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प्रीत में डूबी

भारमल गर्ग
जालोर (राजस्थान)
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नटनी नटखट आज बनी, बंजारन रूप ।
राह चलते तकती, उसी गुलाब का फूल ।।

जीवन पथ में मिलता, सदा सदा यह हुक ।
रातों में रचती सपने, प्रेम यह पहली भूख ।।

मन मंदिर में यह पूजा प्रीत लगाई आज ।
कल्पना में बह कर, भूल गई राह काज ।।

बात बातों से ही रातें, करती रंगीन भोर ।
इन यादों के राह में रोड़े पढ़ता बैठा मोर ।।

उड़ान भरी मन ने, जा पहुंचा बाजार ।
प्रीत में डूबी बंजारन, खरीदे गले हार ।।

राधा जैसा रूप उसका, मन की लाग ।
गाती चिड़िया देखो, उसी वन में राग ।।

जान है पहचान की, यह मन डोले मीत ।
देकर पुष्प आया हूं, उसी तीर नदी नीर ।।

चला हूं उस पथ पर चले ना राग विचार ।
बंजारन को सांसों की सौप दी पतवार ।।

मिलना – मिलाना चाहिए जीवन की धार ।
कर्म करुणा के काज में उल्टा गर्ग अपार ।।

परिचय :- भारमल गर्ग
निवासी :
सांचौर जालोर (राजस्थान)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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