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पद्य

श्याम पधारो
गीत

श्याम पधारो

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** रक्षक बनकर श्याम पधारो, ले लो फिर अवतार। पावन भारत की धरती पर, अब जन्मो करतार।। घोर निराशा मन में छाई, मानव है कमजोर। काम क्रोध मद मोह हृदय में, थामो जीवन डोर।। शरण तुम्हारी कान्हा आए, तिमिर बढ़ा घनघोर। अब भी चीर दुशासन हरते, दुष्टों का है जोर।। सतपथ में बाधक बनते हैं, बढ़ते अत्याचार। गीता का भी पाठ पढ़ा दो, व्याकुल होते लाल। नैतिकता की दे दो शिक्षा, बन कर सबकी ढाल।। आनंदित इस जग को कर दो, चमकें सबके भाल। धर्म सनातन हो आभूषण, बदले टेढ़ी चाल।। राग छोड़कर पश्चिम का हम, रखें पूर्व संस्कार। त्याग समर्पण पाथ चलें नित, हमको दो वरदान। शील सादगी को अपनाकर, नित्य करें उत्थान। सत्य निष्ठ गंम्भीर बनें हम, दे दो जीवन दान। जीवन सार्थक कर लें अपना, कृपा करो भगवान।। मर्यादा के रक्षक प्रभु तुम, ...
दर्पण फूट गए
गीतिका

दर्पण फूट गए

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** तृषित घटों के नवाचार ही, पनघट लूट गए। कैसे हाथ मिलाएँ तट जब, पुल ही टूट गए।। कंकड़-पत्थर की दुनिया से, रूठी जलधारा। इस नभ के सूरज ने दे दी, सपनों को कारा।। आँखों से झरते फूलों पर, चल के बूट गए। कैसे हाथ मिलाएँ तट जब, पुल ही टूट गए।। गाजर घास उगाए उर के, उर्वर उपवन में। स्वार्थ छिपे जा सिर की काली, टोपी अचकन में।। तनी हुई लाठी से डर के, दर्पण फूट गए। कैसे हाथ मिलाएँ तट जब, पुल ही टूट गए।। जोत दिए कांवड़ में कंधे, पुण्य कमाने को। लगे हुए हैं हाथ स्वर्ग की, डगर सजाने को।। मंच माॅबलिंचिंग के, सच को, घर में कूट गए। कैसे हाथ मिलाएँ तट जब, पुल ही टूट गए।। अश्वमेघ को घूम रहे हैं , सत्ता के घोड़े। मार दुलत्ती हटा रहे हैं, पथ के सब रोड़े।। चौखाने पर विषधर ही सब, हो रिक्रूट गए। कैसे हाथ मिलाएँ तट जब, पुल...
पे बैक
कविता

पे बैक

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** जरा बता देना मेरे शूरवीरों जिनसे खुलकर लिए हो, उन्हें कब-कब, क्या-क्या और कितना वापस किये हो, लिया हुआ तो वापस करना पड़ता है, बहुतों ने किया है और बहुत कर रहे हैं, जिससे समाज संवर और सुधर रहे हैं, जिस समाज से आते हो, जिस समाज का खाते हो, भई बताओ उन्हें कैसे भूल जाते हो, भूलने की यह बीमारी समाज को गड्ढे में धकेल सकता है, हमारा विरोधी साम- दाम-दंड-भेद अपना बड़ी आसानी से हमें नकेल सकता है, ये मत भूलो हमारे महापुरुषों ने,साहब ने, हमारे लिए कितने कष्ट उठाए थे, प्रतिबंधों के लावों से अधिकार निकाल लाए थे, क्या हाथ बढ़ाकर किसी का हाथ नहीं खींच सकते, जागने, जगाने के लिए आंख नहीं मींच सकते, यदि खुद को बड़ा व बढ़ा समझते हो तो बड़ा दिल भी दिखाओ, कुछ जरूरतमंदों के लिए पे बैक कर जाओ। ...
स्वतंत्रता दिवस मनायेंगे
कविता

