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छंद

नित्य योग अपनाए
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नित्य योग अपनाए

रेखा कापसे "होशंगाबादी" होशंगाबाद (मध्य प्रदेश) ******************** रोला छंद नित्य करो तुम योग, निरोगी नियमित काया। तन-मन दोनों स्वस्थ, श्वास की निर्मल छाया।। प्रात: प्राणायाम, भ्रामरी शीतल बोधक। नित अनुलोम विलोम, कहाए नाड़ी शोधक।। योगासन शुभ लाभ, विश्व में ख्याति जमाए। भोर काल में योग, रक्त संचरण बढ़ाए।। नियमित कपालभाति, शांति तन-मन में भरता। मुख आभामय ओज, पाच्य उत्तेजन करता।। आसन योग अनेंक, भिन्न मुद्रा से निर्मित। न्यून करे तन भार, वसा को करे नियंत्रित।। चिंता तनाव नष्ट, क्रोध छू-मंतर करता। काया ऊर्जावान, बढ़े प्रतिरोधक क्षमता।। योग लाभ अतिरेक, रखे मानव अनुशासन। प्रात: संध्याकाल, नियम से हो सब आसन।। योगासन पश्चात, स्नान मत तुरंत करना। सर्दी खाँसी शीत, जकड़ लेती है वरना।। परिचय :- रेखा कापसे "होशंगाबादी" निवासी - होशंगाबाद (मध्य प्रदेश) घो...
अंतर्राष्ट्रीय नर्सेस दिवस
गीतिका, छंद

अंतर्राष्ट्रीय नर्सेस दिवस

रेखा कापसे "होशंगाबादी" होशंगाबाद (मध्य प्रदेश) ******************** आधार- हरिगीतिका छंद दीदी कहो सिस्टर कहो, या नाम दो परिचारिका। है नेक मन की भावना, जीवन समर्पित राधिका।। कहते इसी को नर्स भी, अब नाम आफीसर मिला। सम्मान से आह्लाद में, मुख दिव्य सा उपवन खिला।। सेवा बसी मन साधना, नित याचिका स्वीकारती। अपनी क्षुधा को मार के, वो मर्ज सबका तारती।। गोली दवाई बाँट के, नाड़ी सुगति लय साधती। मेधा चिकित्सक स्वास्थ्य के, ये रीढ़ के सुत बाँधती।। परिचारिका मन भाव से, सेवा सुधा मय घूँट दे । निज स्वार्थ को वह त्याग कर, परमार्थ का ही खूट दे।। ये दौर कितना है कठिन, नित काम ही है साधना। दिन रात का मत बोध है, बस मुस्कराहट कामना।। आओ करे शत् - शत् नमन, सेवा समर्पित भाव को। सम्मान से बोले वचन, नि:स्वार्थ कर्मठ नाव को।। पर रोग के उपचार में यह नींद अपनी त्याग दे। समत...
छप्पय छंद
छंद

छप्पय छंद

रजनी गुप्ता 'पूनम चंद्रिका' लखनऊ ******************** छप्पय छंद विधान - एक रोला छंद + एक उल्लाला छंद रोला छंद - ११, १३ की यति से चार पंक्तियाँ, दो-दो पंक्ति तुकांत, विषम चरणान्त गुरु लघु से, सम चरण आरंभ त्रिकल (लघु गुरु हो तो अति उत्तम) से तथा अंत चौकल से उल्लाला छंद - १३-१३ की यति से दो पंक्तियाँ, दोनों तुकांत, चार चरण प्रति चरण १३ मात्रा (दोहा का विषम चरण), ११ वीं मात्रा लघु अनिवार्य १ चलूँ पकड़ कर बाँह, चपल हैं बेटे प्यारे। ममता की है छाँव, नयन के मेरे तारे।। बेटी पर अभिमान, जलातीं दो कुल बाती। करूँ हृदय भर प्रेम, सहेजें मेरी थाती।। माँ दुर्गा रक्षा करें, पूरा यह वरदान हो। चाह रही रजनी यही, खिली सदा मुस्कान हो।। २ प्रतिपल देना साथ, सदा तुम दुर्गा माता। गणपति भी हों संग, रहें अनुकूल विधाता।। व्यक्त करे आभार, कहाँ तक रजनी कितना। सागर में है नीर, समझ लें सादर इतना।। ...
मनहर के आने का संदेश पाने पर मनहरी की मनोदशा
आंचलिक बोली, छंद, सवैया

