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कविता

संघर्ष
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संघर्ष

सौरभ डोरवाल जयपुर (राजस्थान) ******************** संघर्ष उसी को चुनता है, जो लायक इसके होता है। जो चलना भी ना शुरू करे, वो अनंत आकाश को खोता है।। राज-पुत्र होकर भी, संघर्ष राम ने चुना था। चौदह वर्ष वनवास काटकर, राज-पाठ का मौका भुना था।। संघर्ष राजा हरिश्चंद्र ने किया जीवन भर, तब संघर्षों के आदि कहलाए। राज खोया, पुत्र खोया, तब हरिश्चंद्र सत्यवादी कहलाए।। संघर्षों को बिना चुने, ना कोई मंजिल को पाता है। बिना संघर्ष जीवन क्षण भंगुर, केवल आता और जाता है।। संघर्ष के ही कारण गोताखोर, नदी पार कर जाता है। सौरभ केवल किताबों को पढ़कर, कोई तैरना नहीं सीख पाता है।। परिचय : सौरभ डोरवाल निवासी : भोजपुरा, जिला- जयपुर (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।...
रावण ही रावण
कविता

रावण ही रावण

अशोक कुमार यादव मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** जिस रावण को मारा था श्रीराम ने, लोगों के मन में अभी भी जिंदा है। हर दिन रावण लीला हो रहा है यहाँ, असत्य, अज्ञान, बुराई की निंदा है।। कोई नर हवस के पुजारी बन बैठा है, मासूम स्त्रियों का कर रहा बलात्कार। बार-बार रावण का रूप धारण कर, फिर क्यों कर रहा उन पर अत्याचार।। घर के आँगन में बैठी रोती है नारी, माथे का सिंदूर बन जाता है अंगार। घड़ी-घड़ी होती उनकी अग्नि परीक्षा, देश की बेटी हैं घरेलू हिंसा का शिकार।। पराई स्त्री पर नजर रखते हैं मनचले, प्रेम झाँसा देकर बहलाते, फूसलाते हैं। जीवन भर रानी बनाकर रखूँगा कहकर, अंत में घर से भगाकर कहीं ले जाते हैं।। बुरे मानव के अंदर रावण-ही-रावण है, मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु राम कहाँ से लाऊँ। रावण राज में अधर्मी, पापी, दुराचारी हैं, अच्छाई का राम राज फिर से कैसे बनाऊँ।। परिचय...
करिया अउ वोखर रूख
आंचलिक बोली, कविता

करिया अउ वोखर रूख

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** (छत्तीसगढ़ी बोली) करिया ल बनेच रिस आगे, ओखर तत घलो छरियागे, मोर लगाय रूख ल काट के कोन लेगे, मोर हिरदे ल बड़ दुख देगे, मोर कइ पीड़ही बर छैंहा बनाय रहेंव, सुखी रही संहंस लिही तेखर जोगाड़ जमाय रहेंव, लइका ह इसकुल ले घर आके बताइस, के गुरूजी कहे हे एक ठन रूख अपन दाई के नांव म लगाबे, पानी पलो के वोला बड़का बनाबे, करिया अकचका गे, सुन के झंवुहागे, खटिया म बइठे रहिस त नइ गिरीस, पानी ठोंके म संहंस हर फिरिस, अब आन संग अपन आप ल कइसे समझावां, अपन पीरा ल काला बतावां, जब पइसा वाला मन दोगलाई म उतर जाथें, त हमर अस गरीब के जंगल ल कटवाथें, हमर पुरखा मन अपन महतारी भुंइया के हरियर रूख ल कभु नइ काटिन, ए जंगल ह हमर दुख दरद ल बांटिन, फेर कथनी करनी के फेर ल देखव तमनार अउ हसदेव जइसन जंगल के हजारों लाखों पे...
दीप बनो, जो जग को जगाए
कविता

दीप बनो, जो जग को जगाए

अभिषेक मिश्रा चकिया, बलिया (उत्तरप्रदेश) ******************** दीप बनो जो राह दिखाए, जो अंधियारा दूर भगाए। जलो मगर सेवा के लिए, ना कि केवल मेवा लिए। दीप बनो जो सत्य जलाए, झूठ और भय सब मिट जाए। जग में जो अन्याय हुआ है, उस पर सच्चा नाद सुनाए। दीप बनो जो ज्ञान बढ़ाए, हर मन में उजियारा लाए। बिन शिक्षा सब सूना सूना, दीप बनो जो बुद्धि जगाए। दीप बनो जो मानवता दे, भूले को फिर सजगता दे। हाथ में दीप अगर जलाओ, तो मन में भी गरमाहट दे। दीप बनो जो धर्म बताए, राष्ट्र प्रेम का गीत सुनाए। अपने भीतर आग जगा लो, फिर भारत जग में चमकाए। दीप बनो जो द्वेष बुझाए, प्रेम का सागर लहराए। जात, पंथ की दीवारें तोड़ो, मानवता का दीप जलाए। दीप बनो जो कर्म बताए, स्वार्थ नहीं, सद्भाव सिखाए। भूखे के हिस्से की रोटी दो, यही असली दीवाली आए। दीप बनो जो दिल को छू ले, सत्य की राह में तन झ...
प्रकाश का पर्व: दीपावली
कविता

प्रकाश का पर्व: दीपावली

रूपेश कुमार चैनपुर (बिहार) ******************** दीपों का ये पर्व है निराला, हर घर में छाए उजियाला। अमावस की रात में चमके दीया, हर मन गाए प्रेम का जिया। रामचंद्र जब लौटे वन से, चौदह बरस बिताए बन से। अयोध्या वासी ने दीप जलाए, राम-सीता का स्वागत पाए। यही है दीपावली की बात, सदियों से चलती परंपराओं की बात। अंधकार पर जब होती जीत, तभी मनाते दीपों की रीत। लक्ष्मी माता आतीं द्वार, संग में लातीं सुख-सम्पार। धन, समृद्धि, शांति का वास, हर मन में हो प्रेम प्रकाश। गणेश जी का हो पूजन, बिना उनके नहीं शुभ आरंभन। वो देते हैं बुद्धि-विवेक, सच्चे पथ पर चलना नेक। धनतेरस से मेला छाए, हर गली, हर घर मुस्काए। नरक चतुर्दशी लाए शुद्ध विचार, दीप जलाएं, करें संहार। फिर आती अमावस रात, हर कोना रोशन, हर बात खास। पटाखों से न हो शोर बड़ा, प्रकृति बचाना भी है सदा। ...
चीज
कविता

चीज

प्रियंका पाराशर भीलवाडा (राजस्थान) ******************** "हर चीज जरूरी है पर अति, हर चीज की बुरी है समय पर ना मिले तो अधूरी है बस इसी मेल-मिलाप की दूरी है वरना, हर चीज जरूरी है पर अति, हर चीज की बुरी है " परिचय :- प्रियंका पाराशर शिक्षा : एम.एस.सी (सूचना प्रौद्योगिकी) पिता : राजेन्द्र पाराशर पति : पंकज पाराशर निवासी : भीलवाडा (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) ...
पश्चाताप क्या हैं?
कविता

पश्चाताप क्या हैं?

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* पश्चाताप स्मृति रंध्रों से पीड़ा का रिसाव है पश्चाताप हमारी समझ और विवेक का अधूरापन है और हमारे बेहतर मनुष्य होते जाने का प्रमाण भी। पश्चाताप हमारी वस्तुपरकता को ठण्डी निर्ममता से बचाता है और सारी गतिविधियों के केन्द्र में मनुष्य को रखना सिखाता है। पश्चाताप इतिहास का संवेदनामूलक समाहार है और संवेदना का इतिहास लिखने की सबसे अच्छी भाषा है। हम बार-बार पीछे मुड़कर देखते हैं और जीवित रहने के लिए पश्चाताप करने लायक कुछ न कुछ ढूँढ लाते हैं। पश्चाताप प्रेरणा की विकल आत्मा है। पश्चाताप यदि देवता के सामने पाप स्वीकृति या क्षमायाचना बन जाये तो हम कमज़ोर, स्वार्थी और घुटे हुए पापी बन जाते हैं पश्चाताप आत्मकथा का विवेक और कविता की प्राणवायु है। पश्चाताप हमें तानाशाह बनने और त...
मुँडेर-मुँडेर बिखरी ख़ुशियाँ
कविता