स्वतंत्रता दिवस मनायेंगे

हितेश्वर बर्मन 'चैतन्य' डंगनिया, सारंगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** आज हम स्वतंत्रता दिवस मनायेंगे, गर्व से लालकिला में तिरंगा फहरायेंगे। आजादी के लिए जिन्होंने बलिदान दिये हैं, उन वीरों के जय -जयकार हम लगायेंगे। हम भारत माँ की संतानें देश का मान बढ़ायेंगे, मातृभूमि की रक्षा खातिर अपना शीश भी कटायेंगे। सरहद ही ओर आँख उठाकर देखे जो दुश्मन, सीमा के उस पार ही मार उसे गिरायेंगे। ये धरती है मर-मिटने वाले बलिदानों की, आने वाले पीढ़ी को याद हम दिलायेंगे। कभी सोने की चिड़िया कही जाती थी, देश की गौरवशाली इतिहास भी बतायेंगे। देश के वीरों और वीरांगनाओं को नमन करेंगे, नतमस्तक होकर श्रद्धा-सुमन अर्पण करेंगे। शहीदों के सम्मान में आरती सजायेंगे, आज हम स्वतंत्रता दिवस मनायेंगे। परिचय :-  हितेश्वर बर्मन 'चैतन्य' निवासी : डंगनिया, जिला : सारंगढ़ - बिलाईगढ़ (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र :...
समय का फेरा
कविता

समय का फेरा

किरण विजय पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** किसी ने कहाँ अच्छा हूँ मै, किसी ने कहा बुरा हूँ मै, अच्छा बुरा कोई नही होता? बस समय का बदलाव है रहता। अच्छे मै सब अच्छा लगता, बुरे मे सब बुरा दिखता, सोच-सोच का फर्क है मन मै, यही समय का फेरा रहता। बुरा वक्त है मौन हो जाओ, अच्छे मै आगे बढ़ जाओ, नही तो समय को चूक जाओगे। यही शतरंज की चाल है भय्या। बिखर गयी है गोटी सारी, राजा, वजीर, घोडा़ और हाथी, जाओगे तब सिमट जायेगी, एक डिब्बे मै बन्द सब भाई। परिचय : किरण विजय पोरवाल पति : विजय पोरवाल निवासी : सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बी.कॉम इन कॉमर्स व्यवसाय : बिजनेस वूमेन विशिष्ट उपलब्धियां : १. अंतर्राष्ट्रीय साहित्य मित्र मंडल जबलपुर से सम्मानित २. अंतर्राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना उज्जैन से सम्मानित ३. राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौ...
आभा
कविता

आभा

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** शान की सिन्दुरी आभा मे तरू परछाई दैत्य सी लगती है खपरेलो से निकलता धुंआ तुफानी आभास देता है। क्षितिज से मिलती सिन्दुरी आभा को निलाम्बर ताकता रह जाता है सोचता है यह मिलन क्षणिक है फिर तो मैं अपने स्थान पर ठीक हूँ। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इंदौर से भी रचनाएं प्रसारित होती रहती हैं आप राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर द्वारा "हिंदी रक्षक राष्ट्रीय सम्मान २०२३" से सम्मानित हैं। घोषणा पत्र : मैं यह प्...
मेरे माधव
कविता

मेरे माधव

डॉ. राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** माधव तेरे शहर के लोग अक्सर मोहब्बत का नाम लेकर डसते हैं। माधव तेरे शहर के लोग नाम तो तेरा लेते है पर तुम जैसी प्रेम प्रीति न करते हैं। माधव तेरे शहर के लोग कान्हा-कान्हा तो करते हैं मगर तुम जैसा रण में साथ न देते हैं। माधव तेरे शहर के लोग प्रेम तो बहुत करते हैं मगर तुम जैसे निभाने से डरते हैं। माधव तेरे शहर के लोग सत्यता का गुणगान तो करते है मगर तुम जैसे सत्य के लिए लड़ने से डरते हैं। परिचय :-  डॉ. राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख...
ये कैसी आजादी है
कविता