मनहर के आने का संदेश पाने पर मनहरी की मनोदशा

ज्ञानेन्द्र पाण्डेय "अवधी-मधुरस" अमेठी (उत्तर प्रदेश) ******************** सुंदरी सवैया छंद (अवधि भाषा) मुसकातु अहै उ कपाटु धरे मनवा हुलरै पियवा अजु आवै । भिनही कगवा मुँडरा चढ़िके कहवाँ-कहवाँ भलुके दुलरावै । ननदा बिहँसै जरि जायि हिया सनकी-मनकी करि खूबि खिझावै । ढुरकैं जबहीं सुरजू तबहीं फँसि जायि परानु कछू नहिं भावै ।।१।। परछायि दिखै दुअरा दुलरा दुलही जियरा खुलिके हरसावै । कबहूँ अँगना महिं नाचि करै कबहूँ ननदा बहियाँ लिपिटावै । चुपके-चुपके नियरानि जबै अँखियाँ लड़ितै घुँघटा लटकावै । कहिजा मँखना अँगना तड़पै कबुलौं दहकै कसिके समुझावै ।।२।। तुहिंसे लड़ना सजना जमुके बतिया दुइठूं करना तुम नाहीं । इसकी उसकी परके घरकी नथिया-नकिया धरना तुम नाहीं । फिरकी फिरकी अपनी-अपनी भलुके भरिके फँसना तुम नाहीं । रचिके बचिके चँदना बहकौ कपरा सबुके सजना तुम नाहीं ।।३।। पतझारि दिखै जिनिगी...
घायल
कुण्डलियाँ, छंद

घायल

रामसाय श्रीवास "राम" किरारी बाराद्वार (छत्तीसगढ़) ******************** कुंडलियां छंद घायल की गति जानकर, करें त्वरित उपचार। मानवता का धर्म है, यह है शुभ ब्यवहार।। यह है शुभ ब्यवहार, इसे है सदा निभाना। खुद सहकर के कष्ट, उसे है तुम्हें बचाना।। कहे *राम* कवि राय, जमाना होगा कायल। मिटे सकल संताप, स्वस्थ होगा जब घायल।। परिचय :- रामसाय श्रीवास "राम" निवासी : किरारी बाराद्वार, त.- सक्ती, जिला- जांजगीर चाम्पा (छत्तीसगढ़) रूचि : गीत, कविता इत्यादि लेखन घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानिया...
युद्ध विभीषिका
छंद

युद्ध विभीषिका

रेखा कापसे "होशंगाबादी" होशंगाबाद (मध्य प्रदेश) ******************** मनोरम छंद युद्ध भीषणता कहूँ क्या। मौत का तांडव सहूँ क्या।। निज कलम आक्रोश करती। नित मनुज हिय जोश भरती।। हाल सब के अस्त से है। आम जन सब त्रस्त से है।। पीर वो किसको बताए। बन सहारा कौन आए।। रक्त की नदियाँ बहाती। फिर कथा सदिया सुनाती।। रोक लो गर हो सके तो। शांति माला पो तके तो।। विश्व सारे मौन क्यों है। सोच सबकी पौन क्यों है।। क्या समझ अब मर गई है। या किसी से डर गई है।। विश्व संकट तीव्र शंका। भीषिका का वज्र डंका।। एशिया पर डौलता है। वक्त भी अब बोलता है।। शांति की दरकार कर लो। राष्ट्र मिल करतार धर लो।। दूर सारी भ्रांति हो जब। एशिया में शांति हो अब।। परिचय :- रेखा कापसे "होशंगाबादी" निवासी - होशंगाबाद (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित म...
हौसला पंछी का पिंजरा
कविता, छंद

