Friday, May 10राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

आंचलिक बोली

“सिरतोन म संस्कार नंदा जाही का”
आंचलिक बोली, कविता

“सिरतोन म संस्कार नंदा जाही का”

खुमान सिंह भाट रमतरा, बालोद, (छत्तीसगढ़) ******************** छत्तीसगढ़ी बिटिया रानी महतारी ले कहिथे दाई तै तो बड भागी हो गेस वो अपन जिगर के टुकड़ा ल दुरिहा डारें, तोर मया मोर बर थोरकुन नई पल पलईस सुने हव महतारी बर लईका मन आंखी के तारा होथे फेर देखत हव मैय तो नामे हव मोर संजोए सपना म पानी फेर दे बड दिन ले मोरों एक ठन आस रीहिस सुने हव महतारी मन लईका ऊपर कोनो आंच नई आवन दे फेर ये कईसन टाईप ले लापरवाही ? महु ल तो घालो एक बार अपन छाति ले ओधा लेतेस, अऊ खंधेडीं म बिठाके धुमा लैय आतेस वो दुरूग अऊ भिलाई फेर नई ...! तहु ह दुनिया बर एक झन मिसाल बन गे वो अपने लईका के मुंह म पेरा गोंजे अऊ आनी-बानी के जिनिस चबरहा कुकर ल खावाए देखेव तोर मया ल मोर मन कलप जथे वो सिरतोन म घर अऊ परिवार दुरिहाय खातिर तैय तो बड़े जन उदिम निकाल डरें ... परिचय :- खुमान सिंह भाट पिता : श्री पुनि...
पित्तर
आंचलिक बोली, कविता

पित्तर

परमानंद सिवना "परमा" बलौद (छत्तीसगढ) ******************** जियत ले दाई ददा ला पानी बर तरसाये, मरे मा पित्तर मनावत हस, बरा सुहारी खुरमी बनाके, काउआ ला तै खिलावत हस ! वा रे जमाना ते काउआ ला ददा बनावत हस ! जनमदिस परवरिश करिस तेला ते बुल जावत हस, जइसे करबे वइसे पाबे यही कहानी बनावत हस ! वा रे जमाना ते काउआ ला ददा बनावत हस ! जियत ले ते रोज लडे, काली अइस ते बाई के चक्कर मा आये, दाई ददा के खाना पीना ला बंद कराय पापी में तुहु अब गिन्ती आये ! जियत ले खाये बर तरसाय मरे मा गांव गांव ला नेवता देवत हस, वोकरे धन संपत्ति ला रख के होशियारी देखावत हस.! वा रे जमाना ते काउआ ला ददा बनावत हस.! परिचय :- परमानंद सिवना "परमा" निवासी : मडियाकट्टा डौन्डी लोहारा जिला- बालोद (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्...
नादिया बइला के तिहार
आंचलिक बोली

नादिया बइला के तिहार

परमानंद सिवना "परमा" बलौद (छत्तीसगढ) ******************** छत्तीसगढ़ी कविता खेती-किसानी किसनहा के तिहार ये, छत्तीसगढ़ मा नादिया बइला के तिहार हे ! जम्मो ढीह डेवहारिन मा नादिया बइला चघाये, हुम धुम ले जम्मो देवता धामी ला प्रसन्न कराये ! पोरा जाता नादिया बइला के पुजा करथे जम्मो किसान हा, बरा सुहारी के भोग लगाथे, अउ गांव-गांव आनी बानी के खेल कराथे ! पोरा जाता नोनी खेले, बाबु टुरा नादिया बइला सन खेले, बुढ़वा जवान गेड़ी जागे, दाई वोला मुच मुच मुसकाये ! पोरा तिहार के बिहानदिन तेल हरदी रोटी गांव भर के सकलाये, नार बोर कहिके जम्मो गेड़ी ला गांव के निइकलती मा छोड़ आये !! परिचय :- परमानंद सिवना "परमा" निवासी : मडियाकट्टा डौन्डी लोहारा जिला- बालोद (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। ...
भाई-बहनी के त्यौहार
आंचलिक बोली