ये कैसी आजादी है

छत्र छाजेड़ “फक्कड़” आनंद विहार (दिल्ली) ******************** ये कैसी आजादी है भूखा पेट, नंगा बदन मन-घाव सारे मवादी है ये कैसी आजादी है गांधी ने कब सोचा था देश जलेगा पेट की आग में जात-धर्म नाम पर लड़ेंगे क्या यही लिखा था भाग में रहे भूखा या फिर नंगे बदन करने काम जेहादी है ये कैसी आजादी है कलमकार लिखते सच्चाई पर उस से क्या पेट भरेगा जिनके सपनों में सत्ता हो जनता हेतु वो क्या करेगा मुफलिसी से जुझते जन को हालात बनाते फसादी है ये कैसी आजादी है बहुत काम हुआ अमृत काल में सब छिपा कागदों मे, दिखे कहाँ जनता पाती है दस बीस पैसा बाकी जाने जाता है कहाँ बँदर बाँट हो जाती है ऊपर जनता तो फरयादी है ये कैसी आजादी है उद्योग लगे, पुल-बाँध बने फैला सीमेंट कंक्रीट का जंगल अमीर,अमीर और गरीब,गरीब ठेकेदारों का हुआ बस मंगल जड़ें गहराई बस भ्रष्टाचार की बजट की...
भारत माता का वंदन
गीत

भारत माता का वंदन

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** अंधकार में हम साहस के, दीप जलाते हैं। आज़ादी के मधुर तराने, नित हम गाते हैं।। चंद्रगुप्त की धरती है यह, वीर शिवा की आन है। राणाओं की शौर्य धरा यह, पोरस का सम्मान है।। वतनपरस्ती तो गहना है, हृदय सजाते हैं। आज़ादी के मधुर तराने, नित हम गाते हैं।। अपना सब कुछ दाँव लगाकर, जिनने वतन बनाया। अपने हाथों से अपना ही, जिनने कफ़न सजाया।। भारत माता की महिमा की, बात सुनाते हैं। आज़ादी के मधुर तराने, नित हम गाते हैं।। आगे बढकर, निर्भय होकर, जिनने फर्ज़ निभाया। वतनपरस्ती का तो जज़्बा, जिनने भीतर पाया।। हँस-हँसकर जो फाँसी झूले, वे नित भाते हैं। आज़ादी के मधुर तराने, नित हम गाते हैं।। सिसक रही थी माता जिस क्षण, तब जो आगे आए। राजगुरू, सुखदेव, भगतसिंह, बिस्मिल जो कहलाए।। ब्रिटिश हुक़ूमत से टकराकर, प्राण गँवाते हैं। ...
बीर सपूत रइ हंव न
कविता

बीर सपूत रइ हंव न

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** (छत्तीसगढ़ी कविता) मैं तो देस के बीर सपूत रइ हंव न, दाई के पूत हंव पूत रइ हंव न, कचरा हम उठाथन रे संगी भुइयां ल सफा बनाथन, कचरा बगराने वाला मन के मुंह ले कचरा वाला कहाथन, हमर पीरा ल नइ समझय कोनो कुहरतसे पीरा म कमाथन, का घाम अउ का पियास रे संगी दिन भर सेवा ल बजाथन, बड़े स्कुल म पढ़े बर हम तो लइका ल बस सपना देखाथन, दु ठो मीठ गोठ कहिके अपन लइका ल धीरज धराथन, मान झिन मान हीरा बेटा कस सबूत रइ हंव न, मैं तो देस के बीर सबूत रइ हंव न, हमर करे बिना साग नइ उपजय, हमर मेहनत बिना धान, काबर हमला देखे नइ सकच आनी बानी बोलियाथस, हमरे लहू पसीना के कमाई खाथस हमी ल आंखी देखाथस, तोर गरभ ल तोरे जगा रखबे अब नइ रहिस तइहा जमाना, मुठा भर तैं हावस इहां घेरी बेरी झन खोभियाना, जवाब देहे ल सीख गय हन हमु बनके नहीं बुत र...
शहीदों की कुर्बानी
कविता

