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छंद

आज ऐसे क्रान्तिकारी चाहिए
गीतिका, छंद

आज ऐसे क्रान्तिकारी चाहिए

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** गीतिका छ्न्द में जो स्वयं कर्तव्य पथ की, साधना को साध लें। आपदा की आँधियों को, मुट्ठियों में बाँध लें। थरथरा उट्ठें कलेजे, नाम सुनकर पाप के। शब्द अपने आप उल्टे, लौट जाएँ शाप के।। क्रूर होकर जो अहं को, खूँटियों पर टाँग दें। हर प्रहर मुर्गे सरीखी, जागने की बाँग दें। जो हृदय इंसानियत के, राग के आगार हों। देश पर हर हाल मिटने, के लिए तैयार हों। वे पुरुष हों या कि नारी, चाहिए इस देश को। आज ऐसे क्रान्तिकारी, चाहिए इस देश को।। दूसरों के मुँह न ताकें, साथियों को साथ दें। जो गिरें उनको उठा लें, हाथ को निज हाथ दें। भारती माँ की न निन्दा, भूलकर भी सह सकें। देख कर बेचैन धरती, खुद न जिन्दा रह सकें । प्रेम को पूजा समझ कर, धर्म को आधार दें। जो हृदय की बीथियों में, व्योम सा विस्तार दें। क्या घृणा क्या...
शक्ति के पर्व पर क्या करें … गीतिका छ्न्द
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शक्ति के पर्व पर क्या करें … गीतिका छ्न्द

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** गीतिका छ्न्द शक्ति का त्यौहार है हम शक्ति का संचय करें। शक्ति के अस्तित्व को हम भक्ति से अक्षय करें।। लक्ष्य क्या उपलक्ष्य क्या है हम प्रथम यह तय करें। ध्यान से चिन्तन करें फिर पन्थ का निर्णय करें।।१।। कर्म को निष्काम सेवा मानकर तन्मय करें। बात अनुभव सिद्ध गहरी है न कुछ संशय करें।। भाग्य का निर्माण करता कर्म है निश्चय करें। धर्म की हर धारणा में कर्म है सविनय करें।।२।। आइए स्वागत सहित संसार से परिचय करें। तामसी व्यवहार‌ छोड़ें दम्भ तज विनिमय करें।। द्वेष त्यागें शुभ हृदय अनुराग का आलय करें। आपसी सम्बन्ध गाढ़े और करुणामय करें।।३।। ज्ञान को उपसर्ग कर लें मान को प्रत्यय करें। स्वयं को जीतें स्वयं से दुष्ट पर फिर जय करें।। बाहुबल रण-योजना कौशल-कला लयमय करें। बुद्धि-बल तन-शक्ति मन-संकल्प का अन...
भारत का कीर्ति नाद
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भारत का कीर्ति नाद

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** ऋषि मुनियों का देश यहाँ पर मेघ सुधा बरसाते। स्वर्ग त्याग देवता कुटी में बसने को ललचाते।। कवियों की यह धरा जहाँ भावना अछल उठती है। यहाँ सृजन के लिए स्वयं लेखनी मचल उठती है।। अविनाशी वह ब्रह्म यहाँ नव लीलाएँ रचता है। ले-ले कर अवतार स्वयं माँ की गोदी भरता है।। नदियाँ गातीं गीत यहाँ हर झरना भजन सुनाता। इसीलिए प्राणों से प्यारी लगती भारत माता।।१।। जिसके बच्चे बचपन से ही रण रचना करते हैं। जबड़े पकड़ बबर सिंहों के दाँत गिना करते हैं।। कच्ची कली खेलती हँसती मर्दानी बन जाती। अबला बाला रण में झाँसी की रानी बन जाती।। मरे हुए पति को जीवित करने को अड़ जातीं हैं। यहाँ नारियाँ सत के बल पर यम से भिड़ जातीं हैं।। यहाँ प्रकृति की हंँसी देखकर मुकुलित मन इतराता। इसीलिए प्राणों से प्यारी लगती भारत म...
महत्व सिंदूर का
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महत्व सिंदूर का

