Thursday, December 4राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

छंद

द्रुतविलम्बित छंद-वर्णिक छंद
छंद

द्रुतविलम्बित छंद-वर्णिक छंद

ज्ञानेन्द्र पाण्डेय "अवधी-मधुरस" अमेठी (उत्तर प्रदेश) ******************** द्रुतविलम्बित छंद-वर्णिक छंद समवृत्तिक (दो-दो चरण- समतुकान्त)- नगण+भगण-भगण+रगण- १२वर्ण पवन-पुत्र कपीश बलीस हैं । लखन प्राण निवारक अनीस हैं ।। हरन शोक सिया त अशोक हैं । तरन सिंधु विशाल विशोक हैं ।। कपिस केश सुबाहु बलिष्ठ हैं । कनक देह सुशोभित मिष्ठ हैं ।। अमित विक्रम अम्मर साहसी । जगत रक्षक साधक जापसी ।। सच कहा भल सज्जन वानरा । कर भला जब ही भल डाबरा ।। नित करो हनु का जप ध्यान से । मनन तर्पण-अर्पण मानसे ।। पनपती विष वल्लरि द्वार है । विपति-साँसति फैलति झार है ।। सुखद भाव भरे कर दो शुभा । पतित-पावन रूप चलो निभा ।। चहुँमुखी सुरसा मुँह खोलती । प्रगति पंथ खड़ी नित रोकती ।। कुशल, कौशल आकर मोइए । चहुँदिशा यश-वैभव जोइए ।। अनीस- सुप्रीम , मिष्ठ- पुण्यात्मा , डाबरा मीठे लड्डू परि...
आदित्य देव सुन लो, विनती हमारी
छंद

आदित्य देव सुन लो, विनती हमारी

ज्ञानेन्द्र पाण्डेय "अवधी-मधुरस" अमेठी (उत्तर प्रदेश) ******************** वसन्ततिलका- उक्ता वसंततिलका तभजा : जगौ ग : (तगण, भगण, जगण , जगण , दो गुरु - १४ वर्ण ८, ६ पर यति हो या नहीं भी हो, दो सम तुकान्त) ॐ स सूर्याय नम : आदित्य देव सुन लो, विनती हमारी। आओ प्रभास भरके, तम हे निवारी।। मुक्ता सुमाल पहिरे, गल है सुहाता। प्रद्योत राशि बिखरे, जब हो प्रभाता।। संपतिवान करते, रवि हैं दयालू। पूजो सदा प्रबल को, यह हैं कृपालू।। बाधा सभी निपट के, सुख शांति देती। स्वामी सुकर्म कहते, पहले शुभेती।। आराधना सुखद है रविवार द्यौ की। शीघ्राति पूर्ण करते, फल देत लौ की।। प्रातः सुकाल चित में, इनको बिठाना। सच्ची लगी लगन से, इनको बुलाना।। संपूर्ण व्योम चलते, थकते नहीं हैं। उत्पन्न अन्न करते, डिगते नहीं हैं।। नक्षत्र में प्रथम हैं, बहु हैं प्रतापी । सारंग सूर्य जग के, कर लो मिलाप...
साहस
छंद

साहस

अनुराधा प्रियदर्शिनी प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) ******************** ताँका छंद यह जीवन एक संघर्ष सदा जीत मिलेगी जो लड़ता सदैव हिय रखे साहस युद्ध क्षेत्र में मजबूत इरादे पार लगा दें हर एक बाधा से सपने साकार हों लक्ष्य मिलता मजबूत इरादे जिनके होते साहस से बढ़ते मंजिल पा जाने को सत्कर्म करो नित आगे बढ़ना मंजिल मिले सफलता मिलती खुशियों का संसार स्वेद की बूंदे मुस्कान बिखेरती हरियाली हो जीवन लहराता महकता चमन परिचय :- अनुराधा प्रियदर्शिनी निवासी : प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, ल...
त्रिभंगी छंद आधारित शिव स्तुति
छंद

त्रिभंगी छंद आधारित शिव स्तुति

अर्चना तिवारी "अभिलाषा" रामबाग, (कानपुर) ******************** त्रिभंगी छंद आधारित शिव स्तुति १ जय -जय शिव शंकर, प्रभु अभ्यंकर, नाथ महेश्वर, भंडारी। हे जग अखिलेश्वर, प्रभु परमेश्वर, हे गिरिजेश्वर, त्रिपुरारी।। यह मन है चंचल, होता विह्वल, घुलता पल-पल, माया में। प्रभु पार लगाओ, दरश दिखाओ, मत भटकाओ, काया में।। २ मद लोभ फँसी मैं, क्रोध धँसी मैं, विरह हँंसी मैं, हे भगवन्। माया में अटकी, दर-दर भटकी, दुख में लटकी, हे त्रिभुवन।। उर पीर बड़ी है , विकट घड़ी है, नीर झड़ी है, गिरिजेश्वर। हे नाथ उबारो, संकट टारो, मुझे सम्हारो, अखिलेश्वर।। ३ रोते हैं नैना, उर बेचैना, पीड़ित बैना, प्रभु मेरे। हूँ लाज गड़ी मैं, द्वार खड़ी मैं, शरण पड़ी मैं ,प्रभु तेरे।। मम त्रास मिटाओ , हृदय लगाओ, अंक बिठाओ, हे दाता। प्रभु विनती करती , नाम सुमिरती , धीरज धरती, जग त्राता।। ४ हे नाथ महेश्वर, हे ...
वसन्ततिलका – उक्ता वसंततिलका
छंद

वसन्ततिलका – उक्ता वसंततिलका

ज्ञानेन्द्र पाण्डेय "अवधी-मधुरस" अमेठी (उत्तर प्रदेश) ******************** तभजा : जगौ ग : (तगण, भगण, जगण, जगण, दो गुरु - १४ वर्ण ८, ६ पर यति हो या नहीं भी हो, दो सम तुकान्त) (ॐ स विष्णवे नम:) श्री विष्णु पूजन करो, उठते सवेरे। एकादशी अति शुभी, जपले लबेरे।। पीतांबरी तन गछी, कर शंख राधे। बैजंति माल गल में, गद चक्र साधे।। दैत्यासुरा दल दिखे, भयभीत भाजे। पापी कुकर्म बझिके, कबहूँ न छाजे।। फैले प्रकाश हिय में, जब भान होगा। सत्ता उसी परम की, तब ज्ञान होगा।। मानो न बात उलटी, न बनो कुगामी। सोचो मिले न कुछ भी, घुमिए गुनामी।। आगे बढ़ें सपथ पे, न चलें कुचालें। पैनी रखें नजर यूँ, डग भी सँभालें।। लिखा वही करम का, लिखता-मिटाता। भाषा न जान सकता, कितना छुपाता।। है कर्म सुंदर जभी, तब ही सुहाता। धर्ता वही जगत का, वह ही प्रदाता।। आओ विचार करलें, भरलें चिता में। कूर्मा सरूप...
शीत लहर
छंद

शीत लहर

रामसाय श्रीवास "राम" किरारी बाराद्वार (छत्तीसगढ़) ******************** सोरठा छंद शीत लहर से आज, जूझ रहा संसार है। रूक गया सब काज, बचना इससे है कठिन।। पौष माघ की जाड़, लोग ठिठुरते ठंड से। कॅंपा रही है हाड़, बेबस हैं इससे सभी।। छायी धुंध अपार, चलना भी दूभर हुआ। ठंडी चली बयार, कहीं हुआ हिमपात है।। मौसम की है मार, इससे बच सकते नहीं। त्रस्त सभी नर नार, हैं इसके आगोश में।। बाल वृद्ध बीमार, खूब परेशाॅं हैं यही। जीना है दुश्वार, फिर भी है धीरज धरे।। मन में है विश्वास, बदलेगा मौसम कभी। है बसंत अब पास, आने को है द्वार पर।। सुखद सुहानी धूप, दिनकर लेकर आ गया। रंक रहे या भूप, सबको यह प्यारा लगे।। परिचय :- रामसाय श्रीवास "राम" निवासी : किरारी बाराद्वार, त.- सक्ती, जिला- जांजगीर चाम्पा (छत्तीसगढ़) रूचि : गीत, कविता इत्यादि लेखन घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि स...
चामर छंद
छंद

चामर छंद

ज्ञानेन्द्र पाण्डेय "अवधी-मधुरस" अमेठी (उत्तर प्रदेश) ******************** (चामर छंद- (दीर्घ+लघु) ×७+१ दीर्घ - २ = १५ वर्ण, दो या चारों सम पदान्त, चार-चरण) बाम अंग बैठ के उमा महेश संग में । चंद्रमा निहारतीं भरे बड़े उमंग में ।। हैं गणेश कार्तिकेय नंदि पास में खड़े । सोहते सभी अतीव एक एक से बड़े ।। गंग लोरतीं कपार घूमतीं यहाँ-वहाँ । मुंडमाल क्षार देह है पुती कहाँ-कहाँ ।। हैं अनंत हैं अनादि देव जे पुकारते । देव है बड़े महान दु:ख ते निवारते ।। रूद्र देव आदि देव धूम्र वर्ण धूर्जटी । विश्वरूप आयुताक्ष* भंग रात-द्यौ घुटी ।। कामरूप सोमपा शिवा शिवा शिवा शिवा । शंकरा महेश्वरा अराधिए नवा शिरा ।। कंठ है पवित्र गंग केश में बहा करें । नृत्य तांडवा शिवा डमड्ड पे किया करें ।। ग्रीव में भुजंग माल हार ज्यूँ झुला करे । तीन नेत्र अग्नि रूप माथ पे दहा करे ।। शंभु पूजिए अवश्...
झूठे वादे
छंद

झूठे वादे

रामसाय श्रीवास "राम" किरारी बाराद्वार (छत्तीसगढ़) ******************** सार छंद नेताओं की है यह आदत, करतें झूठे वादे। तन गोरा मन काला इनका, नेक न रखें इरादे।। जब चुनाव की बेला आती, दौड़े-दौडे आते। जिन्हें नहीं जाना पहचाना, उनको शीश नवाते।। एक बार सत्ता मिल जाए, फिर तो उसे भुलादें नेताओं की है यह आदत, करते झूठे वादे मंचासीन हुए नेताजी, जब गांवों में आए। अपने दल की लोक लुभावन, बातें खूब बताए।। मीठी-मीठी बातें करके, सबका मन बहलादे नेताओं की है यह आदत, करते झूठे वादे सीधी सादी जनता प्यारी, खूब बजाते ताली। भूल गया वह पिछली वादें, जो अब तक है खाली।। बातों से ही मोह लिया मन, फिर दे चाहे ना दे नेताओं की है यह आदत, करते झूठे वादे राजनीति गंदी होती है, ऐसे नेताओं से। बचके रहना मतदाताओं, इनके बहकाओं से।। ये चाहें तो आसमान से, तारे गिनकर लादे नेताओं की है य...
मन खुशी से झूम उठा
छंद

मन खुशी से झूम उठा

रामसाय श्रीवास "राम" किरारी बाराद्वार (छत्तीसगढ़) ******************** लावड़ी छंद आज खुशी से झूम उठा मन, कुदरत की है देख छटा। शीत गुलाबी लगी कॅंपाने, अम्बर में है तेज घटा।। बिन बरसात बरसता बादल, चली हवा है पुरवाई। मौसम के इस परिवर्तन से, हुई सभी को कठिनाई।। चिंतित हैं हलधर बेचारे, अन्न अभी है पड़ा कटा आज खुशी से झूम उठा मन, कुदरत की है देख छटा द्वार खड़ा ऋतुराज अभी है, आने को दस्तक देता। पुष्प बांण से वेध हृदय का, सारे संकट हर लेता।। करें प्रतीक्षा गुलशन सारे, उसमें सब का ध्यान बॅंटा आज खुशी से झूम उठा मन, कुदरत की है देख छटा नाच रहा मन मोर हृदय में, कैसी यह शुभ बेला है। खेत और खलिहान भरे हैं, ज्यों खुशियों का मेला है।। लाभ किसी को हुआ अधिक है, और किसी का तनिक घटा आज खुशी से झूम उठा मन, कुदरत की है देख छटा अद्भुत है ईश्वर की लीला, देख चकित सब होते ...
समय चुनाव का
छंद, दोहा

समय चुनाव का

रामसाय श्रीवास "राम" किरारी बाराद्वार (छत्तीसगढ़) ******************** दोहा छंद आया समय चुनाव का, करना है मतदान। हमें बनाना है यहाॅं, मिलकर एक विधान।। लोकतंत्र की जान है, वोटर का अधिकार। स्वस्थ प्रशासन के लिए, यह सुंदर आधार।। सोच समझकर ही करें, हम अपना मतदान। दूर प्रलोभन से रहें, बढ़े देश की शान।। छणिक प्रलोभन में डिगे, कभी नहीं ईमान। सच्चे मतदाता बनें, रखना है यह ध्यान।। ऐसे नेता को चुनें, समझ सके जो पीर। मतदाता के ऑंख से, पोंछ सके जो नीर।। पाॅंच वर्ष की योजना, लाती है सरकार। जनता के हित में बने, वही करें स्वीकार।। मतदाता को चाहिए, कर नेता की जाॅंच। वोट उसी को दीजिए, लगता हो जो साॅंच।। जाति धर्म की भावना, इन सबसे हों दूर। वोट कभी मत कीजिए, होकर के मजबूर।। प्रत्यासी जाना हुआ, देश भक्त इंसान। राजनीति की हो परख, उसे करें मतदान।। अपना देश महान है, इसकी...
विध्वंकमाला छंद
छंद

विध्वंकमाला छंद

आचार्य नित्यानन्द वाजपेयी “उपमन्यु” फर्रूखाबाद (उत्तर प्रदेश) ******************** पानी बचाओ न फेंको बहाओ। मानो कहा आप हे! मित्र आओ।। पृथ्वी हमारी तभी ही बचेगी।। सातों अकूपाद धारे रहेगी।। रोपो नए वृक्ष प्यारे सखाओं। वर्षा करें मेघ न्यारे सखाओं।। पर्याप्त वर्षा से भूमि प्यारी। फूले फले हो नई पुष्प क्यारी।। मित्रों यही धर्म भी है हमारा। सच्चा सही कर्म भी है हमारा।। आओ उठो बाल वृद्धों युवाओं। व्याही कुवाँरी धरित्री सुताओं।। मैं आपको धर्म सच्चा बताऊँ। दो हाथ से वृक्ष बीसों लगाऊँ।। लो आपभी धर्म का मर्म पाओ। दो-चार-छः वृक्ष नए उगाओ।। नीरांजली तृप्त पृथ्वी बनेगी। वृक्षाम्बरी नृत्य न्यारा करेगी।। ऊर्जा धरा में है नीर लाता।। माँ मेदिनी को सुधा है पिलाता।। सौभाग्य से मानवी देह पाई। निष्णात है कर्म की कौशलाई।। क्या द्वंद क्यों आप नहीं बताते। आनंद क्यों 'नित्य' तु...
नैन बिंबित हैं
गीत, छंद

नैन बिंबित हैं

आचार्य डाॅ. वीरेन्द्र प्रताप सिंह 'भ्रमर' चित्रकूट धाम कर्वी, (उत्तर प्रदेश) ******************** छंद : मधुरागिनी छंद (वर्णिक) गीत विधान : वर्णवृत :- तगण, भगण, रगण, तगण, भगण, गा। शिल्प : १६ वर्ण, १०/६ वर्ण पर यति, समपाद वर्णिक छंद, दो-दो चरण समतुकांत। संकल्प से मन की मयूरी, नाचती वन में। सामर्थ से सपने सजाती, स्वयं के तन में।। आराधिके बन दामिनी की, नृत्य है करती। निर्विघ्न चंचल चंचला-सी, चूमती धरती।। आकाश से चुनती अपेक्षा, साधना घन में। सामर्थ से सपने सजाती, स्वयं के तन में।‌। अम्भोज-सा बिखरा पड़ा है, दिव्यता छहरे। दे ताल अंबर को पुकारे, धारणा लहरे।। झूमें लता तरु पुष्प डाली, प्रेम अर्चन में। सामर्थ्य से सपने सजाती, स्वयं के तन में।। प्रत्यूष की अभिलाष में द्वै, नैन बिंबित हैं। कौमार्य की वन वीथिका में, बिंब चिह्नित हैं।। वातास गंधिल शोभती है, प्...
पुतले का दहन
कुण्डलियाँ, छंद

पुतले का दहन

रामसाय श्रीवास "राम" किरारी बाराद्वार (छत्तीसगढ़) ******************** कुंडलियां - छंद करके पुतले का दहन, हर्षित है इंसान। रावण अब मारा गया, कहता है नादान।। कहता है नादान, इसी भ्रम में वह जीता। पुतले को निज हाथ, जलाते सदियों बीता।। कहे राम कवि राय, जोश हिय में वह भरके। मना रहा है पर्व, दहन पुतले का करके।। मरना रावण का नहीं, है इतना आसान। जब तक के अपने हृदय, भरा हुआ अभिमान।। भरा हुआ ‌अभिमान, यही रावण कहलाता। फिर पुतले पर क्रोध, व्यर्थ में क्यों दिखलाता।। कहे राम अभिमान, हमें है निज का हरना। तब होगा आसान, दुष्ट रावण का मरना।। परिचय :- रामसाय श्रीवास "राम" निवासी : किरारी बाराद्वार, त.- सक्ती, जिला- जांजगीर चाम्पा (छत्तीसगढ़) रूचि : गीत, कविता इत्यादि लेखन घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कव...
अमृत कलश/पुष्पमाला छंद
छंद

अमृत कलश/पुष्पमाला छंद

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** अमृत कलश/पुष्पमाला छंद विधान : वार्णिक छंद १३ वर्ण गण संयोजन : नगण नगण रगण रगण गुरु मापनी : १११ १११ २१२ २१२ २ चार चरण : दो-दो चरण समतुकांत ९,४ पर यति अतुलित सुख दें कृपा, श्याम पाउँ। गिरधर उर में बसे, नित्य ध्याऊँ।। सहज सरल श्रेष्ठ हो, नाथ आओ। अमिय कलश मोहना, आज लाओ।। विकल हृदय हैं मिलें, भी किनारे। नटवर प्रभु थाम लो, हो सहारे।। उलझन सब दूर हों, है अँधेरा। सुमन सरिस दो खिला, हो सबेरा।। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मोहन पाठक पुत्र : सौरभ भट्ट पुत्र वधू : डॉ. प्रीति भट्ट पौत्री : निहिरा, नैनिका सम्प्रति : सेवानिवृत्त जिला न्यायाधीश (मध्य प्रदेश), लोकायुक्त संभागीय सतर्कता समिति जबलपुर की भूत...
आसमान में बादल छाए
गीत, छंद

आसमान में बादल छाए

रामसाय श्रीवास "राम" किरारी बाराद्वार (छत्तीसगढ़) ******************** विधा- गीत सार- छंद आसमान में बादल छाए, श्वेत श्याम हैं प्यारे। घूम रहे हैं दशों दिशा में, लगते सबको न्यारे।। मौसम है बारिश का देखो, बादल लगे गरजने। रिमझिम-रिमझिम बूंद सुहानी, लगती मन को हरने।। देख इन्हें है हर्षित होता, तन मन सभी हमारे आसमान में बादल छाए, श्वेत श्याम हैं प्यारे डोल रहे हैं साथ हवा के, इधर-उधर मतवाले। कभी अकेले कभी साथ में, रहते बाॅंहे डाले।। देख-देख इनकी सुंदरता, ऑंखें कभी न हारे आसमान में बादल छाए, श्वेत श्याम हैं प्यारे है कपास सा कोमल कितना, लगे बर्फ का गोला। धरती में जलधार बहे जब, इसने है मुह खोला।। होते हैं मुश्किल में जग के, रहने वाले सारे आसमान में बादल छाए, श्वेत श्याम हैं प्यारे लगता उड़कर आसमान में, इन बादल को छू लूॅं। उड़ता है मन पंख पसारे, कैसे ...
मधुवल्लरी छंद
छंद

मधुवल्लरी छंद

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** विधान : मात्रिक छंद (मापनी युक्त) २१ मात्राएँ चार चरण : दो-दो चरण समतुकांत। मापनी : २२१२ २२१२ २२१२ आभास हो संसार हो मनमोहना। मस्तक मुकुट है रूप है प्रभु सोहना।। वंदन करूँ मैं साँवरे सुखधाम हो। कर जोड़ विनती मैं करूँ निष्काम हो।। सुमिरन रहे प्रभु प्रीति भी कल्याण हो। आशीष तेरी मिलती रहे उर प्राण हो। कान्हा हरो सब पीर सुख अविराम हो। आलोक फैले जग सुखद परिणाम हो।। लो थाम अब नैया भँवर है जान लो। पतवार हो कान्हा हमें पहचान लो।। आत्मा करो पावन किशन परमात्म हो। मीरा बनूँ जिह्वा सदा प्रभु नाम हो।। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मोहन पाठक पुत्र : सौरभ भट्ट पुत्र वधू : डॉ. प्रीति भट्ट पौत्री : निहिरा,...
आधार छंद
छंद, दोहा

आधार छंद

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** आधार छंद - दोहा सपनों के आकाश में, पंछी बन संसार। दिखा रहा जादूगरी, रिश्तों को संहार।।१ दृष्टि प्रवंचक घूरती, तन का स्वेद निचोड़, तृषित नैन से भूख के, बहे अश्रु की धार।।२ व्यथित हुई हैं चींटियाँ, भूल गयी प्रतिरोध। यह मौसम जो दे रहा, कोड़े की फटकार।।३ संस्कारों का आवरण, तार-तार कर शर्म। बना रहा मन क्रूरतम, धर्म मनुजता मार।।४ सड़कों पर ज्वालामुखी, घर-घर में आक्रोश। समरसता को दे दिया, उन्मादक आहार।।५ तख्ती बैनर झंडियाँ, जलसों के परवाज। मार रहे सौहार्द को, बन घातक हथियार।।६ सत्ता के घर कैद में, सुख की धवल प्रभात। चढ़ सीने पर दीन के, करे बदन विस्तार।।७ परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी ...
सार्धमनोरम छंद
छंद

सार्धमनोरम छंद

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** सार्धमनोरम छंद विधान मात्रिक छंद, २१ मात्राएँ चार चरण, दो-दो चरण समतुकांत मापनी : २१२२ २१२२ २१२२ श्याम प्यारे हम पुकारें नाथ दाता। है विपद भारी विधाता आप त्राता।। नित गिरें चरणों मुरारी बात मानो। दास चाकर है तिहारा श्याम जानो।। साधना करते सदा ही द्वार आते। ठौर कान्हा आपके ही पास पाते।। गोप गोपी साँवरे को नित्य ध्याते। पावनी इस प्रीति के गुण नित्य गाते।। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मोहन पाठक पुत्र : सौरभ भट्ट पुत्र वधू : डॉ. प्रीति भट्ट पौत्री : निहिरा, नैनिका सम्प्रति : सेवानिवृत्त जिला न्यायाधीश (मध्य प्रदेश), लोकायुक्त संभागीय सतर्कता समिति जबलपुर की भूतपूर्व चेयरपर्सन। प्रकाशित पुस्तक :...
विधाता छंद
छंद, मुक्तक

विधाता छंद

रामसाय श्रीवास "राम" किरारी बाराद्वार (छत्तीसगढ़) ******************** मुक्तक विधाता छंद गजानन बुद्धि के दाता, उमा शिव के बड़े प्यारे। प्रथम हो पूज्य इस जग में, तुम्हे पूजे जगत सारे।। दरश को मैं चला आया, सुमन भर भाव का लाया। चरण में है नमन अर्पण, इसे अब आप स्वीकारें।। चतुर्थी है बड़ा पावन, तिथि भादों की शुभकारी। लिए अवतार हैं इस दिन, छवि सुंदर है मनुहारी।। बजे कैलाश में बाजे, मनोहर रूप सब साजे। खुशी की आज वेला है, मनाते लोग हैं भारी।। गगन से देवगण सारे, देखकर खूब हर्षाऍ। दरश की लालसा मन में, लिए कैलाश में आऍ।। गणों के हो तुम्हीं स्वामी, प्रभु तुम हो अंतर्यामी। विनय सुन लो हमारी भी, तुम्हारे द्वार पर आऍ।। परिचय :- रामसाय श्रीवास "राम" निवासी : किरारी बाराद्वार, त.- सक्ती, जिला- जांजगीर चाम्पा (छत्तीसगढ़) रूचि : गीत, कविता इत्यादि लेखन घोषणा पत्र : मैं य...
प्रतिमा – वार्णिक
छंद

प्रतिमा – वार्णिक

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** प्रतिमा - (वार्णिक) १४ वर्ण : चतुर्दशाक्षरावृत्ति यति - ८, ६ गण संयोजन - सभतनगग सगण भगण तगण नगण गुरु गुरु (११२-२११-२२, १-१११-२२) चार चरण, दो -दो चरण समतुकांत। ममता मूरत न्यारी, सुमिरत माता। करुणा सागर अम्बे, गुण जग गाता ।। भव तारे अवतारी, नित शुभकारी। जगदम्बे जननी हो, अतिशय प्यारी।। चरणों शीश झुकाते, मनहर रूपा। प्रिय हो वैभव शाली, नमन अनूपा।। जयकारा करते हैं, हम दिन राता। अब आशीष हमें दो, निरख सुजाता।। पथ के कंटक सारे, विपद हटादो। वसुधा आकुल माता, तिमिर मिटादो।। बलिहारी हम जाते, सुन वरदानी। महिमा भी नित गाते, जगत भवानी।। तुम अम्बे तुम काली, कर रखवाली। नवदुर्गा घर आओ, परम निराली।। सजती थाल सुहानी, कुमकुम रोली। अब तारो तुम दासी, मनहर भोली।। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : ...
प्रेम है अनमोल
छंद

प्रेम है अनमोल

डॉ. भावना सावलिया हरमडिया, राजकोट (गुजरात) ******************** छंद मनोरम २१२२ २१२२ प्रेम है अनमोल न्यारा, ईश का उपहार प्यारा ।। प्रीत बिन जीवन अधूरा, विश्व हो रस सिक्त पूरा । प्रेम रस जिसने पिया है । धन्य जीवन को किया है । नित्य बरसे स्नेह धारा । प्रेम है अनमोल न्यारा ।। पियु सुहाना प्यार ऐसा । रस अमिय का सार जैसा । चार नैना बात करते । प्रीत हिय की दाह हरते । साँस में अनुराग सारा । प्रेम है अनमोल न्यारा।। हो हृदय में भाव निर्मल । तब पनपता प्रेम हरपल । बाग खुशियों का महकता । मोर मन का है गहकता । प्रीत बिन संसार खारा। प्रेम है अनमोल न्यारा ।। प्रिय बहुत मुझको सुहाता । प्यार उनका है लुभाता । मीत जब-जब बात करता । दिव्य झर-झर प्रेम झरता । नैन का है मीत तारा । प्रेम है अनमोल न्यारा ।। परिचय :- डॉ. भावना नानजीभाई सावलिया माता : वनिता बहन नानजीभाई...
सनयास छंद
छंद

सनयास छंद

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** सनयास छंद विधान : वार्णिक छंद १२ वर्ण गण संयोजन : सगण नगण यगण सगण ११२ १११ १२२ ११२ चार चरण, दो-दो चरण समतुकांत। जगपालक प्रभु स्वामी कहते। उर में रघुवर मेरे रहते।। मन मूरत बसती नाथ सुनो। नित राघव जप लो राम गुनो।। सुमिरो निशिदन तो मोक्ष मिले। मन के उपवन में पुष्प खिले।। रघुनाथ चरण में आज पड़ी। अब दो दरशन मैं द्वार खड़ी।। मनमोहक छवि प्यारी लगती। विनती सुन प्रभु रातों जगती।। तजदी अब सब माया सुन लो। हितकारक प्रभु दासी चुन लो।। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मोहन पाठक पुत्र : सौरभ भट्ट पुत्र वधू : डॉ. प्रीति भट्ट पौत्री : निहिरा, नैनिका सम्प्रति : सेवानिवृत्त जिला न्यायाधीश (मध्य प्रदेश), लोकायु...
विजयी विश्व तिरंगा
छंद

विजयी विश्व तिरंगा

रेखा कापसे "होशंगाबादी" होशंगाबाद (मध्य प्रदेश) ******************** मरहठा छंद जग विश्व विजय का, राष्ट्र प्रणय का, अमर तिरंगा शान। परचम लहराये, गौरव गाये, वीरों का बलिदान।। घर-घर हो उत्सव, अमृत महोत्सव, जन-जन उर में गर्व। पचहत्तर वार्षिक, अद्भुत कालिक, आजादी का पर्व।। है अंतस गंगा, सजे तिरंगा, घर -घर ध्वज प्रतिमान। सैनिक बलिदानी,अमर कहानी,जन गण मन शुभ गान ।। शुभ तीन रंग से, नव उमंग से, गौरव गाथा भान। है श्वेत शांति का, हरित क्रांति का, केसरिया बलिदान।। जो नील चक्र है, मध्य वक्र है, नित विकास संचेत। चतुर्विश तीलियाँ, धार्मिक गलियाँ, मनुज गुणी संकेत।। शत गौरव गाथा, टेके माथा, मातृभूमि के अंक। नित रक्त बहाते, प्राण चढ़ाते, राजन् हो या रंक।। मस्जिद गुरुद्वारे, मंदिर सारे, गिरिजाघर के संग। घर-घर लहराये, नभ छू जाये, देशभक्ति के रंग।। जन-जन का सपना, भारत अपना, बने ...
श्वेता छंद
छंद

श्वेता छंद

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** विधानः वार्णिक छंद दस वर्ण गण संयोजन : मगण रगण मगण गुरु २२२ २१२ २२२ २ चार चरण, दो-दो चरण समतुकांत अंबा दुर्गा भवानी कामाक्षी। कुष्मांडा शारदा माता साक्षी।। जो जन्मान्तरों को है जोड़े। पाखंडी दंड दे माया तोड़े।। माता पूजा करें आ स्वीकारो। द्वारे तेरे खड़े हैं माँ तारो।। श्रद्धा से माँ बुलाते आ रानी। पूरी हो प्रार्थना मेरी दानी।। त्राता सौगात दें हैं कल्याणी। देती हैं शक्ति दें मीठी वाणी।। पीड़ा सारी हरें माता जानो। अन्तर्यामी भरें झोली मानो।। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मोहन पाठक पुत्र : सौरभ भट्ट पुत्र वधू : डॉ. प्रीति भट्ट पौत्री : निहिरा, नैनिका सम्प्रति : सेवानिवृत्त जिला न्यायाधीश ...
कान्हा स्वामी
छंद

कान्हा स्वामी

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** मन्दाक्रान्ता विधान : वार्णिक छंद गण संयोजन मगण भगण नगण तगण तगण गुरु गुरु २२२ २११ १११ २२१ २२१ २२ १७ वर्ण प्रति चरण ४, ६, ७ वर्णों पर यति ४ चरण, दो दो चरण समतुकांत कान्हा स्वामी, नमन करिए, भावना नित्य बोले। वंशी देखो, बजत प्रभु की, राधिका मुग्ध डोले।। संगी ग्वाला, सुमिरत सुनो, श्याम प्यारे उबारो। राधा ध्यावे, नटवर सदा, नाम कान्हा पुकारो। राधे रानी, नित किशन का, नाम जापें विधाता। झूमें गोपी, नटवर कहें, आप हो श्याम दाता।। मीरा प्यारे, मनहर प्रभो, नाथ प्यारे नमामी। साँसो में भी, गिरधर रहो, आज आभार स्वामी।। नैया मेरी, भँवर फँसती, पार हो हे खिवैया। आई हूँ मैं, चरनन पड़ी, द्वार तेरे कन्हैया।। तारो कान्हा, प्रतिपल कहें, हो कृपा भी सहारे। कृष्णा कृष्णा, निशदिन रटूँ, हो दया क्यों बिसारे।। नैनो में हो...