गड्ढे की छलांग (ताटंक)
विजय गुप्ता "मुन्ना"
दुर्ग (छत्तीसगढ़)
********************
गड्ढे खोदने लोग लगे थे, हम छलांग के मीत भए।
दुविधा भेदन की दुनिया में, सुविधा लाना सीख गए।
साहस मेहनत छलांग धरो, अपनी क्षमता बढ़ जाती।
बुरा दूसरों का किए बिना, लक्ष्य भेदना सिखलाती।
अनुभव बिन उद्योग संचालन, नई राह में लीन हुए।
अब शोख शर्मीला बच्चा कहे, दुनियादारी जीत गए।
गड्ढे खोदने लोग लगे थे, हम छलांग के मीत भए।
दुविधा भेदन की दुनिया में, सुविधा लाना सीख गए।
गड्ढा खोदने में जो तल्लीन, उनके पास समय कम हो।
बाधक बनने में खो देते, जो संस्कार जरूरी हो।
उनके घर की कलह कहानी, यत्र-तत्र गम गीत नए।
बचपन से रहे कलंक ग्रस्त, अब ज्यादा ही दीन हुए।
गड्ढे खोदने लोग लगे थे, हम छलांग के मीत भए।
दुविधा भेदन की दुनिया में, सुविधा लाना सीख गए।
स्पर्धा कारोबार के स्वामी, भाग्य से बहुत कमाते।
हमने सुने कुछ ऐसे बोल, वो सोना चना...






















