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कभी नदियों में

मुस्कान कुमारी
गोपालगंज (बिहार)
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कभी नदियों में छलछलाहट थी
चिडियो की चहचहाट थी
चुड़िओ में खनखानाहट थी
पेड़ो में सनसनाहट थी
आज सब शांत दिख रहा
क्योंकि मनुष्य खुद के बारे में सोचकर
खुद का ही नाश कर रहा।

कभी रास्तों पे भीड़ थी
अपनो से मिलना था
नई संस्कृति का चलन था
कॉरोना ने सब सिखला दिया
पुरानी संस्कृति को याद दिला दिया।

परिंदे आज आजाद हुए
इंसान घरों में कैद हुए
देश पूरा शमशान हुआ
ऑक्सीजन की किल्लत हुई तो
पेड़ पौधों को लगाए और बचाए
पहले से नहीं थी चिंता
अब जल रही है चिता।

गलती हुई इंसानों से
निकल रहा उसका परिणाम
अब गलती को सुधार भी लो
एक पेड़ अब भी जरूर लगाओ
प्रकृति के साथ खिलवाड़ नहीं।

समस्या बड़ी है गलती भी बड़ी ही हुई है
लेकिन ये भी एक वक्त है
गुजर ही जायेगा
जब खुशी के पल न ठहरे
तो ये भी धीरे-धीरे निकल ही जायेगा।
घर में रहे, स्वस्थ रहे।

परिचय :- मुस्कान कुमारी
निवासी : गोपालगंज (बिहार)
शिक्षा : इंटर सेकेंडरी, सेंट्रल हिंदू गर्ल्स स्कूल वाराणसी

घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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