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पद्य

वंचनाओं के मसौदे गढ़ रहे हम
कविता

वंचनाओं के मसौदे गढ़ रहे हम

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल मध्य प्रदेश ******************** रक्त चूसक पोथियों की वादियों में। सोच करती संक्रमित उन व्याधियों में। भ्रांतियों का नव हिमालय चढ़ रहे हम।।१ रक्त में उन्माद का विष घोलता जो। पत्थरों के कान में सच बोलता जो।। पाठ्य पुस्तक द्वेष की ही पढ़ रहे हम।।२ लोकतंत्री बैल को डाली नकेलें। हाशिये पर पीटते गुरु और चेलें।। फिर पुरातन पंथ पर ही बढ़ रहे हम।।३ परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी- बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु ...
हस्ती
कविता

हस्ती

ममता रथ रायपुर ******************** ये सच है कि मेरी कोई हस्ती नही है पर जो भी है वह कागज़ की कश्ती नही है जिसे कोई बहा दे बरसाती नाले में या फेंक दे कोई कूड़े दान में मेरी हस्ती कोई मिट्टी की मूरत भी नहीं जिसे कुछ दिनो तक पूज कर फिर पानी मे पवाहित कर दिया जाए मेरी हस्ती किसी के हाथ की कठपुतली भी नहीं जिसे जो चाहे अपने ही इशारे पर नचाते रहे और अंत मे डोर को कस दे सच तो ये है कि मै जो हूँ मुझे वैसा ही स्वीकारा जाए और उसे प्यार और विश्वास से सीचा जाए हाँ तभी होगा मुझे गर्व अपनी प्यारी सी हस्ती पर परिचय :-  ममता रथ पिता : विद्या भूषण मिश्रा पति : प्रकाश रथ निवासी : रायपुर जन्म तिथि : १२-०६-१९७५ शिक्षा : एम ए हिंदी साहित्य सम्मान व पुरस्कार : लायंस क्लब बिलासपुर मे सम्मानित, श्री रामचन्द्र साहित्य समिति ककाली पारा रायपुर २००३ में सांत्वना पुरस्कार, लोक राग मे प्रकाशित, रचनाकार में प्रकाश...
प्रेम पथ
कविता

प्रेम पथ

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** प्रेम मार्ग अति कठिन, चलना होता मुश्किल, जब तक राह नहीं चले, लगती है झिलमिल, जब चल पड़ते राह पर, कठिन हो तिल तिल, खुशी और गम मिले, मंजिल जब जाये मिल। हीर-रांझा चले राह पर, अंतिम मौत ही पाई, सोहनी और महिवाल ने, प्रेम पथ ही निभाई, कभी-कभी इस मार्ग में, मिले बड़ी कठिनाई, कभी-कभी इस राह में, ,चलकर नाम कमाई। प्रेम पथ कांटों भरा होता, चलना संभल संभल, प्रेम पथ पर चलकर ही, प्रेमी दूर जाता निकल, प्रेम पथ एक दरिया हो, कितने हो चुके विफल, प्रेमी दर्द में चलते रहते, अंत में होते हैं सफल। प्रेम मार्ग पर जब चले थे, शीरी और फरियाद, प्रेम बात जब चलती है, उनको करते सब याद, प्रेमी युगल आगे बढ़ता नहीं करता वो फरियाद, प्रेम पथ पर सफल रहा, जग करता उनको याद। प्रेम पथ एक सागर है, कितनों ने नैया उतारा है, कुछ उतर गये कुछ डूबे, कितने जन पछताए हैं, कि...
जिंदगी का ताना बाना
कविता

जिंदगी का ताना बाना

प्रियंका पाराशर भीलवाडा (राजस्थान) ******************** एक-दूसरे पर छींटाकशी छोड़कर कल जो था वो भूलकर नहीं रहे मन मसोस कर संभले आज को जीकर मन के भाव सँवार कर तृप्त हो जाए हम प्यार परोसकर प्यार के एहसासो को चुनकर संग-संग जिंदगी का ताना बाना बुनकर जो बिखरा है उसे समेटकर और कुछ उधडा है तो उसे सीकर मिलन की आस को पूरा कर खुशियों के रंग बिखेरकर एक दूजे की सुनकर चले समझ कर सँभाल कर पहले से हो जाए ओर भी बेहतर दिल का हर जख़्म जाए भर क्योंकि समय का पहिया चले निरंतर कितना भी हो जाए अगर मगर बीच राह मे छोड़, न जाना ठहर रूह से रूह का आलिंगन कर जन्मो जन्मो तक चले संग, बनकर हमसफर परिचय :- प्रियंका पाराशर शिक्षा : एम.एस.सी (सूचना प्रौद्योगिकी) पिता : राजेन्द्र पाराशर पति : पंकज पाराशर निवासी : भीलवाडा (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं...
इश्क ही वो इश्क ही क्या
कविता