राधेश्याम गोयल "श्याम" कोदरिया महू (म.प्र.) ******************** महत्व सिंदूर का समझ वो सके न कभी, सैलानियों का पूछ धर्म चुन-चुन मार रहे। बार बार खाके मार अक्ल न आई कभी, आतंकी ठिकानो में अब ढूंढ ढूंढ मार रहे। प्रहार सिंदूर का वो सह न सके कभी भी, नंगे, भूखे हरकतें अब, कायराना कर रहे। अब तक बच रहे, अब बच न पाएंगे कभी, सिंदूर का बदला "श्याम" सिंदूर से कर रहे। परिचय :- राधेश्याम गोयल "श्याम" निवासी - कोदरिया महू (म.प्र.) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख...
हिंद वतन आजादी है
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हिंद वतन आजादी है

विजय गुप्ता "मुन्ना" दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** (ताटंक छंद, देश प्रेम) संस्कारों के महा वतन में, कर्म-धर्म आजादी है। बस देश प्रगति की गाथा ही, हिंद वतन आजादी है। पत्ते, डाली, तना, जड़ यात्रा, हरियाली जता रही है। संकल्प से सिद्धि के प्रकल्प, दीवाली दिखा रही है। आजाद राष्ट्र आवाम को, स्वाभिमान सिखा रही है। दिया तले तम साबित करने, बैठे कुछ जल्लादी है। उनको विरोध द्रोह तर्क की, कड़वी दवा पिला दी है। संस्कारों के महा वतन में, कर्म-धर्म आजादी है। बस देश प्रगति की गाथा ही, हिंद वतन आजादी है। दोनों आंख सलामत फिर भी, विकास गर्व नहीं भाता। पर काने अंधे मानव भी, माटी में पर्व मनाता। पड़ोसी गोद में पलते जो, दंभ शान ही दिखलाता। स्वाभिमान भारत दर्शन से, उनको क्या पाबंदी है। सुनो! विश्व सम्मान से भारत, अव्वल पथ आसंदी है। संस्कारों के महा वतन में, कर्म-धर्म आजादी...
चेतावनी
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चेतावनी

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** हर ओर धुँआँ ही धुँआँ मात्र संयोग नहीं, परिणाम निकल कर आए हैं आजादी के। चल पड़ी तोड़ कर अनुशासन यह आबादी, जिस पथ पर पसरे राग बड़ी बर्बादी के।। कहने को कुछ भी कहो आपकी मर्जी है, शायद कुछ भाग्य उदित हों अवसरवादी के। पर हम सचेत करते हैं तुम को यह कहकर, ये लक्षण हैं उन्मादी और फसादी के।। यूँ स्वतन्त्रता का अर्थ नहीं स्वच्छन्द रहो, जीवन संयम के साथ बिताना जीवन है। खुद पर कानूनों नियमों का अंकुश न रखा, तो पराधीन बाहों में जाना जीवन है।। सुनने में कड़ुआ लगे-लगे तो लग जाए, जनता के हक का हरण, बहाना जीवन है। चल रहीं चालबाजियाँ उधर अपने हित में, युग के सुधार का नाम निशाना जीवन है।। नीतियाँ अधमरीं पड़ीं स्वार्थ के वशीभूत, इस त्याग भूमि पर क्या जाने क्या हवा चली। भर लिए खजाने लोगों ने कर लूटमार,...
विश्व जल दिवस पर चौपाई-छंद
चौपाई, छंद