शहीदों की कुर्बानी

हितेश्वर बर्मन 'चैतन्य' डंगनिया, सारंगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** आजादी का ये पल शहीदों की मेहरबानी है, शीश कटाने वाले देशभक्तों की कुर्बानी है। सदियों तक अमर रहेगी स्वतंत्रता की ये कहानी है , तिरंगे की लाल रंग बलिदान की अमर निशानी है। स्वतंत्रता के लिए वीरों का वर्षों तक संघर्ष हुआ, तब जाकर देश में आजादी का सूर्योदय हुआ। आजादी के खातिर कितनों ने दी अपनी कुर्बानी है, मातृभूमि के खातिर जिन्होंने दी अपनी जवानी है। आजादी की एक-एक सांस की कीमत चुकायी है, मातृभूमि के वीर सपूतों ने मौत को गले लगायी है। उनके कर्जों को जीवन भर चुकाया नहीं जायेगा, उनके एहसानों को कभी भुलाया नहीं जायेगा। लालकिला पर जब-जब तिरंगा लहरायेगी, तब-तब उन वीर शहीदों की याद आयेगी। परिचय :-  हितेश्वर बर्मन 'चैतन्य' निवासी : डंगनिया, जिला : सारंगढ़ - बिलाईगढ़ (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं...
सपनों का घर
गीतिका

सपनों का घर

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** क्यों रहना है पीछे मैं भी, चलूँ अगाड़ी में। बना रहा है सपनों का घर, चिन्टू बाड़ी में।। पाँच दशक जीवन के फूँके, छप्पर-छानी में। टूटे काँधे, दुख ढो बदली, देह कमानी में।। जाग रही पर मृग मरीचिका, उभरी नाड़ी में।। बी पी यल का लाभ उठाने, चूल्हा अलग जला। रेत-सरीखा रिश्तों के, आँखों में रोज सला।। बेयरिंग-सा फँस के है खुश, जीवन-गाड़ी में।। चार माह तक रोज सचिव के, पूजे गए चरण। पाँच हजारी पूजा पाकर, पास हुआ प्रकरण।। घुला रेत, सीमेंट साथ ही, स्वयं तगाड़ी में।। किस्तों की आवाजाही में, उभरे अवरोधक। घात लगाकर बैठे जल में, आखेटक से बक।। प्राण-पखेरू ले डूबी पर, रिश्वत खाड़ी में।। परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। ...
गांव से ग्लोबल तक
कविता

गांव से ग्लोबल तक

अभिषेक मिश्रा चकिया, बलिया (उत्तरप्रदेश) ******************** धान की खुशबू, मिट्टी की सौंधी, पगडंडी का मीठा गान, बरगद, पीपल, नीम की छाया, झोंपड़ियों में सपनों का मान। बैलगाड़ी की धीमी चाल में, कच्चे आँगन का था सिंगार, हाट-बाज़ार की चहल-पहल में, गूँजते थे लोक-पुकार। पर आई जब गुलामी की आँधी, सूख गए खेतों के गुलाल, माँ के आँचल में लहराते सपने, टूट गए जैसे मिट्टी के लाल। लाठी, गोली, कोड़े, जंजीरें, रोटी आधी, भूख का गाँव, फिर भी भारत–माँ के बेटों ने, प्राण दिए, पर न झुकाया नाम। चंपारण में उठी जो आंधी, नमक सत्याग्रह ज्वाला बनी, भगत, सुखदेव, आज़ाद की कुर्बानी, जन-जन की मिसाल बनी। सुभाष के नाद गगन में गूँजे, "तुम मुझे ख़ून दो" का गीत, वीर जवानों के रक्त से फिर, लाल हुआ भारत का मीत। १५ अगस्त की भोर आई जब, सूरज ने सोने रंग बिखेरा, स्वतंत्र ध्वज नभ में लहराया,...
नशे की लत
कविता

