं, किंतु उन्हें मारने का अधिकार हमें नहीं है" गाँधीजी का यह भी कहना था कि अहिंसा तथा संवेदना न केवल जीवों के प्रति बल्कि अन्य जैविक पदार्थों के प्रति भी होना चाहिए। इन पदार्थों का अति दोहन जो लालच और लाभ के लिए क...
प्राचीन धरोहर “देवरा महादेव”
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प्राचीन धरोहर “देवरा महादेव”

मंगलेश सोनी मनावर जिला धार (मध्यप्रदेश) **********************                                      मध्यप्रदेश में धार जिले के मनावर तहसील में अवलदा से आगे देवरा नामक गांव में एक अत्यंत प्राचीन शिव मंदिर विद्यमान है, जिसका इतिहास १०-११ वीं शताब्दी का माना गया है। यह मंदिर राजा यशोवर्मन द्वारा निर्मित बताया जाता है, यशोवर्मन परमार वंश के राजा हुए जिस परमार वंश ने कई दशकों तक मांडव व मालवा पर राज्य किया। उस समय भी मांडव एक दर्शनीय स्थल के रूप में विकसित किया गया था, जहां शिकार, विश्राम व प्राकृतिक आनंद के लिए राजा महाराजा आया करते थे। देवरा स्थित महादेव मंदिर की भौगोलिक स्थिति की चर्चा करें तो हम देखेंगे कि यह मंदिर एक छोटी सी धारा के पास स्थित है, यह धारा मानव निर्मित है अर्थात इस मंदिर की विशेषता इस बात से सिद्ध होती है कि मंदिर व आस-पास की बसाहट के जीवन यापन हेतु इस जलधारा को निर्म...
हिंदी हमारी
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हिंदी हमारी

मनोरमा जोशी इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** हिंदी हमारी संस्कृति की घरोहर है हमारे संस्कार की सहज भाषा हिंदी ही है इसे हर हाल मे श्रेष्ठता का दर्जा मिलना चाहिए हिंदी राष्ट्रीय भाषा होना चाहिए। हमारे आधुनिक हिंदी साहित्य के पितामह भारतेंन्दु हरिश्चंद्र जी ने प्रथम दोहा लिखा था। निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल, पै निज भाषा ज्ञान बिन, मिटे न हिय को शूल। हमारी मात्र भाषा हिंदी का मान होना चाहिए, हिंदी भाषा हमारी वंदेमातरम की शान है, देश का मान है अभिमान है और सब भाषा से सरल सहज है। हमारे संविधान का गौरव भी हिंदी है भारत की आत्मा चेतना हिंदी है फिर क्यु? न हमारी राष्ट्रीय भाषा हिंदी होना चाहिए आदर्शों की मिसाल है सूर और मीरा बाई की तान भी हिंदी है हमारे वक्ताओं की शक्ति हिंदी है फूलों की खुशबूओं सी महकती हमारी हिंदी है। मां की बोली से प्रथम संवेदना मे बच्चा माँ कहता...
भाषा की व्यक्तित्व निर्माण में अहम भूमिका है।
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भाषा की व्यक्तित्व निर्माण में अहम भूमिका है।

मनीषा व्यास इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** निज भाषा उन्नति अहै सब उन्नति को मूल, बिन निज भाषा ज्ञान के मिटे न हिय को शूल। भारतेन्दु जी की ये पंक्तियां मनुष्य का संपूर्ण विकास करने में सहायक हैं। जो व्यक्ति अपनी भाषा में शिक्षा ग्रहण करता है वो सभी विषयों को गहराई से समझने की योग्यता रखता है। विषय का गहनता से किया गया अध्ययन मनुष्य के स्वाभाविक विचार, तर्क शक्ति और चिंतन को दृढ़ बनाता है। जिससे व्यक्ति का सर्वांगीण विकास संभव होता है। मातृभाषा में शिक्षा प्राप्त करने से किसी भी विषय और अन्य भाषाओं को सीखने में आसानी होती है। विश्व भी इस बात का साक्षी है कि मनुष्य का संपूर्ण विकास अपनी भाषा अपने संस्कारों और अपने देश की संस्कृति को सीखकर उसे प्रस्तुत करने में है। आज हम इस बात के साक्षी है कि देश की संपर्क भाषा ही लोगों को अपनी बात कहने और समझने के लिए पर्याप्त है, इस बात पर क...
जियो तो ऐसे जियो
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जियो तो ऐसे जियो

