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पद्य

ये नियति का लगान है
कविता

ये नियति का लगान है

प्रदीप कुमार अरोरा झाबुआ (मध्य प्रदेश) ******************** ज़ख्म लगे होने हरे, औ' चेहरे पर मुस्कान है, तुम कहो पीड़ा है मेरी, मैं मानूँ ये इम्तिहान है। जिंदगी होने का सबब, सिर्फ खुशी होती नहीं, यह सफर है सुहाना, कहीं बाग है, वीरान है। धैर्य साहस से जुटा हो, आनंद भी वही पायेगा, बोझ सर लेकर जो बैठा, वही सदा परेशान है। अपने खातिर जी लिया, औरों का भी ख्याल कर, कुछ त्याग-पीड़ा भोग ले, ये नियति का लगान है। परउपदेश कुशल बहुतेरे, आसानी से कह दिया, क्या कहे 'प्रदीप' उन्हें, वे समझे-बुझे नादान है। परिचय :- प्रदीप कुमार अरोरा निवासी : झाबुआ (मध्य प्रदेश) सम्प्रति : बैंक अधिकारी प्रकाशन : देश के समाचार पत्रों में सैकड़ों पत्र, परिचर्चा, व्यंग्य लेख, कविता, लघुकथाओं का प्रकाशन , दो काव्य संग्रह(पग-पग शिखर तक और रीता प्याला) प्रकाशित। सम्मान : अटल काव्य सम्म...
एक शिक्षक
कविता

एक शिक्षक

मुस्कान कुमारी गोपालगंज (बिहार) ******************** कभी उसे उदास नही देखा चाहे हो उसके जीवन में लाख परेशानियां पर कभी उसे चिंतित नहीं देखा कभी खुद के लिए ना जीकर मैने उसे दूसरो के लिए जीते देखा हां मैंने एक ऐसे व्यक्ति को शिक्षक के रूप में देखा। चाहे जिंदगी की परेशानी हो या हो किताबो की परेशानी मैने उसे बताते ही हल करते देखा कभी रुकने के लिए नही हमेशा आगे बढ़ने की प्रेरणा देते देखा हां मैंने एक ऐसे व्यक्ति को शिक्षक के रूप में देखा। निरंतर चलने का उसका वो इरादा मैने बच्चो के भविष्य को बनाते देखा परिवार है उसका भी पर मैने दूसरो के बच्चो को अपना बच्चा बनाते देखा और अपने परिवार से अलग हटकर विद्यालय को भी परिवार बनाते देखा हां मैंने एक ऐसे व्यक्ति को शिक्षक के रूप में देखा। जीवन में कभी पूर्ण विराम न लगने देना ऐसा उनको समझाते देखा किसी भी बात क...
राह अपनी बनाकर
गीतिका

राह अपनी बनाकर

प्रमोद गुप्त जहांगीराबाद (उत्तर प्रदेश) ******************** सपन, हृदय में ज्यों-ज्यों पनपते गए- उधर रपटन न थी, पर फिसलते गए। अपनों को समझते हैं, अपना ही हम- परन्तु उनको सदां, हम तो खलते गए। यूँ सैकड़ों झाड़ियाँ, रोड़े आते हैं बहुत- हम राह अपनी बनाकर, निकलते गए। टांग खींचने वालों का, लगा मेला यहां- मंजिल पायी उन्होंने जो बस चढ़ते गए। यूँ मानवता- अहिंसा के पुजारी है हम- किन्तु नागों के फन, हम कुचलते गए। एक शातिर, थोड़ा मीठा बोले तो क्या- उसकी बातों से, क्यों हम पिघलते गए। निर्धारित नहीं लक्ष्य, ना दिशा ज्ञात है- हम एक नशेड़ी के जैसे ही चलते गए। संस्कृति- धर्म का कुछ, पता ना किया- हम यूँ बहकते-बहकते ही ढलते गए। स्वार्थ का झुनझुना, जब बजा सामने- तो हम पागल बने, और उछलते गए। कार-कोठी तक पहुँचे, वह किस तरह- राह जानी ही नहीं, केवल जलते गए। संघर्षों के बिना,...
कलम जब बोलती है
कविता

कलम जब बोलती है

सुनील कुमार बहराइच (उत्तर-प्रदेश) ******************** मन में बिखरे भावों को शब्दों का रूप देती है कह न पाते जो जुबां से बात वो भी कह देती है कलम जब बोलती है। अंतर्मन में जो होता है प्रकट उसे कर देती है भावों को शब्द रूप दे साहित्य सृजन करती है कलम जब बोलती है। भूत-वर्तमान-भविष्य के सभी राज खोलती है कलम जब बोलती है। कभी-कभी प्रहार ये तलवार से तेज करती है कभी-कभी प्रहार तलवार का रोक देती है कलम जब बोलती है। परिचय :- सुनील कुमार निवासी : ग्राम फुटहा कुआं, बहराइच,उत्तर-प्रदेश घोषणा पत्र : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां,...
अक्षर-अक्षर प्यार लिखें …
गीतिका

अक्षर-अक्षर प्यार लिखें …

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** मानवता को जिंदा रखने, अक्षर-अक्षर प्यार लिखें। कलम कसाई बनकर हम क्यों, दुखड़ों का अंबार लिखें।।१ बीज प्रीति के रोपित करने, मानव के बंजर उर पर, श्रम सीकर-सा सींच-सींच हम, करुणा के उद्गार लिखें।।२ छंदों के उद्यान उगा हम, महकाने वाले जग को, पंक्ति-पंक्ति में बस मानव के, सद्कर्मों का सार लिखें।।३ दिल के सम्यक् संयोजन कर, भरें मधुरिम काव्य के रस, कलुष भाव के भेद मिटा हम, प्रणय युक्त संसार लिखें।।४ विश्व शांति हो विश्व पटल पर, लहराएँ हम वह परचम, भाल भारती का हो उन्नत, ऐसा लोकाचार लिखें।।५ जला ज्ञान के दीप जगाएँ, हो जिनके घर अँधियारा, सत्पथ के राही हैं जितने, हम उनका आभार लिखें।।६ हो'जीवन'खुशियों से रोशन, मिट जाये अवसाद सभी, रोम-रोम में इस मिट्टी से, हम कुसुमित श्रंगार लिखें।।७ परिचय :- भीमराव...
देवतुल्य परिवार मिले
गीत

देवतुल्य परिवार मिले

डॉ. राजीव पाण्डेय गाजियाबाद (उत्तर प्रदेश) ******************** प्राणवंत हो सुप्त भावना, हो पूरण सब मनोकामना। वाणी में अमृत घुलता हो। बाँहो का हार मचलता हो। अग्रज के सम्मुख हम नत हो। आदर्शों में अध्ययनरत हों। हो बीजारोपण ममता का। जहाँ पाठ पढ़े सब समता का। कर्मठता का मूल्यांकन हो। हर योग यहाँ मणिकांचन हो। घर घर मे तुलसी सेवा हो। हर मूर्ति यहाँ सचदेवा हो। जहाँ वेद ऋचाएं गुंजित हों। आशीषों से अभिनन्दित हों। घर प्रगतिशील कल्पना हो। जीवन में नई अल्पना हो। मुरली की तान बिखरती हो। मंदिर घण्टा ध्वनि बजती हो। जीवन का कोना कुसुमित, रोज यहाँ त्योहार मिले। संस्कृतियों के संरक्षण हित देवतुल्य परिवार मिले। सुरभित क्यारी सी गंध मिले। उन सुमनों पर मकरन्द मिले। उन पर भृमरों का गुंजन हो। कली का अलि से अभिनन्दन हो। जहाँ पक्षी करते होंकलरव। हो गन्ध गंध में हर अवयव। ...
सामाजिक अवधारणा
कविता

