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छंद

सनातन के प्रणाम
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सनातन के प्रणाम

गोपाल पांडेय "आजाद" औरैया (उत्तर प्रदेश) ******************** ।।सनातन के प्रणाम।। शीश गंग धार और कण्ठ में भुजंग माल भूत प्रेत धारी के सुधाम को प्रणाम है। असुरों का किया वध पावन किया अवध सूर्यवंश अंश श्री राम को प्रणाम है। द्रुपद सुता की चीरबृद्धि से हरी थी पीर ऐसे बलराम भ्रात श्याम को प्रणाम है। पित्र का चुकाया ऋण पुत्र का निभाया धर्म रौद्ध के स्वरूप परशुराम को प्रणाम है। ।। हमारे प्रतीक।। सनातनी संस्कृति, सभ्यता समाज सब संस्कार शौर्य स्वाभिमान के प्रतीक है। वीरगाथा काल वाले, शब्दभेदी वाण वाले पूर्वज हमारे अभिमान के प्रतीक है। झुकने न दिया भाल वैरी हेतु बने काल महाकाल के पुजारी शान के प्रतीक है। भारती की आरती में शीश जो चढ़ाते नित भारत के वीर बलिदान के प्रतीक है। परिचय :- गोपाल पांडेय "आजाद" निवासी : औरैया (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वा...
दिव्य जोत
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दिव्य जोत

रेखा कापसे "होशंगाबादी" होशंगाबाद (मध्य प्रदेश) ******************** शुद्ध गीता छंद मापनी- २१२२ २१२२, २१२२ २१२१ चैत मासे शुक्ल प्रतिपद, साथ जलती दिव्य जोत। प्रथम चंद्र दिवस कहे है, साल का नववर्ष होत ।। उस विधाता ने रची थी, काल चक्री सृष्टि आज । विष्णु अवतारी हुए थे, मिलन प्रकृति दृष्टि साज ।। आज है नव वर्ष देखो, दे सदा ही आन बान। कामना मेरी यही हैं, आप पाओ आसमान।। दुःख का साया नहीं हो, सुख बसा हो आस पास। नित्य जीवन आपका हो, प्रेम खुशियाँ भार खास।। पेड़ पाते फूल कलियाँ, मंजरी इस काल चक्र। लौट कर आती बहारे, साल में हर बार वक्र।। दौर ये मधुमास प्यारा, घोलता है प्रेम प्रीत। शुद्ध होती है धरा भी, पूजती गणगौर रीत।। कूक कोयल आम खुशबू, कर रहे सब चित्त चोर। नव फसल का गान करती, मोर बोले बाग जोर।। मस्त मद आनंद आभा, नभ खिली हैं आज भोर। गीत गाते हैं सुहाने, नाचते सब जोर शोर।। परिचय :- रे...
पनघट
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पनघट

डॉ. भावना सावलिया हरमडिया (गुजरात) ******************** विष्णुपद छंद दृश्य सुहाना पनघट पर का, चहल-पहल सारी, चली नीर भरने पनिहारी, ले गगरी न्यारी, पायल को छनकाती चलती, कटि को लचकाती, तिरछी नैनों से दिख के वो, हिय में शरमाती । पायल की झनकार जगाती, प्रीत युवा दिल में, मधुकर मँडराते हैं मानो, पुष्पों के दल में , बीच घोर घन कुंतल दिखती, चंद्र-मुखी प्यारी, घायल सबको करती चलती, मधु मुस्का न्यारी। छोटी-सी ठोकर से छलके, निर्मल जल घट का, मानो नीलांबर है बरसे, खोल स्नेह पट का , बूँद मोतियों-सी सिर पर से, अधरों पर ठहरी, ओस पंखुडी पर  मोती-सी, शोभित है गहरी। परिचय :- डॉ. भावना नानजीभाई सावलिया माता : वनिता बहन नानजीभाई सावलिया पिता : नानजीभाई टपुभाई सावलिया जन्म तिथि : ३ अप्रैल १९७३ निवास : हरमडिया, राजकोट सौराष्ट्र (गुजरात) शिक्षा : एम्.ए, एम्.फील, पीएच. डी, ...
हरिभक्ति
गीतिका, छंद

