मज़हब
राजेन्द्र लाहिरी
पामगढ़ (छत्तीसगढ़)
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रार मचा रखा जाता है
करके बजबज,
सभी को लगता है
सबसे अच्छा है हमारा मज़हब,
लोगों को उकसाया जाता है,
लाठियां, तलवारें घुमाया जाता है,
मुल्क़ का माहौल बिगाड़
अपना माहौल बनाया जाता है,
भड़काता है,
उकसाता है,
अपनी उस्तादी दिखाता है
पचपन,
जिसमें पिस जाता है
उमंगों से, रंगों से भरा
निःस्वार्थ बचपन,
लाभ ये ठेकेदार
उठा ले जाते हैं
देश भर में फैला के
खचपच,
सभी कहते हैं
सबसे अच्छा है
हमारा मज़हब,
वे भूल जाते हैं कि
जरूरतों, परिस्थितियों
के हिसाब से
तय होता है
सबका मजहब,
दुख का मज़हब
खुशी होता है,
घायल का मज़हब
इलाज होता है,
इंसान का मज़हब
इंसानियत होता है,
भूखे पेट का मज़हब
रोटी होता है,
खिलाड़ी का मज़हब
खेल होता है,
उच्चलशृंखता का
मज़हब नकेल होता है,
अब बताओ कहां है
तुम्हारा मज़हब,
बात करने आ जाते है...