किसने कब सोचा था
विजय गुप्ता "मुन्ना"
दुर्ग (छत्तीसगढ़)
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नियमों की अनदेखी से वज्रपात किसने कब सोचा था।
घर से लेकर शाला तक सड़क नियम बताना लोचा था।
कितनी शिद्दत चाहत से नव-पीढ़ी आती है सड़कों पर।
करते अरमान सुरक्षित भविष्य भी अति सुंदर चलकर।
घर शाला से सत्ता शासन सब नियम से लेता लोहा था।
सुनने सीखने मिली उमर में जीवन से मानो सौदा था।
फजीहत राह घटित आंसू हरेक छोटे बड़े ने पोंछा था।
नियमों की अनदेखी से वज्रपात किसने कब सोचा था।
घर से लेकर शाला तक सड़क नियम बताना लोचा था।
ये भारत देश यहां बाएं से ही चलना प्रथम जरूरी हो।
उल्टे चलते बूढों बच्चों बड़ों की लत क्यों मजबूरी हो।
खुद की जान मिटेगी और बेकसूर अकारण खोना था।
राष्ट्र विकास की राह चले मगर गलतियों का रोना था।
वाहन चालन वक्त भटके प्रसंग में दिमाग ही ढोना था।
नियमों की अनदेखी से वज्रपात किसने कब सोचा था।
घर से लेकर शाल...

