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मौसम पुनः सुहाना होगा
कविता

मौसम पुनः सुहाना होगा

प्रो. आर.एन. सिंह ‘साहिल’ जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** मौसम पुनः सुहाना होगा हर नुस्ख़ा अजमाना होगा चाहे रूप बदल ले जितना कोविड को निपटाना होगा जिनपिंग से ख़ुद पूछो जाकर क्या पाए मुझको पैदा कर थूक रही है सारी दुनिया तुमको भी जल जाना होगा हम भारत वंशी सचेष्ट हैं बुद्धि विवेक में बहुत श्रेष्ठ हैं बना लिया ब्रह्मास्त्र देश ने अब तुमको मर जाना होगा माना कि तूफ़ान बड़ा है भस्मासुर मुँह खोल खड़ा है धैर्य और परहेज़ दवा संग हर अभियान चलाना होगा कोविड़ से संसार त्रस्त है शासन भी हो चुका पस्त है मास्क और दो गज की दूरी साहिल इन्हें बनाना होगा परिचय :- प्रोफ़ेसर आर.एन. सिंह ‘साहिल’ निवासी : जौनपुर उत्तर प्रदेश सम्प्रति : मनोविज्ञान विभाग काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी, उत्तर प्रदेश रुचि : पुस्तक लेखन, सम्पादन, कविता, ग़ज़ल, १०० शोध पत्र प्रकाशित, मनोविज्ञान पर १२ पुस्तके...
मौत की खुशबू
कविता

मौत की खुशबू

कु. आरती सिरसाट बुरहानपुर (मध्यप्रदेश) ******************** प्रकृति ने ओर इक बार दहाड़ लगायीं है....! विकराल रूप लेकर, मौत की खुशबू पवन में फिर से छायीं है....!! न अस्पताल में जगह है, न शमशान में जगह है....! सब तेरा ही तो किया धराया है, तूँ ही तो इस महामारी की वजह है....!! तेरी औकात तुझे क्यों समझ में नहीं आती है ये इंसान....! कभी तूँ माटी पर तो, कभी माटी तेरे ऊपर, बस इतनी सी तो है तेरी पहचान....!! किस बात का अलंकार तुझ पर छाया है....! दौलत, शोहरत ये तो एक तेरे मन की मोह माया है....!! बोल अपने तूँ अनमोल रख यहीं तो जीवन की सच्ची कमाई है....! प्राणी मात्र पर दया करना सिख ले इसी में तेरी भलाई है....!! परिचय :- कु. आरती सुधाकर सिरसाट निवासी : ग्राम गुलई, बुरहानपुर (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी क...
बंधन रिश्तों का
कविता

बंधन रिश्तों का

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** रिश्तों का बंधन कही छूट न जाये। और डोर रिश्तों की कही टूट न जाये। रिश्ते होते है बहुत जीवन में अनमोल। इसलिए रिश्तों को हृदय में सजा के रखे।। बदल जाए परस्थितियां भले ही जिंदगी में। थाम के रखना डोर अपने रिश्तों की। पैसा तो आता जाता हैं सबके जीवन में। पर काम आते है विपत्तियों में रिश्ते ही।। जीवन की डोर बहुत नाजुक होती है। जो किसी भी समय टूट सकती है। इसलिए संजय कहता है रिश्तों से आंनद वर्षता है। बाकी जिंदगी में अब रखा ही क्या है।। परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच (hindirakshak.com) सहित बहुत सारे अखबारों-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहती ह...
मजदूर हैं हम
कविता