भाई-बहनी के त्यौहार

परमानंद सिवना "परमा" बलौद (छत्तीसगढ) ******************** छत्तीसगढ़ी भाई-बहनी के त्यौहार हे, छाये खुशियों के बौछार हे, बड़े-छोटे के आशिस पाइस, इही हमर संस्कृति अउ संस्कार ये.! छोटे से धागा जेमा बहनी के मया भराय हे, वहीं धागा के मान रखे भाई, बहनी के रक्षा जीवन भर करें.! भाई के मया बहनी बर जीवन भर रथे, रक्षाबंधन, तीजा-पोरा, बहनी भाई बर उपवास रथे.! रक्षाबंधन परिवारीक त्यौहार ये, नन्हे हो या बड़े सब्बो बर एक समान ये, बहनी बर भाई अउ परिवार के मया ही ओकर बर उपहार ये.! जतका अपन बहनी ला इज्जत सम्मान देथो, उतका दुसर के बहनी ला भी इज्जत करबे ते, होही समाज राष्ट्र के उत्थान हे.!! परिचय :- परमानंद सिवना "परमा" निवासी : मडियाकट्टा डौन्डी लोहारा जिला- बालोद (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं म...
आगे संगवारी हरेली तिहार
आंचलिक बोली

आगे संगवारी हरेली तिहार

धर्मेन्द्र कुमार श्रवण साहू बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** (छत्तीसगढ़ी कविता) मनाबो संगी हरेली तिहार, धरती माई ह देवत उपहार। बारह मास मॅं हरेक परब, हमर संस्कृति हमु ला गरब। चलो मनाथन पहली तिहार, धरती माई ह देवत उपहार.. अन्न उपजइया गंवइया किसान, भूंईया के हरे इही भगवान। हरियर दिखत हे खेत-खार, धरती माई ह देवत उपहार.. गरुवा-गाय बर बनगे दवा, रोग-राई भगाय बर मांगे दुआ। घर के डरोठी मॅं खोंचत डार, धरती माई ह देवत उपहार.. रुचमुच रुचमुच बाजत हे गेड़ी, सुग्घर दिखत हे संकरी बेड़ी। रोटी-पीठा महकत हे घर दुआर, धरती माई ह देवत उपहार.. रापा, कुदारी, बसुला, बिंधना, धोवा गे नागर सजगे गना। रहेर हरियागे दिखत मेड़-पार, धरती माई ह देवत उपहार.. पेड़ लगाबो चलो जस कमाबो, मिल-जुल के हरेली मनाबो। छत्तीसगढ़ मैइया होवत श्रृंगार, धरती माई ह देवत उपहार.. ...
सुविधा पाबो
आंचलिक बोली

सुविधा पाबो

प्रभात कुमार "प्रभात" हापुड़ (उत्तर प्रदेश) ******************** जुरिस गाँ ह सड़ग ले भईया, अउ मन कस सुविधा पाबो चिखला चांदो के दिना ल, हमन अब तो भुलाबो बारी बखरी के साग भाजी, अब सहर मं बेचाही लेबो कमा जीये के पूरती, नी डउकी लइका ललाही धराय हे गहना खेत खार ह, ओला मुक्ता के लाबो चिखला.. बड़े इस्कूल मं लइकन पड़ही, अउ कालेज घलो जाही साहेब, सिपाही जम्मो बनके, जिनगी भर सुख पाही दुनो परानी हमन देखत, भाग ल सँहराबो चिखला.. रई आय पहिली कहूँ ल त ओ, बिन गोली के मरे कतको घोर्री घसन तभो, डॉक्टर ह नी हबरे एक सौ आठ ल बलवाके, निरोग काया ल बनाबो चिखला.. परिचय :-  प्रभात कुमार "प्रभात" निवासी : हापुड़, (उत्तर प्रदेश) भारत शिक्षा : एम.काम., एम.ए. राजनीति शास्त्र बी.एड. सम्प्रति : वाणिज्य प्रवक्ता टैगोर शिक्षा सदन इंटर कालेज हापुड़ विशेष रुचि : कविता, गीत व लघुकथा (सृजन)...
पुरखा के सुरता
आंचलिक बोली