हौसला पंछी का पिंजरा

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** छंद काव्य उमर नही होती है जिनकी, फिर भी शैल उठाया है रखते पास हौसला पंछी, पिंजरा भी उड़ाया हैं। जब होनहार बिरवान सुना, हर पीढ़ी सुनते आए किसी का दायित्व भी बनता, खुद से वो कितना गाए तकदीर लिखाकर जो आता, खून पसीने की खाए बेगानों की बात नहीं थी, अपनों से धोखे पाए नौ मन तेल बिना ही कैसे, तिगनी नाच कराया है। दिल में नफरत दीवारें थीं, फिर भी साथ बिठाया है। उमर नहीं होती है जिनकी, फिर भी शैल उठाया है। रखते पास हौसला पंछी, पिंजरा भी उड़ाया है। धोखा विश्वास नदी पाट से, दोनों अलग किनारे हैं दोनों मिल जाए मनुष्य को, तकदीरों के मारे हैं बनती वजह लिहाज चाशनी, सदा समंदर खारे हैं स्थिर जीवन कबूल नहीं फिर, मानो बहते धारे है तिनका मोरपंख बन जाए, सिया कटार बनाया है। अग्रिम पंक्ति में खड़े दिखे, अल्प धन ही कमाया है। उमर नहीं होती ...
सब गुलजार हुआ होगा
कविता, छंद

सब गुलजार हुआ होगा

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** ताटंक छंद त्योहार मनाने का उत्साह, इंतजार में पलता है राग द्वेष को तजते इसमें, अपनेपन से चलता है। होली होली कहते सुनते, जीवन पार हुआ होगा रंग गुलाल अबीर चकाचक, सब गुलजार हुआ होगा। दुनिया रंगबिरंगी होती, चालों में रंग सिमटता रंगों पर हक नहीं किसी का, घटना घेरों में पलता आशा विश्वास सहयोग दया, रंगो का पहरा रहता रहमत रंग की पात्रता से, अमन चैन खजाना होगा सच्चे पक्के जब रंग समाए, दांवपेंच गुजरा होगा होली होली कहते सुनते, जीवन पार हुआ होगा रंग गुलाल अबीर चकाचक, सब गुलजार हुआ होगा। बिना कर्म और समर्पण से, अंक गणित का शून्य है रंग तुम्हारे कितने चोखे, साहस मार्ग अनन्य है अमल खलल रूप सच्चाई से, रंग गाथा भी धन्य है जहमत रंग प्रतिपालन में, काया कल्प हुआ होगा रंग लगाकर रंग बदलना, आपा भी खोया होगा होली होली क...
विस्मृत चित्र श्रम का
गीत, छंद

विस्मृत चित्र श्रम का

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** गीत, आधार छंद - लावणी भाग्य मिटाया मजदूरों का, धन के मदिर बयारों ने। श्रम का विस्मृत चित्र किया है, सत्ता के फनकारों ने।। गमक स्वेद की समा न पायी, कभी कागजी फूलों में। अमिट वेदना श्रम सीकर की, फँसती गई उसूलों में।। वार सहे पागल लहरों के, युग-युग विवश किनारों ने। श्रम का विस्मृत चित्र किया है, सत्ता के फनकारों ने।।१ कौर रहे हाथों से रूठे, वस्त्र बदन की व्यथा कहे। बिन बारिश ही पर्णकुटी के, विकल नैन से अश्रु बहे।। लूटी है सपनों की डोली, खादिम बने कहारों ने। श्रम का विस्मृत चित्र किया है, सत्ता के फनकारों ने।।२ दूध पिलाया पुचकारा है, आस्तीनों के व्यालों को। भूख छेड़ देती है पल-पल, घायल पग के छालों को।। देह निचोड़ी श्रमजीवी की, लालच के बाजारों ने। श्रम का विस्मृत चित्र किया है, सत्ता के फनकारों ने...
वसन्त ऋतु
छंद

वसन्त ऋतु

ललिता शर्मा ‘नयास्था’ भीलवाड़ा (राजस्थान) ******************** सरसी छंद गीत मात्राभारः १६,११ झूम रही है उपवन शाखी, मधुकर करता शोर। ऋतु वसन्त है सबसे प्यारा, देखो चारों ओर॥ प्रमुदित होते किसलय कानन, खिली-खिली-सी धूप। पर्ण पाँखुरी की जम्हाई, यौवन छलके कूप। वासंती हो बैठे पंछी, नर्तक झूमें पोर॥ ऋतु वसन्त है सबसे प्यारा, देखो चारों ओर॥ उजला-उजला नभ का साया, बादल-बदली नील। दिनकर आता तम को हरने, झेन-फेन-सी झील। पवन-वेग से गूँज रही है, राग वसन्ती भोर॥ ऋतु वसन्त है सबसे प्यारा, देखो चारों ओर॥ शुचि-सोम-सरी कल-कल बहती, निर्मल जल की धार। उच्च शिखर की आभा जैसे, धरणी का श्रृंगार॥ पीत मञ्जरी महक उठी हैं, माघ बना चितचोर॥ ऋतु वसन्त है सबसे प्यारा, देखो चारो ओर॥ ऋतु वसन्त है सबसे प्यारा, देखो चारों ओर॥ परिचय :-  ललिता शर्मा ‘नयास्था’ निवासी : भीलवाड़ा (राजस्थान...
होली के रंग
छंद

होली के रंग

रामकुमार पटेल 'सोनादुला' जाँजगीर चांपा (छत्तीसगढ़) ******************** (सरसी छंद) कृष्ण-राधा संवाद कृष्ण - लाल रंग मैं डालूँ गोरी, तन-मन कर दूँ लाल। तेरे गोरे गाल लगाऊँ, मल-मल लाल गुलाल। राधा - लाल रंग प्रियतम डालो ना, भय हिय होय हमार। प्लाश सुमन मन आग लगाता, दहके ज्यों अंगार। कृष्ण - हरा रंग डालूँ मैं सजनी, मत करना इनकार। हरा रंग में हरा- हराकर, बरसाऊँ रसधार। राधा - हरा रंग भी नहीं लगाना, हँसत सुआ उड़ जाय। हरा पेड़ अब मुझे हराकर, कसत व्यंग हरषाय। कृष्ण - पीला रंग तुझे रंगाऊँ, मानो मेरी बात। मेरी होली याद रखोगे, काहे हृदय लजात। राधा - पीला- पीला पोत न प्यारे, हल्दी हँसती जाय। सरसों सुमन मगन हो नाचे, मेरा मन मुरझाय। कृष्ण - नीला रंग तुझे रंगाऊँ, सकल तन सराबोर। प्रिये नहीं अब करना ना- ना, हिय में उठत हिलोर। राधा - नीला भी तो भय उपजाए, नीलकंठ खग र...
आई होली चढ़ा भंग
छंद, धनाक्षरी

आई होली चढ़ा भंग

सरिता सिंह गोरखपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** आई होली चढ़ा भंग, सतरंगी चढ़ा रंग। गले मिल मिल कर, हर्ष खूब लीजिये गुजिया मिठाई खाए, पापड़ कचौड़ी खाए। पकवान चख चख, पेट भरे लीजिये जीजा और साली संग, देवर और भाभी संग। अबीर गुलाल मले, मजा खूब लीजिये लिए रंग पिचकारी, भरे सभी किलकारी। खेल रंग बच्चों संग, बच्चा बन लीजिये लाल,पीले रंग डाल, रंगे आज मुख गाल। अपना पराया भूल, होली आज लीजिये। जात पात रंग भूल, रंग की उड़ाई धूल। भाई-भाई बनकर, बैर मिटा लीजिये। भूलकर बैर भाव, अच्छा करके स्वभाव। एक दूजे घर जाके, रिश्ता निभा लीजिये। परिचय : सरिता सिंह निवासी : गोरखपुर (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने पर...
पनघट
छंद

पनघट

डॉ. भावना सावलिया हरमडिया (गुजरात) ******************** विष्णुपद छंद दृश्य सुहाना पनघट पर का, चहल-पहल सारी, चली नीर भरने पनिहारी, ले गगरी भारी, पायल को छनकाती चलती, कटि को लचकाती, खंजन नैनों से दिख के वो, हिय में शरमाती । पायल की झनकार जगाती, प्रीत युवा दिल में, भ्रमर मंडराते हैं मानो, पनघट के स्थल में, बीच घोर घन कुंतल दिखती, चंद्र-मुखी प्यारी, घायल सबको करती चलती, मधु मुसका न्यारी। छोटी-सी ठोकर से छलके, निर्मल जल घट का, मानो नीलांबर है बरसे, खोल स्नेह पट का, बूँद मोतियों-सी सिर पर से, अधरों पर ठहरी, पँखुडी पर शबनम मोती-सी, शोभित है गहरी। परिचय :- डॉ. भावना नानजीभाई सावलिया माता : वनिता बहन नानजीभाई सावलिया पिता : नानजीभाई टपुभाई सावलिया जन्म तिथि : ३ अप्रैल १९७३ निवास : हरमडिया, राजकोट सौराष्ट्र (गुजरात) शिक्षा : एम्.ए, एम्.फील, पीएच. डी, जीएसईटी सम्...
प्रकृति का श्रृंगार बसंत
छंद

प्रकृति का श्रृंगार बसंत

रेखा कापसे "होशंगाबादी" होशंगाबाद (मध्य प्रदेश) ******************** रोला छंद आया सुखद बसंत, प्रीत रम हृदय जगाए। वसुधा रति श्रृंगार, देख मन अनुपम भाए।। धर पीताम्बर वस्त्र, भगवती ध्यान लगाओ। धन वैभव का साज, सौर्य गुरु ग्रह से पाओ।। बिखरे पतझड़ पात, वात झोंका अलसाये। रम अनुपम मधुमास, अधर मधु मनन लुभाये।। अरुणोदय की थाप, रश्मि की तपन प्रवाहित। नव पल्लव सौगात, कुसुम मकरंद सुवासित।। रक्तिम टेशू पुष्प, बौर अमुआ पर झूले। मीठी कोयल कूक, खेत में सरसो फूले।। प्रेमिल अंत अधीर, मिलन प्रियतम हिय प्यासा। विरह वेदना पीर, मिटे अब दुखद कुहासा।। फीकी पड़ती धुंध, निशा का ठौर सिकुड़ता। रवि किरणों का शौर्य, उत्तरायण तट पड़ता।। यौवन पाते अन्न, कृषक अंतस हर्षाता। प्यारा सुखद बसंत, सभी के मन को भाता।। परिचय :- रेखा कापसे "होशंगाबादी" निवासी - होशंगाबाद (मध्य प्रदेश) घोषणा प...
माधव ने मन मोह लिया
छंद

माधव ने मन मोह लिया

अवनीश सूर्य हर्नियाखेड़ी, महू (मध्यप्रदेश) ******************** सवैया छंद माधव ने मन मोह लिया पर माधव के मन भा गयी राधा। माधव वेणु बजात रहे यमुना तक दौड़ लगा गयी राधा। माधव की रज शीश लगा कर माधव में ही समा गयी राधा, माधव ही जगपालक हैं अरु माधव नाम बना गयी राधा। परिचय :-  अवनीश सूर्य स्थाई निवासी : बारापत्थर, सिवनी, (मध्यप्रदेश) वर्तमान निवासी : हर्नियाखेड़ी, महू, इंदौर (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिय...
राम नाम की मधुशाला (भाग- ५)
छंद, भजन

राम नाम की मधुशाला (भाग- ५)

प्रेम नारायण मेहरोत्रा जानकीपुरम (लखनऊ) ******************** अंगूरी मदिरा पीने, मदिरालय जाना पड़ता है। कठिन कमाई से अर्जित धन, व्यर्थ गवांना पड़ता है। राम नाम मदिरा अंतर में, खोल भरम का तू ताला। बिना मूल्य के जी भर पी ले, बन जायेगा मधुशाला। राम नाम मदिरा में डूबा, फिर कुछ नहीं लुभायेगा। पूर्ण तृप्त होगा हरपल तू, खुद में ही सुख पायेगा। बहुत नशीली है ये मदिरा, शीघ्र उठा ले तू प्याला। स्वास्थ नहीं करती खराब ये, पी जा पूरी मधुशाला। पी कबीर ने राम नाम को जब लेखनी उठाई है। ऐसी अमृतवाणी फूटी पढ़ दुनिया हरसाई है। राम नाम की मदिरा पीकर, हाथ लिए घूमा प्याला। दोनों हाथ पिलाई जग को, फिर भी भरी है मधुशाला। राम नाम की मदिरा पीनेवाला, उन्मत रहता है। जग आसक्ति छूट जाती है, सदा स्वस्थ तन रहता है। हाथ कार्य करते दिखते हैं, अंतर चले "नाम" माला। सुमिरन में रम जाता है मन...
राम नाम की मधुशाला (भाग- ४)
छंद, भजन

राम नाम की मधुशाला (भाग- ४)

प्रेम नारायण मेहरोत्रा जानकीपुरम (लखनऊ) ******************** इस पवित्र पावन गंगा में, जो भी नित्य नहाता है। उसके पाप नष्ट होते हैं, मुक्ति धाम को पाता है। मानव जीवन धन्य उसीका , जिसने पिया नाम प्याला। जिसमे छलके नाम की मदिरा, उसे कहेंगे मधुशाला। ये कल्याणदायिनी गंगा, मरुथल में बह सकती है। वो अमोघ शक्ति है इसमें, जो चाहे कर सकती है। नाम जाप ने रत्नाकर डाकू, को ऋषि बना डाला। रामायण की रचना करके, वो बन बैठा मधुशाला। भक्त विभीषण दैत्य हो जन्मा, पर फिर भी वो सात्विक था। रावण का मंत्री था फिर भी, सत्यनिष्ठ और धार्मिक था। राम नाम की प्रीत ने उसको, हनुमत से मिलवा डाला। कर सहयोग प्रभु सेवक का, वो बन बैठा मधुशाला। राम नाम की मदिरा का कुछ, स्वाद जिसे मिल जाता है। वो उसमे ही डूब राम रस, सबको खूब पिलाता है। जिसको ये मदिरा चढ़ जाती, हो जाता है मतवाला। स्वांस स्व...
राम नाम की मधुशाला (भाग- ३)
छंद

राम नाम की मधुशाला (भाग- ३)

प्रेम नारायण मेहरोत्रा जानकीपुरम (लखनऊ) ******************** नाम नशेमें डूबी शबरी, नित्य बाहरू करती थी। प्रभू राम आएंगे निश्चित, गुरु वचन पर मरती थी। इतना डूबी नाम नशे में, जूठे बेर खिला डाला। राम प्रेम मदिरा पीते थे, वो बन बैठी मधुशाला। जो करवाना चाहे ईश्वर, उसको तू अर्पित हो जा। उसकी कृपा मानकर अपने, अहम भाव को तू खा जा। तू तो केवल निमित मात्र है, ईश्वर बस करने वाला। हर पल जाम नाम के पीकर, तू भी बन जा मधुशाला। नारायण खुद राम रूप, धरकर पृथ्वी पर आए थे। मान बढ़ाने को हनुमत का, उनको काम बताये थे। राम नाम की मदिरा पीकर, लंका को था जला डाला। नहीं जली बस एक कुटी, जो राम नाम की मधुशाला। राम नाम इतना फलदायी, पूर्ण कवच बन जाता है। जो भी इस मदिरा में डूबा, मन वांछित फल पाता है। बाल्मीक ने नाम जपा तो, उन्हें सुपात्र बना डाला। नाम जाप में डूब गया जो, वो बन ...
राम नाम की मधुशाला (भाग- २)
छंद, भजन

राम नाम की मधुशाला (भाग- २)

प्रेम नारायण मेहरोत्रा जानकीपुरम (लखनऊ) ******************** तुम अनन्य सेवक हो राम के, स्वांस स्वांस तेरी माला। तुलसी से लिखवा कर महिमा, "तुलसीदास" बना डाला। पीनेवाला ही तो नाम की, महिमा बतला सकता है। तुम बतलाते जाओ महिमा, लिख दूँ अमृत मधुशाला। नाम नशे में रहते हो तुम, क्यों बस यही बखान करो। सबके अन्तर करो प्रेरणा, राम नाम का पान करो। हनुमत इस अमृत मदिरा का, पकड़ा दो हर कर प्याला। हर घर मे हो साकी प्रभु का, वसुंधरा हो मधुशाला। मदिरालय की मदिरा चढ़ती, तो विवेक हर लेती है। राम नाम की मदिरा सबको, भक्ति का फल देती है। लग जाता पूरी श्रद्धा से, जो होकर के मतवाला। उसकी दृष्टि झूमा देती है, वो बन जाता मधुशाला। उस मदिरा का नशा चढ़े तो, नष्ट सभी कुछ होता है। नाम नशा जितना चढ़ता, मन उतना पावन होता है। नाम नशे में डूबके मीरा ने, विष अमृत कर डाला। नाम नशा सबपर चढ़ ...
राम नाम की मधुशाला (भाग- १)
छंद, भजन

राम नाम की मधुशाला (भाग- १)

प्रेम नारायण मेहरोत्रा जानकीपुरम (लखनऊ) ******************** हनुमत तुमने ही पकड़ाई, राम नाम अमृत माला। अंतर में प्रेरणा जगाई, लिखूं नाम की मधुशाला। तुमसे बड़ा 'नाम' का साकी, नहीं कोई इस धरती पर । अमृत जाम बनाते जाना, पूरी हो ये मधुशाला। बहुत विघ्न आएंगे पथ में, तुम रक्षक बनकर रहना। विघ्नों पर तुम गदा चलाना, मेरे कर में दे माला। राम नाम हर स्वांस में तेरी, तुम हो सदा भरा प्याला। बतलाते जाना तुम महिमा, में तो बस लिखने वाला। हर घर मे अब राम नाम की, मदिरा को पहुंचाना है। हर जिव्हा को स्वाद चखाकर, मुक्ति मार्ग ले जाना है। जब हर कर में आजायेगा, राम नाम मधु का प्याला । तो हर आंगन बन जायेगा, राम नाम की मधुशाला। तुलसी ने बतलाया कलयुग में, बस नाम सहारा है। सभी संत बतलाते केवल, नाम ही तारण हारा है। इतना नाम पिलादो मुझको, हो जाऊं मैं मतवाला। मेरे रोम रोम से निक...
प्रथम पूज्य हैं गणपति देवा
चौपाई, छंद

प्रथम पूज्य हैं गणपति देवा

रजनी गुप्ता 'पूनम चंद्रिका' लखनऊ ******************** प्रथम पूज्य हैं गणपति देवा। सर्वप्रथम हो उनकी सेवा।। संकट टालो अतिशय भारी। हनुमत आई शरण तिहारी।। सबका मंगल करने वाले। मुझको अपने चरण बिठा ले।। तुलसी कृत मानस है भाती भक्ति-सुभाव हृदय में लाती।। मानस में वर्णित चौपाई। उर में श्रद्धा बहु उपजाई।। मातु पिता की महिमा गाई। गुरु के चरण बहुत सुखदाई।। प्रेम करें सब भाई-भाई। सकल विश्व पूजित रघुराई।। कैकेई ने प्रभु को माना। राह सुगम की वन को जाना।। तज महलों को सीता माता। संग पिया का अति मन भाता।। उर्मिल सहती थी दुख भारी। रहें कर्म-पथ लखन सुखारी।। निज इच्छा से प्रभु की सेवा। राम सकल जग के हैं देवा।। सीख भरत से यह हम लेते। प्रभु के चरण परम सुख देते।। प्रातः वेला अति मनभायी। पुण्य प्रताप मधुर रसदायी।। राम नाम अति मंगलकारी। प्रमुदित हो लेते नर-नारी।। धन्य-ध...
रंगमंच सी है ये दुनिया
छंद

रंगमंच सी है ये दुनिया

अर्चना तिवारी "अभिलाषा" रामबाग, (कानपुर) ******************** सरसी छंद :- रंगमंच सी है ये दुनिया, हम सब हैं किरदार। जाना सबको इस दुनिया से, खाली हाथ पसार।। फिर काहे की उलझन भइया, काहे की तकरार। हँसी खुशी से मिल लो सबसे, मिले दिवस हैं चार।। परिचय :-  अर्चना तिवारी "अभिलाषा" पिता : स्वर्गीय जगन्नाथ प्रसाद बाजपेई माता : श्रीमती रानी बाजपेयी पति : श्री धर्मेंद्र तिवारी जन्मतिथि : ४ जनवरी शिक्षा : एम ए (राजनीति शास्त्र) बी लिब- राजर्षि टंडन ओपेन यूनिवर्सिटी-प्रयागराज निवासी : रामबाग, (कानपुर) अभिरुचि : आध्यात्मिक व साहित्यिक पुस्तकों का अध्ययन व लेखन साहित्यिक उपलब्धियाँ : साहित्य संगम संस्थान द्वारा प्रकाशित एकल पुस्तक-काव्यमेध, साझा संग्रहों में रचनाएं प्रकाशित, मासिक ई पत्रिका में श्रेष्ठ सृजन हेतु कविताएं व आलेख प्रकाशित। सम्मान : अम्रता प्रीतम कवियित्री सम्मान, नार...
योग छंद “विजयादशमी”
छंद

योग छंद “विजयादशमी”

शुचिता अग्रवाल 'शुचिसंदीप' तिनसुकिया (असम) ******************** अच्छाई जब जीती, हरा बुराई। जग ने विजया दशमी, तभी मनाई।। जयकारा गूँजा था, राम लला का। हुआ अंत धरती से, दुष्ट बला का।। शक्ति उपासक रावण, महाबली था। ग्रसित दम्भ से लेकिन, बहुत छली था। कूटनीति अपनाकर, सिया चुराई। हर कृत्यों में उसके, छिपी बुराई।। नहीं धराशायी हो, कभी सुपंथी। सर्व नाश को पाये, सदा कुपंथी। चरम फूट पापों का, सदा रहेगा। कब तक जग रावण के, कलुष सहेगा।। मानवता की खातिर, शक्ति दिखाएँ। जग को सत्कर्मों की, भक्ति सिखाएँ।। राम चरित से जीवन, सफल बनाएँ। धूम धाम से हम सब, पर्व मनाएँ।। योग छंद विधान- योग छंद एक सम पद मात्रिक छंद है, जिसमें प्रति पद २० मात्रा रहती हैं। पद १२ और ८ मात्रा के दो यति खंडों में विभाजित रहता है। १२ मात्रिक प्रथम चरण में चौकल अठकल का कोई भी संभावित क्रम लिया जा सकता है। इसक...
नरहरि छंद  “जय माँ दुर्गा”
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नरहरि छंद “जय माँ दुर्गा”

शुचिता अग्रवाल 'शुचिसंदीप' तिनसुकिया (असम) ******************** जय जग जननी जगदंबा, जय जया। नव दिन दरबार सजेगा, नित नया।। शुभ बेला नवरातों की, महकती। आ पहुँची मैया दर पर, चहकती।। झन-झन झालर झिलमिल झन, झनकती। चूड़ी माता की लगती, खनकती।। माँ सौलह श्रृंगारों से, सज गयी। घर-घर में शहनाई सी, बज गयी।। शुचि सकल सरस सुख सागर, सरसते। घृत, धूप, दीप, फल, मेवा, बरसते।। चहुँ ओर कृपा दुर्गा की, बढ़ रही। है शक्ति, भक्ति, श्रद्धा से, तर मही।। माता मन का तम सारा, तुम हरो। दुख से उबार जीवन में, सुख भरो।। मैं मूढ़ न समझी पूजा, विधि कभी। स्वीकार करो भावों को, तुम सभी।। नरहरि छंद विधान- नरहरि छंद एक सम पद मात्रिक छंद है, जिसमें प्रति पद १९ मात्रा रहती हैं। १४, ५ मात्रा पर यति का विधान है। दो-दो या चारों पद समतुकांत होते हैं। इसका मात्रा विन्यास निम्न है- १४ मात्रिक चरण की प्रथम दो मा...
कविता ऐसे जन्मी है
कविता, छंद

कविता ऐसे जन्मी है

शुचिता अग्रवाल 'शुचिसंदीप' तिनसुकिया (असम) ******************** प्रदोष छंद कविता प्रदोष छंद विधान :- यह १३ मात्राओं का सम मात्रिक छंद है। दो-दो चरण या चारों चरण समतुकांत होते हैं। इसका मात्रा विन्यास निम्न है- अठकल+त्रिकल+द्विकल =१३ मात्रायें अठकल यानी ८ में दो चौकल (४+४) या ३-३-२ हो सकते हैं। (चौकल और अठकल के नियम अनुपालनीय हैं।) त्रिकल २१, १२, १११ हो सकता है तथा द्विकल २ या ११ हो सकता है। मन एकाग्रित कर लिया। चयन विषय का फिर किया।। समिधा भावों की जली। तब ऐसे कविता पली।। नौ रस की धारा बहे। अनुभव अपना सब कहे।। लेकिन जो हिय छू रहा। कविमन उस रस में बहा।। सुमधुर सरगम ताल पर। समुचित लय मन ठान कर।। शब्द सजाये परख के। गा-गा देखा हरख के।। अलंकार श्रृंगार से। काव्य तत्व की धार से।। पा नव जीवन खिल गयी। पूर्ण हुई कविता नयी।। परिचय :- शुचिता अग्रवाल 'शुचिसंदीप' ...