इश्क ही वो इश्क ही क्या

रूपेश कुमार (चैनपुर बिहार) ******************** इश्क ही वो इश्क ही क्या, जिसमें जीवन की ना रुसवाईया हो, ना उसमें दर्द भरी तनहाईयाँ हो, और ना नयनों मे आँशु की बरसात हो, और ना उसमें तड़प हो ना गरज हो, तो वो फिर इश्क ही क्या है! इश्क ही वो इश्क ही क्या , जिसमें सातों जन्मों-जन्मों का स्वप्न ना हो, जिसमें खुशियों की अंबार ना हो, जिसमें तारों को तोड़कर लाने जैसी स्वप्न ना हो, जिसमें रात को दिन और दिन को रात ना लगे, तो वो फिर इश्क ही क्या है! इश्क ही वो इश्क ही क्या, जिसमें बिन दर्द का दर्द ना हो, जिसमें बिन नींद का चैन ना हो, जिसमें बिन रोग का रोगी ना हो, जिसमें जाति-धर्म मिट ना जाएँ, तो वो फिर इश्क ही क्या है ! इश्क मे अंधापन होना चाहिए, ना जाति ना धर्म सिर्फ प्रेम का भूत हो, जिसमें ना जिस्म की लालसा हो, ना कुछ लेने का लोभ-लालच, सिर्फ निस्वार्थ प्रेम की चाह हो, असली इश्क तो वही है जो ...
इश्क की सुबह कब होगी
कविता

इश्क की सुबह कब होगी

मनमोहन पालीवाल कांकरोली, (राजस्थान) ******************** इश्क की सुबह कब होगी जाने, वो रात कब होगी गुजर रही है ये धीरे धीरे ढा रही है वो गज़ब होगी रास्तो की नही मंज़िले है जो मर्जी रब की होगी बात तुम चाहो वही हो वह रात यहां तब होगी तेरे वादो से लिपटा हूॅ मै वो बाते यहा सब होगी कुछ तुम्हारी कुछ हमारी यहा अपनी अदब होगी जमाना देखेगा मोहन को इश्क मे बात अजब होगी परिचय :- मनमोहन पालीवाल पिता : नारायण लालजी जन्म : २७ मई १९६५ निवासी : कांकरोली, तह.- राजसमंद राजस्थान सम्प्रति : प्राध्यापक घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवा...
नारी की वेदना… नदी से
कविता

नारी की वेदना… नदी से

रागिनी सिंह परिहार रीवा म.प्र. ******************** सरिता सी सर-सर बहती हो, जाने कितनी वेदना सहती हो, जब सागर से जा मिलती हो। तब नारी की उपमा बनती हो।। सुख-दुःख भी तुझमे सारा है, जीवन की तु परिभाषा है, हर नारी की तुम आशा हो। सुख-दुःख जीवन का साया है।। नारी ममता की धारा है, तीनो पक्षो को लेकर जब चलती है, सात पुस्तो का नाम रोशन करती है। हे, तटिनी, तरंगिणी, निर्झरिणी, कुलंकषा, अपगा तुमसे मेरी ये विनती है, जीवन की धार नदी करदो, सागर से जाकर मिल जाऊं। साहिल में जाकर लग जाऊं।। ये झील सी आँखों में लेकर पीड़ा, मीरा की वेदना बन जाऊं, गिरधर गोपाला मैं गाऊ। नदियाँ हूँ सागर से मिल जाऊं।। तेरे प्यार के रंग में रंग जाऊं।।। परिचय :- रागिनी सिंह परिहार जन्मतिथि : १ जुलाई १९९१ पिता : रमाकंत सिंह माता : ऊषा सिंह पति : सचिन देव सिंह शिक्षा : एम.ए हिन्दी साहित्य, डीएड शिक्षाशात्र, पी.जी.डी.सी.ए. कंप्यूटर...
बेइंतेहा मोहब्बत
कविता