डॉ. सर्वेश व्यास इंदौर (मध्य प्रदेश) ********************** अपने कर्तव्यों के प्रति निष्ठावान, रिश्तो के प्रति समर्पित, धीर-गंभीर प्रवृत्ति, कर्तव्यनिष्ठ, जीवन को संजीदगी से जीने वाले, अल्प आयु में अपने उत्तरदायित्व का निर्वहन करने वाले व्यक्तियों में प्रायः अपरिभाषित रूप या अनचाहे रूप से छुपी हुई एक आत्मग्लानि, शिकायत, मलाल, वेदनाा, संताप, अवसाद, व्यथा रहती है कि उन्होंने अल्प आयु में अपने कर्तव्यों को स्वीकार कर, उनका निर्वहन करना प्रारंभ कर दिया वह पूर्णतः दूसरों के लिए जीते रहे इस कारण वे अपने जीवन को पूर्णतः अपने तरीके से नहीं जी पाएl जीवन का उन्मुक्त आनंद नहीं ले पाए l कर्तव्य के पालन में उन्होंने बहुत कुछ पीछे छोड़ दिया l अतः वे लोग कर्तव्यों का निर्वहन करते हुए, रिश्तो के प्रति ईमानदार रहते हुए, उन्हें निभाते भी हैं और घुटते भी रहते हैं l उन्हें लगता है कि यह कर्तव्य, यह आ...
अभिनेता सुशांत सिंह फिर सिद्धार्थ शुक्ला..! कहीं यह साज़िश तो नही ?
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अभिनेता सुशांत सिंह फिर सिद्धार्थ शुक्ला..! कहीं यह साज़िश तो नही ?

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** फिल्म अभिनेता सिद्धार्थ शुक्ला अब हमारे बीच नही हैं। ऐसा लिखने और कह सकने के लिए दिल अब भी गवाही नही दे रहा, पर लिखना तो पड़ेगा ही मानना तो पड़ेगा ही..! व्यस्तता के बीच जैसे ही मैने मोबाइल ऑन किया एक प्रतिभाशाली सुंदर, सुडौल, उम्मीदों से भरे एक दमकते-चमकते सितारे के असमय चले जाने की खबरों से मन दहल गया। आंखे सजल हो उठीं। मन मे न जाने कितनी तरह की बातें उमड़-घुमड़ कर चल रही हैं। गत वर्ष सुशांत सिंह राजपूत के असमय काल के गाल में समाहित हो जाने की खबरों ने हम सबको झकझोर के रख दिया और अब सिद्धार्थ के इस तरह से काल कंलवित हो जाना बेहद निराशा जनक है। हमने सुना था और शायद सच भी है कि फिल्म उद्योग के लिए वैश्विक स्तर पर अपनी पहचान बना कर रखने वाली मुंबई मायानगरी सच मे मायावी होती जा रही है। यहां अब प्रतिभावान कलाकारों की मौत एक ...
मन से जीत का मार्ग
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मन से जीत का मार्ग

