बंधन रिश्तों का
संजय जैन
मुंबई (महाराष्ट्र)
********************
रिश्तों का बंधन
कही छूट न जाये।
और डोर रिश्तों की
कही टूट न जाये।
रिश्ते होते है बहुत
जीवन में अनमोल।
इसलिए रिश्तों को
हृदय में सजा के रखे।।
बदल जाए परस्थितियां
भले ही जिंदगी में।
थाम के रखना डोर
अपने रिश्तों की।
पैसा तो आता जाता हैं
सबके जीवन में।
पर काम आते है
विपत्तियों में रिश्ते ही।।
जीवन की डोर
बहुत नाजुक होती है।
जो किसी भी समय
टूट सकती है।
इसलिए संजय कहता है
रिश्तों से आंनद वर्षता है।
बाकी जिंदगी में अब
रखा ही क्या है।।
परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच (hindirakshak.com) सहित बहुत सारे अखबारों-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहती ह...























