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कविता

ज़िंदगी…”तन्हा हैं”
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ज़िंदगी…”तन्हा हैं”

निर्मल कुमार पीरिया इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** हैं फ़लक का नूर तू, झलक दूर से देता हैं, हो वास्ते रुबरु तेरे, वो दरीचा सवाँर देता हैं... करता है गुफ़्तगू वो, ख़ामोश सूनी निग़ाहों से, अरमा लिये पहलू में, सर-ए-शब गुजार देता है... माना कि फासले हैं मगर, तसव्वुर पे कहा जोर, मीलों की दूरियां सही, वो शिद्दत से घटा देता हैं... रोशनी बिखरीं जहान, उर चित्त छाया अंधेरा हैं, शब हुई शबनमी आज, तन्हा वो दिखाई देता हैं... हैं नाज क्यू जो आब हैं, फौरी हुआ ये इश्क़, शब भर रहा तू अर्श, सहर गुम दिखाई देता हैं... परिचय :- निर्मल कुमार पीरिया शिक्षा : बी.एस. एम्.ए सम्प्रति : मैनेजर कमर्शियल व्हीकल लि. निवासी : इंदौर, (म.प्र.) शपथ : मेरी कविताएँ और गजल पूर्णतः मौलिक, स्वरचित और अप्रकाशित हैं आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रक...
वतन हमारा
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वतन हमारा

रुचिता नीमा इंदौर म.प्र. ******************** जान से प्यारा वतन हमारा जग से न्यारा देश है प्यारा ये ऋषियोँ की है तपो भूमि ये अर्जुन कृष्ण की है कर्म भूमि यहाँ है जन्मे बौद्ध महावीर यही से निकले परसुराम शूरवीर यही हुआ है जन्म दधीचि का और रामकृष्ण, विवेकानन्द जैसे जगत गुरु का देवी अहिल्या हो या लक्ष्मीबाई कल्पना चावला या फिर मीरा बाई नारी शक्ति ने भी अपनी अलग ही पहचान बनाई तरह तरह की भाषाए और तरह तरह के परिधानो में, विभिन्न रीति रिवाजों और अलग अलग धर्मो के धागों में बंधा हुआ ये देश है प्यारा जब भी धरा पर विपदा आई विश्व गुरु की छवि है पाई छिपा हुआ हर समाधान यहाँ पर होती है मुश्किलें आसान यहाँ पर कोरोना के टीके में भी सर्वे भवन्तु सुखिनः की छाप है आई और भारत ने पूरी दुनिया मे गरिमा पाई अनेकता में एकता और देश की अखंडता ही भारत की है विशेषता परिचय :-  रुचिता नीमा जन्म २ जुलाई १९८२ आप ...
क्या लिखा है किस्मत में
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क्या लिखा है किस्मत में

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** क्या लिखा है किस्मत में, कई लोग भ्रम में पड़े हुये, किस्मत अपने हाथों में हो, जब दाता ने दो हाथ दिये। उनकी किस्मत हो जिनके, हाथ और पैर नहीं होते हैं, रख आलसी हाथ पे हाथ, अपनी किस्मत को रोते हैं। प्रभु कहता महसूस होता, कर ले रे इंसान! तू काम, किस्मत रोना रोता रहा तो, हो जाएगा जग में बदनाम। गरीबी जन की हो गायब, जुट जाये करे मेहनत जोर, देखो खुशियां घर में आये, नाच उठता है मन का मोर। अमीर अगर घर में बैठेगा, करेगा ना जब कहीं काम, धन दौलत खत्म हो जाए, करते रहो किस्मत बदनाम। क्या लिखा है किस्मत में, जाके पूछो मजदूर किसान, किस्मत अपनी लिखता है, कहलाता है धरा भगवान। क्या लिखा है किस्मत में, पूछो मेहनती विद्यार्थी से, किस्मत कदमों में झुकती, नहीं पूछ हाल स्वार्थी से। खाने को दो जून न रोटी, मूर्ख कहे किस्मत खोटी, काम करे मुफ्त ना खाय...
नव वर्ष मंगलमय हो…
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नव वर्ष मंगलमय हो…