विश्व जल दिवस पर चौपाई-छंद

धर्मेन्द्र कुमार श्रवण साहू बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** आज विश्व जल दिवस मनाओ, सब जनता को यह परखाओ। अब जन जागरूकता लाओ, गली खोर अभियान चलाओ।। जल बिन मछली तड़पे कैसे, प्राण वायु बिन मरते जैसे। एक बूँद का कीमत जानो, कितना महत्व इसको मानो।। आओ प्यारे सब मिल गाओ, बचाने का संकल्प उठाओ। अब जन जागरूक हो जाओ, जल संरक्षण मिशाल लाओ।। पानी के बिन यह जग सूना, जीव जंतु है प्रकृति नमूना। बेकार की अब इसे न बहाओ, आसपास को स्वच्छ बनाओ।। जल बचाव का नियम बनाओ, जल-जंगल-जमीन महकाओ। पेड़ लगाकर छाया पाओ, खुशहाली जीवन हर्षाओ।। जल बिन सावन भादो कैसा, धरा तृषित अनावृष्टि जैसा। धरती मैय्या हरियाली पाओ, पानी बचाने घर-घर समझाओ।। *श्रवण* मनन कर लिख चौपाई, जल ही जीवन समझो भाई। हँसी खुशी महोत्सव मनाओ, अब प्रतिज्ञाबद्ध हो जाओ।। परिचय :- धर्मेन्द्र कुमार श...
होली फागुन का त्योहार
गीत, छंद

होली फागुन का त्योहार

राधेश्याम गोयल "श्याम" कोदरिया महू (म.प्र.) ******************** होली- छंद होली फागुन का त्योहार, फागुन आवे रंग जमावे चलत बसंती बयार........ होली फागुन का..... पतझरे पेड़ पल्लवित हो रहे, बागों में फूल प्रफुल्लित हो रहे। महुए मद में रहे गदराए, आई अमराई में बहार........ होली फागुन का...... सरसों पीली फूल रही है, गेहूं की बाली झूल रही है। लाली पलास की मन को मोहे, किया सृष्टि ने श्रंगार........ होली फागुन का....... नव यौवन मन में हरशावे, होली को आनंद मनावे। एक दूजे पर रंग डाल, करे खुशियों का इजहार........ होली फागुन का....... पेड़ों को कटने से बचाए, पर्यावरण को स्वच्छ बनाए। डाल बुराई सब होली में, जलाएं होली अबकी बार......... होली फागुन का त्योहार फागुन आवे रंग जमावे चलत बसंती बयार। होली फागुन का त्योहार। परिचय :- राधेश्याम गोयल "श्याम" निवासी - कोदरिया म...
श्याम करी बरजोरी
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श्याम करी बरजोरी

राधेश्याम गोयल "श्याम" कोदरिया महू (म.प्र.) ******************** होली- छंद होरी पे श्याम करी बरजोरी, बहियां मोरी झटकी चुनर रंग बोरी। मैं बोली की श्याम करो न ठिठोली, अंगिया संग भीग गई मेरी चोली। वो बोले प्रिये अब होली सो होली, मन काहे मलाल करो हमजोली। गर बीत गए दिन यूं ही रंगीले तो, अगले बरस फिर आएगी होली। रंग डार के आज भिगोए गयो, अंग मसक गयो सखी मोर अनारी। मुख लाल गुलाल लगाय गयो, मोरी फारी गयो सखी पचरंग सारी। फाग में आग लगाय गयो, ऐसी नैनन मार गयो वो कटारी। मो संग नेह बढ़ाई गयो सखी, मारी के श्याम प्रित पिचकारी। परिचय :- राधेश्याम गोयल "श्याम" निवासी - कोदरिया महू (म.प्र.) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अ...
मातु शारदे
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मातु शारदे

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** सरसी छंद (१६, ११) मातु शारदे मैया मेरी, देती मन को जान। शीश हाथ पर उसका मेरे, बढ़ता मेरा ज्ञान।। सच्चाई के पथ चलने की, देती हमको सीख। निज के श्रम से सब मिलता है, दे ना कोई भीख। मानवता का पथ ही आगे, करता नव निर्माण। सुख सुविधाएँ बढ़ती जाती, होता सबका त्राण। माना मैं मूरख अज्ञानी, इसमें क्या है दोष। कभी कहाँ मुझको आता है, इस पर कोई रोष। दूर करेगी हर दुविधा माँ, इसका मुझको बोध। जिसको भी चिंता करना है, वो ही कर लें शोध।। ज्ञान ज्योति माँ सदा जलाती, नित नित देती ज्ञान। समझ रही है मैया मेरी, मैं मूरख अंजान। कालिदास मूरख को भी तो, बना दिया विद्वान । घटा मान विद्योतमा का, सभी रहे हैं जान।। दंभी रावण की मति फेरी, उसका हुआ विनाश। और विभीषण को मैया पर, था पूरा विश्वास। कंस और श्री कृष्ण कथा ...
शक्ति का त्यौहार
गीतिका, छंद

शक्ति का त्यौहार

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** गीतिका छ्न्द शक्ति का त्यौहार है हम शक्ति का संचय करें। शक्ति के अस्तित्व को हम भक्ति से अक्षय करें।। लक्ष्य क्या उपलक्ष्य क्या है हम प्रथम यह तय करें। ध्यान रखकर शुभ-अशुभ का पन्थ का निर्णय करें।। साधना का एक ही यह मूल है निश्चय करें। कर्म को निष्काम सेवा मानकर तन्मय करें।। बात अनुभव सिद्ध गहरी है न कुछ संशय करें। धर्म की बस धारणा हर कर्म है निर्भय करें।। आइए स्वागत सहित संसार से परिचय करें। तामसी व्यवहार‌ को सब दम्भ तज विनिमय करें।। द्वेष त्यागें शुभ हृदय अनुराग का आलय करें। आपसी सम्बन्ध गाढ़े और करुणामय करें।। आइए करबद्ध परहित के लिए अनुनय करें। पुण्य को बोएँ परस्पर पापियों का क्षय करें।। देश दुर्गुण से बचे अच्छाइयांँ अतिशय करें। विश्व का कल्याण करते "प्राण"‌ ज्योतिर्मय करें।। प...
गोष्ठी बुखार
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गोष्ठी बुखार

विजय गुप्ता "मुन्ना" दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** एक काव्य गोष्ठी में पिछले दिनों एक कवि मुख से उच्चारित हुआ, गोष्ठी से कुछ बुखार कम हो जाता है। विजय गुप्ता ने इस भाव को काव्य सूत्र में ताटंक छंद विधा में सृजित किया। कवि लेखक अपने चिंतन से, चाल चलन दरशाता है संभव समर्थ समाधान तक, कलम खूब चलवाता है। जनता सत्ता आइना देखे, साधक बनकर गाता है। फिर गोष्ठी हलचल होने में, बुखार कम वो पाता है। कवित्व गुण का आधार यही, कई विधा का संगम हो। सृजन सेवा साधना तीर, से कुपथ्य का निर्गम हो। विवाद आंकड़े बने जमघट, कई वर्ग से उदगम हो। दशा दिशा के नेक तर्क में, फूहड़ बोली आलम हो। कविता धारा अब बहे कहां, उत्थान जहां गिराता है। कहने सुनने युग गुजर चुका, काव्य शोर मचाता है। कवि लेखक अपने चिंतन से, चाल चलन दरशाता है। संभव समर्थ समाधान तक, कलम खूब चलवाता है। आचार्यद्रोण शिक्षा समान, अल...
पहले मतदान … फिर जलपान
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पहले मतदान … फिर जलपान

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** सरसी छन्द **** देखो तो चुनाव है आया, करें सभी मतदान। पहले अपना कर्म निभाएँ, फिर ही हो जलपान।। ******* अब चुनाव तो पावन आया, जाएँ सब ही जाग। रखना सबको वोटिँग के प्रति, सतत गहन अनुराग।। ********* निर्वाचन का शंख बजा है, बेशक़ीमती वोट। अपना कर्म नहीं कर पाए, तो ख़ुद पर ही चोट।। *********** चलो उठो सबको है जाना, बुला रहा मतदान। अपना वोट सही को देंगे, करें पूर्ण अरमान।। ******** सबको ही तो फर्ज़ निभाना, लेकर के उल्लास। तभी सभी की निश्चित होगी, मन की पूरी आस।। ******** मम्मी-पापा को करना है, अब की फिर मतदान। दर्ज़ हो गए जो सूची में, उनका हो जयगान।। ********* युवा,प्रौढ़ सारे नर-नारी, करें सुपावन कर्म। लोकतंत्र ताक़त पायेगा, वोट बना है धर्म।। ******* आलस्य को सारे ही त्यागें, बूथ नहीं है दूर। शत-प्रतिशत ...
होली … होली … होली …
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होली … होली … होली …

लक्ष्मीकांत "कमलनयन" सुल्तानपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** होली होली होली आज हो ली प्रसन्न मन, अगले बरस फिर प्यार बरसायेगी। जीवन में रंग भर मन में उमंग नव, नित ही तरंग ले बहार बन जायेगी।। गायेगी मल्हार फिर जन गण मन हित, रंग भंग संग बंधु गुझिया खिलायेगी। "कमलनयन" आश,छाये नित मधुमास, छंद बंद कवियों से गीत लिखवायेगी।। परिचय :-  लक्ष्मीकांत "कमलनयन" निवासी : सुल्तानपुर (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, ले...
सोरठा छंद- माघ-स्नान वृत
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सोरठा छंद- माघ-स्नान वृत

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** पावन बहुत प्रयाग, चलो करें वंदन अभी। गुंजित सुखमय राग, रहें हर्षमय हम सभी।। कितना चोखा मास, कहते जिसको माघ हम। जीवित रखता आस, हर लेता हर ओर तम।। तीर्थ सुपावन नित्य, माघ माह की जय करो। खिल जाये आदित्य, सदा नेहमय लय वरो।। गंगा में हो स्नान, जीव करे यश का वरण। मिलता नित उत्थान, तीर्थराज में जब चरण।। देता माघ सुताप, गंगा माँ की जय करो। करो तेज का माप, पापों का सब क्षय करो।। करना चोखे काम, कहे माघ का माह नित। पूजन सुबहोशाम, करता सबका नित्य हित।। देती है आलोक, माघ माह की चेतना। परे करे सब शोक, हर लेती सब वेदना।। गाओ मंगलगीत, माघ माह कहता हमें। प्रभु बन जाएँ मीत, सुमिरन करना नाथ को।। जीवन हो आसान, छँट जाता सारा तिमिर। बढ़े भक्त का मान, बस जाता पावन शिविर।। गंगाजल की शान, कहता शब्द प्रयाग नित।...
नर्सेस
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नर्सेस

रेखा कापसे "होशंगाबादी" होशंगाबाद (मध्य प्रदेश) ******************** आधार- हरिगीतिका छंद दीदी कहो सिस्टर कहो, या नाम दो परिचारिका। है नेक मन की भावना, जीवन समर्पित राधिका।। कहते इसी को नर्स भी, अब नाम आफीसर मिला। सम्मान से आह्लाद में, मुख दिव्य सा उपवन खिला।। सेवा बसी मन साधना, नित याचिका स्वीकारती। अपनी क्षुधा को मार के, वो मर्ज सबका तारती।। गोली दवाई बाँट के, नाड़ी सुगति लय साधती। मेधा चिकित्सक स्वास्थ्य के, ये रीढ़ के सुत बाँधती।। परिचारिका मन भाव से, सेवा सुधा मय घूँट दे । निज स्वार्थ को वह त्याग कर, परमार्थ का ही खूट दे।। ये दौर कितना है कठिन, नित काम ही है साधना। दिन रात का मत बोध है, बस मुस्कराहट कामना।। आओ करे शत् - शत् नमन, सेवा समर्पित भाव को। सम्मान से बोले वचन, नि:स्वार्थ कर्मठ नाव को।। पर रोग के उपचार में यह नींद अपनी त्याग दे। समत...
गोरैया (अवतार छंद )
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गोरैया (अवतार छंद )