मजदूर हैं हम

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** मजदूर हैं, मजदूरी देना, बहुत दुख दर्द सहते हैं, दिनरात काम ही काम, मजदूर लोग यूं कहते हैं। तन पर कपड़े फटे हुए, खाने को नहीं दो रोटी, हाय गरीबी मजदूर की, कैसी किस्मत है खोटी। कई दिन भूखे प्यासे रहे, फिर नहीं मिलता काम, भूख प्यास मिटा लेते हैं, बस लेकर प्रभु का नाम। मजदूर की मजदूरी देख, आंखें भी हो जाएंगी नम, प्रभु की माया निराली है, कितना दिया उनको गम। धनवान के घरों में सदा, मजदूर करते हैं मजदूरी, अपने सगे संबंधियों से, बनाए रखते सदा ही दूरी। भूखे प्यासे उनके बच्चे, हाथ पसारने से डरते हैं, दवा अभाव में कभी तो, सड़कों किनारे मरते हैं। कोई ना सुने मजदूर की, गरीब बेचारे ये सारे है, प्रभु की नजरों में तो ये, आंखों के कहाते तारे हैं। कभी ना बनाना मजदूर, तरस खा कुछ भगवान्, इनका घर धन से भरो, जीने की बढ़ जाए शान। फटे हाल रहते मजद...
बाल काव्य के अंतर्गत प्रस्तुत हैं कुण्डलियाँ छंद सर्जन
छंद, बाल कविताएं

बाल काव्य के अंतर्गत प्रस्तुत हैं कुण्डलियाँ छंद सर्जन

रजनी गुप्ता 'पूनम चंद्रिका' लखनऊ ******************** उठ कर देखो लाडले! आसमान की ओर। पक्षी कलरव कर रहे, खिली सुहानी भोर।। खिली सुहानी भोर, लालिमा नभ में छाई। अरुण रश्मियाँ साथ, उषा है लेकर आई।। अब तो रख दो पाँव, सहारे से वसुधा पर। रजनी बीती तात, लाडले देखो उठ कर।। होती है हर हाल में, मस्ती खूब धमाल। बाबा घोडा़ बन गए, चुन्नू करे कमाल।। चुन्नू करे कमाल, फटाफट चले सवारी। टिक-टिक की आवाज, कभी है चाबुक मारी।। मात- पिता को छोड़, खेलते दादा-पोती। दादी भी खुशहाल, देखकर उनको होती।। खाते हलुवा खीर जब, बचपन में हम साथ। रहे खुशी से झूमते, लिए हाथ में हाथ।। लिए हाथ में हाथ, दुलारें माता हमको। भर-भर कर आशीष, सदा देतीं वह सबको।। नाचें कूदें और, पिता से पैसे पाते। जाते फिर बाजार, वहाँ पर लड्डू खाते।। खाते हैं चुन्नू सदा, पूड़ी और पनीर। नहीं मिले उनको अगर, खो देते हैं धीर।। खो देते हैं धीर, धरा पर लोटे ज...
कभी नदियों में
कविता

कभी नदियों में

मुस्कान कुमारी गोपालगंज (बिहार) ******************** कभी नदियों में छलछलाहट थी चिडियो की चहचहाट थी चुड़िओ में खनखानाहट थी पेड़ो में सनसनाहट थी आज सब शांत दिख रहा क्योंकि मनुष्य खुद के बारे में सोचकर खुद का ही नाश कर रहा। कभी रास्तों पे भीड़ थी अपनो से मिलना था नई संस्कृति का चलन था कॉरोना ने सब सिखला दिया पुरानी संस्कृति को याद दिला दिया। परिंदे आज आजाद हुए इंसान घरों में कैद हुए देश पूरा शमशान हुआ ऑक्सीजन की किल्लत हुई तो पेड़ पौधों को लगाए और बचाए पहले से नहीं थी चिंता अब जल रही है चिता। गलती हुई इंसानों से निकल रहा उसका परिणाम अब गलती को सुधार भी लो एक पेड़ अब भी जरूर लगाओ प्रकृति के साथ खिलवाड़ नहीं। समस्या बड़ी है गलती भी बड़ी ही हुई है लेकिन ये भी एक वक्त है गुजर ही जायेगा जब खुशी के पल न ठहरे तो ये भी धीरे-धीरे निकल ही जायेगा। घर में रहे, स्वस्थ रहे। परिचय :- मुस्कान कुमारी ...
मज़दूर
कविता