पुरखा के सुरता

परमानंद सिवना "परमा" बलौद (छत्तीसगढ) ******************** छत्तीसगढ़ी नवा-नवा जिंदगानी हे, पुरखा के अब बस पहचानी हे, नवा-नवा आभुषण होंगे, अइठी, बिछवा चिन्हारी होंगे.! चिमनी, कन्डील कहानी होंगे, कुमडा बघवा कहानी पुरानी होगे, दाई के गोधना, अउ अइठी देखें जिन्दगी होंगे.! बबा के पागा, अउ धोती पहने हाथ लाठी, संस्कृति परम्परा मा बबा दाई रहाय अब लइका मन मेछरावत हे.! पहली के मन अनपढ़ रहाय फिर भी परिवार एकता मा रहाय, अबके मन पढ़े-लिखे परिवार दुरियां रहाय.! हम दो हमारे दो कहीके जीवन चलाय, जे जनम दिस तेला छोड़ के ते खुशी मनाये.!! परिचय :- परमानंद सिवना "परमा" निवासी : मडियाकट्टा डौन्डी लोहारा जिला- बालोद (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, ...
आगे महीना सावन
आंचलिक बोली

आगे महीना सावन

डोमेन्द्र नेताम (डोमू) डौण्डीलोहारा बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** छत्तीसगढ़ी कविता झिमिर-झिमिर पानी गिरे, लागे मौसम मन भावन । भोले नाथ के जय बोलों, आगे पावन महीना सावन ।। देवता मन के देव तोला कईथे, हे शिव भोले भंडारी । पान फूल म ते खुश हो जाथस, पुजा करे नर-नारी ।। कतिक करव बखान तोर मेहां, महिमा हे बड़ भारी । जय होवय जय होवय तोर हे, नाथ डमरू त्रिशुल धारी।। मन मयूर मोर झूमे नाचे, संगी करमा ददरिया गावन । परसी म बैइठ के बबा मन, पढ़े गीता अऊ रामायन ।। गली खोर अब चिखला परगें, होगे नाली हर रेंगावन । सरर-सरर चले पुरवय्या, आगे पावन महीना सावन ।। अमरय्या म झूलना बंधागें, झूले बर लईका मन सब जावन । कारी कोयली बन म कुहुके, पिरोहिल के मधुरस बोली लागे पावन ।। परिचय :- डोमेन्द्र नेताम (डोमू) निवासी : मुण्डाटोला डौण्डीलोहारा जिला-बालोद (छत्तीसगढ...
इकु किसानु कै पीरा
आंचलिक बोली, कविता

इकु किसानु कै पीरा

ज्ञानेन्द्र पाण्डेय "अवधी-मधुरस" अमेठी (उत्तर प्रदेश) ******************** बदरा रूठि गईल हे धनियाँ कैसे के होई रोपनियाँ ना। बेहनु खेतवा माहीं झुराइलि कैसे के होई रोपनियाँ ना।। जेठु महीना जसु तपा असाढ़ी यैसिनि मा के हौ गोड़ु काढ़ी बरसतु भिनुसरहिनु ते अगिया कैसे के होई रोपनियाँ ना।। बेहनु खेतवा... तालि-तलैइया मा दर्रौ फाटयि झुलसी घांसि दूबिउ नाहीं जागतु लागतु सावनु झूरौ झूरौ कैसे के होई रोपनियाँ ना।। बेहनु खेतवा... सावनु-भादौउं जौ सूखा-सूखा चिरई-चुनुंगा सबै रहिहैं भूखा कहिजा बदरा काहे रूठल कैसे के होई रोपनियाँ ना।। बेहनु खेतवा... लखि-लखि बदरा कोयलरि कूकैयि उपरा तकि-तकि जियरा हूकैयि अँसुवा ते भीजल मोरु बदनियाँ कैसी के होई रोपनियाँ ना।। बेहनु खेतवा... उमड़ि-घुमड़ि काहे ललचावतु आतुरि हुयि सबै रहिया जोहारतु झूमिके बरसौउ भलु सेवनियाँ जमके होई रो...
आगे दिन किसानी के
आंचलिक बोली

आगे दिन किसानी के

अशोक पटेल "आशु" धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** काँटा खूंटी ल बिन ले सँगी मेड़ पार ल चतवार ले। आगे हे दिन किसानी के सँकेल के आगी बार दे। चारो कोती खातु कुड़हा टेपरी डोली भर म पाल दे। बाढ़े सब कांदी-कचरा ल खन-खन के ओला टार दे। परछी उतरे हे मेड़ पार म तीरे-तार ल ढेलवानी दे-दे। खेत के भोरका डबरा ल खन के रापा-रापा पाट दे। मेड़ बनगे हे रोठ-रोठ मुही ओ मेड़ जम्मो ल सुधार दे। मेड़ जम्मो म माटी भर के सुग्घर मेड़-पर ला सवाँर दे। बिजहा तिल राहेर हिरवा ल मेड़-पार सब्बो कती छिंच दे। खेत के सुग्घर जोताई करके धान बिजहा ल बोवाई कर दे। परिचय :- अशोक पटेल "आशु" निवासी : मेघा-धमतरी (छत्तीसगढ़) सम्प्रति : हिंदी- व्याख्याता घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानिया...
हमर छत्तीसगढ़
आंचलिक बोली

हमर छत्तीसगढ़

डोमेन्द्र नेताम (डोमू) डौण्डीलोहारा बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** गाँव-गाँव म शीतला बिराजे, मन मयारुक उजागर हे । हमर छत्तीसगढ़ आगर हे, देवता धामी के सागर हे ।। दंत्तेवाड़ा म तही बिराजे हस, दंत्तेश्वरी महारानी । आंनद मंगल भरें जंगल म, बरसावत हस बरदानी ।। रतनपुर म महामाया बिराजे, महिमा जेकर हे भारी । गंगरेल म अंगार मोती दाई, दु:ख दरिद्रा ल संघारी ।। डोगरगढ़ म बम्लेश्वरी ह बैइठें, चूरी कंगना साजे । राजनांदगाँव म पताल भैरवी, सबों के मन ल भाते ।। राइपुर के दुंधाधारी, बंजारी हे पावन जेकर धाम । धमतरी म बिलाई माता, जेला मेहां करव प्रणाम ।। झलमला म सुग्घर बिराजे हावे, जय हो गंगा मैय्या । चैंत कुंवार म मेला भराथे, पापी मन के पाप धोवइय्या ।। राजिम म राजीव लोचन, अरपा, पैरी के सुग्घर धार हे । मया-दुलार मिले आशीष सुग्घर, डोमू के इंही गोहार हे।। परिचय :- ...
आषाढ़
आंचलिक बोली

आषाढ़

परमानंद सिवना "परमा" बलौद (छत्तीसगढ) ******************** छत्तीसगढ़ी करीया-करीया बादर ते रोज बरसात हस, आषाढ़ के महिना मा रोज चमकत-गरजावत हस.! खेत-खार ला भर देहस, टैक्टर नई चले नागर के पाग कर देहस, अब तो नागर बइला नदा गेहे, जेकर कर हाबे पइसा ला बढ़ा देहे.! लोग-लइका जुरमिल के टोक (खेत के कोना) खने बर जावत हे, बबा नागर चलावत हे ता दाई देख के मुसुर-मुसुर मुसकावत हे.! ज्यादा पानी बरसे बिजली चमके ता लोगन घर मा खुसर जावत हे, चना-मसुर खावत हे मया के गोठ गोठियावत हे, आषाढ़ के महिना रिमझिम रिमझिम पानी बरसात हे सुन्दर नजारा दिखात हे.!! परिचय :- परमानंद सिवना "परमा" निवासी : मडियाकट्टा डौन्डी लोहारा जिला- बालोद (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी क...
खुला बोरबेल
आंचलिक बोली

खुला बोरबेल

शत्रुहन सिंह कंवर चिसदा (जोंधरा) मस्तुरी ******************** (छत्तीसगढ़ी) पिये बर पानी खोदे हन गढ़्ढा पानी तो नई मिलीच छोड़ देहेन गढ्डा काबर भूलगें बंद करे ला वो गढ्डा कतको जीव ह मर जाथे गिरके ओ गढ्डा म काबर तै नई जानेच रे मानुष ना समझें काकरो दुःख दर्द ला जीहा हे साँप,मेचका आऊं राहुल कस सिरदर्द बंगे कतको माई बाप बर कतको के होगे घर द्वार सुना छोड़ो ना कभी ऐसन गढ्डा काकरो जीवन हा तमाशा बन जाथे फस के ये गढ्डा म बुलाए ला पड़ जाथे सेना रक्षक ल जेहा बन जाथे मीडिया बर ताजा खबर पढ़ले सुनले देखले वहीच खबर नेता मन राजनीतिक खेलत हे बैठ के घर म मोबाइल ले बोलत हे करत हे आम इंसान बचाए ला कोशिश नेता मन वाह वाही कमावत हे करेला पढ़ते प्रार्थना प्रभु ले जीवन बर सुनथे दर्द प्रभु हर जीवन के खातिर। परिचय :-  शत्रुहन सिंह कंवर निवासी :  चिसदा (जोंधरा) मस्तुरी घोष...
बेटी अउ बेटा एके बरोबर
आंचलिक बोली

बेटी अउ बेटा एके बरोबर

अशोक पटेल "आशु" धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** बेटी अउ बेटा एके बरोबर दुन्नो होथे घर के धरोहरर। बेटी अंगना के फुलवारी त बेटा आय घर के माली। बेटी सुख-दुख के सँगवारी त बेटा से होथे पूछ-पुछरी। बेटी दु कुल के लाज होथे त बेटा से कुल के मान होथे। बेटी हमर पहिचान होथे त बेटा से एकर धियान होथे। बेटी करम के पूजा होथे त बेटा धरम के धजा होथे। बेटी सृष्टि के आधार होथे त बेटा ओकर रखवार होथे। बेटी ह सरग के द्वार होथे त बेटा घर के जिम्मेदार होथ। परिचय :- अशोक पटेल "आशु" निवासी : मेघा-धमतरी (छत्तीसगढ़) सम्प्रति : हिंदी- व्याख्याता घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रक...
बिरवा हम लगाबो
आंचलिक बोली, कविता

बिरवा हम लगाबो

अशोक पटेल "आशु" धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** आवव संगी आवव, बिरवा हम लगाबो आवव संगी साथी, भुइया हम सजाबो गांव के गली पारा म चउक-चउक हटवारा म धरती म बिरवा जगाबो आवव संगी आवव.... खेत-खार सुन्ना होंगे, मेड़ घलो सुन्ना बनिस नावा डाहर त, कटगे पेड़ जुन्ना छइहा ह नोहर होंगे, कहां सुख पाबो आवव संगी आवव.... चिरई-मन खोजत हावे, रुखुवा के थइहा तरसत हे छइहा बर, गांव के हे गंवतरिहा झिलरी अउ झाड़ी छईहा रद्दा ल बनाबो आवव संगी आवव.. घर-अंगना खोर गली, अउ जमो मोहाटी खेत-खार, मेड़-पार अउ घलो चौपाटी गोकुल के धाम सही चला अब सुघराबो आवव संगी आवव.... नरवा के तीर घलो, पारे-पार तरिया फुलवारी लागे कलिन्दी कछार नदिया गाँव-गाँव शहर-नगर ल मधुबन बनाबो आवव संगी आवव.... धरती के तापमान तभे तो सुधरही झमाझम रुखुवा म धरती सवँरही आही बादर करिया अउ पानी बरसाबो आवव संगी आवव.....
येसो के गरमी बिक्कट हे
आंचलिक बोली

येसो के गरमी बिक्कट हे

परमानंद सिवना "परमा" बलौद (छत्तीसगढ) ******************** छत्तीसगढ़ी बबा दाई हलाकान हे, येसो के गरमी मा परेशान हे, दिन अउ रात पटका (गमछा) मा दुखत बइठे, गांव मा बर-पीपर के सुघ्घर छांव हे.! गरमी अउ महंगाई सन्गरा आगे लोगन के मुठी पीरा गे, गरमी कर देहे बुरा हाल हे सर्दी बुखार आहु काल हे.! गरमी के महीना मा भोजन ले ज्यादा जल ही जीवन ये, बेजुबान जानवर अउ चिरई-चुरगुन राहगीर ला पानी ही सहारा ये.! शहर ले अच्छा मोर गांव हे, ऐसी-कुलर ले बढीया रुक छईया के सुघ्घर छांव हे, गांव के ढीहडेवाहिरन ला परमा के प्रमाण हे.!! परिचय :- परमानंद सिवना "परमा" निवासी - मडियाकट्टा डौन्डी लोहारा जिला- बालोद (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आद...
मनहर के आने का संदेश पाने पर मनहरी की मनोदशा
आंचलिक बोली, छंद, सवैया

मनहर के आने का संदेश पाने पर मनहरी की मनोदशा

ज्ञानेन्द्र पाण्डेय "अवधी-मधुरस" अमेठी (उत्तर प्रदेश) ******************** सुंदरी सवैया छंद (अवधि भाषा) मुसकातु अहै उ कपाटु धरे मनवा हुलरै पियवा अजु आवै । भिनही कगवा मुँडरा चढ़िके कहवाँ-कहवाँ भलुके दुलरावै । ननदा बिहँसै जरि जायि हिया सनकी-मनकी करि खूबि खिझावै । ढुरकैं जबहीं सुरजू तबहीं फँसि जायि परानु कछू नहिं भावै ।।१।। परछायि दिखै दुअरा दुलरा दुलही जियरा खुलिके हरसावै । कबहूँ अँगना महिं नाचि करै कबहूँ ननदा बहियाँ लिपिटावै । चुपके-चुपके नियरानि जबै अँखियाँ लड़ितै घुँघटा लटकावै । कहिजा मँखना अँगना तड़पै कबुलौं दहकै कसिके समुझावै ।।२।। तुहिंसे लड़ना सजना जमुके बतिया दुइठूं करना तुम नाहीं । इसकी उसकी परके घरकी नथिया-नकिया धरना तुम नाहीं । फिरकी फिरकी अपनी-अपनी भलुके भरिके फँसना तुम नाहीं । रचिके बचिके चँदना बहकौ कपरा सबुके सजना तुम नाहीं ।।३।। पतझारि द...
हमर बाबा धन्य होगे
आंचलिक बोली, कविता

हमर बाबा धन्य होगे

धर्मेन्द्र कुमार श्रवण साहू बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** अंजोर के बगरैय्या हमर भीम बाबा धन्य होगे। लिखित संविधान के रचैय्या अम्बेडकर महान होगे।। सरल अउ सहज व्यक्तित्व के धनी हाबे जी। सादा जीवन उच्च विचार के मणि हाबे जी।। धरम करम के रद्दा बतैय्या वो तो पूजनीय होगे .. अंजोर के बगरैय्या हमर भीम बाबा धन्य होगे .... जाति–पाति भेदभाव के गड्डा ला वो पाटीस हे। छुआछूत अऊ कुरीति के जड़ ल घलो वो गाढ़िस हे।। अइसनहा मानव जन के जनैय्या महामानव होगे ... अंजोर के बगरैय्या हमर भीम बाबा धन्य होगे... संत मनीषी साधू संन्यासी मन के संग ल धरिस हे। तीन रतन अउ पञ्चशील के सन्देश ल गाढ़िस हे।। आष्टगिंक मारग म चलैय्या बौद्ध धरम के अनुयायी होगे.. अंजोर के बगरैय्या हमर भीम बाबा धन्य होगे... बाबा के मारग ल अपनाही वोकरे जिनगी सरग बनत हे। खान-पान, रहन-सहन सु...
महंगाई
आंचलिक बोली

महंगाई

परमानंद सिवना "परमा" बलौद (छत्तीसगढ) ******************** छत्तीसगढ़ी सुबह-शाम लोगन हलाकान हे, महंगाई ले परेशान हे, अच्छे दिन अही कही के सबला भरमात हे.! गर्मी ले ज्यादा तो महंगाई पसीना निकाल दीस, गरीबी के रददा देखावद हे, अच्छा दिन ला लुकावत हे, दु:ख ला बलावत हे.! जीवन जीये मा परेशानी कर दीस ये महंगाई हा, कर्जा ऊपर कर्जा करा दीस ये महंगाई हा.! अकेले नहीं पुरा देश के कहानी हे, गरीब के कोनो नई हे सहारा, छोड दिस बेसहारा, कर्जा बोडी के चक्कर मा होगे हे परेशान, ये महंगाई सब ला कर दे हे हलाकान.!! परिचय :- परमानंद सिवना "परमा" निवासी - मडियाकट्टा डौन्डी लोहारा जिला- बालोद (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्...
नौ दिन के त्यौहार नवरात्रि
आंचलिक बोली

नौ दिन के त्यौहार नवरात्रि

परमानंद सिवना "परमा" बलौद (छत्तीसगढ) ******************** छत्तीसगढ़ी नौ दिन के त्यौहार हे माता के लगे दरबार हे, संकट के हराईया, सुख सम्रध्दी के देवईया माता के त्यौहार हे.! मंदिर देवालय सब दो साल ले बंद रिहिस भक्तों के मन मे दुख रिहिस, इही साल कृपा ला बनादे संकट ला हटा दे, सबके जीवन मा खुशियां बना दे.! लगे हे दरबार माता के सब भक्तन खडे हे झोली फयलाये, माता के कृपा आपार हे जइसे करबे वइसे फल मिलही तभी मानव जीवन के उध्दार हे.! नव दिन ले नव रुप धरतस दुष्टो के संघार करतस, आती बेरा खुशी लाथस विदा के बरे आसु आ दे जातस..!! परिचय :- परमानंद सिवना "परमा" निवासी - मडियाकट्टा डौन्डी लोहारा जिला- बालोद (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं...
ज्ञानी सन मिलो तो
आंचलिक बोली

ज्ञानी सन मिलो तो

परमानंद सिवना "परमा" बलौद (छत्तीसगढ) ******************** छत्तीसगढ़ी ज्ञानी सन मिलो तो ज्ञान मिलही सच्चाई के रास्ता मिलही, अज्ञान से मिलो तो गलत व्यवहार सिखे ला मिलही.! संसार मे दो तरह के इंसान अच्छा बुरा तोला इही मे चुने ला पढही, अच्छा बुरा के संगत ला परखे ला पढही.! अच्छाई के बात बताही जो जन्म दिये मां बाप और गुरु, ये दुनिया मे इज्ज़त बनाही तोर व्यवहार.! संगत ला जान ले सुख दुख के रददा ला पहिचान ले, सब के इज्ज़त करले दुनिया मे इज्ज़त सम्मान कमा ले..!! परिचय :- परमानंद सिवना "परमा" निवासी - मडियाकट्टा डौन्डी लोहारा जिला- बालोद (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छाया...
छत्तीसगढ़ी दोहे
आंचलिक बोली, दोहा

छत्तीसगढ़ी दोहे

रामकुमार पटेल 'सोनादुला' जाँजगीर चांपा (छत्तीसगढ़) ******************** (छत्तीसगढ़ी दोहे) होरी हे के कहत मा, मन म गुदगुदी छाय। गोरी गुलाल गाल के, सुरता कर मुसकाय।। एक हाँथ गुलाल धरे, दुसर हाँथ पिचकारि। बने रंग गुलाल लगा, गोरी ला पुचकारि।। रंग रसायन जब लगे, होही खजरी रोग। परत रंग तन मन जरय, नहीं प्रेम के जोग।। चिखला गोबर केंरवँछ, जबरन के चुपराय। खेलत होरी मन फटे, तन मईल भर जाय।। परकिरती के रंग ले, रंग बड़े नहि कोय। डारत मन पिरीत बढ़े, खरचा न‌इ तो होय।। परसा लाली फूल ला, पानी मा डबकाय। डारव कतको अंग मा, कभु न जरय खजवाय।। परसा फूले लाल रे, पिंवँरा सरसों फूल। गोरी होरी याद रख, कभु झन जाबे भूल।। होरी अइसन खेल तैं, सब दिन सुरता आय। अवगुन के होरी जरे, कभु गुन जरे न पाय।। तन के भुइयाँ अगुन के, लकरी लाय कुढ़ोय। अगिन लगा ले ग्यान के, हिरदे उज्जर होय...
जीमणा री याद
आंचलिक बोली

जीमणा री याद

आयुषी दाधीच भीलवाड़ा (राजस्थान) ******************** मारवाड़ी कविता इस कविता मे मैने एक गाँव के जीमने को याद करते हुए कुछ अपने विचार लिखने की कोशिश की है । (१) आज घणा वक्त पछे शहर रो जीमणो जीम्यो, पर जीमणा मे वो बात कोणी जो पहळा गाँव रा जीमणा मे वेती। जीमता-जीमता मैने गाँव रा जीमणा री याद आगी, कतरा बरस होग्या पेल्ली जसा जीमणा जीम्या ने। शहर रा जीमणा मे वो मजो कोणी जो गाँव रा जीमणा मे वेतो। (एक गाँव रो बालक स्कुल भणवा जावे उ बालक रे मन री दशा को वर्णन है) ध्यान मु हुन्जो (२) सुबह रो जीमणो को नुतो आतो तो मन मे उतल-फुतल मचती, कि अबे स्कूल जावा की छुट्टी मारा जीमबा ने... पर कि करा घर वाला स्कूल भेजता, अन कहता कि मू स्कूल मे बुलावा आई जावं, मै भी स्कूल तो जाता पर मन भणवां मे न लागतो। सहेलियाँ ने भी पूछता थारे जीमबा जाणो की, आपा सब ...
सुघ्घर माघ के महिना
आंचलिक बोली, गीत

सुघ्घर माघ के महिना

रामसाय श्रीवास "राम" किरारी बाराद्वार (छत्तीसगढ़) ******************** छत्तीसगढ़ी लोकगीत बड़ नीक महिना माघ के, आगे वसंत बहार। खुशी मनावव संगवारी, करके खूब श्रृंगार। सुघ्घर मऊरे हे आमा हर, महर महर ममहावय। अमरइया मं बइठे कोइली, सुघ्घर गीत सुनावय।। आज खुशी ले झूमत हावय, ये सारा संसार बड़ नीक महिना माघ के आगे वसंत बहार हरियर हरियर खेत खार हे, सुघ्घर हे फुलवारी। बड़ नीक लागे रूख छाँव हर, जइसे हे महतारी।। धरती दाई के कोरा मा, सब सुख हावय अपार बड़ नीक महिना माघ के आगे वसंत बहार किसिंम किसिंम के फूल फूले हे, देख के मन हरषावय। लाली लाली परसा फूल गे, आगी घलव लजावय।। सुरूर सुरूर पुरवाही सुघ्घर, गावय राग मल्हार बड़ नीक महिना माघ के आगे वसंत बहार चार दिन के जिनगानी हे, जादा झन इतरावव। ये वसंत के बेर मा संगी, जुर मिल खुशी मनावव।। राम कहे झन भूलव म...
छत्तीसगढ के सुघ्घर तिहार
आंचलिक बोली

छत्तीसगढ के सुघ्घर तिहार

रामसाय श्रीवास "राम" किरारी बाराद्वार (छत्तीसगढ़) ******************** हमर संस्कृति अऊ हमर संस्कार। नदावत जावत हे छेर-छेरा तिहार।। कतको तिहार के धरती हावय, ये छत्तीसगढ महतारी। ये मन ल बचाके रखना हावय, हम सबला संगवारी।। धर के टुकनी अऊ धरें बोरा, लइकामन चलें बिहनिहा बेरा। खोल गली बने गझिन लागय, कहत जावंय छेर छेरा ,छेर छेरा।। टुकना मा घर के मुंहटा मा, धर के बइठे रहे धान। वो घर के रहे जेहर, सबले बड़े सियान।। रंग-रंग के ओनहा पहिरे, लइका मन बड़ सुख पांय। छेर-छेरा मांगे खातिर, जम्मो घरो घर जांय।। पढ़े लिखे लइका मन ला, अब लागथे लाज। समय हर बदलत हावय, देखव का होवत हे आज।। अपन सुघ्घर तिहार के, परंपरा ला भुलावत हावंय। गांजा दारू के नशा मा, रात दिन सनावत हावंय।। हमर छत्तीसगढ के संस्कृति ला, हमन ल रखना हावय जिंदा। ये सुघ्घर तिहार मन के, झन करव भु...