नशे की लत

निकिता तिवारी हलद्वानी (उत्तराखंड) ******************** क्यों में सबसे दूर हो रही हूँ ना चाहते हुए भी फोन पकड़ रही हु क्या खूबियाँ है इंस मोबाइल में जो मैं खिची चली जा रही हु इसे देखकर समय बरबाद कर रही हूँ मन भी नहीं भरता जो छोडू साथ पागलपन छाया इतना सुन ना पाऊ किसी की बात क्यों इतनी लत पड़ गई मुझे इस नशे के बीन जीना हुआ हराम ... परिचय :-  निकिता तिवारी निवासी : जयपुर बीसा, मोटाहल्दू, हलद्वानी (उत्तराखंड) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, ...
मातरम्
कविता

मातरम्

सूर्यपाल नामदेव "चंचल" जयपुर (राजस्थान) ******************** शिवालयों से शंखनाद हुआ है गुरुवाणी गुरुद्वारे से। कानों ने अजान सुनी फिर गूंज उठा हर चौबारे से।। मातरम्, मातरम्, वंदे मातरम्, वंदे मातरम्।। तोड़ पुरानी जंजीरों को आज नया इतिहास लिखें, गर्म लहू की धाराओं से राष्ट्रभूमि का श्रृंगार करें। मिट्टी से उपजे मिट्टी को ही बलिहार करें, देश की खातिर मिट जाने का कर ले तू आचरण।। मातरम् मातरम् वंदे मातरम् वंदे मातरम्।। ये मिट्टी है बलिदान की किसान और जवान की, तन को आज रंगा कर इसमें सर ऊंचा अभिमान करें। मिट्टी के कण कण से उठते देशप्रेम का गुणगान करें, बच्चा बच्चा देशभक्ति का ओढ़े अब आवरण।। मातरम् मातरम् वंदे मातरम् वंदे मातरम्।। मिट्टी में ममता मां की इंसान खेलता गोद में इसकी, मल मल के रज कण जिस्म से मिल शत्रु से संग्राम करें। मैं सपूत मैं रखवाला झुका शीश मिट्टी को प्रणा...
शिव की उपासना
स्तुति

शिव की उपासना

अनन्तराम चौबे "अनन्त" जबलपुर (म.प्र.) ******************** शिव उपासना करूं वंदना शिव की भक्ति है आराधना। शिव शंकर भोले भंडारी से मन से करूं हमेशा प्रार्थना। शिव की भक्तिं करूं वंदना मां पार्वती हैं दुर्गा शक्ति। शिव पार्वती दोनों की है पूरे ब्रह्मांड की अद्भुत शक्ति। शिव शंकर भोले भंडारी लीला सबसे उनकी न्यारी। जगत पिता सारे जगत के महिमा भी उनकी न्यारी है। सिर की जटाओं में चंद्र विराजे गले में काले नाग की माला। शरीर में भस्म लपेटे रहते पहनते हैं बस वो मृगछाला। हाथ में त्रिशूल लटकता डमरू रूद्राक्ष की साथ में माला। बंद नेत्र तीसरा माथे पर हैं। जय जय जय शंकर भोला। पार्वती संग कैलाश विराजे शिव शंकर भोले भंडारी। शिव वंदना करूं मैं उनकी नंदी भोले जी की सवारी। कार्तिक और गणेश पुत्र हैं पुत्री उनकी अशोक सुन्दरी है। शिव और पार्वती की लीला सारे जगत से...
नियति नटी का खेल
कविता

