छत्तीसगढ के सुघ्घर तिहार
रामसाय श्रीवास "राम"
किरारी बाराद्वार (छत्तीसगढ़)
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हमर संस्कृति अऊ हमर संस्कार।
नदावत जावत हे छेर-छेरा तिहार।।
कतको तिहार के धरती हावय,
ये छत्तीसगढ महतारी।
ये मन ल बचाके रखना हावय,
हम सबला संगवारी।।
धर के टुकनी अऊ धरें बोरा,
लइकामन चलें बिहनिहा बेरा।
खोल गली बने गझिन लागय,
कहत जावंय छेर छेरा ,छेर छेरा।।
टुकना मा घर के मुंहटा मा,
धर के बइठे रहे धान।
वो घर के रहे जेहर,
सबले बड़े सियान।।
रंग-रंग के ओनहा पहिरे,
लइका मन बड़ सुख पांय।
छेर-छेरा मांगे खातिर,
जम्मो घरो घर जांय।।
पढ़े लिखे लइका मन ला,
अब लागथे लाज।
समय हर बदलत हावय,
देखव का होवत हे आज।।
अपन सुघ्घर तिहार के,
परंपरा ला भुलावत हावंय।
गांजा दारू के नशा मा,
रात दिन सनावत हावंय।।
हमर छत्तीसगढ के संस्कृति ला,
हमन ल रखना हावय जिंदा।
ये सुघ्घर तिहार मन के,
झन करव भु...