राजेश चौहान इंदौर मध्य प्रदेश ******************** नव वर्ष मंगलमय हो... नई रात हो...नई सुबह हो... नव वर्ष मंगलमय हो... नई बात हो...नई शुरुआत हो... नव वर्ष मंगलमय हो... नई मौज हो...नई मस्ती हो... नव वर्ष मंगलमय हो... नई चहक हो...नई महक हो... नव वर्ष मंगलमय हो... नई सोच हो...नई उमंग हो... नव वर्ष मंगलमय हो... नई हिम्मत हो...नई ताकत हो... नव वर्ष मंगलमय हो... नई राह हो...नई मंजिल हो... नव वर्ष मंगलमय हो... परिचय :- राजेश चौहान (शिक्षक) निवासी : इंदौर मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख...
तुम भारत के हो भाल
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तुम भारत के हो भाल

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** तुम भारत के हो भाल तुम भारत के हो लाल सुभाष, सुभाष, सुभाष हो रण केसरी तुम तलवार, खुखरी तुम लावा तुम्हारी रगों में झुके नही तुम दगो में तुम सा नही कोई बलिदानी तुम हिन्द की अमर कहानी काट दे ते हो रिपु का हाथ नही करते उसके सामने गाल तुम भारत के हो भाल तुम भारत के हो लाल सुभाष, सुभाष, सुभाष मांगते हो लहू आज़ादी के लिए जीवित हो सिर्फ अरि की बर्बादी के लिए ढोंग पाखंड से हो दूर तुझसा न कोई दुजा शुर खाली नही होने देते तुम रणचंडी की थाल तुम भारत के हो भाल तुम भारत के हो लाल सुभाष, सुभाष, सुभाष तेरा कर्ज़ न उतार पायेंगे सौ जन्म भी गर पायेंगे तुझसा नही आज़ादी का रिंद हर भारतीय कह रहा जयहिंद तुम देशभक्ति की मिसाल तुम भारत के हो भाल तुम भारत के हो लाल सुभाष, सुभाष, सुभाष। परिचय :- धैर्यशील येवले जन्म : ३१ अगस्त १९६३ शिक्षा : एम कॉम सेवासदन महाविद्याल ...
बेटियाँ
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बेटियाँ

मईनुदीन कोहरी बीकानेर (राजस्थान) ******************** जिस आँगन में जन्मी खेली - पली - पढ़ी बेटियाँ उस आँगन को छोड़ दूजै आँगन से समझोता कर लेती है प्यारी बेटियाँ माँ - बाप के लाड - प्यार सौ सुखों को त्याग कर अपनों की आँखों में आँसू अपनों से विदाई का पल बाबुल के घर से जाती बेटियाँ सपने में भी नहीं देखा कभी वो घर, दीवार -ओ- दर कभी सब कुछ नया ही नया वहाँ उस घर को भी अंगीकार दिल से कर लेती है बेटियाँ नये रिश्तों की राह पर आहिस्ता-आहिस्ता कदम रख मन को समझा नये संसार में स्नेह रूपी डोर में बाँध कर अपने जीवन को संवारती बेटियाँ पढ़ी -लिखी बेटी अपने संस्कार से घर -परिवार -समाज को संवारती बेटी बचाओ अभियान को भी घर - घर की आवाज बना कर अक्षरशः जीवन में उतारती बेटियाँ परिचय :- मईनुदीन कोहरी उपनाम : नाचीज बीकानेरी निवासी - बीकानेर राजस्थान घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेर...
वर्षों बीत गए
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वर्षों बीत गए