नियति नटी का खेल

राधेश्याम गोयल "श्याम" कोदरिया महू (म.प्र.) ******************** सपने सभी बिखर गए, अनचाही चाह में, मित सब बिछड़ गए, अनजानी राह में। हम अकेले रह गए, ठगे-ठगे से हो गए, बंदगी से जिंदगी का मेल देखते रहे। नयन से नियति नटी का खेल देखते रहे। समझ सके न जब तलक जिंदगी की चाल को, लुट कर चले गए सब चोर अपने माल को। और हम पड़े पड़े, किससे और कैसे लड़े, कर्म फल का अपने हम हिसाब देखते रहे। नयन से नियति नटी का ख्वाब देखते रहे। ठंड से कंपते रहे, धूप से तपते रहे, बाढ़ में बहते रहे, सब यूंही सहते रहे। पर्यावरण को मारकर, जंगलों को काटकर, कंक्रीट के जाल का विकास देखते रहे। नयन से नियति नटी का विनाश देखते रहे। कौन कहां खो गया, किसको कौन भा गया, मौन था माली चमन से, कौन बुल बुल ले गया। और हम खड़े खड़े, बाग में जिद पर अड़े, बिखरे पड़े थे ओस कण रवि बटोरते रहे। नयन से नियति नटी का स्वांग...
किस-किस से नफरत करोगे …?
कविता

किस-किस से नफरत करोगे …?

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** दो चार महिलाओं ने उठा क्या लिया गलत कदम, पुरुषत्व सोच में रंगा क्यों निकल रहा तुम्हारा दम, स्त्रियों पर होते आए अत्याचार क्यों नहीं देख पाती तुम्हारी आंखें, अपने किये गये वीभत्स गुनाहों पर बताते क्यों नहीं दो चार बातें, नारी के प्रति तुम्हारी सोच आज हो चुका निम्न स्तर का, उसे सिर्फ सजावट क्यों समझ रहे हो बिस्तर का, बताओ अपनी मां, बहन, बेटी से आज तक कितनी नफरत की है, क्या किसी ने थोड़े से भावनात्मक लगाव नहीं दी है, तुम्हारे स्तरहीन सोच खुद ही बोल रहे हैं सोच सोच कर, कितने अबलाओं की अस्मत लूट चुके हो नोच-नोच कर, अपने इस गिरी हुई सोच से नहीं बन पाओगे विद्वान, मनीषी या योगी, तुम खुद ही खुद को साबित कर रहे हो भयंकर मानसिक रोगी। परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी निवासी : पामगढ़ (छत्ती...
वीर सपूत
कविता

वीर सपूत

प्रीतम कुमार साहू लिमतरा, धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** आजादी के वीरों सपूतों का, आओ यश गान करें! श्रद्धा, सुमन अर्पित कर, उनका हम सम्मान करें !! कतरा कतरा खून देकर, जो देश बचाया करते है..! ऐसे वीर सपूतों का, हम सब यश गाया करते है !! घर से दूर सरहद में रहकर, देश का गान करते है! सर्दी, गर्मी, बरसात सहकर, तिरंगे की मान रखते है !! दुश्मनों से लड़ते-लड़ते, जो वीर गति को पाते है! ऐसे वीर सपूत जग में, मरकर अमर हो जाते हैं..!! आओ मिलकर देशहित में, कुछ अच्छा काम करें! पेड़ लगाकर धरती में, वीरों के हम नाम करें..! राष्ट्रहित में मर मिटने को जीवन अर्पण करते है ! ऐसे वीर सपूतों का हम, शत-शत वंदन करते है..!! परिचय :- प्रीतम कुमार साहू (शिक्षक) निवासी : ग्राम-लिमतरा, जिला-धमतरी (छत्तीसगढ़)। घोषणा पत्र : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह र...
जीवों की आजादी
कविता

जीवों की आजादी

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** खुश हो लो फिर आज आजाद देश मे आजाद हो तुम, दर्द, भूख, गुलामी से अब भी तड़प रहे हैं हम!! तुम जैसे ही जीव हैं हम, तुम जैसा ही है जीवन, क्यूँ हमको नित आहत करते हो क्यूँ कैद में हमको रखते हों?? जिव्हा को क्षणिक स्वाद मिले हम सबका रक्त बहाते हो, कैसे मानव हो तुम, किस मानवता का धर्म निभाते हो???? शनि राहु केतु के डर से हमे पूजने आते हो कभी श्वान, काग, की रोटी, कभी गाय को ढूंढा करते हो! स्वार्थ सिद्ध के लिए ईश्वर को भी धोखा देते हो, मंदिर, पूजा- हवन के बाद हमारा भक्षण करते हो?? सर्कस और चिड़िया घरों जैसे कारावास में हमको रखते हों मन बहले तुम मानव का, कोड़े हम पर बरसाते हो, दर्द और पीड़ा से भरे हम, फिर भी हमको तुम हँसाते हो!! सदियाँ बीत रही पिंजरे में कब खुली हवा में उड़ पाएंगे, आज...
कृष्ण से गुहार
भजन

कृष्ण से गुहार

कमल किशोर नीमा उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** हे कृष्ण पुकारे जब-जब, देना हमें सहारा। हम है बालक तुम्हारे, तुम ही हो पालनहारा। हे कृष्ण पुकारे …. आया जो इस धरा पर, सब मे है अंश तुम्हारा। देखें जिधर भी हम, लगता है सब कुछ न्यारा। मन मोहक इस छबि मे, दिखता है रुप तुम्हारा। संरचना ये तुम्हारी, इस सृष्टि को नमन हमारा। हे कृष्ण पुकारे …. कर्म करें निष्काम भाव से, ये है कथन तुम्हारा। जैसे कर्म करेंगे, होगा वैसा भाग्य हमारा। देना इतनी शक्ति, गुनाहों से करें किनारा। जाये उधर ना हम कभी, जहां हो अहित हमारा। हे कृष्ण पुकारे …. जब जब सजल नयन से, भक्तों ने तुम्हें निहारा। लेकर शरण में अपनी, कष्टों से उसे उबारा। हाथों मे है तुम्हारे, ये जीवन का चक्र सारा। रखना सानिध्य मे अपनी, हो जब जब जनम दुबारा। हे कृष्ण पुकारे …. परिचय :- कमल किशोर नीमा पिता : मो...
सवारी महाकाल की
स्तुति

सवारी महाकाल की

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** चली सवारी ठाठ से, महाराजा महाकाल, २१ तोपों की देते सलामी पुलिस बैंड के साथ। कहार पालकी ले चले, देखो उनके भाग्य, शिव धाम के बने अधिकारी, बाबा जिनके साथ। भोले की भक्ति में, मस्त हुए सब संत, भूत पिशाच मस्त हुए, दानव दैत्य ले संग। राजा राजसी वेष में, ठाट बाट के साथ, अगवानी करते चले, भाला त्रिशूल ले हाथ। राम सीता है बने, देखो नर और नार, दशानन भारी है बना शंकर भक्त महान। भक्त चले हैं झूमते, नाचे गाये मस्त, भक्ति में देखो डूबे, झाझ करताल ले संग। द्वारकाधीश से है मिले महाकाल महाराज, पहने माला बिल पत्र, तुलसी दल महाराज। परिचय : किरण विजय पोरवाल पति : विजय पोरवाल निवासी : सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बी.कॉम इन कॉमर्स व्यवसाय : बिजनेस वूमेन विशिष्ट उपलब्धियां : १. अंतर्राष्ट्रीय सा...
जब मैं अमीर बना
कविता