हरिभक्ति

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, म.प्र. ******************** अँधियार चारों ओर बिखरा, सूझता कुछ भी नहीं। उजियार तरसा राह को अब, बूझता कुछ भी नहीं।। उत्थान लगता है पतन सा, काल कैसा आ गया। जीवन लगे अब बोझ हे प्रभु, यह अमंगल खा गया।। हे नाथ, दीनानाथ भगवन, पार अब कर दीजिए। जीवन बने सुंदर, मधुरतम, शान से नव कीजिए ।। भटकी बहुत ये ज़िन्दगी तो, नेह से वंचित रहा। प्रभुआप बिन मैं था अभागा, रोज़ कुछ तो कुछ सहा।। प्रभुनाम की माया अनोखी, शान लगती है भली सियराम की गाथा सुपावन, भा रही मंदिर-गली जीवन बने अभिराम सबका, आज हम सब खुश रहें। उत्साह से पूजन-भजनकर, भाव भरकर सब सहें। हरिगान में मंगल भरा है, बात यह सच जानिए। गुरुदेव ने हमसे कहा जो, आचरण में ठानिए।। आलोक जीवन में मिलेगा, सत्य को जो थाम लो। परमात्मा सबसे प्रबल है, आज उसका नाम लो।। भगवान का वंदन करू...
कुण्डलियाँ छंद
कुण्डलियाँ, छंद

कुण्डलियाँ छंद

रजनी गुप्ता "पूनम" लखनऊ ******************** कुण्डलियाँ/दिठौना १ लगा दिठौना माँ मुझे, ले जातीं बाजार। और दिलातीं हैं वहाँ, चुनरी गोटेदार।। चुनरी गोटेदार, खिलातीं रबड़ी हलुवा। ललचाते हैं देख, मुरारी मोटू कलुवा।। बोलीं वह पुचकार, खरीदो एक खिलौना। माता का यह लाड़, सहेजूँ लगा दिठौना।। २ लगा दिठौना देख कर, करते सब उपहास। बोल रहे हैं सब मुझे, मत आना तुम पास।। मत आना तुम पास, न कोई रंगत गोरी। मोटा- सा है गात, सभी करते बरजोरी।। सुन कर मेरी बात, उतारें माँ धड़कौना। लिया बलैयाँ खूब, दुबारा लगा दिठौना।। कुण्डलियाँ/पैसा ३ पैसे दो अम्मा मुझे, जाऊँगी बाजार। लेने गुड़िया के लिये, लहँगा गोटेदार।। लहँगा गोटेदार, सितारे सलमा वाला। चुनरी होगी लाल, गले की लूँगी माला।। गजरा लाऊँ श्वेत, सजेगी चोटी ऐसे। जैसे चंदा रात, मुझे दो अम्मा पैसे।। ४ पैसे के बल पर बसे, बेटी का संसार। आँखों में सपने लिये, बाप खड़ा लाचार।। बा...
राधा
छंद, धनाक्षरी

राधा

नीलम तोलानी इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** अखियाँ ये द्रोह करे, अब न किसी को देखें, कृष्ण की ही माला जपे, छवि मन भायी है। राधा मैं शरीर नहीं, प्राण में हूँ तेरे बसी, श्वास श्वास आस रहे, प्रेम ऋतु आयी है। नित दौड़ी दौड़ी आऊँ, बस में न चित रहा, मुरली की धुन कान्हा, बड़ी सुखदायी है। छुप छुप रास करें, झूमे यमुना के तीर, चैन मेरा सब गया, तू ही हरजायी है। परिचय :- नीलम तोलानी निवासी : इंदौर मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल)...
जो गुजरे पल
छंद

जो गुजरे पल

विशाल कुमार महतो राजापुर (गोपालगंज) ******************** कभी सोचे जो गुजरे पल तो मन उदास होता है मतलबी ये जमाना है, कोई ना खाश होता है भरोसा टूट जाए तो ये मन निराश होता हैं। धोखा वही से मिलता हैं, जहाँ विश्वास होता है। पता चलता नही है अब कौन कब खास होता है, छोड़ेंगे साथ नही तेरा, बहुत बकवास होता है। छुपी है जो सच्चाई वो न अब बर्दाश होता है, हजारों दोस्त बनते है जब पैसा पास होता है। सच्चाई मुँह पे बोलना, मेरी वर्षों की आदत है इसी की राह पर शायद मेरी जीवन सलामत है, जो समझे ही मुझको जीवन मे मेरा होकर के मुझे बुरा कहने का तो उन्हें पूरा इजाजत है। परिचय :- विशाल कुमार महतो निवासी : राजापुर (गोपालगंज) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्र...
पंडाल बनाम अवध महल के राम
छंद

