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मुझे तुम भूल जाना …

शिवदत्त डोंगरे
पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश)
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साथ देखा था कभी जो एक तारा
आज भी अपनी डगर का वो सहारा
आज भी हैं देखते हम तुम उसे पर
है हमारे बीच गहरी अश्रु-धारा
नाव चिर जर्जर नहीं पतवार कर में
किस तरह फिर हो तुम्हारे पास आना।
भूल पाओ तो मुझे तुम भूल जाना!

सोच लेना पंथ भूला एक राही
लख तुम्हारे हाथ में लख की सुराही
एक मधु की बूँद पाने के लिए बस
रुक गया था भूल जीवन की दिशा ही
आज फिर पथ ने पुकारा जा रहा वह
कौन जाने अब कहाँ पर हो ठिकाना।
भूल पाओ तो मुझे तुम भूल जाना!

चाहता है कौन अपना स्वप्न टूटे?
चाहता है कौन पथ का साथ छूटे?
रूप की अठखेलियाँ किसको न भातीं?
चाहता है कौन मन का मीत रूठे?
छूटता है साथ सपने टूटते पर
क्योंकि दुश्मन प्रेमियों का है ज़माना।
भूल पाओ तो मुझे तुम भूल जाना!

यदि कभी हम फिर मिले जीवन-डगर पर
मैं लिए आँसू, लिए तुम हास मनहर
बोलना चाहो नहीं तो बोलना मत
देख लेना किंतु मेरी ओर क्षण भर
क्योंकि मेरी राह की मंज़िल तुम्हीं हो
और जीने का तुम्हीं तो हो बहाना।
भूल पाओ तो मुझे तुम भूल जाना!

साँझ जब दीपक जलाएगी गगन में
रात जब सपने सजाएगी नयन में
पी कहाँ जब-जब पुकारेगा पपीहा
मुस्कुराएगी कली जब-जब चमन में
मैं तुम्हारी याद कर रोता रहूँगा
किंतु मेरी याद कर तुम मुस्कुराना।
भूल पाओ तो मुझे तुम भूल जाना!

भूल जाना किस तरह संग-संग तुम्हारे
छाँह बन कर मैं रहा संध्या-सकारे
सोचना मत किस तरह मैं जी रहा हूँ
चल रहा हूँ किस तरह सुधि के सहारे
किंतु इतनी भीख तुमसे माँगता हूँ
यदि सुनो यह गीत इसको गुनगुनाना।
भूल पाओ तो मुझे तुम भूल जाना!

परिचय :- शिवदत्त डोंगरे (भूतपूर्व सैनिक)
पिता : देवदत डोंगरे
जन्म : २० फरवरी
निवासी : पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश)
सम्मान : राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर द्वारा “समाजसेवी अंतर्राष्ट्रीय सम्मान २०२४” से सम्मानित
घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है।


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