शुचिता अग्रवाल 'शुचिसंदीप' तिनसुकिया (असम) ******************** अवतार छंद विधान अवतार छंद २३ मात्रा प्रति पद की सम मात्रिक छंद है। यह १३ और १० मात्रा के दो यति खंड में विभक्त रहती है। दो-दो या चारों पद समतुकांत होते हैं। इसका मात्रा विन्यास निम्न है- २ २२२२ १२, २ ३ २१२ चूंकि यह मात्रिक छंद है अतः २ को ११ में तोड़ा जा सकता है, किंतु आदि द्विकल एवं अंत २१२ (रगण) अनिवार्य है। अठकल के नियम अनुपालनिय है। फुर फुर गोरैया उड़े, मदमस्त सी लगे। चीं चीं चीं का शोर कर, नित भोर वो जगे।। मृदु गीत सुनाती लहे, वो पवन सी बहे। तुम दे दो दाना मुझे, वो चहकती कहे।। चितकबरा तन, पर घने, लघु फुदक सोहती। अनुपम पतली चोंच से, जन हृदय मोहती।। छत, नभ, मुँडेर नापती, नव जोश से भरी। है धैर्य, शौर्य से गढ़ी, बेजोड़ सुंदरी।। ले आती तृण, कुश उठा, हो निडर भीड़ में। है कार्यकुशलता भरी, निर्माण नीड़ में।। म...
हरिगीतिका छन्द
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हरिगीतिका छन्द

डॉ. भावना सावलिया हरमडिया, राजकोट (गुजरात) ******************** हरिगीतिका छन्द हे माँ भवानी ! हम खड़े कबसे, तुम्हारे धाम हैं। हे शक्ति रूपा नित्य रटते, नाम आठों याम हैं। आए शरण जो आस लेकर, पूर्ण करती काम हैं । हम भूल सकते एक पल भी, कब तुम्हारा नाम हैं।। माँ कर कृपा इतनी हृदय से, द्वेष ईर्ष्या दूर हो। मंगल महकते भाव मन में, चेतना भरपूर हो। हुंकार माँ ऐसी भरो सब, आलसी जन शूर हों। मन के तिमिर सब दूर होकर, सूर्य-सा नित नूर हो।। वाणी मधुर हम बोल कर मन, में अमिय रस घोल दें। इतनी कृपा कर दो कि दिल के, द्वार सबके खोल दें। माँ दो अभय वरदान हमको, सत्य सबसे बोल दें। हम सत्य के पथ पर चलें यह, साधना अनमोल दें।। परिचय :- डॉ. भावना नानजीभाई सावलिया माता : वनिता बहन नानजीभाई सावलिया पिता : नानजीभाई टपुभाई सावलिया जन्म तिथि : ३ अप्रैल १९७३ निवास : हरमडिया, राजकोट सौराष्ट्र (गु...
हिन्दी लावणी छंद
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हिन्दी लावणी छंद

शुचिता अग्रवाल 'शुचिसंदीप' तिनसुकिया (असम) ******************** भावों के उपवन में हिन्दी, पुष्प समान सरसती है। निज परिचय गौरव की द्योतक, रग-रग में जो बसती है।। सरस, सुबोध, सुकोमल, सुंदर, हिन्दी भाषा होती है। जग अर्णव भाषाओं का पर, हिन्दी अपनी मोती है।। प्रथम शब्द रसना पर जो था, वो हिन्दी में तुतलाया। हँसना, रोना, प्रेम, दया, दुख, हिन्दी में खेला खाया।। अँग्रेजी में पढ़-पढ़ हारे, समझा हिन्दी में मन ने। फिर भी जाने क्यूँ हिन्दी को, बिसराया भारत जन ने।। देश धर्म से नाता तोड़ा, जिसने निज भाषा छोड़ी। हैं अपराधी भारत माँ के, जिनने मर्यादा तोड़ी।। है अखंड भारत की शोभा, सबल पुनीत इरादों की। हिन्दी संवादों की भाषा, मत समझो अनुवादों की।। ये सद्ग्रन्थों की जननी है, शुचि साहित्य स्त्रोत झरना। विस्तृत इस भंडार कुंड को, हमको रहते है भरना।। जो पाश्चात्य दौड़ में दौड़े, दय...
तुम्हारा अद्भुत है संसार … महाश्रृंगार छन्द में
छंद