सामाजिक अवधारणा

विमल राव भोपाल मध्य प्रदेश ******************** जात बदलकर अपनी माँ पर लांछन लोग लगाते हैं। रक्त पिता का किया कलंकित ख़ुद को श्रेष्ठ बताते हैं॥ जन्म लिया जिस जाति में तुमने उसका अपमान किया। स्वयं बदलकर प्यारे तुमने जग में ऐसा, क्या काम किया॥ अपनी हीं नजरों में तुमने अपना मान गिराया हैं। कौन करें सम्मान तुम्हारा ख़ुद को हीं झुठलाया हैं॥ अभी समय हैं परिवर्तन का मन में अलख जगालो। जागो प्यारे स्वाभिमानी ख़ुद की लाज बचालो॥ अनुनय विनय "विमल" करता हैं पतन नही होने देना। सामाजिक अधिकारो का तुम हनन नही होने देना॥ शीश कटा लेना, पर अपनी जात नही खोने देना। परिवर्तन की आँधी हैं ये अस्तित्व नही खोने देना॥ परिचय :- विमल राव "भोपाल" पिता - श्री प्रेमनारायण राव लेखक, एवं संगीतकार हैं इन्ही से प्रेरणा लेकर लिखना प्रारम्भ किया। निवास - भोजपाल की नगरी (भोपाल म.प्र) विश...
मंज़िलें… ये डगर और है आदमी
ग़ज़ल

मंज़िलें… ये डगर और है आदमी

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** मंज़िलें, ये डगर और है आदमी। मुश्किलें, ये सफ़र और है आदमी। रात के साथ है नींद की रंजिशें, रतजगे, ये पहर और है आदमी। वक़्त के साथ मिलकर गुजरते रहे, सिलसिले ,ये बसर और है आदमी। होशआ पायेगा किस तरह इस जगह, मैक़दे, ये असर और है आदमी। है सितारों भरा रात का आसमाँ, फासलें, ये नज़र और है आदमी। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परि...
तू ही बता जरा
कविता

तू ही बता जरा

नितिन राघव बुलन्दशहर (उत्तर प्रदेश) ******************** तेरी यादों के समुद्र में डूबू , या इन आंसुओं में बह जाऊँ | तू ही बता जरा तेरी वेवफाई, मैं हंस के कैसे सह जाऊँ || तेरे सपनों में खो जाऊँ, या इस दुनियाँ से खो जाऊँ | तू ही बता जरा तेरी वेवफाई, में जी जाऊँ या फिर मर जाऊँ || तेरे धोखे को याद करूँ, या तेरे प्यार में खो जाऊँ | तू ही बता जरा तेरी वेवफाई, के बाद रातो में कैसे सो जाऊँ || तुझे ही दिल में रखूँ, या अब निकाल जाऊँतू ही बता जरा तेरी वेवफाई के बाद, तेरा ही रहूँ या किसी ओर का हो जाऊँ || परिचय :- नितिन राघव जन्म तिथि : ०१/०४/२००१ जन्म स्थान : गाँव-सलगवां, जिला- बुलन्दशहर पिता : श्री कैलाश राघव माता : श्रीमती मीना देवी शिक्षा : बी एस सी (बायो), आई०पी०पीजी० कॉलेज बुलन्दशहर, चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय मेरठ से, कम्प्यूटर ओपरेटर एंड प्रोग्रामिंग असिस्टेंट ...
शिव की महिमा
भजन

शिव की महिमा

धर्मेन्द्र कुमार श्रवण साहू बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** आज मानव भी अपना तीसरा नेत्र तो खोलें, अंतरघट में बसे अंतर्यामी साक्षी से तो बोलें, वही त्रिलोचन तो ज्ञान चक्षुधारी शिव कहलाते हैं। समाज में फैले कुरीतियों को स्व-विवेक से भगायें, हर रोज नित नये आयाम लेकर सहजता से अपनायें। वही हर-हर महादेव शिव सिद्धीश्वर कहलाते हैं .... भौतिक जीवन को त्यागकर सत्य की अनुभूति करायें, भूत, भविष्य, वर्तमान तीनों कालों के रहस्य बतायें। वही हितकारी शिवशंभु त्रिकालदर्शी कहलाते हैं .... बारह मासों में एक बार सावन जरूर आते हैं, कल्याणकारी भोलेनाथ भी तो ससुराल आते हैं। वही पूजा-पाठ घर मंदिर ही शिवालय कहलाते हैं ..... रिमझिम फुहार ही तो विवेक वैराग्य जगाते हैं, झूठी मिथ्या कल्पनाओं को तो दूर भगाते हैं। वही जो जटा से ज्ञान की गंगा जटाशंकर बहाते हैं ...... रजो, तमो, सतो ...
लोक अदालत और गांधी दर्शन
कविता

लोक अदालत और गांधी दर्शन

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच (मध्य प्रदेश) ******************** सभी सुखी खुशहाल रहे सब, गांधी जी का ये सपना था। भले कोई कितना दुश्मन हो, वो भी तो उनका अपना था।। गांधी के सपनों का भारत, ये था इसको याद रखें हम। उनके पदचिह्नों पे चलकर, भारत को आबाद रखे हम।। सत्य अहिंसा की ताकत से, कब तक कतराएगी दुनिया। है विश्वास यकीनन एक दिन, इस पथ पर आएगी दुनिया।। जिसकी लाठी भैंस उसी की, क्या ये सोच बनी फलदाई। झगड़े से झगड़ा बढ़ता है, क्या दिल से आवाज न आई।। सदा युद्ध के परिणामों में, जीता एक, एक हारा है। पर क्या हार जीत ने बोलो, समाधान को स्वीकारा है।। समाधान की दिशा अहिंसा, इसमें कोई हार नहीं है। जश्न जीत का दोनों ही मिल, मना सकें त्यौहार यही है।। नही फैसले, समाधान की, ओर बढ़ें तो सुख पाएंगे। लोक अदालत गांधी दर्शन, है ये सब को समझाएंगे।। ****** जड़...
वीर सिपाही
कविता

वीर सिपाही

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* जाने वाले वीर सिपाही, लौट के वापस आना तू। वादा जो किया है माता से, उसको भुल न जाना तू। जब याद तुम्हारी आयेगी, आंखो से पानी आयेगा। राखी लेकर रोए बहना, कौन उसे समझाएगा । मिलन की तमन्ना बच्चों की, उसको न भूल जाना तू। जाने वाले वीर सिपाही, लौट के वापस आना तू। आना पापा लौटकर, बेटी के आँसू कहते है। छोड़ कर जब से आप गये, टूटे टुटे से रहते हैं। लेकर तिरंगा हाथों मे, आगे बढ़ते जाना तू। जाने वाले वीर सिपाही, लौट के वापस आना तू। जाते जाते कह गये थे बच्चों से, खिलौना लाने को। खिलौना चाहे मत लाना, पर कह दो जल्दी आने को। जाने वाले वीर सिपाही, लौट के वापस आना तू। वादा जो किया है माता से, उसको भुल न जाना तू। पत्नी से भी कहा था होली पर आने को । रंग बिरंगी चूडियां चाहे न लाना, पर कह दोसजने सजाने को, ...
मैं मज़दूर
कविता

मैं मज़दूर

विष्णु दत्त भट्ट नई दिल्ली ******************** मैं मज़दूर घर से बहुत दूर लालसा में दाल, भात, नून की रोटी दो जून की, मुन्ने को, मुनिया को अपनी प्यारी सी दुनिया को ममता की छाँव को छोड़कर गाँव को नदी को नहर को आ पहुँचा शहर को। खाली बैठना बेमतलब ऐंठना काम से जी चुराना नहीं था गँवारा मेहनत से अपनी शहर को सँवारा। कैसी करते हैं बात लगा रहा दिन रात आँधी, बारिश, सर्दी, गर्मी हालात चाहे जो हों मैं कभी नहीं डरा और पूरी ईमानदारी से शहर की तिजोरियों को भरा। सूखी रोटी संग पीकर जल सजाए हमने जिनके महल जुटाए जिनके लिए ऐश्वर्य के साधन, कितना संकुचित निकला उनका मन सोच कर देखिए भाई जब कोरोना ने मुसीबत ढाई तो बिना देर किए मदद करने की बजाय कैसे मुँह फेर लिए मानो जानते न हों पहचानते न हों, ये धन्ना सेठ धन के नशे में इतने चूर हैं कोरोना से ज्यादा तो ये महलों वाले क्रूर हैं।...
जिंदगी एक अनबुझ कहानी तो है
कविता

जिंदगी एक अनबुझ कहानी तो है

रूपेश कुमार चैनपुर, सीवान (बिहार) ******************** जिंदगी एक अनबुझ कहानी तो है, कोई समझे या ना नही समझे तो, जन्म और मृत्यु की ये कहानी तो है, कोई पागल यही नही समझे तो, प्यार की ये अनबुझ कहानी तो है, कोई मानें या ना नही मानें तो, बचपन, जवानी, बुढ़ापे तो है, कोई जाने या ना नही जाने तो, खेल, पढ़ाई और जॉब की रवानी तो है, कोई निभाये या ना निभाये तो है, प्यार और धोखा की ये रुबानी तो है, कोई विश्वास करे या ना नही करे तो, गाँव, शहर और नगरों का ये अंतर नही, अपनी जीवनशैली बदलने से क्या फायदा, गीत, गजल और कविता मे वो बात नही, जो अध्यात्मिक भजनों मे मिलती हमें, मनुष्य, जीव-जंतु और पेड़-पौधे एक ही है, फिर सबको मसलने से क्या फायदा, जाति धर्म, रंग-भेद और खान-पान से मतलब नही, फिर सबसे दुश्मनी करने से क्या फायदा, हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई सबका खून ए...
जनसंख्या विस्फोट
कविता

जनसंख्या विस्फोट

प्रो. आर.एन. सिंह ‘साहिल’ जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** देख रहे हैं कातिल मंजर जनसंख्या विस्फोट संसाधन पर करता रहता है यह भारी चोट भूखे नंग़े लोग भागते रोटी की ख़ातिर पर नेता जी गिनते रहते मेरे किरने वोट पैदा करते हैं हम यारों एक कंगारू देश यहाँ भी हम देखेंगे एक दिन सोमाली परिवेश कुदरत के मत्थे मत मढ़िए अपनी कुत्सित सोच मुखिया हो तो देना होगा इल्म भरा संदेश हर मसले को नहीं जोड़िए धर्म से आप सुजान कर्म से ही बस पूरे होंगे अपने सब अरमान तर्कहीन तकरीरों का अब बंद करो ये खेल नई सोच से रिश्ता जोड़ो मिट जाए अज्ञान बोझिल धरा बेचारी सोचो कैसा होगा काम दो बच्चे में ख़ुश हो जाएँ पंडित और इमाम बनिए साहिल मातृभूमि का यही वक़्त की माँग बेहतर होगाल पालन - पोषण ऊँचा होगा नाम परिचय :- प्रोफ़ेसर आर.एन. सिंह ‘साहिल’ निवासी : जौनपुर उत्तर प्...
महंगाई
कविता

महंगाई

रामकेश यादव काजूपाड़ा, मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** महंगाई से लोग परेशान हैं, खुश न तो खेत न ही वो खलिहान हैं। पाई - पाई के लिए लोग मोहताज़, कुछ का तो पैसा ही भगवान है। लगी है आग रोज डीजल- पेट्रोल में, कीमत उसकी सातवें आसमान है। पसारी ली है ऐसा पांव बेरोजगारी, लगता आदमी जैसे बेजान है। मंहगाई का असर सीधे जेब पर, अच्छे बाणों से खाली कमान है। कैसे हो ऐसे रिश्तों की तुरपाई, हर एक घर की अपनी दास्तान है। वोटों की फसल तक सीमित जनता, घड़ी- घड़ी वोटरों का इम्तिहान है। धूप पर जैसे निर्धन का हक़ नहीं, मुट्ठीभर लोगों का ये आसमान है। गुजरती है जिंदगी घुटने बटोर कर, अंदर से छाती लहूलुहान है। मजे में वो जिसकी ऊपरी कमाई, बाकी जनता बेचारी परेशान है। बेचकर चेहरा कुछ बीता रहे दिन, ऐसे यौवन का क्या सम्मान है। मीठी-मीठी बात से पेट नहीं भरता, सबसे ज्यादा किसान परेशान है। कागज ...
मैं भी बोलूं जय साईं राम
भजन

मैं भी बोलूं जय साईं राम

अरविन्द सिंह गौर इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** दुनिया में कितने साईं भक्त हैं। मेरी भक्ति कितनी कम है। साईं सेवा करते वो हर दम है। मेरी सेवा कितनी कम है। में ही साई सेवक हूं मेरा अहम दूर हुआ। साईं भक्तों मेरा भरम दूर हुआ। साईं ने दूर किया अभिमान साईं बाबा करते कल्याण। "अरविंद" साईं भक्तों को करें प्रणाम। साईं में बसते सब के प्राण। साईं देते सबको ज्ञान। श्रद्धा सबूरी रख इंसान। साईं सच्चरित्र का करो नित्य पाठ। "श्री साईं बाबा प्रचार केंद्र इंदौर" का यह दिव्य अभियान। मैं भी बोलूं जय साईं राम। सब कोई बोलो जय साईं राम। परिचय :-  अरविन्द सिंह गौर जन्म तिथि : १७ सितम्बर १९७९ निवासी : इंदौर (मध्यप्रदेश) लेखन विधा : कविता, शायरी व समसामयिक सम्प्रति : वाणिज्य कर इंदौर संभाग सहायक ग्रेड तीन के पद में कार्यरत घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित क...
औरत
कविता

औरत

योगेश पंथी भोपाल (भोजपाल) मध्यप्रदेश ******************** ईश्वर की अदभुत रचना हे जो कई रुपों में ढलती हैं। हर एक अवस्था में औरत अपना स्वरूप बदलती हे॥ हर नए रिश्ते में औरत अपनी रीत निभाती हैं । कभी तो बनती हैं बेटी कहीं बेहन बन जाति हे॥ कहीं तो हे दादी नानी कहीं तो माँ केहेलाती । कहीं पे बनती राधा प्यारी कहीं अर्धांगि बन जाती हैं ॥ सबसे बड़ा रिश्ता हैं माँ का बच्चो की नीव जो भर्ती है। धूप पढ़े जब बच्चो पर तो शीतल साया करती हैं॥ बेहन बने तो मर्यादा की होती हे इक पावन रेखा । घर को जगमग करे रोशन कोई मित्र नही एन्सा ॥ होती हे जब राधा प्यारी तन्हाई में मन बेहेलाती हे । दिल के वीराने उपवन में यादों के फूल खिलाती हे॥ और बने जब जीवनसाथी घर को वो स्वर्ग बनाती हे। अपना घरबार बसाने को अपना अस्तित्व लुटाती हे॥ पुरुष की खातिर खोती अपना तनमन सुं...
अनदेखे अनसुने
कविता

अनदेखे अनसुने

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** कुछ बातें अनकही हैं कुछ जज्बात अनसुने है कुछ चेहरे अनदेखे हैं कुछ ख्वाब अनसुने है कुछ रिश्ते अनदेखे हैं कुछ हसरतें अनकही है कुछ पहलू अनसुने है कुछ कहानियां अनदेखी है कुछ अंदाज अनसुने है कुछ लोग अनदेखे हैं कुछ गीत अनसुने है कुछ रास्ते अनदेखे हैं परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी क...
भारत की बेटी
कविता

भारत की बेटी

शैलेष कुमार कुचया कटनी (मध्य प्रदेश) ******************** मैं भारत की बेटी हूँ, मत करो मुझपर अत्याचार। सदा ही वीरो के नाम से लोगो ने भारत को जाना है। घिनोनी हरकतों से कलंक मत लगाओ भारत को। लक्ष्मी बाई जैसी नारी हुई, जान देश पर वार दी। मैं भारत की बेटी हूँ, मत करो मुझ पर अत्याचार। मातृभूमि को जब सर आँखों पर रखते हो तो, एक बेटी पर क्यो पाप करते हो। मैं भारत की बेटी हूँ, मत करो मुझपर अत्याचार। जिस भारत की अहिंसा पहचान थी, यहां क्यो मोमबतियां लोगो ने थामी है। मैं भारत की बेटी हूँ, मत करो मुझपर अत्याचार। बागी भी हुए यहां पर, लेकिन उन्होंने बेटी, बहू को इज्जत दी, तुम ना बनो हैवान। मैं भारत की बेटी हूँ, मत करो मुझपर अत्याचार। बेटी यहां की बर्दी पहन, रहती है,सदा तैयार देश पर कब हो जाऊँ क़ुर्बान। मैं भारत की बेटी हूं, मत करो मुझपर अत्याचार। विश्व मे...
जहां में ख़ुदा
हिन्दी शायरी

जहां में ख़ुदा

सुखप्रीत सिंह "सुखी" शाहजहांपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** जहां में ख़ुदा - ऐ - बंदगी अजीब देखी गरीबी में संस्कारों की संजीदगी अजीब देखी और साया क्या फटा गरीबी में किसी गरीब का यहां लोगों की आंखों में गन्दगी अजीब देखी परिचय :-  सुखप्रीत सिंह "सुखी" निवासी : शाहजहांपुर (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें …🙏🏻 ...
खुशी प्रदायिनी
कविता

खुशी प्रदायिनी

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** कविता खुशी प्रदायिनी, दर्द का उचित प्रमाण है जनमानस के हित में जब, कलम बनती प्राण है। बहुधा कविता का साथी, अलमारी का कोना है पुस्तक क्रय बात अलग,मिली भेंट क्या खोना है शिवशक्ति संगम जैसा, लेखन संदेश भी त्राण है कविता खुशी प्रदायिनी, दर्द का उचित प्रमाण है जनमानस के हित में जब, कलम बनती प्राण है। रुचिकर भोजन स्वभाव, पसंद का भवन लेता यारी परिवार संबंध हेतु, नाविक नैया खुद खेता पसंद नापसंद से सर्वस्व, करता मनुज निर्माण है कविता खुशी प्रदायिनी, दर्द का उचित प्रमाण है जनमानस के हित में जब, कलम बनती प्राण है। स्मृति पटल पे बने रहना, स्वभावों की हद बनती कविता संदर्भों की चर्चा, प्रभाव का कद गढ़ती कब कैसे कितना कथन, मानव हक परिमाण है कविता खुशी प्रदायिनी, दर्द का उचित प्रमाण है जनमानस के हित में जब, कलम बनती प्राण ...
रिश्तों की दीवार…
कविता

रिश्तों की दीवार…

सुभाष बालकृष्ण सप्रे भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** संभाल न सके जो रिश्तों की दीवार, बेदर्दी से अपनों को कर दिया, किनार, देखते-देखते ये साल भी बीता जा रहा, उनकी यादों से सजा रखा, मैने घर द्वार, तस्वीर से तेरी नज़रें कभी हटा नहीं पाते, जन्म दिवस पर, आपको कैसे देंगे पुष्प हार, हम लोग वक्त, फिज़ूल कभी, जाया न करते, सपने, हमने भी देखें थे, भविष्य के, बेशुमार, कभी-कभी सालता है ये तनहाई का आलम, चंद सांसों का जीवन भी न मिल सका, उधार परिचय :- सुभाष बालकृष्ण सप्रे शिक्षा :- एम॰कॉम, सी.ए.आई.आई.बी, पार्ट वन प्रकाशित कृतियां :- लघु कथायें, कहानियां, मुक्तक, कविता, व्यंग लेख, आदि हिन्दी एवं, मराठी दोनों भाषा की पत्रीकाओं में, तथा, फेस बूक के अन्य हिन्दी ग्रूप्स में प्रकाशित, दोहे, मुक्तक लोक की, तन दोहा, मन मुक्तिका (दोहा-मुक्तक संकलन) में प्रकाशित, ३ गीत॰ मुक्तक लो...
ए जिंदगी
कविता

ए जिंदगी

गगन खरे क्षितिज कोदरिया मंहू (मध्य प्रदेश) ******************** ए जिंदगी में कितना खुश नसीब हूं मन की आहट सांसों का निरंतर चलना, सुबह का खिलना एक मधूर मुस्कान के साथ स्वागत, अभिनन्दन, अभिनन्दन शुभ प्रभात नई ऊर्जा के साथ है ईश्वर तेरा अभिवादन करता हूं नतमस्तक हूं प्रथम कुसुम खिलें उषा की किरणों के साथ एक प्यारी सी मिठी सी मुस्कान लिए समर्पित हूं ईश्वर अभिनन्दन, अभिनन्दन में सर झुका कर करता हूं। शशि चंद्र धुमिल हुए, प्रखर लालिमा लिए प्रकट समय-चक्र सूर्य नारायणन गतिशीलता लिए एक नई दिशा जिंदगी को देने अपनी ऊर्जा से पथ प्रदर्शक, मार्गदर्शन करने जागो नई उमंग लिए मिठी सी मुस्कान के साथ है ईश्वर शुभ प्रभात की नई किरणों के साथ अभिनन्दन अभिनन्दन करता हूं। सरिता की पावन जल लहरें, जल प्रपातों से करती अटखेलियों निखार रही परिंदों कलाबाजियां शिखर पर हैं प्रातः उषा काल में दि...
स्वदेशी मेरा गाँव
कविता

स्वदेशी मेरा गाँव

डॉ. रश्मि शुक्ला प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) ******************** स्वदेशी मेरा गाँव, यहाँ आकर ठंडी-ठंडी मिलती छाँव, झींगुर बोले जैसे नई बहुरिया चले छम-छम बोले पाँव। मेरे आँगन के देखती प्यारी जिसमे अमराई बौराए, कुहू-कुहू के कोमल स्वर में कोयल तान सुन्दर सुनाए। दौड़ गली की ओर बढ़ रही ननुवा की तेज गाईया, रामू काका काधे पर डंडी बन बैठे मल्हार गवईया। हृदय हुए ज्यों हरे-हरे पर्वत अथवा हरे-भरे उपवन, मोर नाच रहे जैसे ताल पर मोरनी का बन नव जीवन। बिना जतन बिना यत्न के मेरे गाँव हरियाली हरियाए, और प्रकृति भी हमें प्यार से सुत समान दुलराए। आँगन में आँवला, नीम, वट,पीपल दिख जाए, गौ संग बछड़े को शीतलता बाँटें उनकी मृदु छायाएँ। हर पंछी को मिलता बसेरा, पशु को दाना-पानी, मौसम भी सुहाना जब पवन चले अपनी मनमानी। द्वारा-द्वार पर सबके तुलसी बिरवे पावनता फैलाएं, पुष्प व...