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ********************  एक कहावत है 'हौंसलों से उड़ान होती है, पँखों से नहीं'। यह महज कहावत भर नहीं है। अगर सिर्फ कहावत भर होती तो आज अरुणिमा सिन्हा, सुधा चंद्रन, दशरथ माँझी और हमारे पूर्व राष्ट्रपति स्व. डॉ. ए.पी.जे.अब्दुल कलाम ही नहीं बहुत सारे अनगिनत लोग सुर्खियों के बहुत दूर गुमनामी में खेत गये होते। मैं अपना स्वयं का उदाहरण देकर स्पष्ट कर दूँ कि जब २५.०५.२०२१ को जब मैं पक्षाघात का शिकार हुआ तब चारों ओर सिवाय अँधेरे के कुछ नहीं दिखता था। शायद ही आप सभी विश्वास कर पायें। कि यें अँधेरा नर्सिंग होम पहुँचने तक ही था, लेकिन नर्सिंग होम के अंदर कदम रखते ही मुझे अपनी दशा पर हंसी इस कदर छाई, कि वहां का स्टाफ, मरीज और उनके परिजनों को यह लग रहा था कि पक्षाघात के मेरा मानसिक संतुलन भी बिगड़ गया है। फिर भी मुझे जैसे कुछ फर्क ही नहीं पड़ ...
मिथिला की लोककला और संस्कृति
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मिथिला की लोककला और संस्कृति

प्रीति कुमारी शेक सराय (नई दिल्ली) ******************** भारतीय दर्शन मनुष्य जीवन को एक उत्सव के रूप में देखता है। ऐसा उत्सव जो इस ब्रह्माण्ड में जीवन की पूर्णता को प्रकाशित करता है। इस उत्सव को मनाने के लिए ही संस्कृति का निर्माण हुआ है। और इस संस्कृति की प्राण धाराएं हैं-लोक-कलाएं। जीवन-उत्सव को नृत्य, चित्रकला, कथा, लोक-रंजन की विविध विधाओं के माध्यम से प्रकट करने के पीछे मनुष्य की यही आत्यंतिक भावना है कि वो सृष्टि के रंगमंच पर अपने अस्तित्व का प्रदर्शन कर सकें। मिथिला चित्रकला इसी दिशा में एक जीवंत कला-यात्रा के रूप में सामने आती है। इसमें चटकीले रंगों, सजीव चित्रों और विस्तृत रूप-आकृतियों से संस्कृति की सम्पन्नता का दर्शन होता है। यूँ तो यह बिहार और नेपाल के मिथिला क्षेत्र की पारंपरिक लोक कला है पर अपने उत्स-भाव की ऊर्जा के सहारे सिर्फ देश के अलग-अलग क्षेत्रों में ही नहीं बल...
नमामि गंगे
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नमामि गंगे

अमिता मराठे इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** जलवायु परिवर्तन और दुनियाभर में गहराते जल संकट के बीच विकास की नई कहानी वही देश लिखेगा जो पानी का धनी होगा। तात्पर्य यह कि आज जो देश जितना पानी बचायेगा, वह भविष्य में उतनी ही बड़ी शक्ति के रुप में उभरेगा। यूनाइटेड नेशन वर्ल्ड वाटर डेवलपमेंट रिपोर्ट के अनुसार एक समय ऐसा आयेगा जब दुनिया के लोगो के पास पीने का पानी उपलब्ध नहीं होगा। इस समस्या को भारत गहराई से समझ रहा है। इस दिशा में तेजी से चल रही पहल प्रशंसनीय है, फिर भी जन भागीदारी से ही सभी प्रयास सफल सिद्ध होंगे। तभी जल शक्ति मंत्रालय का गठन की पहल मील का पत्थर साबित होगी। देश के घर घर में स्वच्छ पानी पहुंचाने की व्यवस्था में सक्रिय नमामि गंगे परियोजना, के जरिए गंगा के पुनरुद्धार के साथ साथ अन्य नदियों की सफाई कार्य अत्यंत आवश्यक कार्य है। नया साल नई उम्मीदों का खजाना लेकर आया है, ...
गुरु के महत्व को अवलोकित करता पर्व… गुरु पूर्णिमा
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गुरु के महत्व को अवलोकित करता पर्व… गुरु पूर्णिमा