मज़दूर

राम प्यारा गौड़ वडा, नण्ड सोलन (हिमाचल प्रदेश) ******************** हर सृजन से भरपूर होता है मज़दूर, सुख चैन मजे से दूर होता है मज़दूर मानवीय कल्पनाओं को मूर्त रूप देता है मज़दूर। सर्दी मे ठिठुरता. गर्मी में तपता ...... बरसात में भीगे तन काम में लगा रहता है मज़दूर धूल मिट्टी से हर वक्त सना रहता सिर पर साफा बांधे, टोकरी उठाए, मन ही मन गुनगुनाता है मज़दूर। रुखी सूखी रोटी खाकर सपनो का तानाबाना बुनता है मज़दूर बीबी बच्चों को सब कुछ दे पाऊँ दो जून की रोटी के जुगाड़ में सब कुछ सहता है मज़दूर। हर तरक्की हर उन्नति हर विकास में सहयोगी है मज़दूर नवनिर्माण का प्रतीक है मज़दूर आखिर क्यों? कदम कदम पर शोषित होता है मज़दूर। ईश्वर करे, मज़दूर कभी न हो मज़बूर मज़दूर कभी न हो मजबूर।। परिचय :-  राम प्यारा गौड़ निवासी : गांव वडा, नण्ड तह. रामशहर जिला सोलन (सोलन हिमाचल प्रदेश) आप भी अपनी ...
गुरु तेग बहादुर
कविता

गुरु तेग बहादुर

रश्मि लता मिश्रा बिलासपुर (छत्तीसगढ़) ******************** सिक्खों के नवें गुरु, तेगबहादुर नाम। वैरागी त्याग की मूर्ति थे। साधना उनका काम। बाबा बकाला में करी तपस्या सालों साल, प्रयाग,बनारस, पटना असम,किया अध्यात्म प्रचार। शीश गंज, रकाब गंज दिलाते स्मरण आज। आदर्शो की रक्षा हेतु किये जन्म भर काज। धर्म के सम्मान में झुकने दिया न शीश कटा दिया सिर आपना हो गए रे शहीद। धर्म के नाम पे मर मिटे याद करें जब नाम। तेग बहादुर का भी लें कर इज्जत सम्मान। हिन्द दी चादर गुरु त्यागमल था नाम शहादत दिवस पर शान से ले लो उनका नाम। परिचय :- रश्मि लता मिश्रा निवासी : बिलासपुर (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट...
आंखें … एक ऐतिहासिक कहानी
कहानी

आंखें … एक ऐतिहासिक कहानी

सुधा गोयल बुलंद शहर (उत्तर प्रदेश) ******************** शाम का धुंधलका फैलने में अभी देर थी। पवन में हलकी सी सरसराहट थी। पक्षी उद्यान में क्रीड़ारत थे। सरोवर के स्वच्छ जल में अस्ताचलगामी सूर्य का प्रतिबिंब किसी चपल बालक की तरह अठखेलियां कर रहा था। कमल हंस रहे थे। मोर नाच रहे थे। सुगंधित समीर उड़कर गवाक्ष में एकाकी, मौन, शून्य में निहारती महादेवी तिष्यरक्षिता की अलकों से अठखेलियां कर रहा था। परंतु वह इस समय इस सबसे बेखबर अपने ही विचारों में खोई थी। उनके रुप माधुर्य की आभा तिरोहित होते सूर्य की रश्मियों के साथ मिलकर दुगुनी हो गई थी। प्राकृतिक दृश्य पावक बनकर महादेवी के तन-मन को प्रज्वलित करने लगे थे। जब शाम अपने डैने फैलाए राजमहल की प्राचीरों पर उतरती तब महादेवी का मन उदास हो जाता। और सम्राट अशोक का इंतजार करते-करते वे कमलिनी सी मुरझा जाती। श्रृंगार ज्योति विहीन हो जाता। काम की दारुण ज्व...
स्त्री
कविता