बेइंतेहा मोहब्बत

श्वेतल नितिन बेथारिया अमरावती (महाराष्ट्र) ******************** दिल है मेरा तुम्हारे लिए ही बेकरार दिल को मेरे सिर्फ तुम्हारा है इंतज़ार। नहीं कटते हैं पल-पल दिन और रात करा दो एक बार तुम अपना दीदार। कर बैठे हैं तुमसे ही हम बेइंतेहा प्यार अब कैसे यकीं दिलाऊं तुम को यार। सिर चढ़के बोल रहा मुझमे तेरा खुमार जनम-जनम के लिए चाहिए तेरा प्यार। आगोश में समेटो श्वेतल को जाने बहार करूंगी टूटकर मोहब्बत तुमसे बेशुमार। परिचय - श्वेतल नितिन बेथारिया निवासी - अमरावती (महाराष्ट्र) घोषणा पत्र - मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाई...
मौसम
कविता

मौसम

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** मोहब्बत को याद करों दिल फिर से जवां हो जाता ख़्वाब हो पुराने मगर आंखों में फिर चमक दे जाता। वसंत के आने से मन गुनगुनाता प्यार का पंछी भी गीत गाता धड़कन ऐसी धड़कती की डालियों से पत्ता टूट जाता। कहते वसंत ऋतु में ऐसे ही आता आमों पर लगे मोर फूल सुहाते ताड़ी के भी ऊँचें पेड़ शोर मचाते सूने पहाड़ भी गीत गुंजाते टेसू भी ये सब देख मुस्कुराते। मौसम भी यदि बेमौसम हो जाते प्यार के मौसम को कैसे भूल जाते रूठना हो तब औऱ मौसम रूठ जाते वसंत ऋतु प्यार को सभी प्रेमी मनाते। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन :- देश - विदेश की विभिन्न पत्र - पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प्रकाशित काव्य कृति "दरवा...
दिखाकर वो छुपाना चाहता है
ग़ज़ल

दिखाकर वो छुपाना चाहता है

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** दिखाकर वो छुपाना चाहता है। मुझे फिर आज़माना चाहता है। निशाने पर सभी के आज में हूँ, कि किस-किस से बचाना चाहता है। घड़ी भर दिल्लगी में साथ रहकर, वो मुझपे हक जताना चाहता है। जताया है मुझे उसने सितमग़र, मुझे फिर से मनाना चाहता है। जो ग़ज़लें पहले गाकर छोड़ दी है, उन्हें फिर गुनगुनाना चाहता है। हवा और मौज के इस इम्तिहाँ में, परिंदा पर उठाना चाहता है। निभाता है जिन्हें वो दूसरों से, उन्हें मुझसे निभाना चाहता है। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचन...
निराला के प्रति चार मुक्तक
मुक्तक

निराला के प्रति चार मुक्तक

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच ******************** एक नई पहचान बनाई, नई कविता दे कर के। नश्वर जग में अमर हो गए, सदा निराला यूं मरके।। कविता उनकी सीधे-सीधे, दर्दों से संवाद रही। उनकी आंखों में आंसू थे, जिनके दिल थे पत्थर के।। इंसानों की खिदमत में वे, रहे सर्वदा कब हारे। झुके गर्विले पर्वत उनके, आगे देखें हैं सारे।। वही किया जो सोचा मन में, कथनी करनी एक रही। नहीं निराला बने भूलकर, मानवता के हत्यारे।। दान नहीं स्वीकार किया है, लड़कर के अधिकार लिया। वही किया है इस दुनिया में, जब-जब जो-जो धार लिया।। सत्य धर्म के रहे निकट वे, महाप्राण मानवतावादी। इसीलिए जनता का दिल से, प्यार "अनंत" अपार लिया।। सूर्यकांत निराला के जो, व्यवहारों का दर्शन भी। सफल हुए करने में लोगों, लाए है परिवर्तन भी।। भरते थे वे खाली झोली, "अनंत," करते हमदर्दी। उनकी देखा देखी करलो, सदा करें मन नर्तन भी।। परिचय :- अख्त...
विद्या की माता शारदे
गीत

विद्या की माता शारदे

संजय जैन मुंबई ******************** वो ज्ञान की माता है सरस्वती नाम है उनका-२। वो विद्या की माता है। शारदा माता नाम उनका। वो ज्ञान की माता है।। हाय रे मनका पागलपन मुझ से लिखवाता है। क्या मुझे लिखना क्या वो लिखवता ये तो वो ही जाने-२। मन में मेरे वो आकर लिखवाते है मुझसे।। वो ज्ञान की माता है..।। इधर जिंदगी झूम रही है उधर मौत खड़ी। कोई क्या जाने कब आ जाये मेरा बुलावा जी-२। और क्या लिखना मुझको रह गया है अब बाकी। वो ज्ञान की माता है...।। मेरे दिल और ध्यान में सदा रहती है माता जी। जो कुछ भी मैं लिखता और गाता उनके कृपा दृष्टि से-२। मैं उनके चरणो में वंदन बराम्बार करता। वो ज्ञान की माता है..।। परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और...
हे वीणा वादिनि कृपा कर दो
कविता

हे वीणा वादिनि कृपा कर दो

सपना मिश्रा मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** हे वीणा वादिनी, हे ज्ञान की देवी, कृपा कर दो। ज्ञान से अपने हमें भर दो। हे ममता की मूरत, है वर्णों की ज्ञाता, वेद पुराणों की भाषा, हे भाग्य विधाता, आशीष से अपने हमें तर दो। हे वीणा वादिनी, कृपा कर दो। हे मां शारदे, सुर ताल से अपने हमें स्वर दो। हे वीणा वादिनी, हे संगीत की देवी, सरगम में स्वर भर दो। करती हो कृपा सब पर हम पर भी कृपा कर दो। ज्ञान से अपने हमें तर दो। परिचय :- सपना मिश्रा निवासी : मुंबई (महाराष्ट्र) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाई...
ऋतुराज बसंत
कविता

ऋतुराज बसंत

विरेन्द्र कुमार यादव गौरा बस्ती (उत्तर-प्रदेश) ******************** जब हुआ जग के सृष्टि का प्रारम्भ, जग के सृष्टिकर्ता है भगवान बह्म। खास रुप से मनुष्य की किये रचना, परंतु स्वयं को ही न जची ये संरचना। तब ब्रह्मा ने किया बिष्णु का आवाहन, जो प्रयोग करते गरुणपंक्षी का वाहन। विष्णु लिये शक्ति की देवी को बुलाये, शक्तिदेवी,विष्णु दिये नयी देवी बनाये। ये नयी देवी जीवो में वाणी दी जगाय, नव देवी माता सरस्वती देवी कहलाय। ये देवी धारण की अपने कर में वीणा, वो पलभर में हरती जगत की पीड़ा। वीणा बजाकर वीणावादीनी कहलाई, शारदे ने सबको ज्ञान का पाठ पढ़ाई। आज माँ सरस्वती की जाती है पूजा, शारदे के अतिरिक्त नाम न आये दूजा। हिन्दू मनाये बसंंत पंचमी का त्यौहार, बना के रखे अपना आपसी व्यवहार। प्रकृति बहुरंगी रुप धर सबको लुभाये, आम पेड़ की डाल पर बौर लग जाये। सरसों के पीले रंग देख मनमुग्ध हो भाई, लगे नयी दुल्हन पीली ओ...
आया बसंत
कविता

आया बसंत

राहुल सावनेर पुनासा (मध्य प्रदेश) ******************** स्वागत है ऋतुराज तुम्हारा ऋतुओं पर हे राज तुम्हारा नाही शरद ओर नाही ग्रीष्म है कबसे था आसरा तुम्हारा अमुओ पर हे बौर है आए डाल डाल पर सुमन हे छाए भोरे भी अब लगे गूंजने कोयल मीठे गीत है गाए झांके सूर्य बादल इतराए किरणे छन छन धरा पे आए ऋतुराज आए हे धरती पर सुबह शाम ये सब को बताए परिचय :- राहुल सावनेर निवासी - पुनासा (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अ...
अपेक्षा और उपेक्षा
कविता

अपेक्षा और उपेक्षा

ममता श्रवण अग्रवाल (अपराजिता) धवारी सतना (मध्य प्रदेश) ******************** जब मन में न हों अपेक्षाएं, तब दर्द नहीं देती उपेक्षाएं। दर्द को समेटे अपनी झोली में, ये मन सदा यूँ ही मुस्कुराये।। खुशियों को जब हम ढूंढते है, किसी और की निगाह से। और जब मिलते हैं वहाँ कांटे, फिर भटक जाते हैं हम राह से।। आ जाती है मन में एक हुक, कि, ऐसा क्यों हुआ मेरे साथ। अरे ये जमाने का ही चलन है, क्यों न समझी अब तक बात।। कभी जमाना साथ चले न, जब तक आप चलें अकेले। पर जिनको है लक्ष्य को पाना, चलें अकेले वे अलबेले।। और जब मिल जाती उनको मंजिल, सब आ जाते हैं देने साथ। और दिखाते हैं अपनापन, थाम के अपने हाँथो में हाँथ।। अतः अपेक्षा और उपेक्षा की, हमको हो परवाह नही। हम सदा चलें अकेले ही, बस चलें हम राह सही।। परिचय :- ममता श्रवण अग्रवाल (अपराजिता) निवासी - धवारी सतना (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित क...
तुम जब
कविता

तुम जब

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** बसंत तुम जब आते हो। प्रकृति में नव-उमंग, उन्माद भर जाते हो। बसंत तुम जब आते हो हवाएं चलती हैं सुगंध ले कर। जीवन में खुशबू बिखराते हो। बसंत तुम जब आते हो। कितने नए एहसास जागते हैं। सृजन की प्रेरणा दे। नित-नूतन संसार सजाते हो। हर तरफ फूलों से बगियाँ तुम सजाते हो।। कहीं पीले -कहीं नारंगी। लाल गुलाब महकाते हो। बसंत तुम जब आते हो। जीवन में उमंग भर जाते हो। नदिया इठला कर चलती है। दिनों में मस्ती छा जाती है। मीठी-मीठी धूप में , शीतल चांदनी-सी रात झिलमिलाती है । आसमां में चहकते हैं पक्षी। कोयल के साथ मधुर गीत गाते हो। बसंत तुम जब आते हो। जीवन में उमंग भर जाते हो। नई आस-नई प्यास नए विचार-नए आधार। बन कर रच जाते हो। बसंत तुम आते हो। नई तरंग से जीवन को, तरंगित कर जाते हो।। परिचय :- प्रीति शर्मा "असीम" निवासी - सोलन हिमाचल प्रदेश घ...
तुमईं न्यारे हो गए
ग़ज़ल

तुमईं न्यारे हो गए

प्रेम प्रकाश चौबे "प्रेम" विदिशा म.प्र. ******************** बेटा, तुमईं न्यारे हो गए। कैसे भाग, हमारे हो गए। भई सुसरार प्यारी तुम खों, हम तो, बिना सहारे हो गए। हम जानत्ते, सूरज बनहौ, तुम तो, बदरा कारे हो गए। चीर कलेजो मां को डारौ, बेटा, तुम तो आरे हो गए। पाल-पोस कै, बड्डे कर दये, मोड़ा-मोडिन वारे हो गए। पिता तुम्हारे, हते सहारे, बे ई "राम खों प्यारे" हो गए। "प्रेम" खौं बंद, गैर खौं खुल रये, ऐसे कैंसे द्वारे हो गए? परिचय :-  प्रेम प्रकाश चौबे साहित्यिक उपनाम - "प्रेम" पिता का नाम - स्व. श्री बृज भूषण चौबे जन्म -  ४ अक्टूबर १९६४ जन्म स्थान - कुरवाई जिला विदिशा म.प्र. शिक्षा - एम.ए. (संस्कृत) बी.यु., भोपाल प्रकाशित पुस्तकें - १ - "पूछा बिटिया ने" आस्था प्रकाशन, भोपाल  २ - "ढाई आखर प्रेम के" रजनी  प्रकाशन, दिल्ली से अन्य प्रकाशन - अक्षर शिल्पी, झुनझुना,...
सरस्वती वंदना
भजन

सरस्वती वंदना

डॉ. पंकजवासिनी पटना (बिहार) ******************** जय शारदे माँ! जय शारदे माँ! अज्ञानता से हमें तार दे माँ!! बढ़ रहा तिमिर घनघोर चहुँओर! अँधियारे जग का नहीं ओर छोर!! सब ओर दिव्य प्रकाश भर दे माँ!!! जय शारदे माँ! जय शारदे माँ! अज्ञानता से हमें तार दे माँ!! हृदय में भरा है घना अँधेरा! स्वार्थ वैमनस्य डाले है डेरा!! हृदय में निर्मल प्रेम का सर दे माँ!!! जय शारदे माँ! जय शारदे माँ! अज्ञानता से हमें तार दे माँ!! असहिष्णुता से हुई हवा जहरीली! अविश्वास का दुनिया विष पी ली!! मन का कलुष सब तू हर ले माँ!!! जय शारदे माँ! जय शारदे माँ! अज्ञानता से हमें तार दे माँ!! निज दुख से दुनिया है अकुलाई! यहाँ समझे न कोई पीर पराई!! परदुखकातरता का निर्झर दे माँ!!! जय शारदे माँ! जय शारदे माँ! अज्ञानता से हमें तार दे माँ!! तू ही है शक्ति! तू ही है भक्ति!! तू ही एक सहारा.. दग्ध हृदय ने तुझको पुकारा. एक बार स्न...
प्यार के किस्से
कविता

प्यार के किस्से

धीरेन्द्र पांचाल वाराणसी, (उत्तर प्रदेश) ******************** मिले थे कल जो तुमसे हम, उसी बाजार के किस्से। लिखूंगा आज कागज पर, हमारे प्यार के किस्से। पलटकर देखता था मैं, इरादे नेक थे अपने। थोड़ी शैतानियां भी थी, थोड़े एहसास थे अपने। तलाशा अंजुमन में भी, तेरे दीदार के किस्से। लिखूंगा आज कागज पर, हमारे प्यार के किस्से। हसरतें मिटती कहाँ थीं, मामला तब दिल का था। बोतलें टिकती कहाँ थीं, कश्मकश महफ़िल में था। कह रहा था नाव से मझधार के किस्से। लिखूंगा आज कागज पर, हमारे प्यार के किस्से। तड़पना लाजमी था पर, मुझे मालूम था इतना। सफर कांटों का भी होगा, गुलाबों का जतन जितना। तबियत से लिखूंगा मैं तेरे रुख़सार के किस्से। लिखूंगा आज कागज पर, हमारे प्यार के किस्से। परिचय :- धीरेन्द्र पांचाल निवासी : चन्दौली, वाराणसी, उत्तर प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक ...
पुलवामा के वीर सपूत
कविता

पुलवामा के वीर सपूत

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** पुलवामा के वीरों से, घात करें थे घाटी में। बैठे गोडसे दिल्ली में, जयचंद पावन माटी में। गीदड़ पहुंचे शेरों तक, छल कर तेरी गोदी में। हंसते-हंसते शहादत पाये, नगराज की चोटी में। गंगा-यमुना चीख उठी, सिंदूर मिली जब माटी में। भेंट चढ़ थी कितनी राखी, जन्नत तेरी छाती में। बेबस बूढ़ी आंखें छलकी, इन वीरों की यादों में। बिलख-बिलख मां रोई, उम्मीदे बिखरी लाशों में। नन्हीं-नन्हीं परियां चीखी, सपने मिल गये माटी में। हिंदुस्तानी धरती रोये, इन शेरों की शहादत में। कदम उठा लो अंतिम, गोली दागो दुश्मन में। अब मत खोजो मानवता, इन नरभक्षी गिर्द्धो में। परिचय :- डॉ. भगवान सहाय मीना (वरिष्ठ अध्यापक राजस्थान सरकार) निवासी : बाड़ा पदम पुरा, जयपुर, राजस्थान घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेर...
हर तरफ यार का तमाशा है
कविता

हर तरफ यार का तमाशा है

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** खिलखिलाकर वो हँस रहे, मन से हटी सब निराशा हैं, लो हम सभी हँसे खुलकर, हर तरफ यार का तमाशा है। मंजिल के करीब पहुंच गये, नय कह रहे अजब भाषा है, नहीं कभी हम यूं पीछे हटेंगे हर तरफ यार का तमाशा है। खेल रहे हम मिल बागों में, जीत की मन लिये आशा है, आखिर बाजी जीत ही लेंगे, हर तरफ यार का तमाशा है। नयन मिले जब दोनों के तो, समझ गये नैनों की भाषा है, प्रेम आलिंगन नजर आये वे, हर तरफ यार का तमाशा है। चांद पर जरूर कदम रखेंगे, पहुंच गये सीधे यूं नासा है, आखिर चांद को छू लें हम, हर तरफ यार का तमाशा है। हमने क्या खोया विगत वर्ष, लो करते आज खुलासा है, नये वर्ष में होंगे काम सुंदर, हर तरफ यार का तमाशा है। हंसना चाहिए दिनरात सदा, क्यों बैठ गये अब उदासा है, निठल्ले बैठ पाप लगता चूंकि हर तरफ यार का तमाशा है। पा जाये विश्व ज्ञान एक दिन, चूंकि दिल...
बेटी
कविता

बेटी

विरेन्द्र कुमार यादव गौरा बस्ती (उत्तर-प्रदेश) ******************** आधुनिक बेटीयाँ पढ़ लिखकर छू रही आसमान, बेटी किसी की भी हो उनका करो हर समय सम्मान। आधुनिक समाज में दानव बनता जा रहा दहेज, दहेज का बढ़ता जा रहा कलयुग में तेजी से क्रेज। दुल्हन को सदा समझे पढ़े-लिखे युवा दहेज, अपने समाज से दहेज के दानव को दे दूर भेज। बेटियाँ होती सदा हर घर-परिवार का गहना, बेटियाँ मानती सदा परिवार के सभी सदस्यों का कहना। सभी बेटियाँ होती बहुत ही कीमती व अनमोल, समाज बेटियों को दहेज के रूप में दूसरों को देता तोल। शादी के बाद वही बेटी दूसरे परिवार में बहू बन के जाय, नित्य प्रतिदिन ससुराल में भी सबको पिलाये वह चाय। सभी बहु-बेटियों का समाज में करे मान सम्मान, दहेज के कारण किसी भी बेटी का न जाने पाये जान। देश, समाज की बेटीयों को बचाओ! मानव सृष्टि विलीन होने से बचाओ! परिचय :- विरेन्द्र कुमार यादव निवासी : गौरा बस...
साथ मेरी जो राह कर लेता
ग़ज़ल

साथ मेरी जो राह कर लेता

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** साथ मेरी जो राह कर लेता। मैंभी उससे निभाह कर लेता। मानता मैं नहीं भले अपनी, साथ उसके सलाह कर लेता। गीत कोई जो गुनगुनाता वो, मैं उसे अपनी आह कर लेता। देखकर पास से कहीं उसको, रोज़ कोई गुनाह कर लेता। चाँद जो हाथ में नहीं आता, मैं सितारों की चाह कर लेता। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्...
हुआ दर्द से प्यार
गीत

हुआ दर्द से प्यार

महेश चंद जैन 'ज्योति' महोली ‌रोड़, मथुरा ******************** तुम्हीं बताओ कैसे तोड़ूँ किये हुए अनुबंध? आँखें खोलीं, मिली पाॅव को दलदल की सौगात, सीख लिया तब से नयनों ने जगना सारी रात, पीर महकने लगी उठी आँसू से मधुर सुगंध। पथरीली राहें पाॅवों में पड़ी अनेकों ठेक, संघर्षों का साॅझा चूल्हा रहा उन्हें था सेक, जुड़ा पसीने का पीड़ा से मिसरी सा संबंध। साथ चले फिर गये छोड़कर नदिया के मॅझधार, जैसे-तैसे बाहर आये बैठे हैं इस पार, अब कुछ झुके हुए से लगते तने-तने स्कंध। और वज़न कुछ बढ़ा शीश पर लेता दर्द हिलोर, कितनी दूर और रजनी से होगी सुंदर भोर, साॅसें थोड़ी इनी-गिनी सी टूटेगा फिर बंध। साथ पुराना दर्द लगे अब अपना मुझको यार, टीस उठे तो लगता उसने जतलाया है प्यार, अंत समय तक साथ निभेगा अनुपम किया प्रबंध। परिचय :- महेश चंद जैन 'ज्योति' ...