मुँडेर-मुँडेर बिखरी ख़ुशियाँ

छत्र छाजेड़ “फक्कड़” आनंद विहार (दिल्ली) ******************** मुँडेर-मुँडेर बिखरी ख़ुशियाँ टिमटिमाये दीप क़तारों में मन प्रफुल्लित हुआ है आनंदित लक्ष्मी के आकार प्रकारों में झिलमिलाये दीपशिखा की लौ प्रीत जुड़ी प्रीत के तारों से रजनीगंधा सुमन सौरभ ले मुस्काये मधुर बहारों से महक उठे घर आँगन सारे ऋंगार, मिष्ठान, उपहारों से छिप-छिप चिहुंकै नव युगल बजे सरगम गुम सितारों से मन से मन कब मिलते हैं यहाँ स्वार्थ के स्वार्थी अभिसारों से भुल सभी गिले शिकवे पुराने गले मिलो अब निज प्यारों से जीवन दीप जले कोटि कोटि दिवाली मने दूर विकारों से ऋद्धि-सिद्धि बढ़े हो शुभ सब का वरदान मिले ईश अवतारों से परिचय :- छत्र छाजेड़ “फक्कड़” निवासी : आनंद विहार, दिल्ली विशेष रूचि : व्यंग्य लेखन, हिन्दी व राजस्थानी में पद्य व गद्य दोनों विधा में लेखन, अब तक पंद्रह पु...
पता नहीं क्यों?
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पता नहीं क्यों?

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** जब तक निःस्वार्थ भाव से कोई जुड़ा रहता है समाज सेवा में, तब तक उनका ध्यान रत्ती भर नहीं जाता मलाई व मेवा में, तब मन में चलता रहता है कि मेरा समाज कहीं दुखी तो नहीं है, नजर आ जाता है कमी यही कही है, लोगों को हर उस नियम को बताता है, जिसे अपना कुछ मुस्कान लाया जाता है, संविधान की एक एक अनुच्छेद रह रह याद आने लगता है, भ्रष्ट लोगों को चमकाते नहीं थकता है, वो भूल जाता है अपना दुख, लोगों से की हंसी में खोजता है अपना सुख, मगर जैसे ही वो सामाजिक कार्यकर्ता से एक कदम आगे बढ़ नेता बन जाता है, बदलाव नजर आने लगता है सीना तन जाता है, उनके पिछले कार्य उन्हें दिलाता है कुर्सी, यहीं से शुरू हो जाता है मनमर्जी, अब वो बहाने बनाना जान जाता है, झूठ बोलने की बहुत बड़ी दुकान लगाता है, अब उन्हें लोग प्यारे नहीं लगते प...
जीवन का सार
कविता

जीवन का सार

किरण विजय पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** अपनी अंतर आत्मा से पूछो? "क्या खोया क्या पाया है" क्या जग से है लिया है हमने, क्या जग को लौट आया है। कितना प्रेम दिया है हमने, कितना प्यार लुटाया है, कितना दिन दुखीयो को हमने, अपने गले लगाया है। कितना दान दिया जीवन मै, कितना छिना दुनिया से, कितना राग द्वेष किया है, जग में जीने वालों से। भला किया या बुरा किया, हिसाब लगा लो आत्मा से, कितने दिलों को तोडा़ हमने, कितना सेतू जोड़ा है। "एक पल हम मर कर है देखे", कौन रोये कोन हंँसता है, कौन हमें अच्छा है कहता, कौन बुरा आज कहता है। यदि अश्रुधार भये जन जन की, तो जग मै नाम है कमाया है, पीछे से अपशब्द जो बोले, जीवन में नाम डुबाया है। यही आनंद दिवाली का जीवन, यही होली का रंग लगाया है, यही दशहरे की जीत है पाई, राखी का प्रेम कमाया है। जीवन का हिसाब...
तुम कुछ कहो … हम कुछ कहें
कविता

तुम कुछ कहो … हम कुछ कहें

मित्रा शर्मा महू, इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** रिश्ते की डोर जो एक दूसरे को बांधे रखती है निभाने के लिए भी तो कुछ कहना पड़ता है। चुप रहने से दूरियां बढ़ जाती हैं पहल करो तो राह मिल जाती है इसलिए आओ ... तुम कुछ कहो ... हम कुछ कहें ...। जीवन के इस आपाधापी में वक्त के पहिए के साथ चलने में वास्तविक मुस्कान छिन रही है होठों से आओ, जीवन को असली मुस्कान दें तुम कुछ बोलो ... कुछ हम बोलें ...। जिंदगी बहुत छोटी है, यह हम जानते हैं तो फिर क्यों ना, टूटते रिश्ते जोड़ने की पहल करें आपस की गलत फहमी मिटाएँ तुम कुछ कहो ... हम कुछ कहें ...। आओ, इस वसुधा के आंचल को संवारे नदियाँ बचाने के लिए कार्य करें नया इतिहास रचने, आगे बढ़ें महापुरुषों से प्रेरणा लें नई पीढ़ी को जागरूक करें आओ, तुम कुछ बदलो ... हम कुछ बदलें ... तुम कुछ कहो ... हम कुछ कहें ...। ...
नादान है इंसान
कविता

नादान है इंसान

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* अभी तक नादान है इंसान उसी डाल को काटे जिस पर खुद बैठा नादान। अपने पैर कुल्हाड़ी मारे दिखा दंभ अभिमान। जानबूझ सच भूल गया सब मन के माने-मान, उलटी पढ़ी ज्ञान की पाठी उल्टा हो गया ज्ञान। सदा नकारे सच को मूरख होश करे न भान स्वार्थ में हो अंधा ऐसा बेचा सब ईमान। खुद की करनी छुपे न खुद से झूठी -धरता शान, अंदर-अंदर रहता हरदम परेशान -हलकान। तन को खाना-पीना सबको हासिल सभी जहान मन की भूख अपूर सदा ही मन की माँग अजान। मन मूरख खुद भी नहीं जाने क्या उसका अरमान पगलाया फ़िरता दुनिया में चढ़ गई मुफ्त थकान। मन के संग-संग मूरख लागे ज़रा करे न ध्यान मन के संग-संग घायल होकर घर लौटे नादान। मन नहीं जाना जब तक अपना सच न हो संज्ञान मन नहीं जाना तब तक अपना बोध हुआ न ज्ञान. अभी तक नादान है इ...
प्रेम करना सीखें
कविता

प्रेम करना सीखें

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** प्रेम निभाना सीखें प्रेम तो हर कोई कर लेता है, प्रेम का अर्थ समझे बिना प्रेम व्यर्थ है ! इस जीवन के सफर में सब कुछ पीछे छूटता जाता है, केवल स्मृतियाँ ही शेष रह जाती हैं , समय के साथ ये स्मृतियां भी धुंधली पड़ने लगती हैं , मानो रेत की गहराई में दब कर कहीं गुम हो जाती हैं ! बाकी बच जाता है, रिक्तता-मौन, जो बचा खुचा प्रेम भी सोख लेती है ! मौन का अर्थ अहंकार नहीं होता, कभी-कभी भावनाओं की थकान होती है, टूटते विश्वास और थकते दिल की गवाही होती है, निःशब्द अन्तराल के बाद वेदनाओं की बहती कहानी होती है!! मौन इतना गहरा हो जाता है, जहां से शब्द टकरा कर वापस लौट आते हैं एक प्रतीकात्मक प्रतीक्षा रह जाती है, अंतहीन प्रतीक्षा, जहां प्रेम के लौटने की कोई आहट नहीं आती!! परिचय ...
शिक्षा
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शिक्षा

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** शिक्षा से कल्याण है, सहज बढ़ाती ज्ञान। शिक्षा तो वरदान है, देती है सम्मान।। देती है सम्मान, करे जीवन उजियारा। करती है उद्धार, भगाती है अँधियारा।। अज्ञानी नादान, पढ़ो लो गुरु से दीक्षा। करे सदा उपकार, निखारे जीवन शिक्षा।। ज्ञानी शिष्ट सुशील हो, सतत् पढ़ो विज्ञान। जीवन होगा फिर सफल, अध्ययन हो सुजान।। अध्ययन हो सुजान, बने ज्ञानी हर पीढ़ी। वृद्धि होगी विवेक, चढ़ोगे नित नव सीढ़ी।। होंगे फिर विद्वान, अगर महिमा पहचानी। करो नित्य अभ्यास, मिलेगी विद्या ज्ञानी।। करती पूजन शारदे, दो शिक्षा वरदान। माता विद्या दो हमें, ले लो अब संज्ञान।। ले लो अब संज्ञान, पढें हम जाकर शाला। नित्य बढ़ेगा ज्ञान, मिले साहस मतवाला।। विद्या है रस खान, कष्ट सारे ही हरती। शिक्षा दे पहचान, स्वप्न सब पूरे करती।। ...
मेरे आदर्श
कविता