स्त्री

मधु अरोड़ा शाहदरा (दिल्ली) ******************** हां मैं स्त्री हूं, युगों-युगों से तुम्हारी सहचरी हूं, सृष्टि की निर्माता मैं, लालन-पालन करती हूं। अपने शरीर से, नव शरीर की संरचना करती। मुझे नाज है अपने पर मैं शक्ति स्वरूपा दुर्गा भी नर हो तुम तो नारायणी में, मेरे बिन जीवन तुम्हारा अपूर्ण। हां मैं स्त्री हूं, धरा बन जग को जीवन देती, पालित, पुष्पित भी करती, मेरी गोद में पलते सब पुष्पित, पल्लवित होते सब। हां मैं स्त्री हूं जीवनदायिनी में गंगा कल-कल-कल-कल करके बहती, प्यास बुझाती अमृत बन में शीतलता से मन को भर देती मैं ज्ञानदायिनी, न्याय कारिणी, शारदा बन बुद्धि का विकास करती। अग्नि बन दुखों को हरती सहनशीलता गुण है मेरा, हर किसी का सम्मान हूं करती। मुझको ना सताओ तरसाओ तुम, ना काली बनने पर मजबूर करो संस्कारों में बंधी हूं, मैं एक नाजुक सी डोर हूं मैं, कंधे से कंधा मिलाकर चलती हूं, हरदम मेहनत मै...
परिवर्तन
कहानी

परिवर्तन

अनुराधा बक्शी "अनु" दुर्ग, (छत्तीसगढ़) ******************** "शरीर मिट्टी में शामिल हो मिट्टी का पुनर्निर्माण कर देता है, फिर क्या है जो मरता है? ये दिल इतना शोर क्यों करता है। किसी के जाने से असह्रा दर्द क्यों और कहां से आता है? खुद को समाप्त करते ही उनकी यादें भी खत्म हो जाएंगी और बेकाबू रुदन से जिंदा रहा नहीं जाता।" दर्द के अवसाद में सुबह-शाम डूबी अक्सर मैं अपनी दुनिया अपनी आंखों से निहारती। "इन दिनों प्रकृति जिस तरह अपने अदृश्य पन्नों पर अपने असहज घोटाले की कहानियां लिख रही थी और हम अपने हाथ हाथों में लिए दृष्टा की भांति उसे निहार रहे थे वो बहुत कुछ कह रही थी और बहुत कुछ सिखा भी रही थी।" कभी सोचा ना था दूध की चिंता बिस्तर छोड़ने पर और रोजमर्रा की जरूरतें है दरवाजे से बाहर निकलने पर मजबूर कर देंगी। स्कूल जाते वक्त वो मुझे बस स्टॉप पर छोड़ते और मेरे आने से पहले बस स्टॉप पर गाड़ी लिए...
मजदूर हूं मैं
कविता

मजदूर हूं मैं

अमिता मराठे इंदौर (म.प्र.) ******************** मजदूर हूं मैं, मजबूर नहीं हूं। मेहनत ही मेरी पूंजी है। धरती ही मेरी माँ है। उसकी गोद में खेलता हूं, प्यार से माटी सहलाता हूं, हीरे मोती उगाता हूं। मज़दूर हूं मैं, मजबूर नहीं हूं। हाथों में गेती फावड़ा, दृढ़ता से कदम उठाता हूं। कड़ी धूप में भी शीतलता, महसूस कर चलता हूं। जब माटी में मिलता पसीना, नवीनता के दर्शन करता हूं। मजदूर हूं मैं, मजबूर नहीं हूं मैं। ऊंची अट्टालिकायें यें, जन मन को दिलासा देती हैं। मैं सबका साथ निभाता हूं, बस व्यर्थ न जायें मेरा श्रमफल। दिन रात मेहनत करता हूं, परिवार की रोजी-रोटी पाता हूं। मजदूर हूं मैं, मजबूर नहीं हूं। विघ्नों के तूफान जब आते हैं, पहले श्रमिक ही भुगतता हैं। सहना तो है सह लेता हूं, जन की इच्छा पूर्ति करता हूं। खुशियां देना मेरा काम है, बदले में अल्पधन पा लेता हूं। संतुष्टता मेरा मूल गुण है, उसके ही बल ...
जन्मदिवस पर हार्दिक शुभकामनाएं …🙏🏻💐
जन्मदिवस

जन्मदिवस पर हार्दिक शुभकामनाएं …🙏🏻💐

राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच hindirakshak.com की प्रधान सम्पादक डॉ. दीपमाला गुप्ता का आज ३ मई को जन्मदिवस है ... इस पटल के माध्यम से नीचे दिए गए प्रतिक्रिया कॉलम (कमेंट बॉक्स) में संदेश भेजकर आप उनको अपनी शुभकामनाएं दे सकते हैं….🙏🏻💐   आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें …🙏🏻 आपको यह रचना अच्छी लगे तो साझा जरुर कीजिये और पढते रहे hindirakshak.com राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच से जुड़ने व कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने चलभाष पर ...
सब पा लिया
गीत

सब पा लिया

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** (तर्ज: मैं कही कवि न बन जाऊ..) तेरा प्यार पा के हमने सब कुछ पा लिया है। तेरे दर पर आके हमने सिर को झुका लिया है।। तेरा प्यार पा के हमने सब कुछ पा लिया है।। आवागमन की गालियाँ न हत बुला रही थी..२। जीवन मरण का झूला हमको झूला रही थी। अज्ञानता की निद्रा हमको सुला रही थी। नजरे नरम हुई है तेरा आसरा लिया जब।। तेरा प्यार पा के हमने सब कुछ पा लिया है..।। तेरे प्यार वाले बादल जिस दिनसे घिर गये है.. २। दूरगुण के निसंक के पर्वत उस दिन से गिर गये है। रहमत हुई है तेरी मेरे दिन फिर गये है। तेरी रोशनी ने सदगुरु रास्ता दिखा दिया है।। तेरा प्यार पा के हमने सब कुछ पा लिया है..।। संजय का ये गीत गुरु प्रभु को हैं समर्पित..२। अपनी कृपा हे गुरुवर मुझ पर बनाये रखना। अपने चरणो में मुझको थोड़ी जगह जरूर देना। अज्ञानी हुई मैं गुरुवर मुझे ज्ञान आप देना।। तेरा प्यार ...
हसंते-हसंते
कविता

हसंते-हसंते

अक्षय भंडारी राजगढ़ जिला धार(म.प्र.) ******************** जिंदगी थम गई खुशियों वाली गम बदल जाए, खुशियां मिल जाए कितने वायरस बदलते रहे दुनिया फिर कोरोना मुक्त हो जाए। चेहरे पर हो मुस्कान जब ये दुनिया मुस्कराती रहे आएगे अच्छे दिन ओर खुशियों गीत गाया करे। करे हम सकरात्मक बात जान से जान आती रहे। हर पल हर दिन फिर से अच्छे आए फिर सब त्योहार बने ईश्वर सबका भला करे फिर से हमे सकंट से मुक्ति मिल जाए हसंते-हसंते लॉकडाउन कट जाए। परिचय :- अक्षय भंडारी निवासी : राजगढ़ जिला धार शिक्षा : बीजेएमसी सम्प्रति : पत्रकार व सामाजिक कार्यकर्ता घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानिय...
होती नही पुरानी कविता
कविता

होती नही पुरानी कविता

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच (मध्य प्रदेश) ******************** कड़वाहट जीवन की जीकर, आंसू बन बहती है कविता। पीड़ाएं पी पीकर अनगिन, जख्म बड़े सहती है कविता।। कितने गम के सैलाबों से, टकराती रहती है कविता। चेतनता की वाहक बनकर, सत्य मगर कहती है कविता।। दंश प्यार का पाकर देखा, मजनू बनी दीवानी कविता। कालजयी किरदार लिए पर, होती नहीं पुरानी कविता।। अंतर रोता तो कविता का, शब्द-शब्द जीभर रोता है। अर्थों में पीड़ा बहती तो, सैलाबी मंजर होता है।। घनीभूत पीडाओं से ही, कोई सुध अपनी खोता है। क्रांति हुआ करती है तब ही, जब कोई आंसू बोता है।। आहत अपमानों से होकर, बनकर तनी भवानी कविता। कालजयी किरदार लिए पर, होती नहीं पुरानी कविता।। भक्तिभवन में जाकर कविता, गंगा जल बन जाती लोगों। पार लगाती भव सागर से, दुःखसे मुक्ति दिलाती लोगों।। वात्सल्य में डुबा बदन को, सूरज बन चमकाती लोगों। फंसे भंवर में जो-जो तम क...
मजदूर
आलेख

मजदूर

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.) ******************** हमारे देश में मजदूरों की दशा कभी भी अच्छी नहीं रही। यह अलग बात है कि वर्तमान में सरकारों के द्वारा मजदूरों के लिए काफी कुछ किया गया। लेकिन मजदूरों की दशा में मूलभूत सुधार नहीं हो पाया। आज भी हमारे देश का मजदूर अपने मूलभूत जरूरतों के दल-दल को पार नहीं कर पाया है। मजदूरों की अपनी समस्याएं हैं। परिवार स्वास्थ्य शिक्षा उनकी मूलभूत समस्याएं हैं। जिस पर कार्य किए जाने की जरूरत सभी प्रदेश सरकार व केंद्र सरकार का उत्तरदायित्व है कि मजदूरों के लिए प्रभावी योजनाएं बनाएं और उसका सख्ती से पालन कराएं। सरकारों को यह भी देखना होगा कि उनके द्वारा घोषित योजनाओं का क्रियान्वयन कितना धरातल पर उतर रहा है। कोरोना काल में मजदूरों की जो दुर्दशा हुई है, वे जिस दर्द से गुजरे हैं वह काफी असहनीय और राष्ट्र समाज के शर्मनाक भी है और दर्दनाक भी। ...
बेटी का घर टूटा है
कविता

बेटी का घर टूटा है

प्रियंका पाराशर भीलवाडा (राजस्थान) ******************** माना कि घर छूटा है पर रिश्ता नहीं टूटा है माँ से बेटी का घर टूटा है ये सरासर झूठा है हर बार उसकी बेटी से कोई रूठा है इस बात पर एक माँ का दिल कचोटा है फिर भी माँ का उस रूठे पर, उमड़ा आशीष अनूठा है बेटी के दर्द से माँ का मन घुटा है तो चलो मान लिया कि बेटी का घर तोड़ने की माँ के मन मे कुंठा है पर फिर घर टूटा तब वहाँ समक्ष खड़े सब लोगों की समझदारी को किसने लूटा है ? चिंगारी को आग में बदलने के लिए तो कितनों का कदम उठा है समझदारी के ठेकेदार मार रहे बस एक ही बात का जूता है कि बेटी की माँ से बेटी का घर टूटा है पर सोचो, जो लोग समझदार है वो बचाने के बजाय क्यों दिखा रहे अँगूठा है ? प्रत्यक्ष है कि घर तोड़ने में कौन-कौन जुटा है पर स्वदोष छुपाने के लिए उड़ा रहे बस झूठा है बेटी की माँ से बेटी का घर टूटा है ये सरासर झूठा है, ये सरासर झूठा है ...
राम रस
भजन

राम रस

प्रेम नारायण मेहरोत्रा जानकीपुरम (लखनऊ) ******************** "राम" रस में डूबकर देखो, तुम्हें भक्ति मिलेगी। होंगे खुश हनुमान जी, उनसे तुझे शक्ति मिलेगी। राम रस में डूबकर......... "राम" प्रिय लगने लगा तो, काम खुद घटने लगेगा। डूब पाया "राम" में तो, जग से मन हटने लगेगा। माया जब घेरेगी तो, हनुमान से युक्ति मिलेगी। "राम" रस में डूबकर.......... प्रभु ने मानव तन दिया, उपकार उसका मान प्राणी। श्रेष्ठ योनि में है जन्मा, मधुर करले अपनी वाणी। शारदे माँ रीझ जाएंगी तो, अभिव्यक्ति मिलेगी। "राम" रस में डूबकर........ सूर, मीरा और कबीरा डूबे, प्रभु महिमा को गाया। भक्ति गंगा में नहाने, के लिए भक्तों ने गाया। "राम" सेवा में लगा तनमन को, तो मुक्ति मिलेगी। "राम" रस में डूबकर............. परिचय :- प्रेम नारायण मेहरोत्रा निवास : जानकीपुरम (लखनऊ) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं ...
हाँ मै मजदूर हूँ…
कविता

हाँ मै मजदूर हूँ…

रीमा ठाकुर झाबुआ (मध्यप्रदेश) ******************** मै मजदूर हूँ, हाँ मै मजदूर हूँ' लडता हूँ खुद से डटां रहता हूँ, भरी दुपहरी मे, कोई भी मौसम हो, सह लेता हूँ खुद पर, क्योंकि मै मजदूर हूँ! तोड देती है, मुझे सत्ता की लड़ाई, टूट जाता हूँ, जब इस्तेमाल होता हूँ, मै बेबस, मजबूर हूँ, जी हाँ मै मजदूर हूँ! झेल लेता हूँ सिकन, पसीने की बूदें, सिर पर भारी जबाबदारी की गठरी. बदलती है, सत्ता की शर्तें, पर मै बदलता नहीं, मै मजदूर हूँ हां मै मजदूर हूँ! खुश होता हूँ, जब कमाता हूँ चंद सिक्के, रोटियाँ नजर आती है उन सिक्को मे, बच्चे तकते है रास्ता मेरा, उनके लिए भरपूर हूँ, जी हाँ मै मजदूर हूँ! हाथ कंगन को अरसी क्या, खूबियो मे बेमिसाल हूँ, मै. बोझ ढोता हूँ जमाने के, पर खुद के लिए लाचार हूँ मै, रोज बनाता हूँ सपनो के पूल 'जिस पर गुजरता हूँ हर शाम हूँ मै, कैसे बताऊँ अबिराम हूँ बस खुद का जी लेता हूँ, खुद मै थोड...
श्याम बाँसुरी
कविता

श्याम बाँसुरी

मंजू लोढ़ा परेल मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** मुझे बाँसुरी बहुत पसंद है, यह मेरे श्याम का मनपसंद वाद्य है, जब भी बाँसुरी सुनती हूँ ब्रजधाम पहुँच जाती हूँ, ऐसा लगता है श्रीकृष्ण कहीं आसपास है, कानों में उनकी बासुंरी की मीठी-मधुर तान सुनाई देने लगती है, श्याम सलोने से एक अदभूत मुलाकात हो जाती है। आँखो के समक्ष उनका दैदीप्यमान-सुंदर-सलोना मुखडा़ दिखाई देने लगता है, कंदब के पेड़ तले पीताम्बर धारे, मोर पंख सजाये, वैजयंती को गले से लगाये, होठों पर बाँसुरी साथ में श्री राधारानी, चारों तरफ गोप गोपियाँ, ज्यों ही बाँसुरी बजने लगती, उसकी तान में खोकर, सभी सुध बुध बिखराकर झुमने लगते हैं, यमुना का पानी हिलोंरे लेने लगता हैं, पशु-पक्षी भी नृत्य करने लगते हैं, फुल-हवाएं सारा संसार स्तंभित हो जाता हैं, यह दृश्य आंखों के समक्ष साकार देखकर, मन अंदर से प्रफुल्लित हो उठता है, एक अजीब से स्वर्गगिक आन...
ज़िन्दगी दे मौका
कविता

ज़िन्दगी दे मौका

सपना आनंद शर्मा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** ऐ ज़िन्दगी दे मौका फिर से जीना चाहते हैं। वही माँ की गोद पिता का कंधा चाहते हैं। भाई का हाथ, बहन का उम्र भर साथ चाहते हैं। ऐ ज़िन्दगी दे मौका फिर से जीना चाहते हैं। वहीं मस्त हवाओ का झोंका, पेड़ो की टहनीयों पर बंधे झूले फिर खुली हवा में बहना चाहते हैं। ऐ ज़िन्दगी दे मौका फिर से जीना चाहते हैं। फिर वहीं मस्त हो दोस्तों के साथ पल बिताना चाहते हैं, भूल हर ग़म ज़िन्दगी के खिलखिलाकर ठहाके लगाना चाहते है। ऐ ज़िन्दगी दे मौका फिर से जीना चाहते हैं। परिचय :- सपना आनंद शर्मा निवासी - इंदौर मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक ...
उम्मीदों की भोर …
गीत

उम्मीदों की भोर …

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** कष्टों की काली रजनी का, आया अंतिम छोर। दो गज की दूरी पर बैठी, उम्मीदों की भोर।। घूम रही है हवा विषैली, बन कर काला नाग। खुशियों के घर जला रही है, श्मशानों की आग।। कानों में घोला है दुख ने, त्राहि माम का शोर। दो गज की दूरी पर बैठी, उम्मीदों की भोर।।१ डोल गया है बुरे वक्त में, लालच का ईमान। श्वासों का सौदा करते हैं, पग-पग पर शैतान।। काट रहे हैं चाँदी निर्मम, भूखे आदमखोर। दो गज की दूरी पर बैठी, उम्मीदों की भोर।।२ एड़ी ऊँची कर पूरब में, झाँक रही सब बाम। कोई सूरज आकर बाँचे, खुशियों के पैगाम।। विरह वेदना की खबरें तो, बिखरी हैं चहुँओर। दो गज की दूरी पर बैठी, उम्मीदों की भोर।।३ हाथों थामे रखना 'जीवन', धीरज की पतवार। स्वागत करने बैठे तट पर, करुणा के उद्गार।। सरक रहा है धीरे-धीरे, अपने ओर अँजोर। दो गज की दूरी पर बैठी, उम्मीदों की भोर।।...
पड़ाव
कविता

पड़ाव

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** उठ गए पड़ाव छीन गई छाया जैन से ना कोई आया ना कोई गया धूप, धूप पड़ती है हरदम पड़ती रहे धो कन्नी चलती है चलती रहे हरदम गरम मौसम गर्म रेत गरम गाड़ियों के द्वार आया कोई चला गया कोई उठ गया किसी पड़ाव में जिंदगी का पडाव छोड़ गए माटी कोई जन परिजन की आ गया लेकर कोई खुशी न येजीवन की हर पलाश हर दूब का तिनका परिचित है इनके शौर्य श्वेद रिस गया इनका कण-कण माटी में रिसे रिसे पसीने ने फिरकी गुहार बिछ गए पड़ावछनक गई चूडियां झनक उठी झांझरे मुकुल भी महक उठा हर कोई थिरक रहा मालव की माटी पर परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ीआप शासकीय सेव...
कोई मुझ पर झुकाव कब देगा
ग़ज़ल

कोई मुझ पर झुकाव कब देगा

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** कोई मुझ पर झुकाव कब देगा। उम्र भर का लगाव कब देगा। अब रहूँ दूर या पास में उसके, इश्क़ इसका चुनाव कब देगा। आ गया हूँ मैं फिर यहाँ बिकने, वो मुझे भाव-ताव कब देगा। इस जमीं के लिए घटाओं को, ये समन्दर बहाव कब देगा। रब मुझे मेरी हर इबादत पर, चैन का रख-रखाव कब देगा। रोग पसरा है इन हवाओं में, वक़्त इससे बचाव कब देगा। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने ...