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Tag: सुधीर श्रीवास्तव

जीवन की भूल
हास्य

जीवन की भूल

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** इधर पांच राज्यों में चुनावी तारीखों का एलान हुआ, नेताओं में खुशियां थीं पर मेरा बुरा हाल हुआ। एक एक करके कई बड़े नेताओं का फोन पार्टी स्टार प्रचारक का आफर के साथ आया मैं हैरान परेशान हो गया ये सब क्या से क्या हो गया। अब इन सबको समझाना मुश्किल हो रहा था स्टार प्रचारक बनकर क्या झंडा हिलाना है। मैंने भी दिमाग चलाया एक को अपने जाल में फंसाया बड़े बुद्धिमान हो तो मुझे पार्टी का चेहरा बनाओ कहीं से भी चुनाव लड़वाओ मेहनत करोगे तो जीत ही जाऊंगा, मुख्यमंत्री बनाओगे तो दूसरी पार्टी के विधायकों को तोड़ लाऊंगा। पहले करोड़ों का खुला आफर दूंगा फेल हुआ तो धमकियां दूंगा, कुर्सी के लिए दो चार विकेट भी लेना पड़ा तो ले लूंगा, बिल्कुल नहीं शरमाऊँगा पर मुख्यमंत्री तो मैं ही बनूंगा। मेरा आफर...
चलो चांद की ओर
हास्य

चलो चांद की ओर

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** ये क्या कर रहे हो यार अभी-अभी तो चंद्रयान पहुँचा ही है और आपके मुंह में भी पानी आने लगा, कम से कम कुछ सभ्यता सीखो, मानवता दिखाओ। अभी थोड़ा इंतजार तो करो अपने सब्र का जिगरा तो दिखाओ। अभी चंद्रयान को ही मामा की आवभगत का भरपूर आनंद तो लेने तो, मामा के बात व्यवहार औकात का कुछ पता तो लगने दो, इतना न हड़बड़ाओ, नग्नता पर न उतर आओ अपनी धरती मां का अपमान तो न कराओ इतना भुक्खड़ हो ये चंदा मामा से छिपाओ शरीफ भांजे बनकर तो दिखाओ। क्या पता मामा का रहन सहन घर बार कैसा है? इतना पता तो लगने दो चंद्रयान की चिट्ठी तार, स्क्रीन शॉट तो आने दो मामा को भी इतना तो मौका दो कि वे हमारे खाने पीने रहने का इंतजाम तो कर सकें। ऐसी भी जल्दबाजी न करो कि हमें बेशर्म मानकर रुठ जायें खाने-पीने के नाम ...
समरांगण से… पुस्तक समीक्षा
पुस्तक समीक्षा

समरांगण से… पुस्तक समीक्षा

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** पुस्तक समीक्षा समरांगण से... आज की पीढ़ी के लिए अनूठा उपहार ओज के युवा हस्ताक्षर शिक्षक कवि हेमराज सिंह "हेम" की प्रथम कृति "समरांगण से... " को पढ़ते हुए बहुत गर्व की अनुभूति हो रही है कि हमारे बीच का एक युवा ओज लिखते-लिखते इतनी गहराई में उतर गया कि आध्यात्मिकता से भरपूर श्रीमद्भगवत गीता को सरल शब्दों में काव्यमय रुप में आम जनमानस के बीच संपूर्ण गीता को सहज ग्रहणीय कृति के रूप प्रस्तुत करके नई पीढ़ी के कलमकारों के लिए रास्ते खोल दिए हैं। पूज्य पिता श्री राजेन्द्र सिंह जी और माताश्री श्रीमती प्रभात कँवर जी को समर्पित हेम प्रस्तुत महाकाव्य "समरांगण से......की भूमिका में वरिष्ठ साहित्यकार विजय जोशी जी ने लिखा है कि अपने परिवेश में सजगता से यात्रा करता हुआ व्यक्ति जब अपनी संस्कृति और संस्कार के सानिध्...
अयोध्याधाम में “मतंग के राम”
संस्मरण

अयोध्याधाम में “मतंग के राम”

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ********************  १५ नवंबर २०२२ का दिन, जब हमारे प्रिय आ. आर.के. तिवारी मतंग जी सपत्नीक हमारे बस्ती प्रवास स्थल पर गोरखपुर से लौटते हुए मेरा कुशल क्षेम लेने आये, आपसी बातचीत और संवाद के बीच ही मई जून २३ में अयोध्या में एक अखिल भारतीय कवि सम्मेलन एवं पुस्तक विमोचन आयोजन कराने की इच्छा व्यक्त की, तभी तत्काल इस बारे में मतंग जी से प्रारंभिक तौर पर आयोजन के संबंध में हमारी मंत्रणा, वार्ता का श्री गणेश हो गया था, और निरंतर आभासी संवाद के माध्यम से हम दोनों निरंतर आयोजन की रुपरेखा को अंतिम रूप देने में सफल हो, जिसका परिणाम आप सभी के सामने "मतंग के राम" आ.भा. कवि सम्मेलन, पुस्तक विमोचन एवं सम्मान समारोह के रूप में जनमानस के बीच साकार रूप में सामने आया। जिसके प्रत्यक्ष गवाह आप सभी की एक छत के नीचे एक साथ एकत्र होकर बन चुके हैं। य...
रामभक्त हनुमान जी
स्तुति

रामभक्त हनुमान जी

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** चिरंजीवी परमभक्त, भगवान राम के अनन्य सेवक बजरंगबली हनुमान जी का जन्मोत्सव आज है जिसे दुनिया उनके बारह नामों हनुमान, अजंनीसुत, वायुपुत्र, महाबल, रामेष्ट, फाल्गुण सखा, पिंगाक्ष, अमित विक्रम, उदधि क्रमण सीता शोक विनाशन, लक्ष्मण प्राणदाता, दशग्रीव दर्पहा से जानती, पुकारती है रोज प्रातः काल इन नामों का जाप करती है। तुलसीदास जी ने जिसे विज्ञानी बताया जिनके विज्ञान ज्ञान से, दुनिया आज भी हैरान है। लंका दहन के लिए रावण की सभा में पूंछ को बढ़ाते जाना अशोक वाटिका में मां सीता के सामने अपने लघु और विशालकाय रुप दिखाना विशालकाय समुद्र के पार जाना विज्ञान ही तो था जिसे रामकथा वाचक मुरारी बापू विश्वास का विज्ञान मानते कहते हैं लंका मे सीता जी की खोज, संजीवनी बूंटी लाकर, लक्ष्मण की प्र...
हे राम जी! मेरी गुहार सुनो
कविता

हे राम जी! मेरी गुहार सुनो

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** हे राम जी! मेरी पुकार सुनो एक बार फिर धरा पर आ जाओ धनुष उठाओ प्रत्यंचा चढ़ाओ कलयुग के अपराधियों आतताइयों, भ्रष्टाचारियों पर एक बार फिर से प्रहार करो। उस जमाने में एक ही रावण और उसका ही कुनबा था जो कुल, वंश भी राक्षस का था फिर भी अपने उसूलों पर अडिग था, पर आज तो जहां-तहां रावण ही रावण घूम रहे हैं जाने कितने रावण के कुनबे फलते-फूलते वातावरण दूषित कर रहे हैं। इंसानी आवरण में जाने कितने राक्षस बहुरुपिए बन धरा पर आज स्वच्छंद विचरण कर रहे हैं समाज सेवा का दंभ भर रहे हैं सिद्धांतों की दुहाई गला फाड़कर दे रहे हैं भ्रष्टाचार, अनाचार अत्याचार ही नहीं दंगा फसाद भी खुशी से कर रहे हैं दहशत का जगह-जगह बाजार सजा रहे हैं। जाति धर्म की आड़ में अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं अकूत धन संपत्ति से ...
याद किए जायेंगे
हास्य

याद किए जायेंगे

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** बहुत दिनों से सोच रहा हूं मैं भी एक राजनीतिक पार्टी बना लूं सबसे ईमानदार मुख्यमंत्री भैया को अपना राजनीतिक गुरु बनाकर उन्हीं की पार्टी से गठबंधन भी कर लूं। सरकार बनी तो मंत्री बन ही जाऊंगा। फिर तो अपने भी वारे न्यारे होंगे लालबत्ती के साथ भ्रष्टाचार, घोटाले दोनों हाथ करेंगे। वैसे तो मुझे जैसे ईमानदार कभी पकड़ में नहीं आयेंगे पकड़ गए तो भी गम नहीं तिहाड़ जाकर भी मंत्री पद की सुख सुविधा और भौकाल से लुत्फ उठाएंगे भैया मुख्यमंत्री होंगे, वे थोड़ी हटायेंगे। उनकी छत्रछाया में रहकर राजनीति के सारे दांवपेंच भी सीख ही जायेंगे। सुख से जीवन जीने के सब हथकंडे सीख जाएंगे अपनी तीन पीढ़ियों की सुख सुविधा का इंतजाम काली कमाई से तो कर पायेंगे। हर चुनाव में किसी न किसी से गठबंधन कर विधानसभा त...
रंग बिरंगा उपहार
हास्य

रंग बिरंगा उपहार

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** अभी-अभी पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ का फोन मेरे पास आया मैंने बड़ी इज्जत से फोन उठाया प्यार से फरमाया क्या हाल है भाया जल्दी बोलो फोन क्यों मिलाया? शहबाज शरीफ तो जैसे रो पड़े क्या बताऊं जनाब हमारे देश की हालत आप से छिपी है क्या? और क्या बताऊं? लोग भूखों मरने लगे हैं दुनिया भीख देने को तैयार नहीं है आपका पुराना दोस्त कटोरा खान सिर पर चढ़ता जा रहा है, कटोरा संस्कृति हमारी नस -नस में ढकेल चुका है हमने भी उसका अनुसरण किया पर औंधे मुंह गिर पड़ा। अब मेरा हाल इधर खाई उधर कुंए जैसी है भाई लंदन में मजे कर रहा है भतीजी यहां नाक में दम किए है सारी समस्या की जड़ मुझे बता रही हैं। कुछ समझ में नहीं आता अब आप ही कोई राह दिखाइए मेरा ही नहीं पाकिस्तान का भी बेड़ा गर्क होने से बचाइए। मैं ...
शब्दांजलि
कविता

शब्दांजलि

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** ताऊ जी श्री रामचंद्रलाल श्रीवास्तव को विनम्र शब्दांजलि पिछले कुछ दिनों से मेरे मन में एक डर सा समाया रहता था, पर उसका आशय क्या है बस! यही समझ नहीं आ रहा था। पर आज सामने आ गया जब मेरे सिर पर अपनी अनवरत सुरक्षा छाया देने वाला विशालकाय वटवृक्ष अचानक ही गिर गया। निस्तेज, निष्प्राण, अनंत मौन होकर भी हमें संबल दे रहा था, जैसे अब भी हमारे पास होने का हमें विश्वास दिला रहा था। पर सच्चाई तो ये है कि हमें झूठी तसल्ली दे रहा था। या शायद हमें अपने कंधे मजबूत करने का संदेश दे रहा था। जो भी हो पर हमें भी पता है अब वो वटवृक्ष न कभी खड़ा होगा न शीतल हवा देगा न ही हमें सुरक्षा मिश्रित भाव ही देगा। क्योंकि वो तो जा चुका है अपनी अनंत यात्रा पर बहुत दूर जिसकी स्मृतियां हमें रुलाएगी दूर होक...
ममता का रक्षाबंधन
कविता

ममता का रक्षाबंधन

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** आँखें नम हैं मन में उल्लास भी, महज कपोल कल्पना सी लगती है, विश्वास अविश्वास की तलैया में हिलोरें भरती मेरी परिकल्पना को तूने आगे बढ़कर साकार कर दिया अपने नेह बंधन में बाँध मुझे तूने बहुत बड़ा काम ही नहीं सारा जग जैसे जीत लिया हमारे रिश्तों को नया आयाम दे दिया। ममता तेरी ममता के आगे तो तेरे भाई शीश सदा झुकाता ही रहा है आज तेरा कद आसमान सा ऊँचा हो गया है। तू छोटी सी बड़ी प्यारी, दुलारी है तू कल भी लाड़ली थी मेरी अब तो और भी लाड़ली हो गई है। तेरे सद्भावों पर गर्व हो रहा है, तेरा ये भाई भी खुशी से उड़ रहा है, तेरा मान न पहले कम था न आज ही कम है, न कभी कम होगा जैसे भी हो सकेगा, होता रहेगा रिश्तों का ये नेह बंधन कभी कमजोर न होने पायेगा रिश्तों का फ़र्ज़ तेरा ये भाई निभायेगा। बस ख्वाहिश इ...
ऐसा क्यों है?
कहानी

ऐसा क्यों है?

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** अभी मैं सोकर उठा भी नहीं था कि मोबाइल की बज रही लगातार घंटी ने मुझे जगा दिया। मैंने रिसीव किया और उनींदी आवाज़ में पूछा -कौन? उधर से आवाज आई- अबे! अब तू भी परेशान करेगा क्या? कर ले बेटा ओह! मधुर, क्या हुआ यार? कुछ नहीं यार! बस थोड़ा ज्यादा ही उलझ गया हूँ, सोचा तुझसे बात कर शायद कुछ हल्का हो जाऊं। बोल न ऐसी क्या बात हो गई? मैं तेरे पास थोड़ी देर में आता हूं, फिर बताता हूं। मधुर ने जवाब देते हुए फोन काट दिया। मैं भी जल्दी से उठा और दैनिक क्रिया कलापों से निपट मधुर की प्रतीक्षा करने लगा। लगभग एक घंटे की प्रतीक्षा के बाद मधुर महोदय नुमाया हुए। मां दोनों को नाश्ता देकर चली गई। नाश्ते के दौरान ही मधुर ने बात शुरू की। यार मेरी एक मित्र (गिरीशा) है। जिससे थोड़े दिन पहले ही आमने सामने भेंट भी हुई थी। वैसे त...
माँ बहन या बेटी
संस्मरण

माँ बहन या बेटी

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** विगत दिनों आभासी दुनिया से जुड़ी मुंहबोली बहन की जिद पर पहली बार उसके निर्माणाधीन मकान पर जाना हुआ। जहां उसके चेहरे पर सचमुच की छोटी बहन जैसी खुशी देख मन गदगद हो गया। क्योंकि वह पहले ही बेटे और मजदूरों से इस बात की चर्चा कर चुकी थी कि बड़े भैया आ रहे हैं। वापसी की बात पर और वो जिद कर घर चलने का अनुरोध करने लगी, मना करने पर उसकी आंखों में आसूं भर आये, शायद ये भी सोचती रही होगी कि उसका अपना भाई भी क्या यूं ही मना कर देता? उसकी भावुकता ने मुझे हिला दिया और उसकी भावनाओं को सम्मान देते हुए मैंने स्वीकृत क्या दिया, वो कितनी खुश हो गई, ये बता पाना मुश्किल है। लेकिन मुझे भी संतोष तो हुआ ही कि मेरे किसी कदम ने एक शख्स को खुश होने का अवसर तो दिया। वहां से निकलते हुए ही काफी विलंब हो चुका था। विद्यालय और मकान की व...
माँ की पीड़ा
स्मृति

माँ की पीड़ा

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ********************  पिछले दिनों अपने एक साहित्यिक मित्र की बीमार माँ को देखने जाना पड़ा। विगत हफ्ते से उनकी सेहत में सुधार नहीं हो रहा था। लिहाजा जाने का फैसला कर लिया। एक दिन पूर्व ही अपने एक अन्य कवि मित्र को अपने आने की सूचना दी और उसी शहर में अपनी मुँह बोली बहन को भी अपने आने के बारे में अवगत कराया, तो उसने भी मेरे साथ चलने की बात कही। स्वीकृत देने के अलावा कोई और और रास्ता न था। निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार अगले दिन कवि मित्र सूचनानुसार निर्धारित स्थान पर मिले। हम दोनों लोग पास में ही बहन के घर गए। हालचाल का आदान प्रदान हुआ। बहन के आग्रह का सम्मान करना ही था। अतः चाय पीकर हम सब अस्पताल जा पहुंचे। हमारे साथ बहन का बेटा भी था। हम चारों को मित्र महोदय बाहर आकर मिले और हम सब उनके आई सी यू में माँ के पास जा पहुंचे। वहां...
भावों की खुशबू
कविता

भावों की खुशबू

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** सब कुछ योजनानुसार चल रहा अचानक जो हुआ उम्मीद से बहुत आगे, सब कुछ इतना तीव्र था कि समझना मुश्किल था। ऐसा भी हो सकता है, मन हाँ-न के उहापोह में उलझकर रह गया। पर सब कुछ सामने था मेरे साथ हो रहा था नकार भी कैसे सकता था, पर सपने जैसा था, जिसकी खुशी सँभाल पाना कठिन था मुझ जैसे पथरीले इंसान के लिए तभी तो आँखों में आँसू तैर गए बस किसी तरह सँभाल सका खुद को। मन विह्वल मगर गर्व की अनुभूति करता उस अनजानी अनदेखी शख्शियत के साथ हुआ जब हमारा प्रथम आमना सामना मन श्रद्धा से भर गया, उसके कदमों में झुकने को लालायित हो उठा, बड़ी मुश्किल से खुद को सँभाला और रख दिया अपना हाथ उसके सिर पर क्योंकि हिम्मत नहीं हुई उसके अपनत्व भरे भाव को नकारने की असम्मानित करने की क्योंकि मैं ऐसा ही हूँ। मगर ...
महिला दिवस का पाखंड
कविता

महिला दिवस का पाखंड

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** आइए! एक बार फिर महिला दिवस का पाखंड करते हैं, महिला दिवस के नाम पर औपचारिकता का प्रपंच करते हैं। रोज रोज महिलाओं का अपमान करते हैं, नीचा दिखाने का एक भी मौका नहीं गँवाते हैं, उनकी हर राह में कांटे बिछाते हैं। महिलाओं को बराबरी का दर्जा देते हैं पर सच तो यह है कि हम सब अपनी माँ बहन बेटियों को भी ठेंगा दिखाते हैं। नारी तू नारायणी है का जितना गान करते हैं, उससे अधिक हम उनका अपमान करते हैं। नारी के प्रति श्रद्धा के दिखावे खूब करते हैं बड़े बड़े भाषण, गोष्ठियां, दिखावा करते हैं पत्र पत्रिकाओं में असंख्य लेख कविता, कहानियां भी लिखते हैं, परिचर्चा, वैचारिक चिंतन महिला हितों के नाम पर सिर्फ औपचारिकता निभाते हैं, महिलाओं को साल में इस एक दिन महिला दिवस के नाम पर सबसे ज्यादा बरगल...
राजनीति करना चाहता हूँ
हास्य

राजनीति करना चाहता हूँ

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** मैं भी सोचता हूँ कि राजनीति में कूद पड़़ूं, इस हमाम में सब नंगे मैं ही तन ढाक कर क्या करूँ? तंग आ गया हूँ वोट दे देकर क्यों न इस बार पहले टिकट और फिर वोट की मांग करूँ। राज की बात आपको बताता हूँ मैं भी खूब धन कमाना चाहता हूँ अब ईमानदारी से भला दाल रोटी तो चल ही नहीं सकती बस एक बार बड़ा हाथ मारना चाहता हूँ। आलीशान बंगला महंगी गाड़ियों के आजकल सपने बहुत आते हैं, बस कैसे भी ये सपने अपने पूरे कराना चाहता हूँ, अंदर की बात है किसी से मत कहना हवाला से धन भी कमाना चाहता हूँ, बस एक बार मौका भर देकर तो देखिए स्विस बैंक में अपना भी खाता खुल जाये रुपयों से बैंक खाता भरना चाहता हूँ। आप सबने कितनों को मौका दिया एक बार मुझे भी देंगें तो पहाड़ नहीं टूट जायेगा, मैंनें तो अपना राज आपको बता ही दिया बस एक...
सवाल का उत्तर
कविता