आनन्द कुमार "आनन्दम्" कुशहर, शिवहर, (बिहार) ******************** वर्षों बीत गए तुम्हारी याद में डूबती नैना उमरता हृदय भावुक मन लिये। कहाँ जाऊँ? किसको सुनाऊँ? मन का विरहा मन को सुनाऊँ। चहुँ ओर अँधेरा फैल रहा मन के प्रकाश पुंज में भाव विभोर हो रहा मन आँगन के कोने में। वर्षों बीत गए तुम्हारी याद में डूबती नैना उमरता हृदय भावुक मन लिये। परिचय :- आनन्द कुमार "आनन्दम्" निवासी : कुशहर, शिवहर, (बिहार) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर ...
सुभाषचन्द्र बोस
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सुभाषचन्द्र बोस

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच ******************** देश सुरक्षित और सुखी हो, इस हेतु जो खार बने। हो चरित्र सुभाष का जिसमें, अपना पहरेदार बने।। युद्ध घोष 'जय हिन्द" रहा है, लोगों जिसका जीवन में। देशभक्ति का रक्त रगों में, कुर्बानी मन आंगन में।। रही भूमिका जिसकी पावन क्रांतिकारी परिवर्तन में। कहां मरा जिंदा सुभाष है, देखो आज हरेक मन में।। ऐसे देशभक्त रहबर का, सचमुच जो अवतार बने। हो चरित्र सुभाष का जिसमें, अपना पहरेदार बने।। आजादी पे मरने वाले, परवानों से प्यार करे। आजादी की कीमत खूं है, सच्चाई स्वीकार करे।। हाथ उठा कर पदवी लेने, वालों पर जो वार करे। भ्रस्टव्यवस्था जिसे देखकर, लोगों हाहाकार करे।। स्वाधीनता प्यारी जिसको, पराधीनता भार बने। हो चरित्र सुभाष का जिसमें, अपना पहरेदार बने।। जहां कहीं भी रहे हमेशा, बस माता का ध्यान रहे। सोते जगते जिसके ख्वाबों, में बस देश प्रधान रहे।। हो न्योछाव...
पत्थर में भगवान
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पत्थर में भगवान

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.) ******************** ये महज विश्वास है कि पत्थर में भगवान है, परंतु यही विश्वास हमें बताता भी है भगवान कहाँ है? तभी तो हम मंदिर, मस्जिद गिरिजा, गुरुद्वारों के चक्कर तो लगाते हैं, परंतु कितना विश्वास कर पाते हैं। विडंबनाओं पर मत जाइये अपने हर कठिन, मुश्किल हालात के लिए बिगड़े काम के लिये भगवान को ही दोषी ठहराते हैं, अपनी खुशी में भगवान को शामिल करना तो दूर याद तक नहीं करते, सारा श्रेय खुद ले लेते हैं। जिस भगवान का हम धन्यवाद तक नहीं करते कष्ट में उसी को याद भी करते हैं, पत्थर के भगवान से जिद करते,अड़ जाते हैं विश्वास करके भी नहीं करते। क्योंकि हम खुद पर भी विश्वास कहाँ करते? हमारे अंदर भी तो भगवान बैठा है यह सब जानते हैं, उस पर जब हम विश्वास नहीं करते, तब पत्थर के भगवान पर विश्वास कैसे जमा पाते? हम तो बस औपचारिकताओं में जीते जीते मर जाते, ...
खून की मांग
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खून की मांग

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** "खून मांग" कर आजादी के, सपने को साकार किया। सुभाषचंद्र बोस ने आज़ाद, भारत का निर्माण किया।। "खून मांग" कर आजादी के, सपने को साकार किया। कौन..... भूला पाएगा। मातृभूमि के सपूत ने... जो किया। होकर खड़े अकेले "आजाद हिंद" सेना को साकार किया।। "खून मांग" कर आजादी के, सपने को साकार किया। भीख में नहीं मिलती आजादी। जीवन देकर यह आह्वान किया।। अपने खून के कतरे-कतरे को, आज़ाद भारत के नाम किया।। परिचय :- प्रीति शर्मा "असीम" निवासी - सोलन हिमाचल प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशि...
मैं एक गरीब किसान हूं
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मैं एक गरीब किसान हूं