तुम्हारा अद्भुत है संसार … महाश्रृंगार छन्द में

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** महाश्रृंगार छन्द कहीं पर कितने पहरेदार, कहीं पर एक न चौकीदार। कहीं पर वीरों की हुंकार, कहीं का कायर है सरदार।। कहीं पर बूँद नहीं सरकार, कहीं जलधार मूसलाधार। कहीं पर खुशियों की बौछार, कहीं पर दुख के जलद हजार।। कहीं पर अँधियारे की मार, कहीं पर उजियारा आगार। कहीं पर गरमी है गरियार, कहीं पर सर्दी का संहार।। बदलते मौसम बारम्बार, देख कर लीला अपरम्पार। कह उठा मन यह आखिरकार, तुम्हारा अद्भुत है संसार।।१।। किसी का वेतन साठ हजार, किसी को मिलती नहीं पगार। किसी के भरे हुए भण्डार, किसी का उदर बिना आहार।। किसी को सौंपी शक्ति अपार, किसी का अंग-अंग बीमार। किसी को मिले अकट अधिकार, किसी का जीवन ही धिक्कार किसी की नाव बिना पतवार, किसी के हाथ बने हथियार। किसी का सत्य बना आधार, किसी का झूठ पा रहा सार।। ...
द्रुतविलम्बित छंद-वर्णिक छंद
छंद

द्रुतविलम्बित छंद-वर्णिक छंद

ज्ञानेन्द्र पाण्डेय "अवधी-मधुरस" अमेठी (उत्तर प्रदेश) ******************** द्रुतविलम्बित छंद-वर्णिक छंद (समवृत्तिक (दो-दो चरण-समतुकान्त)- नगण+भगण-भगण+रगण-१२ वर्ण) (ॐ स शनये नम : !) शनि सुनो विनती हर लो दुखा। कर कृपा हिय में भर दो सुखा।। तनु श्याम कुदृष्टि भयंकरा। नसत बुद्धि, विवेक सभी हरा।। मति हरी जिसकी उ नहीं बचा। तनय अर्क उसे त रहे नचा।। फलत कर्म यमी अनुसार ही। मिलत दण्ड भरे कुविचार ही।। शनि प्रसन्न, रहे न महादशा। कठिन राह सभी रहते गशा।। अभय देकर दान बता रहे। कलुष कल्मष खेह सभी बहे।। चढ़त तेल करू जल बीच है। शनि दिना जब पिप्पल सिंच है।। कटत दु:ख अपार न संशया। शनि प्रभो जबहीं करते दया।। सुखद जीवन मंद नहीं पड़े। भज चलो शनि देव रहें खड़े।। सकल सूरत में भल कुरूप हैं। सफल न्यायिक-दाण्डिक रूप हैं।। परिचय :-  ज्ञानेन्द्र पाण्डेय "अवधी-मधुरस" निवासी...
अतीक का अन्त (वीर छ्न्द में आल्हा)
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अतीक का अन्त (वीर छ्न्द में आल्हा)

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** (वीर छ्न्द में आल्हा) अतीक का अन्त जिस प्रयाग की कुम्भ भूमि को, करते थे दो नर बदनाम। रूह काँप उट्ठेगी सुनकर, उनके कर्मों का अंजाम।।१।। जिस फिरोज अहमद का इक्का, रुक जाता था देख ढलान। इसी शख्स की औलादों ने, पाप बाँध कर भरी उड़ान।।२।। जैसी करनी वैसी भरनी, फसलें वैसी जैसे बीज। जैसी कुर्सी वैसी बैठक, जैसी सूरत वैसी खीज।।३।। प्रलयंकारी अत्याचारी, दुखदाई वरदान प्रतीक। दोनों विकट सहोदर युग के, नेता अशरफ और अतीक।।४।। अपराधी बन गए सांसद, और विधायक दोनों डान। था दुर्भाग्य देश का कैसा, दोनों भाई काल समान।।५।। मगर समय ने पलटी मारी, धरती हिली हिला आकाश। दोनों ने ही खुद कर डाला, खुद के घर का सत्यानाश।।६।। लूटमार रँगदारी ओछी, राजनीति छल से भरपूर। काम न आई ज़ब्त हो गई, पाप सनी सम्पदा...
हनुमत्कृपा
छंद

