मन में खटके बात
गाज़ी आचार्य 'गाज़ी'
मेरठ (उत्तर प्रदेश)
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रीत यहाँ की देख के, मन में खटके बात |
मनुज विवेकी कौन थे, जिसने बाँटी जात || [१]
पीड़ा जग की देख के, मन में खटके बात |
कौन कर्म है आपके, व्यथा भोग दिन-रात || [२]
गुड से मीठे बोल है , थाम चले है हाथ |
पग - पग मेरे साथ है, देत गैर का साथ || [३]
बेमतलब है ये हँसी, मन में खटके बात |
पर्तें मुख पर लाख है, दिखते है जज़्बात || [४]
ऊँचे उसके बोल है, वार्ता करे अकाथ |
आन शीश विपदा खड़ी, जोड़ फिरे जग हाथ || [५]
माथे पर है सिलवटें, मन में खटके बात |
डोल रहे करते भ्रमण, साँझ न देख प्रभात || [६]
परिचय :- गाज़ी आचार्य 'गाज़ी'
निवासी : मेरठ (उत्तर प्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।
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