पुतले का दहन
रामसाय श्रीवास "राम"
किरारी बाराद्वार (छत्तीसगढ़)
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कुंडलियां - छंद
करके पुतले का दहन, हर्षित है इंसान।
रावण अब मारा गया, कहता है नादान।।
कहता है नादान, इसी भ्रम में वह जीता।
पुतले को निज हाथ, जलाते सदियों बीता।।
कहे राम कवि राय, जोश हिय में वह भरके।
मना रहा है पर्व, दहन पुतले का करके।।
मरना रावण का नहीं, है इतना आसान।
जब तक के अपने हृदय, भरा हुआ अभिमान।।
भरा हुआ अभिमान, यही रावण कहलाता।
फिर पुतले पर क्रोध, व्यर्थ में क्यों दिखलाता।।
कहे राम अभिमान, हमें है निज का हरना।
तब होगा आसान, दुष्ट रावण का मरना।।
परिचय :- रामसाय श्रीवास "राम"
निवासी : किरारी बाराद्वार, त.- सक्ती, जिला- जांजगीर चाम्पा (छत्तीसगढ़)
रूचि : गीत, कविता इत्यादि लेखन
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।
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