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** मानव जीवन में "गुरु" का महत्व वो स्थान रखता है। जिसके बिना मानव के महत्व और असितत्व की कल्पना भी नहीं की जा सकती। तभी "मां" को प्रथम गुरु कहा गया है। जीवन में हम जिस व्यक्तिव से कुछ सीखते हैं वो हमारे लिए गुरु तुल्य है। जीवन को, जो उत्कृष्ट बनाता है। मिट्टी को, जो छूकर मूर्तिमान कर जाता है । बाँध क्षितिज रेखाओं में, नये आयाम बनाता हैं। जीवन को, जो उत्कृष्ट बनाता हैं। ज्ञान को, जो विज्ञान तक ले जाता है। विद्या के दीप से , ज्ञान की जोत जलाता है। अंधविश्वास के, समंदर को चीर, नवीन तर्क के, साहिल तक ले जाता है। मानवता की पहचान से, जो परम ब्रह्म तक ले जाता है। सत्य -असत्य, साकार को आकार कर जाता है। जीवन-मरण, भेद-अभेद के भेद बताया हैं। वह प्रकाश-पुंज , ईश्वर के बाद गुरु कहलाता है। कल आषाढ...
बेरोजगारी : एक आर्थिक समस्या
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बेरोजगारी : एक आर्थिक समस्या

नूपुर जैन शंकर नगर दिल्ली ******************** पैसा- हमेशा एक चिंता का विषय बना रहता है, परंतु यही वह आधार भी होता है, जो हमारे जीवन के बुनियाद को निर्धारित करता है। यह हमारे लिए केवल एक सपना ही नहीं, बल्कि भारत में हर नागरिक का अपना एक अधिकार भी होता है। बेरोजगार की कमी भारत के प्रमुख मुद्दों में से एक है और जब तक इस मुद्दे का कोई स्पष्ट उपाय नहीं मिल जाता, तब तक इस पर पूर्ण रूप से विचार करने की आवश्यकता बनी रहेगी । बेरोजगारी- भारत की एक बहुत बड़ी समस्या है, जिसे समझना बहुत जरूरी है। वैसे तो भारत, मानव संसाधन के मामले में बहुत समृद्ध है, परंतु फिर भी हम वर्षों से बेरोजगारी की स्थिति में जीते आ रहे हैं। जो लोग पूरी तरह से बेरोजगार हैं ; उनका जीवन बहुत दयनीय है। जब तक यह बेरोजगारी की समस्या समाप्त नहीं हो जाती, तब तक हम अपने देश को एक कल्याणकारी राज्य के रूप में स्वीकार नहीं कर सकते ।...
प्रयास ही श्रेष्ठ पूजा है
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प्रयास ही श्रेष्ठ पूजा है

धर्मेन्द्र कुमार श्रवण साहू बालोद (छत्तीसगढ़) ********************  हमारे देश का सुप्रसिद्ध शास्त्र "योगवाशिष्ठ रामायण" उद्यम के विषय में क्या कहता है तुमने सुना है? "यदि मनुष्य ने ठीक-ठीक तथा सच्चे ह्रदय से प्रयास किया हो, तो इस संसार में कुछ भी अलभ्य नहीं है। किसी वस्तु की प्राप्ति की इच्छा से प्रेरित होकर यदि कोई सच्चा प्रयास करें, तो उसे निश्चित रूप से सफलता मिलेगी। मनुष्य अपने जीवन में कुछ पाने की इच्छा करें, उसे प्राप्त करने के लिए निरंतर प्रयास करता रहे, तो देर-सबेर वह अवश्य सफल होगा। परंतु उसे अपने मार्ग पर अटल भाव के साथ आत्मसात करते हुए बेहिचक चलना होगा।" इस जगत में बहुत से लोग अभाव तथा निर्धनता की गहराई से निकलकर सौभाग्य के शिखर पर पहुंच गए। केवल अपने भाग्य पर ही निरर्थक विश्वास रखने वालों ने नहीं, अपितु अपने उद्यम पर निर्भर रहने वाले बुद्धिमान लोगों ने ही कठिन तथा संक...
स्वामी है चाकर नही
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स्वामी है चाकर नही

धैर्यशील येवले इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** भारत की हजारो वर्षो से यह मान्यता रही है कि प्रकृति के संतुलन को कायम रखा जाय । यह मनुष्य व प्रकृति दोनों के लिए बहुत अच्छा है। परंतु वर्तमान में तरक्की के नाम पर जिस ढंग से प्रकृति का शोषण हो रहा है, इस सन्तुलन को अस्वाभाविक रूप से तोड़ा जा रहा है उससे ये लगता है कि लोभग्रस्त सभ्यता उसे रहने नही देगी। पूर्व में हम प्रकृति को माँ का दर्जा देते थे परंतु अब वैसा नही है अब प्रकृति केवल उपभोग का साधन बना दी गई है। ये भी सही है कि जब प्रकृति अपने पर आती है तो वो किसी का लिहाज नही करती। प्रकृति को मात्र विज्ञान के जरिये समझना मानव की भूल है उसे धर्म के साथ जोड़ कर भी समझना होगा और ये सनातन धर्म ने किया भी है। परंतु पश्चिम के दृष्टिकोण ने प्रकृति को केवल साधन समझने की भूल की है, प्रकृति को उन्होंने कभी माँ या मित्र नही माना। सनातन मत के ...
पद का मद
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पद का मद

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ********************  'मद' अर्थात 'घमंड' जी हाँ ! जिसका फलक विस्तृत भी है और विशाल भी।सामान्यतः देखने में आता है कि पदों पर पहुंचकर लोग खुद को शहंशाह समझने लगते हैं, पद के मद में इतना चूर हो जाते है कि अच्छे, बुरे, अपने, पराये का भी ध्यान नहीं रख पाते हैं।वे इतने गुरुर में जीते हैं कि वे ये भूल जाते हैं कि पदों पर रहकर पद की गरिमा बनाए रखने से व्यक्ति की गरिमा पद से हटने के बाद भी बनी रहती है। लेकिन पद का अहंकार कुछ ऐसा होता है कि लोग खुद का खुदा समझ बैठते हैं। ऐसे लोगों को सम्मान केवल पद पर रहते हुए ही मिलता है, लेकिन दिल से उन्हें सम्मान कोई नहीं देता। जो देते भी हैं, वे विवश होते हैं अपने स्वार्थ या भयवश और चाटुकारों की फौज उनका महिमामंडन और अपना हित साधती रहती है। ऐसे में पद के मद में चूर व्यक्ति इसी को अपनी छवि, अधिकार ,कर...
एक पल
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एक पल

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** समय का महत्व हर किसी के लिए अलग अलग हो सकता है। इसी समय का सबसे छोटा हिस्सा है "पल"। कहने सुनने और करने अथवा महत्व देने में अधिकांशतः हम लापरवाही में, भ्रमवश भले ही एक पल को अधिक भाव नहीं देते, परंतु हम सबको कभी न कभी इस एक पल के प्रति अगंभीरता, लापरवाही अथवा अनजानी भूल की भारी कीमत चुकानी पड़ जाती है। बहुत बिर मात्र एक पल के साथ कुछ ऐसा हो जाता है कि उसका विस्मरण असंभव सा होता है। वह अच्छा और खुशी देने वाला भी हो सकता है और टीस देता रहता ग़म भी। उदाहरण के लिए एक पल की देरी से ट्रेन छूट जाती है, एक पल की लापरवाही या मानवीय भूल बड़ी दुर्घटनाओं का कारण बन जाती है, धावक विजयी हो जाता है और नहीं भी होता। एक पल में लिए निर्णय से जीवन की दशा और दिशा बदल जाता। बहुत बार एक पल के आगे या पीछे के निर्णय अविस्मरणीय खुशी ...