मेरे आदर्श

रतन खंगारोत कलवार रोड झोटवाड़ा (राजस्थान) ******************** क्या अर्पण करूं तुझे हे! माधव, जो मानव जीवन तुमने दिया। मेरे पापों की मैली चुनरिया पर, कुछ सितारे शायद पुण्य के होंगे।। यह जीवन है कितना अनमोल, मैं निमूर्ख यह समझ ना पाई। तब मेरे पिता का रूप धरकर, गोविंद, तुमने ही तो राह दिखाई।। जब जीवन की उलझने बढ़ने लगी, मैं दिन- दुखी और चित्त उलझाया। तब मेरे गुरु के रूप में ही, माधव तुमने तो दिया जलाया।। मेरे आदर्श मेरे गुरुवर की वाणी, मेरे उसूल मेरे पिता के वचन। किसी का दिल न दुखे और न राह भटकू, तभी सार्थक होगा मेरा यह जीवन।। परिचय : रतन खंगारोत निवासी : कलवार रोड झोटवाड़ा (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी ...
परिवर्तन लाना पड़ता है
कविता

परिवर्तन लाना पड़ता है

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** अपने आप आती है बारिश, थमने नहीं स्वीकारती कोई गुजारिश, आंधी के आने का कोई काल नहीं है, जिसे रोकने के लिए कोई जाल नहीं है, खुद-बखुद आ जाती है तूफान, क्या पता ले ले कितनों की जान, मगर किसी की जान लिए बिना महापुरुष गण परिवर्तन लाते हैं, तात्कालिक अवरोधों से बेफिक्र टकराते हैं, भले ही सड़े गले लेकिन तत्कालीन समय के सशक्त प्रचलित व्यवस्था से टकराना, कोई बांये हाथ वाला खेल नहीं है, जहां विचारों का होता मेल नहीं है, अवैज्ञानिक, अमानुषिक नियम हर किसी के लिए समान नहीं होते, विभेदों से भरे ग्रंथवाणी में ज्ञान नहीं होते, इंसान होकर भी इंसान इंसान नहीं होते, ऐसी प्रथाओं के लिए खपना बलिदान नहीं होते, इस दुनिया में अंधविश्वास, पाखंड और भेदभाव के लिए कोई स्थान नहीं है, नैतिकता, सत्य, दया से बड़ा भगवान नहीं है...
स्वच्छंदता
कविता

स्वच्छंदता

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* कितनी उन्मुक्तता है स्वतंत्र विचरण करते हैं। सम्पूर्ण धरा और गगन के बीच ना आने का व्यय ना ही वाहन शुल्क देना है आय व्यय का ब्यौरा. पर क्या इनके ह्रदय में शांति की अनुभूति है ? संभवत: नहीं क्योंकि शांति होती तो इधर उधर विचरण करने की आवश्यकता नहीं होती। तो फिर इस स्वच्छंदता रूपी स्वतन्त्रता का परिणाम क्या है ? फिर भी सभी उन्मुक्त सभी स्वछंद रहने को आतुर रहते हैं पंछी की तरह। परिचय :- शिवदत्त डोंगरे (भूतपूर्व सैनिक) पिता : देवदत डोंगरे जन्म : २० फरवरी निवासी : पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) सम्मान : राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर द्वारा "समाजसेवी अंतर्राष्ट्रीय सम्मान २०२४" से सम्मानित घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। ...
ये कहानियाँ
कविता

ये कहानियाँ

छत्र छाजेड़ “फक्कड़” आनंद विहार (दिल्ली) ******************** कुछ हैरानियाँ कुछ परेशानियाँ वक्त से मिले आघातों की निशानियाँ जीवन से जुड़ी अतीत की अनगिन कहानियाँ मैं चाहता हूँ उन्हें भुलाना मगर कदम कदम अनेकों तथाकथित शुभचिंतक तैयार रहते हैं स्मरण कराने को फिर से वो कहानियाँ..... इतिहास भरा है छोटे बड़े भांति भांति के जख्मों से मैं तो भुलाना चाहता हूँ मगर वो अपने कहाँ चाहते हैं कि ...मैं भूल जाऊँ जिन्होंने दिये ये घाव बना कर कहानियाँ... और वो चाहेंगे भी क्यों क्योंकि कितना सुख मिलता है उन्हें इन घावों से उठती टीस से कितना मजा मिलता होगा मेरे दिल में व्याप्त कसक से सुना कर वो कहानियाँ.... वे अपने आत्मिक सुख के फेर में सहला सहला कर सूखते घावों को मुस्कुरा मुस्कुरा कर कुरेदते रहतें हैं सहानुभूति के शाल नीचे वे निशानियाँ सुना सुना ...
साकार रूप लेता सपना
कविता

साकार रूप लेता सपना

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** एक दिन मैं यूँ ही सड़क पर गुजर रहा था, रास्ते पर कुछ गिरा पड़ा था, बीमार, भूख-प्यास, से निढाल, सड़क के आध बीच लगा जैसे मेरा स्वप्न पड़ा हो !! एक श्वान था, जीवित किन्तु मरणासन्न स्थिति में! आत्मा सहित अपनी श्वास की तरह समेत लिया स्वयं में!! उस दिन बहुत कुछ गिरा मेरे अस्तित्व से मोह- माया, राग-द्वेष, क्रोध- अहंकार, तमाम संपत्तियां भी मेरे जेब से गिरी थी, मेरी गृहस्थी भी गिरी थी उस दिन!! मेरे पास था नन्हा जीवन जिसकी आंखों में मुझे मेरे सपने दिखाई दे रहे थे, ममता- करुणा, स्नेह से भरे जीवन जीने का स्वप्न! उसी दिन मैंने ईश्वर से ऋग्वेद के चरवाहों की करुणा-स्नेह और संरक्षण मांगा जीवों के जीवन के लिए ! धरती से बस अपने शरीर जितनी जगह मांगी, प्रकृति माँ से हल जितनी शक्ति से जुट स...
विजया दशमी
कविता

विजया दशमी

रतन खंगारोत कलवार रोड झोटवाड़ा (राजस्थान) ******************** सनातन-संस्कृति की रक्षक, यह अखंड धर्म की कहानी है। यह अधर्म पर धर्म की विजय गाथा, यह विजयदशमी पर्व की कहानी है।। नारी का मान है अनमोल, रावण के अहंकार का क्या है तोल। मान-मर्यादा से है जीवन, तभी तो मारा गया दुष्ट रावण।। यह बुराई पर अच्छाई की है जीत, यह अज्ञान पर ज्ञान की है जीत। श्री राम ने अहंकारी रावण को मारा, जैसे सत्य ने असत्य को मारा।। शौर्य-साहस का है गुंजन, युद्ध भूमि में होता है क्रूंदन। नाभि में भी अमृत छुप ना सका, शक्ति से दानव बच न सका।। है रघुवर के वंदन का दिवस, शौर्य-तिलक और शस्त्र पूजन का दिवस। निश्चल प्रीत और सेवा का है दिवस, विजयदशमी है, रावण दहन का दिवस।। परिचय : रतन खंगारोत निवासी : कलवार रोड झोटवाड़ा (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुर...
अजनबी तन्हाई
कविता

अजनबी तन्हाई

डॉ. राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** कौन सा दर्द अपने सीने में छुपाए रखते हो? मुस्कुराहट के पीछे कौन सा गम अपने ह्रदय में दबाए रखते हो? कहते हो तुम लोगों से अक्सर कि मुझे कोई गम नहीं ? फिर इस तन्हाई के आलम में किस से गुफ्तगू का माहौल बनाए रखते हो? सुना है लोगों से कि तुम बहुत बातें करते हो पर आता है नाम मेरा तो क्यों अपने लबों पर खामोशी और आंखों में मुस्कुराहट रखते हो? परिचय :-  डॉ. राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छाया...
ददा के कदर कर लव
आंचलिक बोली, कविता

ददा के कदर कर लव

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** (छत्तीसगढ़ी रचना) जइसे मैं हर थोरकुन रिसहा गोठ कहेंव मोर लइका फुस ले रिसागे, ओखर अक्कल के कोनो तिर घिसागे, दिन भर घर म आबे नइ करय, घर के चुरे भात साग खाबे नइ करय, दिन भर ऐती ओती छुछवावय, मोला देख मुंह अंइठ रिस देखावय, मैं अड़बड़ परेसान, का होही सोच सोच हलकान, के ए हर कब तक बइठ के खाही, अपन जिनगी चलाय बर कब कमाही, अभी के संगी संगवारी ल देखत हे, आघु चल के का होही नइ सरेखत हे, ओखर कइ झन संगी मन घर चलात हे, बिहान होत बुता म लग जात हे, रात दिन के पइसा उड़ाइ ओ दिन सटक गे, जब दु सौ रूपिया कमाय खातिर दिन भर के मेहनत म संहस अटक गे, एके दिन के बुता म कुछु समझ नइ आही, पइसा बचाय अउ उड़ाय के फरक चार महीना कमाय के बाद जान पाही, ददा के जिंयत ले सगरो सुख संसार हे, बाप के सीख ल मान लौ बेटा होव...
अपभ्रंश…
कविता

अपभ्रंश…

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* प्रेम- अद्भुत भ्रम है हम दूर रहकर भी साथ रहते हैं और हम साथ रहते हुए भी अलग रहते हैं। तुम्हारे साथ रहकर भी मैंने अपने भीतर एक अज्ञात शून्य पाया। स्मृतियों की परतों में न जाने कितनी बार हमने संग-साथ रचा- पर समय की कलम ने हर अध्याय को अधूरा ही छोड़ा।। तुम मेरे समीप थे, फिर भी मेरे स्पर्श तक कभी नहीं पहुँचे।। मानो एक पारदर्शी दीवार हमारे मध्य खड़ी थी, जो किसी अक्षर की तरह देखी जाती रही, पढ़ी कभी नहीं। विचित्र है- जीवन की व्याख्या हमने मिलकर लिखी, पर अर्थ अलग- अलग निकाले। और मैं आज सोचता हूँ- क्या प्रेम सचमुच दो आत्माओं का एकाकार होना है? या फिर अलग-अलग आत्माओं का अपने-अपने एकांत को जी भरकर जीने का अवसर? क्योंकि मैंने जाना है, तुम्हारे साथ रहकर भी मैं अप...
जगत पालनहार माँ
कविता

जगत पालनहार माँ

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** शक्ति का स्वरूप हैं माँ हम सब की भक्ति का रूप हैं माँ मुक्ति का धाम हैं माँ हर जीव के जीवन का आधार है माँ !! माँ के नौ रूप निराले करुणा, ममता, मिले अपार दया-प्रेम से सुशोभित है रूप सभी रूप अद्भुत साकार!! विध्वंस किया सब असुरों का ज़न-ज़न का कल्याण किया धरा, गगन, नदियां, उपवन अद्भुत अनुपम उपहार दिया, निज स्वार्थ वश अंधे होकर हमने इनका तिरस्कार किया!! माता की सवारी है सिंह, मयूर, गर्दभ, गजराज, हंस और मृग गजराज, वृषभ और गौ माता सारे जीवो से सजा स्वरूप!! सारे जीवों में जब वास है इनका तब क्यों होता इनका दोहन, इनका भक्षण इनका शोषण?? कैसे हम भक्त कहलाते हैं, कैसी भक्ति, कैसा पूजन??? चहुँ ओर मचा है हाहाकार हर घर मे आया है काल हे माँ तुम ही हो पालनहार करो दया दृ...
इंतजार
कविता

इंतजार

डॉ. राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** अंधेरों को जैसे रोशनी का इंतजार है। नफरत को जैसे मोहब्बत का इंतजार है। बादलों को जैसे बरसने का इंतजार है। राहों को जैसे हमराही का इंतजार है। वृक्षों को जैसे खिलते हुए पत्तों का इंतजार है। सूखी भूमि को जैसे वर्षा का इंतजार है। सावन को जैसे बहारों का इंतजार है। वैसे मुझे तुम्हारा मेरे जीवन में इंतजार है। परिचय :-  डॉ. राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, र...