जब मैं अमीर बना

दीपक अनंत राव "अंशुमान" केरला ******************** संकरी मिट्टी की झोपडी में, जहाँ चारों तरफ़ की दीवारें हमेशा अपने पसीनों की ख़ुशबू बिखेरती थीं, वहाँ मैं एक इंसान-बसा था। सोने-से रंग में हम एक-दूसरे को चमकाते भी थे, और बालों में ग़रीबी की धूल भी बिखरती थी। कालिख जमी चिमनी के पास, नज़रें टिकाकर मैं कुछ सवालों के जवाब तलाशा करता था। बचपन की मासूमियत में, तब कुछ सवालों के जवाब मिल भी जाते थे कुछ को चुपचाप सह लिया जाता था, कुछ उत्तर तो तर्क से क़रीब भी नहीं होते थे। और कुछ तो ऐसे थे, जिनका जवाब ढूंढते-ढूंढते उम्र गुज़र जाती थी। फिर भी उस कालिख लगे मिट्टी के दीये में मैंने जीवन को जाना, चखा था। अनुभवों से फटी- पुरानी चादर जैसी हमारे सपनों पर माँ की साड़ी का आँचल बिछा रहता सिर्फ़ उम्मीदों पर टिके मिट्टी के घरों के ऊपर पिता सी उस सूरज की दे...
बहना चालीसा
चौपाई

बहना चालीसा

अभिषेक मिश्रा चकिया, बलिया (उत्तरप्रदेश) ******************** ॥दोहा॥ स्नेह-सुमन सरसाइ बहै, राखी रस की धार। मंगल मूर्ति बहन रूप, बंधे प्रेम उपहार॥ अभिषेक वंदन करे, बहना चरणों धार। तेरे पावन प्रेम से, जीवन हो उजियार॥ ॥चालीसा (चौपाई)॥ जय बहना स्नेह की रानी। ममता रूपी जीवन वाणी॥ तेरी महिमा कौन बखाने। हर रिश्ते में प्रेम जगावे॥ बाल्यकाल में साथ निभाया। हर मुस्कान में दुख छुपाया॥ बचपन की तू राजकुमारी। भाई की तू रही सहारी॥ राखी बाँधे रख भाव पवित्रा। मन में बसती शक्ति चित्रा॥ रूठे तो खुद पास बुलाए। माँ जैसी ममता बरसाए॥ तू लक्ष्मी बन घर में आए। भाई के हित द्वार सजाए॥ तेरी हँसी सुखद सुनाई। मन में शांति करे समाई॥ तेरी आँखें स्वप्न सँवारे। तेरे आँसू दुख सब मारे॥ तू ही शक्ति, तू ही पूजा। तू ही सेवा, तू ही दूजा॥ तेरे बिना घर सूना लागे। भाई का र...
भाई बहन के प्रेम को वंदन
कविता

भाई बहन के प्रेम को वंदन

सोनल सिंह "सोनू" कोलिहापुरी दुर्ग (छतीसगढ़) ******************** वंदन ऐसे प्रेम को, जिस जैसा नहीं है दूजा। भाई बहन का प्रेम है ऐसा, जैसे हो कोई अजूबा। भाई बहन जो नोंक-झोंक, किया करते थे दिन रैन। एक दूजे से मिलने को, अब रहते हैं बेचैन। आये बहन पर आंच, भैया दुनिया से लड़ जाए। भाई पर जो आए खतरा, बहन चट्टान सी अड़ जाए। भाई दूज और रक्षाबंधन, दोनों पावन है त्यौहार। हर साल बढ़ता जाता, इससे भाई बहन का प्यार। दोनों का है प्रेम अनोखा, जिसका आदि न अंत। वंदन इनके प्रेम को, जो रहेगा अनादि अनंत। परिचय - सोनल सिंह "सोनू" निवासी : कोलिहापुरी दुर्ग (छतीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र क...