सवाल का उत्तर

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** पापा मुझे भी तो बताओ तनिक सोच समझकर समझाओ क्या मैं जन्म से ही पराई हूँ? आपकी बेटी हूँ, माँ की जाई हूँ भैया की बहन भी हूँ दादा-दादी की आँँखों का तारा हूँ। मेरे जन्म पर तो आप बहुत खुश थे खूब उछल रहे थे, पाला पोसा बड़ा किया, कभी आंख में आँँसू न आने दिया हर ख्वाहिश को मान दिया। अब में बड़ी हो गई हूँ दादी कहती है ब्याहने योग्य हो गयी हूँ क्या इसीलिए अभी से पराई हो गयी हूँ। भैया भी तो भाभी को ब्याहकर लाये हैं, भाभी दूसरे घर से आई है, फिर भी घर वाली हो गई यह कैसा रिवाज है समाज का जहाँ जन्मी, खेली कूदी बड़ी हुई उसी आँगन में पराई हो रही हूँ। माना कि भैया ब्याहकर कही गया नहीं बस इतने भर से कौन सा पहाड़ आखिर फट गया। भैय्या जैसा मेरा भी तो आप सबसे रिश्ता है, मेरा हक भैय्या से क्यूँ कम ...
विश्व हिंदी दिवस
आलेख

विश्व हिंदी दिवस

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ********************  हिंदी की लोकप्रियता को लेकर समूचे विश्व में १० जनवरी को विश्व हिंदी दिवस मनाया जाता है। हिंदी प्रेमियों के लिए इस दिवस का विशेष महत्व है। २०१८ की जानकारी के अनुसार विश्व की सर्वाधिक बोली जाने वाली तीसरी भाषा हिंदी लगभग ७० करोड़ से अधिक लोगों द्वारा बोली जाती है। जबकि १.१२ अरब के साथ अग्रेंजी शीर्ष पर है। चीनी भाषा १.१० अरब, स्पेनिश भाषा ६१.२९ करोड़, अरबी भाषा ४२.२ करोड़ लोगों द्वारा बोले जाने के साथ क्रमशः दूसरे, चौथे और पाँचवें। स्थान पर है। २०१७ में प्रकाशित पुस्तक 'एथनोलाग' के अनुसार दुनिया भर में २८ ऐसी भाषाएँ है, जिन्हें ५ करोड़ से अधिक लोग बोलते हैं। यह पुस्तक दुनिया में मौजूद भाषाओं की जानकारी पर प्रकाशित हुई थी। भारत को बहुभाषाओं का धनी देश मानने के बावजूद भारत की मूल भाषा हिंदी ही मानी जाती है। ...
महावीर प्रसाद द्विवेदी
कविता

महावीर प्रसाद द्विवेदी

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी की पुण्य तिथि पर विशेष दौलतपुर ग्राम रायबरेली जनपद मे पाँच मई अठारह सौ चौसठ में पं. रामसहाय द्विवेदी के पुत्र रुप में महाबीर प्रसाद द्विवेदी जन्मे थे। दीनहीन थी घर की दशा समुचित शिक्षा नहीं हो सकी, संस्कृत पढ़ते रहे घर रहकर फिर रायबरेली, उन्नाव, फतेहपुर में आखिर पढ़ने जा पाये, घर की हालत के कारण पढा़ई से फिर दूर हो गये। गये पढ़ाई छोड़ बंबई बाइस रुपये मासिक पर रेलवे जीआई पी में नौकरी किए। मेहनत ईमानदारी से अपने डेढ़ सौ रु. मासिक वेतन संग हेड क्लर्क पद पर पदोन्नति पा गये। अंग्रेजी मराठी संस्कृत का नौकरी संग भरपूर ज्ञान प्राप्त किया, उर्दू और गुजराती का भी जमकर खूब अभ्यास किया। बंबई से झांसी स्थानांतरण हो गया अधिकारी से विवाद के कारण स्वाभिमान की खातिर महाबी...
दोस्ती की मिसाल
लघुकथा

दोस्ती की मिसाल

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** दिनेश के पिता राजीव पिछले कई दिनों से बेटे को कुछ उदास देख रहे थे। आखिर आज पूछ ही लिया। क्या बात है बेटा, तबियत ठीक नहीं है क्या? नहीं पापा। आपको बताया था कि पंकज के एक्सीडेंट के कारण उसकी बहन सोनी की शादी रुक गई। मगर बेटा इसमें हम क्या कर सकते हैं? यही तो मैं सोच नहीं पा रहा हूँ पापा! सोनी के सामने जाता हूँ तो जैसी उसकी राखियां उलाहना देती हैं कि तू कैसा भाई है, तेरा दोस्त बिस्तर में है और तू......। दिनेश रो पड़ा। देखो बेटा। बात गंभीर है। अच्छा होता तुम मुझे ये बात और पहले बताते तो.... मगर अब तुम तीनों को परेशान होने की जरुरत नहीं है। सोनी की शादी मैं कराऊंगा, शादी उसी लगन में ही होगी। तुम मुझे पंकज के घर ले चलो। आज ही हम सोनी की होने वाली ससुराल चलेंगे और बात करेंगे। साथ उन दोनों को यहीं ले आयेंगे,...
रघुवीर सहाय
कविता

रघुवीर सहाय

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** नौ दिसंबर उन्नीस सौ उनतीस लखनऊ में जन्में थे रघुवीर सहाय, उन्नीस सौ इक्यावन में लखनऊ विश्वविद्यालय से अंग्रेज़ी में एम.ए. पास किया। करने लगे फिर पत्रकारिता प्रतीक, वाक, कल्पना पत्रिकाओं के सम्पादक मंडल में जगह मिले, आकाशवाणी के आल इंडिया रेडियो में हिंदी समाचार विभाग से संबद्ध रहे। उन्नीस सौ इकहत्तर से उन्नीस सौ बयासी तक ग्यारह वर्ष रघुवीर सहाय जी दिनमान के संपादक भी रहे, "दूसरा रुप" से कवि रुप मे ख्याति पथ पर चमक गये। अपनी लेखनी से सहाय जी दृढ़ता से आईना दिखाते थे भ्रष्टाचार हो या समाज का चित्रण बखूबी कलम चलाते थे। मध्यमवर्ग के जीवन चित्रण पर अद्भुत वो लेखनी चलाते थे, व्यंग्यात्मक शैली से अपने आईना भी खूब दिखाते थे। सांस्कृतिक, राजनीतिक चेतना कलम से अपने जगाते थे, समकालीन समाज को ...
संविधान दिवस
हास्य

संविधान दिवस

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** आइए ! मौका भी है दस्तूर भी है हमारे मन भरा फितूर जो है, आज भी हम संविधान-संविधान खेलते हैं, जब रोज ही हम पूरी ईमानदारी से खेलते हैंं, तब आज भला खेलने से क्यों बचते हैं? चलिए तो सही आज संविधान दिवस की भी तनिक औपचारिकता निभाते हैं, आखिर साल के बाकी दिन हम संविधान का माखौल ही उड़ाते हैं। हमें भला संविधान से क्या मतलब हम तो रोज ही कानून का मजाक उड़ाते हैं। कभी धर्म के नाम पर तो कभी अधिकारों के नाम तो कभी बोलने की आजादी के नाम पर अनगिनत बहाने हम ढूंढ ही लेते संविधान का उपहास उड़ाने के। संविधान की रक्षा पालन की कसमें खाते हैं, पर संविधान में लिखे कानून को हम कितना मानते हैं? हिंसा, तोड़फोड़, घर, दुकान सरकारी संपत्तियों का तोड़फोड़ भड़काऊ भाषण, आपसी विभेद जातीय टकराव, हिंसा अलगाववादी विचारधा...
बदलता वक्त
आलेख

बदलता वक्त

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ********************  बदलाव प्रकृति का शाश्वत नियम है, जिसके परिणाम सकारात्मक/नकारात्मक होते ही हैं। सदियों सदियों से बदलाव होते आ रहे हैं। जीवन के हर हिस्से में अनवरत हो रहे बदलाव का फर्क भी दिखता है। संसार भर में प्राकृतिक, सामाजिक, आर्थिक, भौगौलिक, राजनैतिक, तकनीक, रहन-सहन, विचार, व्यवहार, धरातलीय, आकाशीय, यातायात, संचार, साहित्य, कला, संस्कृति, परंपराएं आदि...आदि के साथ पारिवारिक और निजी तौर पर भी उसका असर साफ देखा, महसूस किया जाता/जा रहा है।कोई भी बदलाव सबको समभाव से प्रभावित करता हो, यह भी आवश्यक नहीं है। मगर हर किसी का प्रभावित होना अपरिहार्य है। यदि आप अपने और अपने पिता जी, बाबा जी के समय पर ही दृष्टि डालें, तो आप खुद बखुद महसूस करेंगे इस बदलाव और उसके प्रभावों को भी। इसी तरह देश दुनिया, समाज का हर हिस्सा किसी न किसी...
मर्यादा की मूरत राम
भजन, स्तुति

मर्यादा की मूरत राम

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** माँ कौशल्या की कोख से नृप दशरथ सुत जन्में राम। नवमी तिथि चैत्र मास को अयोध्या का था रनिवास।। निहाल हुए अयोध्यावासी, बजने लगी चहुंओर बधाई। जन जन के अहोभाग्य हो, मानुज तन ले प्रगटे रघुराई।। माता पिता की करते सेवा नित, न्योछावर थे खुशियों की खातिर। छोड़ दिये सुख राज महल के, माँ कैकई के दो वचन खातिर।। पिता की आज्ञा मान गये वन, विश्व बंधुत्व का भाव भर कर। जनकसुता का किया वरण, शिव धनुष भंग स्वयंवर में कर।। चौदह वर्षों के वनवास काल में, राक्षसों, दैत्यों का संहार किया। शबरी के जूठे बेरों को खाकर, नवधा भक्ति दे उद्धार किया. पुत्र, भाई, दोस्त की बने मिसाल, सबकी चिंता को मन में लाये। अपनी चिंता का ध्यान न कर, रावणवध से आतंक मिटाए।। पर ज्ञानी रावण की विद्वता को, अंतरमन से स्वीकार ...
विजयदशमी और नीलकंठ
कविता

विजयदशमी और नीलकंठ

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** हमारे बाबा महाबीर प्रसाद हमें अपने साथ ले जाकर विजय दशमी पर हमें बताया करते थे नीलकंठ पक्षी के दर्शन भी कराते थे, समुद्र मंथन से निकले विष का पान भोले शंकर ने किया था इसीलिए कंठ उनका नीला पड़ गया था तब से वे नीलकंठ भी कहलाने लगे। शायद तभी से विजयदशमी पर नीलकंठ पक्षी के दर्शन की परंपरा बन गई, शुभता के विचार के साथ नीलकंठ में भोलेनाथ की मूर्ति लोगों में घर कर गई। इसीलिए विजयदशमी के दिन नीलकंठ पक्षी देखना शुभ माना जाता है, नीलकंठ तो बस एक बहाना है असल में भोलेनाथ के नीले कंठ का दर्शन पाना है अपना जीवन धन्य बनाना है। मगर अफसोस अब बाबा महाबीर भी नहीं रहे, हमारी कारस्तानियों से नीलकंठ भी जैसे रुठ गये हमारी आधुनिकता से जैसे वे भी खीझ से गये, या फिर तकनीक के बढ़ते दुष्प्रभाव की भेंट चढ़त...