कालूराम अर्जुन सिंह अहिरवार जगमेरी तह. बैरसिया (भोपाल) ******************** लघु कथा मैं एक गरीब किसान हूं कहने को मैं अन्नदाता हूं मेरे हृदय से पूछो मैं बहुत दुखी हूं क्या तुम मेरी दर्द वेदना व्यथा को समझ पाओगे कभी मुझ पर कुदरत का कहर बरस जाता है कभी सरकार का मुझे रोता देखकर क्या तुम मेरे आंसू पहुंच पाओगे मेरे दुख दर्द में मेरे साथ खड़े होकर मुझे दिलासा दोगे मैं हूं ना यह कह कर मेरे साथ खड़ा रहोगे पूरे साल मुझे काम बहुत रहते हैं मेरे बूढ़े माता-पिता का देखभाल मेरी जीवन संगिनी की देखभाल मेरे नन्हे नन्हे छोटे-छोटे बच्चे हैं साहब मेरे बच्चे कुपोषित रहते हैं मैं उन्हें दो वक्त का खाना नहीं खिला पाता एक बच्चे के विकास के लिए जितना पोषण चाहिए वह नहीं है मेरे पास मेरे बच्चों को अच्छे स्कूल में नहीं पढ़ा पाता हूं मैं उनके स्कूल की फीस नहीं भर पाता हूं मैं एक उम्र होती है बच्चों की पढ़ने लिखने क...
किसान
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किसान

सपना दिल्ली ******************** अन्नदाता ख़ुद  होकर पानी पीकर भूख मिटाएँ जग को भूखा न सोने दें अन्नदाता किसान कहाएँ...... आँधी हो चाहे तूफ़ान चिलमिलाती धूप हो ठण्ड से निकलती जान मेहनत से  नहीं घबराते करते फसलों की देखभाल प्यारी संतान  समान....... दुनिया  न सोये भूखी उसके लिए न जाने गुजारते कितनी रातें बिना सोये परिवार से पहले देश की चिंता इन्हें छोहे..... कहने को तो संविधान हमारा सबसे प्यारा सबको मिलता समान अधिकार इसके द्वारा आज क्यों किसान हमारा सड़क़ों पर उतरा सारा फिर भी उन्हें न्याय नहीं मिल पा रहा ... कब जीतेगा वह जो कभी न हारा। परिचय :- सपना पिता- बान गंगा नेगी माता- लता कुमारी शैक्षणिक योग्यता- एम.ए.(हिंदी), सेट, नेट, जेआर. एफ. अनुवाद में डिप्लोमा ( अंग्रेज़ी से हिंदी), पी.एचडी. (ज़ारी) साहित्यिक उपलब्धियां- १५ से अधिक राष्ट्रीय और अन्तरराष्ट्रीय संगोष्ठियों में सहभागिता तथा प्रपत्र...
एक स्वर्णिम संध्या
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एक स्वर्णिम संध्या

गगन खरे क्षितिज कोदरिया मंहू इन्दौर (मध्य प्रदेश) ******************** खूबसूरत संध्या स्वर्णिम आभा का संदेश देकर गुज़र गई। निशा भी खूबसूरत ख्वाबौं को देकर चली गई। प्रभात की किरणें शबनम के मोती की तरह प्यार भरा माहौल सनम तुम्हारे बिना दे गई। अब इंतजार कर, इंतजार कर हर आहट कहने लगी अपने आप से जिन्दगी, मधुर मधुशाला के लिए तड़फने लगी। कभी जो मय पिलाई थी, अपने मुस्कराते नयनौं से, कशमकश माहौल को पाने के लिए तड़प उठी थी गगन एक मोहब्बत की रोशनी के लिए जिन्दगी बेबस लाचार सी लगने लगी और खूबसूरत संध्या स्वर्णिम आभा का संदेश देकर गुज़र गई। परिचय :- गगन खरे क्षितिज निवासी : कोदरिया मंहू इन्दौर मध्य प्रदेश उम्र : ६६वर्ष शिक्षा : हायर सेकंडरी मध्य प्रदेश आर्ट से सम्प्रति : नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण भोपाल मध्यप्रदेश सेवानिवृत्त २०१४ साहित्य में कदम : २०१४ से भारतीय साहित्य परिषद मंहू, मध्य ...
भोर का पंछी
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भोर का पंछी

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** जागरण संदेश लाता भोर का पंछी गगन में। वन्दना के गीत गाता भोर का पंछी गगन में! मधुर वाणी गूंजती है, व्योम से लेकर धरा तक। गान-पारावार में सब, डूब जाते हैं अचानक। मन सभी का है लुभाता भोर का पंछी गगन में। वन्दना के गीत गाता भोर का पंछी गगन में। मनोहर लय ताल सुन्दर, धुन अनोखी गान की है। प्राकृतिक अद्भुत प्रथा यह, जागरण अभियान की है। स्वरों की गंगा बहाता भोर का पंछी गगन में। वन्दना के गीत गाता भोर का पंछी गगन में। कुशल है संगीत में वह, जानता आरोह भी है। तान है उसकी सुरीली, समय पर अवरोह भी है। कंठ से सरगम सुनाता भोर का पंछी गगन में। वन्दना के गीत गाता भोर का पंछी गगन में। परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म•प्र•) भाषा ज्ञान ~ हिन्दी, अंग्रेज़ी, उर्दू, संस्कृत शिक...
नवाकुँरित पौधें की चिंता
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नवाकुँरित पौधें की चिंता

मनोरमा पंत महू जिला इंदौर म.प्र. ******************** नवसृजन की पीड़ा सहकर, धरा ने मुझे जन्म दिया, इस शहरी जीवन के आँगन में लाकर मुझे खड़ा किया, डरता हूँ यहाँ की निर्बाध हवाओ से, लपलपाते गर्म जलाते झोको से, नहीं हैं यहाँ कोई बरगद झाँव न कोई खग कलरव न कोई, प्यारा गाँव पता नहीं बढ भी पाऊँगा, या शैशव वय में ही मारा जाऊँगा यदि गाँव की माटी में ही उगता स्वछंद प्रेमपगी हवा में पनप विशाल पेड़ बन जाता परिचय :-  श्रीमती मनोरमा पंत सेवानिवृत : शिक्षिका, केन्द्रीय विद्यालय भोपाल निवासी : महू जिला इंदौर सदस्या : लेखिका संघ भोपाल जागरण, कर्मवीर, तथा अक्षरा में प्रकाशित लघुकथा, लेख तथा कविताऐ उद्घोषणा : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रका...
विधाता की निगाह में
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विधाता की निगाह में

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** ये जिंदगी गुजर रही है आह में जाएगी एक दिन मौत की पनाह में। कर लो चाहे जितने पाप यहां हो हर पल विधाता की निगाह में। मेरी कमी मुझे गिनाने वाले सुन शामिल तो तू भी है हर गुनाह में। छल प्रपंच से भरे मिले हैं लोग दगाबाजी मुस्काती मिली गवाह में। खोने के लिए कुछ भी शेष नहीं सब खोये बैठा हूं किसी की चाह में। आंखों में छिपे हैं राज बड़े ही गहरे इतनी जल्दी पहुंचोगे नहीं थाह में। परिचय :- आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय में ही कवि सम्मेलन मंच, आकाशवाणी, पत्र-पत्रिका व दूरदर्शन तक पहुँचा दीया। कई साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित युवा कवि आशीष तिवारी निर्मल वर्तमान...
जिंदगी एक सफर है
कविता

जिंदगी एक सफर है

कालूराम अर्जुन सिंह अहिरवार जगमेरी तह. बैरसिया (भोपाल) ******************** जिंदगी एक सफर है। कदम बढ़ाते चलो हंसते गाते मुस्कुराते चलो, ऐ चलने वाले मुसाफिर सफर लंबा है। कदम बढ़ाते चलो राह में रुकना नहीं है। सफर जितना लंबा होगा सफलता उतनी ही बेहतर होगी, जीवन में सफर करते समय अनेक बाधाएं आएंगी, इन बाधाओं में रुक ना जाना ए मंजिल के मुसाफिर, लोग यहां थक हर कर बीच सफर में ही रुक जाते हैं। वह लोग यह नहीं जानते उस समय हम मंजिल के कितने करीब थे, सफर में जब निकल चले हैं। मंजिल मिले बगैर रुकने का सवाल ही नहीं होता, आज नहीं तो कल जरूर मिलेगी, जिंदगी एक सफर है हंसते गाते मुस्कुराते कदम बढ़ाते चलो। चलते चलो मुसाफिर चलते चलो। परिचय :- कालूराम अर्जुन सिंह अहिरवार पिता : जालम सिंह अहिरवार निवासी : ग्राम जगमेरी तह. बैरसिया जिला भोपाल शिक्षा : एम.ए. हिंदी साहित्य शासकीय हमीदिया कला एवं वाणिज्य महाविद्...
आर पार की लड़ाई
कविता

आर पार की लड़ाई

संजय जैन मुंबई ******************** मेहनत करे किसान पर मलाई हमें चाहिए। खेत बिके या बिके गहने उसे हमको क्या लेने-देने। हमको तो उसकी फसल बिन मोल चाहिए। और हमे कमाने का मौका हमेशा चाहिए। फर्ज उसका खेती करना तो वो खेती करे। हमको करना है धन्धा तो हम लूटेंगे उसे।। होता आ रहा है यही अपने देश में। तो क्यों हम बदले अपनी परंपराओ को। बात बहुत सीधी है जरा तुम समझ लो। तुम हो किसान तो दिलसे खेती करो। ऋण में पैदा होते हो ऋण में ही मरते हो। पर फिर भी खेती खुशी खुशी करते हो।। फिर क्यों उलझ रहे हो देश की सरकार से। जो खुदको बेच चुकी पूंजीपतियों के हाथो में। अब सरकार का भी हाल किसानो जैसा होगा। न जी पायेंगी न मर पायेंगी कठपुतली बनकर रह जायेगी। क्योंकि इतिहास अपने आपको फिर से दोहरायेगा। और देश अपनी पराम्पराओ को कैसे भूल पायेगा।। चुनावो में पूंजीपतियों के पीछे दौड़ लगाएंगे। और फिर इन के गुलाम बन जायेंगे...
जिंदगी
कविता

जिंदगी

ममता रथ रायपुर ******************** जिंदगी यूँ ही कटती चली जाएगी कभी हंसाएगी तो कभी रूलाएगी कभी तारों सा चमकेगी कभी बूंदों सा बरस जाएगी जिंदगी यूँ ही कटती चली जाएगी कभी मुसकुराहट बनकर आएगी कभी सुख -चैन चुरा ले जाएगी जिंदगी यूँ ही कटती चली जाएगी कभी हवा सी लहराएगी कभी तुफान सा बवंडर मचाएगी जिंदगी यूँ ही कटती चली जाएगी कभी हंसाएगी तो कभी रूलाएगी परिचय :-  ममता रथ पिता : विद्या भूषण मिश्रा पति : प्रकाश रथ निवासी : रायपुर जन्म तिथि : १२-०६-१९७५ शिक्षा : एम ए हिंदी साहित्य सम्मान व पुरस्कार : लायंस क्लब बिलासपुर मे सम्मानित, श्री रामचन्द्र साहित्य समिति ककाली पारा रायपुर २००३ में सांत्वना पुरस्कार, लोक राग मे प्रकाशित, रचनाकार में प्रकाशित घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्...
वक्त
कविता

वक्त

विश्वनाथ शिरढोणकर इंदौर म.प्र. ****************** तुझको मुझसे, मुझको तुझसे क्या काम है? वक्त ने वक्त से मिलाया, वक्त ही जरुरत है! बेवजह नहीं यूँही वक्त का बर्बाद होना कुछ और नहीं, मिटने मिटाने की हसरत है! वक्त पे खामोश रहे, वक्त पे चिल्लाएं वक्त पे आंसू बहाएँ, वक्त की ही सियासत है! मैंने जो लिखी इबारत, वक्त ने मिटा दी खुद के लिखे पे इतराएँ, वक्त वो इबारत है! दोस्ती और दुश्मनी वक्त की मोहताज है हम नादाँ, कहीं मोहब्बत कहीं नफरत है! कोशिश कर ऐ इन्सां, तू वक्त को पढ़ सके तेरी हो या मेरी, सब की इबादत वक्त है! परिचय : विश्वनाथ शिरढोणकर इंदौर म.प्र. इंदौर निवासी साहित्यकार विश्वनाथ शिरढोणकर का जन्म सन १९४७ में हुआ आपने साहित्य सेवा सन १९६३ से हिंदी में शुरू की। उन दिनों इंदौर से प्रकाशित दैनिक, 'नई दुनिया' में आपके बहुत सारे लेख, कहानियाँ और कविताऍ प्रकाशित हुई। खुद के लेखन के अतिरिक्त उन दि...
सावधान… सावधान…
कविता

सावधान… सावधान…

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** बदमाशों की खैर नही कार्यवाही में देर नही नारी के सम्मान में पुलिस डटी मैदान में सावधान सावधान।। बबली को अब घूरना नही उसका पीछा करना नही छेड़ना उसे भूल जाना वरना पड़ेगा जेल जाना जागी चेतना जन जन में नारी के सम्मान में पुलिस डटी मैदान में सावधान सावधान।। नष्ट होगा हर भक्षक डगर डगर पर है रक्षक बहकाना आसान नही न कहना विधि का ज्ञान नही मत समझ भोली भाली है हर बेटी यहाँ दुर्गा काली है गीत गाये हम लाडली तेरी शान में नारी के सम्मान में पुलिस डटी मैदान में सावधान सावधान।। कैसी सुंदर फुलवारी है महक रही हर क्यारी है निडर हो घूम रही प्रदेश की हर नारी है कर सपने पूरे अपने भर उड़ान आसमान में नारी के सम्मान में पुलिस डटी मैदान में सावधान सावधान।। होगा दानव का दलन चलेगा केवल नेक चलन बातें नही होगा समर बेटी की रक्षा में कस ली है कमर निर्भय हो विचरण कर चर्च...
अब और….. नहीं
कविता

अब और….. नहीं

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** सिमटी-सिमटी जिंदगी में बसर। अब और नहीं... अब और नहीं। ठहरी -ठहरी राहों का सफ़र। अब और नहीं.. अब और नहीं। बांध ले अपनी हिम्मत को, तिल-तिल कर मरना । अब और नहीं.. अब और नहीं। सिमटी-सिमटी राहों में बसर। अब और नहीं.. अब और नहीं। आशाओं के दिए जला ले, निराशा को दूर भगा ले, वक्त बदलेगा । बदलना होगा...... वक्त को। जीवन का क्रूर प्रहास। अब और नहीं.. अब और नहीं। तुम अकेले नहीं। साथ यह धरा-गगन हैं। मिलेगी हर... राह पर मंजिलें। किस राह पर चलूं....यह सोचना। अब और नहीं.. अब और नहीं। तुझको अपने हाथों से, बदलनी है किस्मत अपनी। बदलेगी...... यह लकीरें। इस इंतजार में गुजर।। अब और नहीं.. अब और नहीं। गमों से भरें, जिंदगी में कल्पनाओं के भंवर। अब और नहीं.. अब और नहीं। जिंदगी को जीना है.. झेलना तो नहीं। जिंदगी से टकराव। अब और नहीं.. अब और न...
दावत पर बुलाया है
कविता

दावत पर बुलाया है

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** कभी दावत पर बुलाते थे, घर स्नेह निमंत्रण आते थे, प्रीतिभोज, मीठी वाणी से, प्रेम संग खाना खिलाते थे। दावत नहीं वो प्यार होता, खुशियों में दामन भिगोता, भाई भाई को पास बुलाता, आया नहीं जीवनभर रोता। दावत पर कभी बुलाते थे, बैठाकर खाना खिलाते थे, आदर और सम्मान देकर, उन्हें अपने पास बैठाते थे। बैठके खाना खाते थे जब, मन संतुष्टि मिल जाती थी, पानी पीते थे घड़े का ठंडा, मन में खुशी छा जाती थी। शास्त्रों में भी बताया जाता, बैठके खाना खाओ हरदम, रोग दोष से दूर रहोगे फिर, तन व मन में आएगा दम। वक्त ने पलटी खाई ऐसी, आया है खड़ा अब खाना, भाग दौड़कर समय मिले, भागदौड़ कर कैसा खाना? दावत पर बुलाया है जी, एक बार दर्शन दे जाना, खड़े खड़े खाना खाकर, कपड़ों पर दाग लगवाना। एक हाथ में थाली पकड़े, एक हाथ से खाते खाना, बार बार कोई न्यौता न दे, आना बे...
वीर  सपूतों तुम्हें प्रणाम
कविता

वीर सपूतों तुम्हें प्रणाम

संजू "गौरीश" पाठक इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** दूर शहर से गांव एक था, जन्मा था एक लाल वहां। बड़ा हुआ भारत की माटी, साधन थे कुछ नहीं जहां।। सुनी कहानी भगत सिंह की, रग- रग में था जोश भरा। निकल पड़ा सेवा करने को, भारत मां का लाल निरा।। जा बेटा रक्षा कर मां की, दुश्मन को तू मार गिरा। कर देना प्राणों की आहुति, मत होना भयभीत जरा।। जा पहुंचा होने को भर्ती, सेना में जज्बात लिए। रग-रग उसका रोमांचित था, मात पिता आशीष दिए।। मिला संदेशा अधिकारी से, युद्ध क्षेत्र में जाना है। धूल चटा दुश्मन को अपने, ध्वज अपना फहराना है।। कर दी बौछारें तोपों से, कर्ज दूध का अदा किया। धराशायी कर अगणित दुश्मन, परिचय निज कर्तव्य दिया।। जान न्यौछावर कर दी लड़कर, ओढ़ तिरंगा पहुंचा ग्राम। क्रंदन करती मां यू बोली, जा बेटा है तुझे सलाम।। परिचय :- संजू "गौरीश" पाठक निवास...
अनकहे रिश्ते
कविता

अनकहे रिश्ते

रुचिता नीमा इंदौर म.प्र. ******************** वो अनकहे से, अनदेखे से, वो अनसुलझे से रिश्ते जो कभी बीच राह में, तो कभी खयाल में बन जाते है।। वो हकीकत से दूर, वो ख्वाबो की दुनिया के रिश्ते लेकिन बड़े खूबसूरत से रिश्ते, हर बार जीवन मे नई उमंग भर जाते है।। राह चलते किसी अजनबी का यू मुस्करा जाना जैसे उपवन में किसी खूबसूरत गुलाब का खिल जाना।। वो बिना नाम, पहचान के रिश्ते, वो दिल से जुड़े अनजाने से रिश्ते... जब राह पर चलते किसी बुजुर्ग को मंजिल तक पहुचना हो या किसी भूखे को पसन्द का खाना खिलाना हो या कभी ला देनी हो किसी बच्चे के चेहरे पर मुस्कान या दिला देना हो किसी कमजोर को सम्मान भर जाता है मन में आत्म सम्मान ये बिना नाम के क्षणिक से रिश्ते ये जीवन के रंगों से लिपटे हुए रिश्ते ये जीवन की ऊर्जा के रिश्ते ये सब धर्मों से परे रिश्ते ये बिना किसी स्वार्थ के रिश्ते ये रिश्ते बहुत खूबसूरत है ये ...