पंडाल बनाम अवध महल के राम

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ********************                        (ताटंक छंद) रामायण महाभारत कथा कलयुग को सौगाते हैं दिखे हरेकयुग खोटे चरित्र, कुटिलचाल अपनाते हैं रावण गुणवान अहंकारी, जिससे धरा थर्राए थी भाई विभीषण जपते राम, गाली खरा सुनाए थी बहन शूर्पणखा चालाकी, लंका मरा बनाये थी भाईबहन की साजिशों से, कलयुग में मिट जाते हैं रामायण महाभारत कथा कलयुग को सौगातें हैं दासी मंथरा कुटिलता से, रामतिलक रुकवाती है कैकेयी प्रभावित होकर, हक दशरथ से पाती है समक्ष भरत के आते ही जो, मंगलथाल सजाती है दशरथ वचनपालन खुशी से, वनगमन रामजाते हैं रामायण महाभारत कथा, कलयुग को सौगातें हैं संतानमोह और कुटिलभाव, तात पर हैं जरा भारी दुर्योधन की धमकियां सुनते, सदा सहमाडरा जारी मामा शकुनि भी लेवे शपथ, दूषित परंपरा सारी पितापुत्रों मामाभांजों की, अनेक घर की बातें हैं रामायण महाभारत कथा, कलयुग को सौगातें...
राम जन्म भूमि
छंद, धनाक्षरी

राम जन्म भूमि

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** ढूंढे सारे थे विकल्प, अवधि भी नहीं अल्प पांच सदी काल बीते, शुभ दिन आने को। जोर शोर थम गया, वाक्य युद्ध थक गया प्रमाण पे रुक गया, भव्यता ही पाने को। राम जन्म भूमि युद्ध, राम नहीँ जरा क्रुद्ध देर है अंधेर नहीं, सत्य समझाने को। बहुत था अवरोध, राम काज में विरोध व्यर्थ हुई अपील भी, राम राज आने को। राम का चरित्र गान, रामायण पूर्ण ज्ञान एक चौपाई बहुत, मानव सजाने को। रघु रीति प्रण राम, मर्यादित सदा काम मर्म धर्म आठों याम, कर्म अपनाने को। हनुमान गढ़ी द्वार, सुरक्षा संकल्प भार पूजन विशेष यहां, भूमि के प्रवेश को। कैसे हो खुशी बखान, साक्षी अवध महान भारत नहीं दुनिया, राम पुण्य भूमि को। है जन्म अब सफल, कार सेवा थी अटल एकत्र है माटी जल, निर्माण कराने को। राम युग शान अब, धर्मियों का दान खूब रजत ईंट आधार, भव्य दरबार को। परिचय :- विजय कुमार गुप्...
बातें हिंदुस्तान की
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बातें हिंदुस्तान की

विशाल कुमार महतो राजापुर (गोपालगंज) ******************** अच्छा तो बताता हूँ मैं बातें हिंदुस्तान की, होनी चाहियें पूजा अपने देश के जवान की, हुई जो लड़ाई तो सीमा पर सीना तान कर, करते हैं रक्षा जो भारत माँ की शान की, सभी हिन्दुस्तानी सुनो, देश की कहानी सुनो, आओ हम भी मिलके अपने फर्ज को निभाते हैं। चलो एक दीप उनके नाम पे जलाते है, जो देश की सेवा में अपनी जान को लुटाते हैं। कुछ दिन पहले खबर एक आई थी, गलवान वाली घाटी में तो हुई एक लड़ाई थी, सेना ने भी अपनी ताकत दिखलाई थी, दुश्मनों को धूल इस वतन की चटाई थी। सभी हिन्दुस्तानी सुनो, देश की कहानी सुनो, आओ हम भी मिलके अपने फर्ज को निभाते हैं। चलो एक दीप उनके नाम पे जलाते है, जो लौट के वापस अपने घर नही आते हैं। सेवा की कीमत अपने लहू से चुकाते हैं, माँ का आँचल छोड़ बहुत दूर चले जाते है, देके अपनी जान इस वतन को बचाते हैं, ओढ़के तिरंगा घर वापस चले आते ...
पपीहे की साधना
छंद

पपीहे की साधना

प्रवीण त्रिपाठी नोएडा ******************** महाश्रृंगार छंद गगन से होती जब बरसात। धरा की बुझती है तब प्यास। सूर्य ढलने से होती रात। चाँद लाता है नया उजास।।1 मेघ को तकता चातक रोज़। नहीं मिलती उसको वह बूंद। स्वाति की प्रतिदिन करता खोज। प्रार्थना करता अँखियाँ मूंद।2 ईश का करता निशदिन ध्यान। स्वाति की बूंद एक मिल जाय। मेघ करते उसका कल्यान। बूंद पी फूला नहीं समाय।3 बुझी है जब से उसकी प्यास। प्रेम से गाता है वह गीत। अटल है प्रभु पर अब विश्वास। मानता उनको अब वह मीत।4 परिचय :- प्रवीण त्रिपाठी नोएडा आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमेंhindirakshak17@gmail.comपर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक ...
वर्षा तुम जब
गीत, छंद

वर्षा तुम जब

प्रवीण त्रिपाठी नोएडा ******************** राधेश्यामी छंद में वर्षा गीत… वर्षा तुम जब जब भी आती, मेरा मन दुलरा जाती हो। तरु के पत्तों से टकरा कर, सुरमय संगीत सुनाती हो। तेरे आने की आहट नित, मुझको पहले मिल जाती है। जब तप्त हृदय मेरा होता, तब क्षितिज कालिमा छाती है। हो निनाद जब दूर कहीं पर, नभ हो जाता जिससे गुंजित। विरही मन में तब हूक उठा, प्रियतम की याद दिलाती है। पहले ही संकेतों द्वारा, जैसे भेजी मृदु पाती हो।१ चातक सा रहता मन प्यासा, चाहत बूँदों की है मन में। कुछ स्वाति फुहारें पड़ जायें, शीतलता आये तब तन में। नभ से बरसे जल झर-झर कर, भीगे तब आकुल सा तन-मन। लग जाएँ सावन की झड़ियाँ, आये बहार तब जीवन में। बूँदों की टिप-टिप से उपजे, तुम नवल राग में गाती हो।२ होते हैं भाव विभोर सभी, जब ऋतु परिवर्तन करती हो। तब शुष्क पड़े सब हृदयों के, तुम ताल सरोवर भरती हो। इस भूतल के सारे प्राणी, मिल राह त...
आपको प्रणाम दादा
छंद

आपको प्रणाम दादा

देव कवड़कर बेतूल मध्य प्रदेश ******************** आपको प्रणाम दादा आपको प्रणाम माता जहां-तहां बैठे नौजवानों को प्रणाम है। धर्म कर्म करते जो वतन पे मरते हैं सखा गोप सभी ज्ञानवानो को प्रणाम है।। राह में रुक के नहीं जो फर्ज से डिगे नहीं जो अस्मिता बचाते सूझवानों को प्रणाम है। रक्त वही धन्य है जो देश हित काम आये शोर्य के प्रतीक शोर्यवानों को प्रणाम है।। कोरोना का रोना देखो विश्व परेशान पूरा संक्रमित वायरस हमको हटाना है। कुछ दूरियां बना के मांस्क मुंह पे लगा के बार-बार हाथ मुंह साबुन से धोना है।। जनता कर्फ्यू लगा के शासन का साथ देके सब परिवार संग घर पे ही रहना है। शासन सहयोग से गति अवरोध कर जीतकर जंग बड़ी भारत को तरना है।। https://youtu.be/Lk_--l-2NxQ . परिचय : देव कवड़कर बेतूल मध्य प्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाश...
विश्व के महामारी
छंद

विश्व के महामारी

प्रिन्शु लोकेश तिवारी रीवा (म.प्र.) ******************** शिव बंदना (वार्णिक छंद) नगर मा महेश के महामारी विकसित बासी नरनारि बहुतए भयभीत हैं। छिकरत खहरात हहरात मरि जात कौनो बैद अब तक ऐसे नहीं जीत है। भूमिचोर भूमिपाल भूलि गए हाल-चाल देश मा तेज से बढ़ गए पाप रीत हैं। महादेव भोरेनाथ भवत भवानीनाथ तेरो हि सहारो सब जंग जग जीत है। ____ २._____ ठाकुर महेश जहां गनपति- सेनापति हाल बेहाल नहि होत ओह शहर की। भूतनाथ दीनानाथ गौरीनाथ जहां बसे मारन कि शक्ति छिन जाति है जहर की लोकरीति राखि-नाथ महामारी दूर करौ नष्ट करो रोग सिन्धु पापनी ठहर की। आए दिन एक-एक जाए रहे यमपुरी बीज ही को नष्ट करो प्रभु ऐसो फर की। ____३._____ उमा जुके भरतार हर-तार देश कष्ट मंगल के दाता दास देशबासी तेरो हैं। बढत-दुखारि बाल-वृध्द परेशान सब गिरिनाथ गौरीनाथ हम सब चेरो हैं। घर को कंगाल कर मालिक करेगा क्या हे भूमिप...
नहीं तुमने न हमने ही
छंद

नहीं तुमने न हमने ही

भारत भूषण पाठक देवांश धौनी (झारखंड) ******************** विधाता छंद - मापनी १४-१४ मात्रा, ७-७ मात्रा पर यति नहीं तुमने न हमने ही, कभी भी है इसे देखा। वायरस चीज क्या होता, देखा है या अनदेखा।। जानकर इसे क्या करना, मगर इससे नहीं डरना। तुम निकलो न अभी बाहर, भटक रहा है कोरोना। घरों पर अभी तुम रहलो, थोड़ा और कष्ट सहलो। विनती करता भारत है, लोगों आज तुम सबसे। रहलो बन्द अभी थोड़ा, कहता भारत है हमसे।। . परिचय :- भारत भूषण पाठक 'देवांश' लेखनी नाम - तुच्छ कवि 'भारत ' निवासी - ग्राम पो०-धौनी (शुम्भेश्वर नाथ) जिला दुमका (झारखंड) कार्यक्षेत्र - आई.एस.डी., सरैयाहाट में कार्यरत शिक्षक योग्यता - बीकाॅम (प्रतिष्ठा) साथ ही डी.एल.एड.सम्पूर्ण होने वाला है। काव्यक्षेत्र में तुच्छ प्रयास - साहित्यपीडिया पर मेरी एक रचना माँ तू ममता की विशाल व्योम को स्थान मिल चुकी है काव्य प्रतियोगिता में। ...
बदली है ऋतु आज
छंद, धनाक्षरी

बदली है ऋतु आज

प्रवीण त्रिपाठी नोएडा ******************** बदली है ऋतु आज, छेड़ती नवीन साज, बासंती हर मिजाज, दिखे हर ओर है। पीला नीला हरा लाल, हर दिशा में धमाल, प्रकृति करे कमाल, बहुरंगी जोर है। कोयल की मीठी तान, गातें हैं भृमर गान, धरती की बढ़ी शान, मानस विभोर है। पल्लव पे शीत ओस, तपन है डोर कोस खुशियाँ देती परोस,प्यारी हर भोर है। होली पर्व आ रहा है, खुमार सा छा रहा है। मौसम भी भा रहा है, डूब जायें रंग में। प्रसून रंग-रंग के, पल्लव नव ढंग के, दृश्य हैं बहुरंग के, झूमिये तरंग में। कबीरा फाग गा रहे, रंग मन को भा रहे, ठंडाई भी चढ़ा रहे, आता मजा भंग में। ढोलक धमक रही, झाँझर झनक रही, बुद्धि भी बहक रही, खुशी हुड़दंग में। संग होलिका दहन, मैल मन का दहन, कुरीतियों का दहन, यह शपथ लें सभी। आपस में न द्वेष हो, दूर सबके क्लेष हों, यत्न अब विशेष हों, दुविधा तज दें सभी। नहीं तनातनी रहे, मित्रता भी बनी रहे, प्रीति नित...
जयकरी छंद
छंद

जयकरी छंद

प्रवीण त्रिपाठी नोएडा ******************** चार चरण, दो-दो चरण समतुकांत चरणान्त गुरु लघु (२१) से अनिवार्य मानव जीवन बहुत महान, समझो प्रभु का यह वरदान, इसे व्यर्थ मत करिये आप, वरना झेलेंगें संताप। मचा हुआ चहुदिश आतंक, धनी धनी, निर्धन अति रंक, बीच पिस रहा मध्यम वर्ग, नहीं मिला मनचाहा स्वर्ग। राजनीति है अब अनमोल, सभी दल नित्य बजाते ढ़ोल, खोजें डफली छेड़े राग, ओ! सोई जनता अब जाग। जाति धर्म अब है व्यापार। हुआ देश का बंटाधार। नित्य नवेले होते क्लेश। बदला समजिक परिवेश। हे मानव! तू रह मत मौन। बागडोर थामेगा कौन। सुप्त अवस्था त्यागो आज। जागृत कर दो सर्व समाज। . परिचय :- प्रवीण त्रिपाठी नोएडा आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताए...
तो सुख सदा समाय
छंद, दोहा

तो सुख सदा समाय

अर्चना अनुपम जबलपुर मध्यप्रदेश ******************** दर्शन- टूटते घर और जिम्मेदार बहु। जी खूब कही। माता पिता की नाज़ो पली आपके लिए बिल्कुल ना भली। सोचा है इसका कारण कभी? कारण क्या है अचानक उसके लक्ष्मी से दुर्गा बन जाने के? कली जो थी फूल की उसके अंगारे बन जाने के? आपका बुढ़ापा बिगड़ जाने से लेकर वृद्धाश्रम की दहलीज़ तक पहुंचा दिए जाने के। बेटी हमेशा सुकुमार, नादान, चंचल चित्त युक्त सुंदर शालीन युवती वाचाल, चपला है। बहु स्वर्ग से उतरी महान वुभूति सब उलूल-जुलूल सहने वाली अच्छी, सभ्य, संस्कारी घूँघट धारिणी, गुस्से वाला थप्पड़ खाकर भी शांत रस विचारिणी, एक निरीह अबला है। अजी ख़ूब सोची, हाड़ मांस की देह धारी दोनों बेटी-बहु में भेद कुछ ज़्यादा ही तगड़ा है। तो बस यही आपकी उल्टी गंगा वाली सोच आपको भुगतवाती है। स्त्री हो चली शिक्षित जान चुकी अपना स्तर आपको आप, ही की भाषा में, ब्याज सहित जब लौटती ह...
बसंत चालीसा
चौपाई, छंद

बसंत चालीसा

प्रवीण त्रिपाठी नोएडा ******************** मधुमासी ऋतु परम सुहानी, बनी सकल ऋतुओं की रानी। ऊर्जित जड़-चेतन को करती, प्राण वायु तन-मन में भरती। कमल सरोवर सकल सुहाते, नव पल्लव तरुओं पर भाते। पीली सरसों ले अंगड़ाई, पीत बसन की शोभा छाई। वन-उपवन सब लगे चितेरे, बिंब करें मन मुदित घनेरे। आम्र मंजरी महुआ फूलें, निर्मल जल से पूरित कूलें। कोकिल छिप कर राग सुनाती, मोहक स्वरलहरी मन भाती। मद्धम सी गुंजन भँवरों की, करे तरंगित मन लहरों सी। पुष्प बाण श्री काम चलाते, मन को मद से मस्त कराते। यह बसंत सबके मन भाता, ऋतुओं का राजा कहलाता। फागुन माह सभी को भाता, उर उमंग अतिशय उपजाता। रंग भंग के मद मन छाये, एक नवल अनुभूति कराये। सुर्ख रंग के टेसू फूलें, नव तरंग में जनमन झूलें। नेह रंग से हृदय भिगोते, बीज प्रीति के मन में बोते। लाल, गुलाबी, नीले, पीले, हरे, केसरी रंग रँगीले। सराबोर होकर नर-नारी, ...
शिव स्तुति
छंद, दोहा

शिव स्तुति

अर्चना अनुपम जबलपुर मध्यप्रदेश ******************** संग गौरीश, गंग धर शीश। शिवा के रंग, पान कर भंग।। मनोहर रूप, अखिल के भूप। कंठ धर नाग, वरे वैराग।। काम के काल, वस्त्र सिंह खाल। गरल रस प्रीत, हरि के मीत।। भस्म श्रृंगार, क्रोध विकराल। चंद्रमा भाल, प्रभु महाकाल।। जयति अवनीश, राम के ईश। नमित दशशीश, एव सुरजीत।। नाश कर दंभ, नृत्य बहुरंग। मगन नित योग, भेष जिम जोग।। छंद- भव-स्वामी नमामि हे नाथ प्रभो। अविकार विकार सदा ही हरो।। जड़ बुद्धि जो बैरी रिपु सी लगे। निर्वाण मिले संताप मिटे ।। त्यज भूधर को हिय आन बसो। तुम कोटिक सूर प्रकाश प्रभो।। तम को जिम मन अज्ञान रुँधे। अलोक जिमि हिरदय मा शुभे।। बड़वार बतावत भूल भगत। अभिमान के दंश सराबर हो।। तब क्षीर से नीर को थोथा करे। तुम ऐंसे ही दिव्व मराल प्रभो।। . परिचय :- अर्चना पाण्डेय गौतम साहित्यिक उपनाम - अर्चना अनुपम जन्म - २१/१०/१९८७ मूल...
जैसे को तैसा धुनूँ
चौपाई, छंद, दोहा

जैसे को तैसा धुनूँ

अर्चना अनुपम जबलपुर मध्यप्रदेश ******************** रस - रौद्र, अलंकार - अतिशयोक्ति। भाव - आत्मकुंठोपजित भक्ति। छंद - दोहा, सोरठा एवं कुंडलियों के प्रयास। कारक - बचपन में अपने आस पास समृद्ध और सभ्य परिवार की उपाधि प्राप्त परिवारों में वधुयों की दहेज़ या अन्य पारिवारिक कारणों से हुई परिचिताओं की जीवित जलकर या अन्य हनित संसाधनों द्वारा हत्या एवम आत्महत्या से उत्पन्न भाव जो अधिकाधिक बारह या तेरह वर्ष की आयु के समय प्रभु से करबद्ध अनुरोध करते मेरे द्वारा ही वरदान स्वरूप चाहे गए थे। कुछ परिवार ने उनकी हत्या को भाग्य कुछ ने उनमें थोपी गई अतिवादी स्त्री सहनशीलता की कमी बताया मायके वालों ने कहा "बिटिया तो ना मिलेगी हमारी" अतः कोई केस नहीं लगाया। और मेरे हृदय में उस उम्र में दहेज़ के दानवों विरुद्ध, अवस्था; अतिशह क्रुद्ध क्रांति जनित यह भाव! 'यूँ ही' आया। कि..... दुष्टन से कंजर बनूँ, ज्ञानी से...
त्वदीयं नमः
छंद, दोहा

त्वदीयं नमः

अर्चना अनुपम जबलपुर मध्यप्रदेश ******************** प्रणमामि आदि अनादि सदा हे नाथ श्री वल्लभ वासुदेवा अगम्य अगोचर विशेश्वर वराह वमन मत्स्य कश्यप रूप धरा चरण गंग साजे कंठम स्वरा.. हे नाथ श्री वल्लभ वासुदेवा.. राम मनोहर परशु बुद्ध रूपम् सूर्यम् मयंक पावक प्रकाशम् दुःख पाप नाशी क्षीरं निवासी सदा भक्ति प्रीतम् प्रियम् अक्षरा हे नाथ श्री वल्लभ वासुदेवा वीरम च धीरम मिथक दोष घातम भवसिंधु तारम् वरण बृंदिका अधर देह सुन्दर भुजा चार धारम् कल्याणकारी असुर मर्दणा हृदय कुञ्ज स्वामी गौ पूजयामि त्वदीयं नमामि चरण वंदना प्रणमामि आदि अनादि सदा हे नाथ श्री वल्लभ वासुदेवा सवैया - हम तो हरि मूरख देख के मूरत रीझत गावत आन पड़े.. यह नेह भी देह भी केवल रेह सी श्री चरणों में आन धरे मुस्कान की तान के तीर किये गंभीर हिय जब आन धसे तुम एक हमें हर एक से प्यारे बोलो प्रमाणित कैसे करें यह नेह भी देह भी केवल रेह सी ...
मां वाणी … कुंडलिया
छंद

मां वाणी … कुंडलिया

शरद मिश्र 'सिंधु' लखनऊ उ.प्र. ********************** मां वाणी कुछ दीजिए, ऐसा आशीर्वाद। भारत भू से हो सके, खत्म सभी उन्माद। खत्म सभी उन्माद, जिहादी हिंसा रोको, यदि मानें वह नहीं, उन्हें काली बन ठोकों, फेंक रहे जो पत्थर, हिंसक मूढ़ अनाड़ी। भर शुभत्व दो, उनके मन में भी मां वाणी। . परिचय :-  नाम - शरद मिश्र 'सिंधु' उपनाम - सत्यानंद शरद सिंधु पिता का नाम - श्री महेंद्र नारायण मिश्र माता का नाम - श्रीमती कांती देवी मिश्रा जन्मतिथि - ३/१०/१९६९ जन्मस्थान - ग्राम - कंजिया, पोस्ट-अटरामपुर, जनपद- प्रयाग राज (इलाहाबाद) निवासी - पारा, लखनऊ, उ. प्र. शिक्षा - बी ए, बी एड, एल एल बी कार्य - वकालत, उच्च न्यायालय खंडपीठ लखनऊ सम्मान - सर्वश्रेष्ठ युवा रचनाकार २००५ (युवा रचनाकार मंच लखनऊ), चेतना श्री २००३, चेतना साहित्य परिषद लखनऊ, भगत सिंह सम्मान २००८, शिव सिंह सरोज स्मारक संस्थान सम्मान २०१९ संपादन - ...
हाँ मैं वही सिपाही हूँ
कविता, छंद

हाँ मैं वही सिपाही हूँ

नफे सिंह योगी मालड़ा सराय, महेंद्रगढ़ (हरि) ******************** मैं ध्रुव तारे सा अचल, अटल, सदियों से खड़ा स्थाई हूँ। निश्चिंत हिंद जिस दम सोता, जी हाँ मैं वही सिपाही हूँ।। घर,परिवार व प्यार त्याग मैं, सरहद पर तैनात खड़ा हूँ। करुँ मौत से मस्ती हरदम, खतरों से सौ बार लड़ा हूँ। हिंद नाम लिखा जिसने हिम पर, मैं उसी रक्त की स्याही हूँ। निश्चिंत हिंद जिस दम सोता, जी हाँ मैं वही सिपाही हूँ।। है धरती सा धीरज मुझमें, व आसमान सा ओहदा है। हिम्मत हिमालय सी रखता, सदा किया मौत से सौदा है। अपनों पर जान गँवाता हूँ, दुश्मन के लिए तबाही हूँ। निश्चिंत हिंद जिस दम सोता, जी हाँ मैं वही सिपाही हूँ।। बाहों में सिसके दर्द सदा, आँखों में निंदिया रोती है। सपनों में दिखता दुश्मन को, चिंता मुझको ना खोती है। मैं लक्ष्य हेतु जितना थकता, होता उतना उत्साही हूँ। निश्चिंत हिंद जिस दम सोता, जी हाँ मैं वही सिपाही हू...
वंदना …
छंद, धनाक्षरी

वंदना …

शरद मिश्र 'सिंधु' लखनऊ उ.प्र. ********************** वीणा वादिनी विभव वारिए विकल वत्स वंदना विडंबना वरंच विलगाईये। लाल लाल लहू लक्ष्म लोचन ललाम लुप्त लूला लाल लग लक्ष्य लकुट लड़ाईए। स्वर सुधा सरिता सलिल सरसाए स्याम सूत्र सार सबको सुदामा सा सुनाईए। कामना कि कमलासिनी कपट कलुषों को काटके कलंकहीन कीर्ति करवाईए। . लेखक परिचय :-  नाम - शरद मिश्र 'सिंधु' उपनाम - सत्यानंद शरद सिंधु पिता का नाम - श्री महेंद्र नारायण मिश्र माता का नाम - श्रीमती कांती देवी मिश्रा जन्मतिथि - ३/१०/१९६९ जन्मस्थान - ग्राम - कंजिया, पोस्ट-अटरामपुर, जनपद- प्रयाग राज (इलाहाबाद) निवासी - पारा, लखनऊ, उ. प्र. शिक्षा - बी ए, बी एड, एल एल बी कार्य - वकालत, उच्च न्यायालय खंडपीठ लखनऊ सम्मान - सर्वश्रेष्ठ युवा रचनाकार २००५ (युवा रचनाकार मंच लखनऊ), चेतना श्री २००३, चेतना साहित्य परिषद लखनऊ, भगत सिंह सम्मान २००८, शिव सिंह सरोज...