हनुमत्कृपा

प्रेम नारायण मेहरोत्रा जानकीपुरम (लखनऊ) ******************** अगर पाया झुका तू सिर, तो हनुमत रीझ जाएंगे। तेरी भक्ति का फल परिवार, कुल सब लोग पाएंगे। अगर पाया झुका .... बहुत ही सरल है हनुमत, तुझे बस शरण आना है। मिटाकर भाव कर्ता का, निमित बस बनते जा है। तेरी कष्टों से रक्षा कर, लाज अपनी बचाएंगे। अगर पाया झुका ... विभीषण ने किया सहयोग, तो स्वामी से मिलवाया। ज्यों ही आया शरण मे, तो तुरत लंकेश बनवाया। जो गुण धारण को आतुर हो, उसे खुद सा बनाएंगे। अगर पाया झुका .... समर्पण और सेवा भाव के, पर्याय हैं हनुमत। पकड़ पाए कोई चरणों को, तो हो जाते हैं सहमत। जो भी निष्काम भक्ति, कर सके, मुक्ति दिलाएंगे। अगर पाया झुका ... परिचय :- प्रेम नारायण मेहरोत्रा निवास : जानकीपुरम (लखनऊ) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी ...
गगन गोचर देव प्रचंड हैं
छंद

गगन गोचर देव प्रचंड हैं

ज्ञानेन्द्र पाण्डेय "अवधी-मधुरस" अमेठी (उत्तर प्रदेश) ******************** द्रुतविलम्बित छंद-वर्णिक छंद समवृत्तिक (दो-दो चरण- समतुकान्त)- नगण+भगण-भगण+रगण- १२वर्ण ॐस रवये नम : गगन गोचर देव प्रचंड हैं । प्रसरते चहुँ रश्मि अखंड हैं ।। परम ज्योति अलौकिक धन्य है । सुखद चारु सरूप सुरम्य है ।। जगत भासित है तुमसे शुभी । निरत रहते ना रुकते कभी ।। जपत जे प्रभु भानु हँ नित्य हैं । भरत ते धन-धान्य सुकृत्य हैं ।। अदिति पुत्र प्रभो तम नाशिकी । रवि अहस्कर तेजस मानकी ।। इसलिए इनको कहते चहूँ । कनक रूप धरे दिखते दहूँ ।। निशि-दिना जगते सुप्रभास हैं । जगत के इक सुन्दर आस हैं ।। अरुणि सारथि हाँकत स्यंदना । करत देव जती सब वंदना ।। दिखत अद्भुत दृश्य मनोहरा । अरुणिमा बिखरे जब भास्कर ।। जयति भानु विकर्तन देवता । प्रथम पूज्य अर्क विभेदता ।। परिचय :-  ज्ञानेन्द्र पाण्ड...
प्रथम पूज्य गणराज
कुण्डलियाँ, छंद

प्रथम पूज्य गणराज

रामसाय श्रीवास "राम" किरारी बाराद्वार (छत्तीसगढ़) ******************** कुण्डलियाॅं छंद गणपति बप्पा मोरया, प्रथम पूज्य गणराज। प्रथम नमन है आपको, पूरण करिए काज।। पूरण करिए काज, सभी सुख के तुम दाता। तुम हो कृपा निधान, जन्म-जन्मो से नाता।। कहे राम कवि राय, गणों के तुम हो अधिपति। हरिए सकल विकार, हमारे बप्पा गणपति।। वंदन गणपति का करें, और धरें उर ध्यान। इनके शुभ आशीष से, मिलता है सद्ज्ञान।। मिलता है सद्ज्ञान, देव हैं परम कृपाला। गज मस्तक हैं नाथ, धरे हैं देह विशाला।। कहे राम कवि राय, करें इनका अभिनंदन। गूॅंज रहा जयकार, जगत करता है वंदन।। परिचय :- रामसाय श्रीवास "राम" निवासी : किरारी बाराद्वार, त.- सक्ती, जिला- जांजगीर चाम्पा (छत्तीसगढ़) रूचि : गीत, कविता इत्यादि लेखन घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी...